ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Eleventh Issue – June 2012
Tantra kaumudi June 2012
1|P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
यं न स तं चास तं न नरं न सुरासुरं , न सुवृतं न दु ब तं वे द कि त स्
ा ण:
|
मं शि ि तं िव ान ात च रतं गु ं िस ा म मयं देवं णमािम िनिखले रम ||:||
िजसको कोई संत ,असंत, मनु य ,सुर ,असुर ,सुवृत , अथवा दु वृत नही जान पाया
वह
िन
योगी ह .मं शि
से स प ,िव ान तथा िजनका स यक च र िच ण दु ल भ ह
,िस ा म के ाण व प भगवत पू य पाद , सदगु देव िनिखल के नमन करता
ी चरण मे िन य ातः बेला मे सादर
ँ.
To whom ,no monk ,wicked ,gods and demon ,suvrit
(one who
observe bow firmly )and duvrit (one who donot observe bow firmaly )can able to know .he is bramhnisthh yogi (one who always immersed in Brahm ) ,he who is having
the mantra
power,schlor and whom samyak charitr chitran means whole life biography is very difficult to understand , in every morning , I bow completely to the divine holy feet of sadgurudev Nikhil who is the life force of the holy siddhashram
.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Dedicated To
The Divine Holy Lotus Feet of
Param Poojya Sadgurudev Dr. Shri Narayan Datt Shrimali JI (
Paramhansa Swami Nikhileshwaranand ji
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)
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Publisher
Tantra kaumudi e-magazine
Nikhil Para Science Research Unit Can be contacted through
http://nikhil-alchemy2.com www.Nikhil-alchemy2.blogspot.com & Nikhil_alchemy yahoo group
TEAM MEMEBERS OF TANTRA KAUMUDI E- MAGAZINE
Editor
Associates editor s
[email protected] [email protected]
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And
Creative Designer
[email protected]
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Name of the Articles
General rules
Editorial
Sadguru Prasang
Manokamna purti karak Sri Ganpati vidhan
Para Vigyan – prarambhik parichay
Para jagat aur Yog Tantra
Para jagat ki aatamao se samparak sadhana
Shatruon se mukti hetu kundalini shakti sadhana
Aatm sanjivini kriya sadhana
Sanket kriya siddhi sadhana
Sani ki sadhe saati aur neelam
Anubhut tantra –prarambhik parichay
Anubhuti tantra sadhana -mahatvpurn tathy
Vijayaa sadhnana
Sarv kaary siddhi sadhana
Vashikaram sadhana
Kaary sthal me unnti hetu sadhana
Sookshm sharir jaagran sadhana
Swarna Rahsyam- part -11
Saral Dhandayak Lakshmi sadhana
Totaka vigyan
Ayurveda
In The End
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
All the articles published in this magazine Are the sole property of Nikhil Para science Research unit, All the articles appeared here are copy righted for NPRU. No part of any articles can be used for any purpose without the prior written permission obtained from NPRU. You can Contact Us at
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
: This free e magazine available only to the follower register in the blog Nikhil-alchemy2.blogspot.com. and also nikhil-alchemy groups memeber . the article appear here, are /will be based on the divine wisdom of SadGurudev Dr Shri Narayan Dutt Shrimali ji , and his sanyasi shishyas . we as a your fellow guru brothers, here just providing words to their thought. For the address of these mahayogi’s are not known to us, as they all are wondering saints. The sadhana and mantra’s appeared /mentioned in any article can be practiced ,on your own responsibility, to get success in sadhana you can have Diksha from anywhere where your faith,devotion and trust calls . for sadhana articles needed for that , you can purchase from any place ,as per you faith and trust suited to you , Please do not ask us for any type of sadhana related materials, and also for Diksha related Queries at any cost /condition , we does not sell any sadhana material (yantra , rosary etc).
