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कल्पेश नाथ ,सदगुरुदेव के ऄघोरी शशष्य हैं और अज भी बहुधा वाराणसी में हररश्चंद्र घाट के शवपरीत वाले गंगा तट पर साधना करते और शवचरते शमल जायेंगे l सदगुरुदेव जी की कृ पा से मुझे ईनसे १९९६ में शमलने का गौरव प्राप्त हुअ था l जब मैं मााँ शवशालाक्षी के मंददर में श्री सायुज्य तंत्र शसशि साधना कर रहा था ईस काल में मैं वाराणसी में ६ महीने रहा हाँ , और सदगुरुदेव ने बताया था की आस साधना के शलए ईस मंददर से बेहतर स्थान कही और नहीं हो सकता है l और वाराणसी के मशणकर्णणका घाट के शवपरीत तट पर सदगुरुदेव ने शवश्वनाथ साधना ,ऄघोर कपाल प्रोक्त धूजजटा साधना और ६४ कृ त्या साधना संपन्न की थी ,ईस दौरान वे यहााँ पर बहुत लंबे समय तक रहे थे l ईन्होंने मुझे बताया की ऄघोर साधनों के शलए ये स्थान सवाजशधक शसशिप्रदायक स्थान है ,ऄघोर साधनों के ऐसे ऐसे रहस्यों को समेटे हुए है नगरी की क्या बताएं l शवशभन्न सम्प्प्रदाय के शसि साधक अज भी अपको वहााँ छोटी छोटी गशलयों में रहते हुए शमल जायेंगे और सामान्य रूप से ईनका व्यवहार आतना सहज होगा की अम मनुष्य तो ईनकी शवलक्षणता पर ही शवश्वास नहीं कर पायेगा l सदगुरुदेव ने यही पर कल्पेश्नाथ को पूणज ऄघोर शसशि दीक्षा प्रदान की थी ,और बस तबसे कल्पेश नाथ आसी काशी को ऄपनी साधना भूशम और कमजभूशम बनाकर सतत अत्मोत्थान के शलए साधनारत हैं lअज भी यदद कोइ प्रयास करे तो वे वाराणसी के दकसी न दकसी घात पर शवचरते हुए शमल ही जायेंगे l खैर मुझे वहााँ रहते हुए २ मशहने हो चुके थे और मेरा साधना क्रम भी बहुत ऄच्छी तरह गशतमान था ,मैं शनत्य ८ घंटे साधना करता था ,राशत्र में देर तक साधना करना और सुबह ३ बजे गंगा जल में दुबकी लगाकर ईसी जल में खड़े होकर ६ बजे तक शनत्य संध्या वंदन करना मेरा शनत्य क्रम था ,ऐसे ही एक ददन जब मैं स्नान करने के शलए गंगा जी में ईतर रहा था तभी मैंने देखा की गंगा जी की लहरों पर कोइ प्रकाशपुंज चलता हुअ अ रहा है, मुझे ताज्जुब हो रहा था की क्या मैं कोइ सपना देख रहा हाँ , परन्तु कइ बार अंखे मलने पर भी दृश्य ज्यों का त्यों ही था . . . . धीरे धीरे वो प्रकाश पुज ं मेरे सामने से शनकल गया और सीदियों की और ऄग्रसर हो
गया ,मैंने पलट कर देखा तो लंबी लंबी जटाओं वाला, काली धोती पहने,सांवले रंग का एक ऄघोरी रुद्राक्ष और मानव ऄशस्थयों की माला पहने हुए सीिी चि रहा था ,मैं भी झटपट ईसके पीछे पीछे चलने लगा ,हालााँदक वो चल रहा था और मुझे कदाशचत दौडना पड रहा था , परन्तु दिर भी मैंने ईन्हें नजरों से ओझल नहीं होने ददया ,वे चलते हुए शवशालाक्षी मंददर के सामने खड़े होकर कोइ ऄभ्यथजना करने लगे और देखते ही देखते ईस ददव्य मंददर के कपाट खुलते चले गए, ऄघोरी भीतर जाकर मााँ के शवग्रह के सामने वज्रासन मुद्रा में बैठ गए औए ऄकशम्प्पत भाव से मन्त्र जप करने लगे , मैं भी चुप चाप ईनके पीछे बैठ गया l एक घंटे के बाद वे ईठे औए ईन्होंने साष्ांग दंडवत दकया और प्रणाम के बाद मेरी और पलट कर कहने लगे की “तू तो शनत्य मााँ गंगा की गोद में संध्यावंदन करता है और अज का क्रम छोड़ ददया”l मैंने कहा - नहीं मैं ऄभी जाकर वो क्रम पूरा करूाँगा,मैं तो अपको गंगा जी की लहरों पर चलता देखकर ईत्सुकता वश अपके पीछे पीछे यहााँ चला अया l अप कौन हैं और ये सब कै से करते हैं ? ऄरे हम दोनों ही परमगुरु शनशखल के शशष्य