Since sadhana is a very complex matter, for success and failure of any sadhana mentioned in any article here , many things required , to get success . that’s why ,we do not take any responsibility in this connection. we also request, not to do any sadhana ,which is adverse and not permitted as per legal, morel, society belief. This e magazine will be published monthly. You are receiving this magazine means that you are accepting the terms and conditions . at any time , you can withdraw your registration . this e magazine just a forum to share knowledge between us ( Sadgurudev ji’s shishyas - All guru brother and sisters ), if still any one raises questions regarding the authenticity of articles published here , for them, treat all articles just as a fiction and a ear say.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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...... य आ मजन , िन खल णाम, दे य ते: व व गु व तं आ दनाथात ् गु
ानपूजा परा मता |
ानं वगु व तं महे र ||
गु क म हमा को अनंत मुख से भी नह ं बताया जा सकता है ,वाणी का फर चाहे जो भी कार
हो,परा,प य त या फर वैखर | अथात माँ आ ा श त व के प म तं
ान के काश से इस स पूण
कौमुद का ये ११ वाँ अंक "अनुभूत तं
भांित आपको
ह तो िनत नूतन शर र का धारण कर गु
ा ड को आलो कत करती है |
और परा व ान महा वशेषांक" है | जो सदै व क
ान के कुछ छुए और अनछुए पहलुओं से प रिचत करवाएगा | मने पहले भी कहा है
क हमारे प र म को साथकता तभी िमल पाएगी जब आप उ लास से उसे अंगीकार कर उस रह य
को वयं भी जी कर प रिचत ह गे.... तं कोई दशन नह ं है अ पतु ायोिगक िस ांत है | वयं करो और अनुभूितय के सागर म गोते लगा लो | इसके अित र
कोई िनयम नह ं है तं या साधनाओं
को जीने का | याद र खये सफलता उ ह का वरण करती है जो उसे झपटने क कला से ना िसफ प रिचत हो अ पतु उसका कालानुसार योग करना भी जानता हो.....| मुझे व ास है क आप म से ज ह ने भी स
होगा,उ ह य
साधनाओं को संप न करने का उ साह दखाया
या स बंिधत साम ी िमल गयी होगी...१५ जून तक आपको उनक विधयां भी
मेल कर द जायगी...ता क आप उ ह ायोिगक प से संप न कर सक | आप इस बात से िन
त
र हये,आप जैसे ह एक साधना संप न कर लगे आपको आपक वांिछत दू सर साधना क साम ी े षत कर द जायेगी | बहु धा ामा णक वधान होने पर भी य द
ामा णक साम ी ना हो तो
साधना म सफलता मील दू र ह रहती है ,अब वैसा कभी इस माग के कसी पिथक के साथ ना हो,और उसे िनराश ना होना पड़े ,इसी उ े य से हमने इस योजना को आप सभी के िलए रखा है | िस याँ दु हता यु वन
नह ं होती ह,अ पतु उ ह भली भांित अपनी आ मा म उतार लेना और
होते जाना क ठन है | अतः आप इन गुण से खुद को यु
थम बार म ह िमल जाती है क तु, संिचत, ार ध या
करते जायगे | साधना म सफलता
यमाण कम फल का मलावरण इतना
सघन होता है क हम अपने प र म फल को चख नह ं पाते ह और ये मान कर बैठ जाते ह क
शायद कुछ नह ं हु आ है |साधना म सफलता तो आपके प र म के फल व प ा होगी ह क तु जो आप बार बार प र म करते हो ये आपके उ ह तीन कम फल से मु
होने के िलए करते
हो, जससे आपके आगे का ितिमर अ धकार दू र हो सके और पूण स य से आप प रचय पा सके |
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ये अंक अनुभूितय और परा व ान क दु िनयाँ म आपको सफर भी कराएगा और उनमे
अनुभूितय को मु लम तं
ा
करने के सू
से भी प रिचत कराएगा | अगला अंक " व वध िस
महा वशेषांक" होगा | और अब से हमारा यह
आपक ये प का समय पर ा हो सके |
यास होगा क
और
ित माह आपको
व वध काय म य तता के कारण हम तीन चाह कर भी समय पर प का काशन म वल ब
कर दे ते ह.... क तु धीरे धीरे हमने अपनी जीवन चया को ऐसा ढाल ह िलया है क शायद अब वल ब ना हो |ये अंक आज रा मेरे
के थम हर तक आपके पास होगा |
य भाई अनुराग िसंह गौतम और रघुनाथ भाई को मेरे अनापे
त दबाव का सामना करना
पड़ता है |और एक एक लेख को १०-१० बार जांच कर ह आगे दया जाता है |और वे दोन हँ सते हु ए इन योजनाओं को साकार करने म अपना सव व लगाते ह...इसके िलए आभार श द बहु त कम ह
होगा | हम अपने भाई बहन के िलए हमेशा त पर ह...आइये हम सभी भाई बहन आपस म कंधे से कंधा िमलाकर आगे बढे और सदगु दे व के
व न "िस ा म साधक प रवार" को साकार
करे | कसी के आगे िगडिगडाए नह ं ब क थोडा सा समय लगाकर और
योग को संप न कर
वयं क सम याओं का वयं ह अंत कर वभा य िनमाता बने | तब तक के िलए......