हैं ,और मैं तेरा ही ज्येष्ठ भाइ हाँ,ऄब तू ही बता की भला ईनके शशष्यों के शलए कु छ ऄसंभव होगा l ऄरे जीवन का सौभाग्य होता है की वे हमें दीक्षा दे दे ,ईसके बाद तो जीवन भर की शनभजयता और पूणजता साधक के पीछे पीछे घूमती रहती है –ईन्होंने कहा l ईसके बाद ईन्होंने बहुत सारी बाते बताइ और तबसे जब तक मैं वहााँ रहा , शनत्य ही हम घंटो बाते करते l मैं शनत्य ही नाव से ईस पार चला जाता और ईनसे सदगुरुदेव और ऄघोर साधनाओं के बारे में बात करता, अज भी जब कभी मैं वाराणसी जाता हाँ तो यथा संभव ईनसे मेरी मुलाकात हो ही जाती है ,ईन्होंने बताया था की ईनकी कइ बार सदगुरुदेव की कृ पा से ऄघोर शशरोमशण शत्रजटा ऄघोरी जी से मुलाकात हो चुकी है और ईनके साशनध्य में ईन्होंने बहुतेरी साधनाएं भी संपन्न की हैं l शवगत वषज जब मैं कामाख्या से वाशपस अ रहा था तो मैं बनारस में ही रुक गया था, तब ऄनु भाइ और राजू भाइ श्री ऄरुण कु मार शमाज जी से मुलाकात के शलए चले गए थे और मैं कल्पेश भाइ जी से मुलाकात के शलए चला गया था lईन्होंने मााँ कामाख्या का ददव्य जल और वस्त्र मुझे लाने के शलए कहा था l तब मैंने ईनसे पूछा की –क्या अज भी अपकी शत्रजटा जी से बात होती है ? हााँ ऄभी कु छ ददनों पहले ही मैं ईनके पास से वाशपस अया हाँ ,वे थोड़े समय के शलए शसिाश्रम से वाशपस गुह्येश्वरी अये हुए थे lतुझे पता है की गुह्यश्व े री कहााँ है ? जी भाइ जी मैं वहााँ पर रहा हाँ और मैंने वहााँ गुह्येश्वरी साधना क्रम भी ६ हफ़्तों तक दकया हैl बहुत ही भव्य स्थान है ये नेपाल का l
हााँ हााँ वही पर ईनके साथ था मैं lकु छ साधनों की जानकारी लेनी थी ,आसशलए मेरी प्राथजना पर ईन्होंने मुझे बुलाया था l खैर ये सब तो ऄलग बात है , जब मेरी कल्पेश भाइ से पहली बार १९९६ में मुलाकात हुयी थी तो ईन्होंने एक छोटी सी करीब ११८ पेज की डायरी मुझे दी थी और कहा था की ये ऄद्भुत साधनाओं से युक्त डायरी है जो मुझे सदगुरुदेव से प्राप्त हुयी है ,ऄब आसे तू रख ले ,आसमें दी गयी सभी साधनाएं एक ही तंत्र की हैं,और शनश्चय ही आसके द्वारा ऄसंभव को भी संभव दकया जा सकता है l मैंने जब ईसे खोला तो ईसमे शलखा हुअ था “शशव प्रोक्त नखशनया कल्प सूत्र” l वस्तुतः नखशनया तंत्र एक पूणज तंत्र है शजसके द्वारा धन और ऐश्वयज तो चुटदकयों में प्राप्त दकया जा सकता है और कइ ऄसंभव कायज को भी संभव दकया जा सकता है ,सदगुरुदेव ने आसी तंत्र की एक साधना बहुत पहले हमारी परम शप्रय “मंत्र तन्त्र यंत्र शवज्ञानं” पशत्रका में दी थी ,और हजारों साधकों ने ईसका लाभ ईठाया था ,वह साधना भी आस हस्त शलशखत ग्रन्थ से ईद्धृत है ,और ये ग्रन्थ सदगुरुदेव द्वारा ही शलखा गया है l ईस ग्रन्थ में लक्ष्मी प्राशप्त के २६ नखशनया प्रयोग ददए गए हैं l अज ईन्ही में से एक और शवलक्षण प्रयोग मैं यहााँ दे रहा हाँ ,ये मात्र एक राशत्र का ऄथाजत दीपावली या दकसी भी ऄमावस्या का प्रयोग है l जीवन के समस्त अर्णथक ऄभावों को आस एक ददवसीय प्रयोग के माध्यम से दूर दकया जा सकता है , दीपावली की रात्री को महाशनशीथ काल में (११l२४ से १२l४८) ईत्तर ददशा की और मुह करके लाल वस्त्र धारण कर के लाल असन पर बैठ जाये और सामने जमीन पर सफ़े द कपडा शबछाकर ईस पर कु मकु म के द्वारा शनम्न यन्त्र ऄनाशमका उाँगली के द्वारा बनाये यन्त्र बनाते समय “ॐ लक्ष्म्प्यै
नमः” मंत्र का ईच्चारण करते रहे l याद रखने योग्य तथ्य ये है की यन्त्र के खाने चाहे कही से बनाये परन्तु यंत्र में ऄंक १ ,२,३,४ आसी क्रम से भरना है ये अदद क्रम है ,और लक्ष्मी स्थाशयत्व में आसी क्रम का प्रयोग होगा l ऄब आसी प्रकार जहााँ १ शलखा है वहााँ ७ िू ल वाली लौंग रख दे ,जहााँ २ शलखा है वहााँ ३ आलायची ,जहााँ ३ शलखा है वहााँ ७ काली शमचज , ४ – थोड़े से काले शतल ५ – थोड़ी सी पीली सरसों ६ – थोड़ी सी काली सरसों बाकी जगह पर ऄलग ऄलग रुपयों के शसक्के जैसे १,२,५ या १० रूपये के १-१ शसक्के ८
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४
९
२
आसके बाद शनम्न मन्त्र का १५ शमनट तक ईच्चारण करते हुए सभी सामशग्रयों पर कु मकु म ऄर्णपत करे और शतल के तेल का दीपक lलाल पुष्प और गेंह के अटे का हलवा भोग लगावे मंत्रलक्ष्मी तू नखशनया कहावे शबष्णु तेरो भरतार,बैरी तोड़े दररदर तोड़े,तोड़े कष् हजार हजार दुःख दुशनया का तोड़े ,एक दुःख मेरा भी तोड़ ,भर दे धन झोली करतार , जो ना भरे तो शबष्णु की दुहाइ ,शशक्त की लाज राखे ,छू और आसके बाद १ घंटे तक शस्थर भाव होकर शनम्न नखशनया मंत्र का जप करे ,यदद कमलगट्टे की या मूंगे की माला हो तो ऄशतईत्तम है ऄन्यथा वैसे ही जप करे l मंत्र -
ॎ श्रीं सर्व सौभाग्य ह्रीं आकस्मिक धन स्सस्िि् देस्ि देस्ि निः दूसरे ददन सुबह सभी सामग्री को ईसी कपड़े में थोड़े और पैसे डालकर और लपेट कर शतजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दे ,प्रशत शुक्ल पक्ष की ऄष्मी को आस पोटली को खोलकर आस में बगैर देखे थोड़े से और पैसे डाल कर लपेट दे और धुप बत्ती ददखाकर वाशपस रख दे lयाद रखना की पोटली के भीतर नहीं झांकना है है,आसशलए ईसे थोडा सा ही खोले और थोड़े से पैसे डाल कर पुनः लपेट दे l ऄगली दीपावली या जब १ वषज पूरा हो जाये तो दकसी भी नदी में ले जाकर ईस पोटली का शवसजजन करदे और शवसजजन के पहले पैसे शनकाल कर दकसी मंददर में या कु माररयों को भेंट में दे देl आस प्रकार अप प्रत्येक वषज आस प्रयोग को कर सकते हैंl और जब तक ये पोटली अपके घर में रहेगी अपको कभी भी अर्णथक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा ,लगातार अपको अकशस्मक धन की प्राशप्त होती रहेगी और प्रचुर धन प्राशप्त का जररया बना रहेगा lनवीन स्रोत का शनमाजण होता जायेगा lऔर ऐश्वयज भाव को स्थाशयत्व प्राप्त होगा l यदद आसी यन्त्र का शनमाजण दकसी सफ़े द वस्त्र पर करके ईसकी थैली बनवा ली जाए और पुनः ईसके उपर यंत्र बनाकर पूवोक्त शवधान कर शलए जाये परन्तु ये मन्त्र जप १४ ददनों तक शनत्य १०१ माला करना होगा और ऄंशतम ददवस उपर जो सामग्री रखी हुयी हो ईसे झोली के ऄंदर डाल ददया जाये और हर शक्ल पक्ष की ऄष्मी को ईस झोली में धन राशश डालते चला जाये तो भशवष्य में शजतने भी धन की जरुरत अपको हो ईतना धन अप ईस थैली में से शनकाल सकते हैं,परन्तु ना ही तो अप ईस थैली में झांकेंगे और ना ही ईसे धन से ररक्त करेंग,े दिर देशखये अप आस ऄद्भुत साधना का चमत्कार l मैंने ऐसी ही एक थैली कल्पेश नाथ भाइ के पास देशख थी और देखा था ईसका चमत्कार भी l
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------Kalpesh Naath, is sadgurudev’s aghori disciple and today even many time could be seen in sadhana or wandering in varanaasi at opposite side of ganga river bank. With the blessings of the sadgurudev I received honour