"िन खल णाम "
सदै व से आपका ह भाई आ रफ खान िन खल
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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SADGURUDEV - PRASANG
यमुनो ी तक लोग तो जाते ह , पर तु ब त कम लोग को पता ह क इसके आगे लगभग ६ कलोमीटर पर एक अ यंत ही सु दर रमणीय अ भुत
ाकृ ितक झील ह िजसे “वासुक झील ” कहते ह इस झील का पानी अ यंत ही
मधुर शीतल और व छ ह . यमुना नदी के आसपास से
वािहत होती ह .
हम साधको क कई दन से इ छा थी क वासुक झील के दशन कये जाए ‘पर तु उसका रा ता प ट नही था . य क यमुनो ी के बाद आगे कसी कार क न तो कोई पगड डी ह न ही कोई रा ता ही . जब हम वासुक झील के िनकट प ंचे तो वहां क लगाया जा सकता था क
कृ ित इतने िविवध पु प
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ाकृ ितक शोभा देख कर दंग रह गए,यह भी अनुमान नही का ृंगार कर इस बफ ले
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देश मे बैठी होगी .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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असं य
तरह के पु प यहाँ िवकिसत
ह .मने फू लो क घाटी के बारे मे तो सुना
ाकृ ितक सुषमा क दृ ी से यह थान भी िव चौड़े
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और देखा अव य था पर तु
का अ यतम थान ह मने यहाँ पर िखले
ए एक मीटर लंबे
ह कमल भी देख . कई कई रंग के पु प से आ छा दत यह धरती अपने आप मे अि तीय ह
वासुक झील लगभग तीन मील लंबी और डेढ़ मील चौड़ी ह . इसका कराता ह . हम सब ने जी भर कर इस झील मे
व छ जल अपने आप मे पिव ता का बोध
ान कया और सं यावंदन आ द से िनवृत
ए.
दोपहर का समय हो गया था पू य गु देव वहाँ पर वन पितय के बारे मे समझा रहे थे.तभी बातचीत नख दपण पर आ गयी . गु देव ने कहा “यह एक िविश नख मे िव
क
िसि
ह िजसके मा यम एक साधक अपने दािहने हाथ के अंगूठे के
कसी भी घटना को बखूबी देख सकता ह . ठीक उसी कार से जैसे क
वह कोई चल िच
देख
रहा हो “. मने पूंछा “ या संसार मे कह भी घ टत घटना को त गु देव ने उ र दया “वतमान घटनाओ को ही नही
ण
देखा जा सकता ह “
य द वह चाहे तो बीती
यी घटनाओ को भी पुनः देख
सकता ह और भिव य कालीन घटनाओ को भी नख दपण के मा यम से पहचान सकता ह “ अपनी बात क
ा या करते
ए गु देव ने बताया “काल का
वाह िनरं तर ह .काल अपने आपम अिवभा य
और अखंड ह ,िजस कार िबजली के िसरे को हम पकड ले और उसका दू सरा िह सा कई हजार मील दू र ि थत ोत से जुड़ा हो तोभी िबजली का अनुभव उतनी दु री पर हो जाता ह ठक इसी पूव ,वतमान ,और दस हज़ार बादक घटनाओ भी एक ही काल सू मे आब
कार से आज से दस हज़ार वष
ह .य द इसके एक िसरे को हम देख
लेते ह तो दू सरे िसरे को भी देख सकते ह और इस कार से इन दोन िसरे के बीच िजतनी भी घटनाये घ टत यी ह उन सबको देखा जा सकता ह
भिव य मे उस काल सू
मे जो घटनाये घ टत ह गी उनको भी पिहचाना
जा सकता ह योगी अपने अ त यान मे घटना
को घ टत होते
इन सबको देख सकता ह और िविश
िसि
ा
कर अपने हाथ के नाख़ून मे उन
ए अनुभव भी कर सकता ह .”