to meet him. When I was performing sadhana of shri saayuuj tantra in vishalakshi temple at that time I stayed in Varanaasi for six months and sadgurudev told that for this sadhana neither best place in this world exist except this. And on the opposite side of manikarnika ghaat of Varanasi sadgurudev did vishwanaath sadhana, aghor kapaal prokt dhurjataa sadhana and 64 krityaa sadhana, at that time he stayed at this place for long duration. He told me that for aghor sadhana this place is most boon giver, words are less to describe secrets of aghora which this place have hidden in it. Today even highly accomplished Sadhak of different cults could be found living here in small streets and their behaviour in routine would be so much normal that no one would believe about their accomplishments. Sadgurudev granted purn aghor siddhi diksha to kalpeshanaath at the same place only and since than kalpeshnaath have made this land his living land and sadhana land to find out the real meaning of the self. If today even someone tries, he could be found in one of the ghat roaming. Anyways, I was living at that place for 2 months and my sadhana was running fantastic, about my routine, I used to spend 8 hours for sadhana in day and in night time late night sadhana and again in morning from3 AM to 6AM sadhana used to be done by deep in water and standing in same ganga water. In those days one day when I was going for a bath in ganga, I found a light walking on ganga waves, I was feeling strange that I am dreaming or what but the scene was the same after too merging my eyes...slowly that light went from just a distance of me and went ahead on stairs. When I looked back with a long hair in black dhoti, dark skinned wearing human skull and rudraksha aghori was climbing the stairs; I too started following him, however he was walking but I was almost running to reach his speed but I did not let him went from my sight. He kept walking and infront of vishalakshi temple he started his ritual song. And in a sudden the doors of the temple started opening. Aghori went inside and set himself in vajrasana in front of idol of goddess and started mantra chanting continuously, I quietly sat behind him after an hour he stood up and bowed to the idol and turned back to me; he told “you daily do the ritual inside ganga river and today you left your order today?” I said – No I am just going to complete my belongings, but I could not stop to follow you with curiosity when I seen you walking on the river ganga. Who are you and how do you does this? “we both are disciple of paramguru Nikhil, and I am your elder guru brother only; Now you say, is there anything impossible for his disciples? It is always a great fortune if he grants initiation after that full valour for the whole life and completeness runs behind“He said.