हमारी िज ासा होने पर उ ह ने उस िविश पि ित क जो क नख दपण िवभूित से सबंिधत ह प ट कया .गु देव जी ने मुझे अपने पास बुलाया और मेरे दािहने हाथ के नाख़ून को अपनी उं गुली और अंगूठे के बीच मे लेकर मसल कर छोड़ दया , फर मुझे अपना अंगूठा देखने के िलए कहा . म देख रहा था क आज से सात ज म पूव मे म या था और जीवन यापन कर कस कार मृ यु को ा फर छठवा जीवन ,पाचवा जीवन और इस
कया .
कार अपने वतमान जीवन को भी मै साफ़ देख रहा था .
कु छ ण के बाद वह भी दृ य आया जब म अपने गु भाई बिहन के साथ वासुक झील पर गु देव के सामने बैठा ँ और यह सब कु छ देख रहा ँ . दृ य प रव तत होते ह म आगे के जीवन क आने वाली घटनाओ को भी बराबर देखता जा रहा ँ .मने यह भी अनुभव कया क मेरी मृ यु कहाँ और कस कार से ह फर मने अगला जीवन देखा उस जीवन का पूरा म देखा और इस कार आगे के सभी दृ य बराबर उस नख मे मुझे दखायी दे रहे थे
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जो कु छ मने देखा था वह आ य च कत करदेने वाला था ,पहली बार मने अनुभव कया क काल का वाह अनंत ह और हमारा जीवन िनि त ह .योगी लोग उस िनि त जीवन मे ह त ेप कर उस मनचाहा बना सकते ह और अपने जीवन को सवार सकते ह . मेरी इस धारणा क पुि बाद मे गु देव जी ने भी क . उ ह ने भी बताया
क सामा य जन तो वेसे ही पैदा
होकर मर जाते ह .जैसा क उनके जीवन मे िनि त होता ह पर जो क गु क दी ा के
ा साधक ह जो साधनाओ
े मे िनरंतर अ सर ह वे साधनाओ के मा यम से िवपरीत घटनाओ को मोड कर अनुकूल बना सकते ह .और् य द
चाहे तो इसी जीवन मे मुि
पा सकते ह . या मृ यु क जीत कर इसी जीवन मे अमृ युवान बन सकते ह सैकडो
हज़ारो वष क आयु ा कर परमहंस क अव था मे प ँच सकते ह . गु देव ने कहा “ इतना ही नही अिपतु योगी या ऐसी साधना से सबंिधत साधक कसी अ य के जीवन वाह मे भी प तवतन ला सकता ह .उसके जीवन क अशुभ घटनाओ को समा कर सकता ह और अनुकूल घटनो मे वृि
कर
सकता ह .” “ऐसा योगी कसी के भी भा य िनमाण करसकता ह और य द उसके भा य मे कु छ घटनाये नही िलखी हो तो उसे भी बना सकता ह. “ -मं
तं
य
व ानं से साभार स हत
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People used to visit yamunotri ,but very few people knew that after just 6 kilometer away from that a very beautiful and natural lake situated ..that which is known as Vasuki jheel or Vasuki lake .the water of this lake is cold ,pure and very good to drink .yamuna river also start from here . many sadhak like us ,had a strong desire to visit this lake but the road /a way to approach was not clear since
after the yamunotri there is no road neither any pre defined path
exists . when we reached near the yamunotri ,we were amazed to see the natural beauty scattered over there ,one could not imagine that there , in such a glacial area ,such a magnitude of natural beauty of mother nature is available all around .
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uncountable types of flower available there . I had heard
about the valley of flower and
visited there too .but on the point of natural beauty ,this place is also have a place in the list worlds place of natural beauty .here I had seen the BRAHM KAML (the lotus flower named after lord brahma ) .these bramh lotus flower having
length and width about 1
meter long. On this place, the mother earth beautified with herself with the flowers of many colored is incomparable . the Vasuki jheel or lake is
3 km long and1.5 km wide. The clean water of this lake
gives the feeling of purity and holiness .we had taken the bathe in the lake and enjoyed as much as we can and completed the sandyavandan ritual there .. the mid day
time
detail of various shifted
approached
plants
and poojy gurudev
gave
the information and the
found over there .than the suddenly the subject of our talk
on the NAKH DARPAN . gurudev told us
this is vishisht siddhi
through this, a
sadhak could see any event happening in the world like that he is watching the movie. I asked” is it possible to
watch any event happenings
in the world on the
same
instant .” Gurudev
replied
that “not only the
happened on the past
and also
present events
but also
could
see any
event
the event related to future could also be understand
through this nakh darpan . On clarifying
his view gurudev
continuous .as we
told
that the flow of kaal or time is unbreakable and
catch the one side of electricity wire , even though the
getting or receiving the current
other side
from the sources situate d thousand miles away .but we
can feel the electricity on the time .in the same way we can see the event happened in ten thousand years back and on the time event and also the future event that will be of ten thousand years ahead since all theses belong to same kaal sutr / time string .
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so if one can se e the one side so he can also see the other side too.and in the same way any event that happening in middle of both the part ,can also be seen .with same way future event can also be seen. Yogi can see all this in his antr dahyan means
internal meditation and can get
vishsiht
siddhi through that he can easily watch the happenings event in the right side of nails. Understanding our deeper desire to learn this .gurudev me
describe in details and
instruct
to come neared to him and my right hand
S thumb
he massaged with his thumb and finger and asked me to see that .
I was watching ,that how was I , in seven life before and how I
completed the life and
after that how was I caught the death , again same things with fifth life details and so on til this life and
what I saw I was
sitting with gurudev ji along with other brother and
discussing the same with sadgurudev. , and also very clearly watching the means present.but
on this palce ,after that
I had seen how
and your deatj comea n after that where I was borm
vartmaan kal
myself completed this alife
that place I also checkeed. Aal the
deatails are very easily found on the nakh darapan.What ever I have seen reaaly marvelous and un eliavble ,What ever I have seen really very very unimaginable and first time I understand that
the continuity of time vcannaot be broken and our life I fixed and yogi
person can change any one life even though that is pre defined. Gurudev already instructed that and have positive signal about my dharnaa /understanding .he also told me that
what is
the life of a common paerson and take birth and died one
day as their life is fixed by the nature but
those fortunate one who get the diksha from
guru and also doing continous sadhana, can reach the height where complete libration or win over death
the fellow can get
so that reach hundreds thousands of your life and
reaches param hanse avstha .
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Gurudev told “not only this such a sadhak or yogi through thiess type of sadhana can modified ouir problem. Ans can vanish or remove negative karma of pasrtlives /and can incres positive event in his life Such an yogi can creat any person luck and the person of
member of the family if not
having some sopeacuial event that is also possible .. . From mantra tantra yantra vigyan
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manokamna purti kaarak SHRI ganpati PRAYOG
मनोकामना पू त कारक गणपित योग ... भगवान गणपित न के बल देवताओ मे भी थम पू य ह बि क हर् शुभ काय मे हर साधना मे भी उनक वंदना होना आव यक ह ही और ऐसा तो हर स दाय मे होता ह यह ज र ह क स दाय िवशेष के कारण भगवान के िवशेष व प मे प रवतन आ जाता ह ,जब जीबन मनोकामनाओ .यह तो मानव
थम
िवशेष मे परंपरा
क बात आये तो िन य ही
क बात भी आएगी , और सभी अपनी सम त शुभ मनोकामना क पू त कम से कम चाहते ह ही वाभाव ह और इ छा पू त करने मे कोई
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असामा य बात भी नही ह .
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पर य द भगवान गणेश क साधना मे मनोकामना पू त का भी िवधान शािमल हो तो वह अपने आप मे एक अ भुत त व होगा . य क
यह तो हमारी
यूनता ह क हमने मा
उह
िसफ साधना
िसफ मरण करने का तीक मान िलया ह बि क व तु ि थित ऐसी ह क
ारंभ करते समय
वे सम त देवताओ मे थम पू य ह
इस एक अथ मे उ ह सभी देवताओ का सामूिहक ितिनिध माना जा सकता ह .और भले यह ज र ह क पावती पु
माने जाये पर भगवान
का यह व प तो
.यहाँ तक क िशव पावती िववाह मे उनका औरशा उ
धम क
या शि
थान ह पर सामा य
भगवती के
ारा सीधे
मरण कया गया ह
को पूजन या साधना मय
वग
व प ह िजसके
इस त य को जानता
ज म का कोई समय ह ही नही
मतलब भगवान गणेश एक अनादी त व ह
वीकार करने वाले स दाय क माने तो इनका ब त नही हीह क
उनके गणेश व प का
आ मतलब एक अथ मे कहा जाए तो वे शि
िशव क सीधे कोई भूिमका नही ह . इस कारण शि
वे
से उ प
आिबभाव
मा
ह उनके ज म मे भगवान
पूजा करने वाले को उनका मह व समझना चािहए ...