After that he told me about many things till the time I remained there, daily we used to talk for hours. I used to go on the other side of the bank daily on boat and used to speak about sadgurudev and aghor sadhana, today even when I go to Varanasi, most of the time our meeting occurs, He told me that with blessings of sadgurudev he has honour to meet trijata aghori ji many times and in his holy guidance he did many sadhanas last year when I was coming back from kamakhya I stayed in banaras at that time anubhai and rajubhai went to meet shri Arun Kumar Sharmaji and I went to meet kalpesh Bhai. He asked me to bring holy water and cloth of maa kaamakhya. At that time I asked – today even do you communicate with Trijataji? Yes, before few days only I came back from him, He came to Guhyeshwari for small duration from siddhashram. Do you know where guhyeshwari is? Yes bhai Istayed there and I did guhyeshwari sadhana for 6 weeks. It is very heart touching place of Nepal. Yes, at that same place I was with him. Was willing to take information about few sadhana, for that purpose with my prayers he called me there. Anyways, these all are different talks, When I met kalpeshbhai first time in 1996 at that time he gave me a small diary of about 118 pages and told me that this diary contains many miraculous sadhana which I obtained from sadgurudev now you take it these all sadhana belongs to one tantra only and with this even impossible could be made possible. When I opened it there was written “ Shiv Prokt Nakhaniyaa Kalp Sutra” Literally, Nakhaniya tantra is whole complete tantra with which money and prosperity could be gain in certain and many impossible tasks even could be made possible, from the same tantra sadgurudev gave one sadhana in our beloved magazine “mantra tantra yantra vigyan” and thousands of the sadhak took benefit of tha, that sadhana too is from this hand written script and this script was written by sadgurudev only. In that hand written scripture 26 nakhaniyaa prayoga were given for wealth gaining. Today from the same scripture I am sharing one more nakhaniya prayoga, this is for one night only means dipawali or any full dark night (amavasya) All the financial troubles could be removed with the medium of this one day prayoga. In the mahanisha time duration of dipawali (11:24 – 12:48) sit
on the red aasana with red cloths facing north direction and place a white cloth on the floor in front of you and with Anaamikaa Finger prepare the following yantra on it with vermillion ( Kum Kum) while preparing yantra one should keep on chanting the mantra “Om Mahaalakshmyei Namah” One should remember that box of the yantra could be prepare with anyway but the filling of the numbers should be 1,2,3,4...in this order only which is ancient order and in lakshmi establishment this order is must. Now where 1 is written place seven clove (not broken. The one with head) at the no.2 place 3 cardamom, where there is 3 place 7 blackpapers, 4- Few black sesame. 5 – Few yellow mustards. 6 – Few black mustards. On the remaining places place different single coins like 1,2,5 or 10rs.coins.
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After this, chanting the following mantra for 15 minutes offer vermillion (kum kum) on all the material placed and also offer lamp of sesame oil, red flowers and sweet made from flour. MantraLakshmi Tu Nakhaniyaa kahaave Vishnu tero bharataar, beiri tode daridar tode, tode kasht hajaar Hajaar dukh duniyaa kaa tode, ek dukh meraa bhi tod, Bhar de dhan jholi kartaar, Jo naa bhare to Vishnu ki duhaai, Shakti ki laaj raakhe, chhoo And after that with constant concentration onw should chant following nakhaniya mantra, if kamalagataa or munga rosary is brought in use its better or else do the chanting anyway. Mantra-
Om Shreem sarv saubhaagy hreem aakashmik dhan siddhim dehi dehi namah Next morning place few more rupees in that cloth and fold it and place in your money keeping place, at every shukal paksha astami without watching inside few more money should be placed in that cloth and fold it after offering dhoop place it again at its place. Remember one should not look inside the cloth so one should open it as much as required to add more money to it. When 1 year is completed at that time next diwali go to river bank and take out money from it. Rest things should be placed in water. The money should be offered to temple or kid girls. This way you can do this prayog every year. And till the time this folded cloth bale will be there the person will not have any financial troubles. Continuous money certainly/uncertainly will keep on coming and will keep on arranging new ways to have more and more wealth. It Will also establish the prosperity. If this yantra is made on the white cloth and bag of the same is prepared and again with above mentioned process yantra preparation is done and with all material is placed inside it. And at every Shukal Paksha Ashtami if money is added in it in that condition in future one can take as much of desired amount one needs from that bag; but one should not look inside the
bag neither one should forget to offer money every month, I have seen such bag with KalpeshNath Bhai and also seen its miracle.
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