ेताक का पौधा या पेड़ क जड़ तो सभी साधक जानते ह क सीधे भगवान गणेश का ही व प मानी गयी ह . कु छ सात या आठ साल बाद कहते ह क
जो मूल जड़ होती ह उसका
से पूण सा य सा कर जाता ह .तो उसजड़ ब त छोटी एक अंगूठे के सामान
को
व प ठीक भगवान गणेश के
व प
ा कर ले, दन रिववार का होना चािहए .और इस जद से
मू त का िनमाण कर ले . और िन
मं
ारा उनका पहले पूजन कर .
महा गण पतये नम : इसके बाद िजस मं का जप साधक को कम से कम एक दो महीने या या जब तक इ छा पू त का समाचार ना िमल जाए तब तक करना ह ... ॐ अंत र ाय
भगवान को ित दन लाल कनेर और लाल रंग के पु प य द संभव हो तो अपण करते जाए देवता
वाहा ||
को पु प ब त ि य होते ह ,
इस योग मे माला सामा य
प से हक क क
दू वादल ब त ि य ह वह भी उन पर अ पत
य क
आसन और व
पीले हो तो
े
ली जा सकती ह
रंग कोई भी हो .भगवान गणेश को
कया जा सकता ह .
होता ह . दशा पूव या उ र
और मं जप
ातःकाल हो तो उिचत
रहता ह .
साथ ही साथ
उ ह बेसन के ल डू या मोदक भी ि य ह तो इनका उ ह नैवे
भी अ पत कया जा
सकता ह . सामा य
प से य द संभव हो तो हवन आ द
ित दन इस मं
से करते जाए तो प रणाम और भी अनुकूल ा
होते ह .
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Vol . 0 1 - No 11 ***************************************************************************************************** ***********************************************************************************************
In all the devatas Bhagvaan Ganpati is worshipped first ,not only this in very beginning of every
ritual in every sadhana its must to worship him first and that has been strictly
followed in every sect , that is another point that due to difference in belief and faith
forms
may be different. when we talk about life than surely the wish will be a subject among many .and everyone wants
to fulfill his good wishes and that is a very natural behavior of
human being and to fulfilling the wish is not any unnatural things. If bhagvaan ganesh ‘s sadhana miraculous
contained the element of wish fulfilling than
this will be a
aspect. Since this is our limited thinking that we consider him just
a devta
that too remember in the beginning just to start a new work .but in realty he is the first among all the devtas and in one sense he can be consider a
single representative of all,
yes this is true he can be considered as a bhagvati parvati’s son but he is bramh swarup so there is no birth
time
of
him. even he is remembered
in the marriage
ceremony of
bhagvaan Shankar and parvati . that means he is the element who has no beginning or end. And his place in shakt dhram is very high. common people does not understand this .the appearance of bhagvaan ganesh from bhagvatii and that too that way in that no direct role of bhagvaan Shankar means he is the shakti putr
so every shakt must understand
this. Every body knew that what is the shwetaark plant .and the root of that plant is consider bhagvaan ganesh .means when the age of that plant reaches 7 /8 years than this happens. To take out that root on Sunday and
make a
idol just the height of your thumb. and
worship with this month . Shreem maha ganapatye namah || After that mantra that has been recite for
next two three month ,til you get
news that your wish is fulfilled.
Tantra kaumudi June 2012
18 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
the info or
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Om antarikshaay swahaa .
If possible offer red color kaner flower since fond of flowers.
For the mantra
jap you can take
hakik mala ,colors may be any , and offer
durvaadal , this is very much fond of bhagvaan Ganpati
And clothes and aasan color may be different, the direction may be
north and
mantra jap if done in morning will be much better.
Offer him the laddu made of besan and moudak also he loved so much.
And every day havan will be done with this month than result may be very much.
Tantra kaumudi June 2012
19 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Para Vigyan………….Preliminary Introduction??
साधना
े
क कोई सीमा ही नही ..िजतने गहराई मे हम जाते ह उतनी ही ब मू य मोितय
से हमारी झोली
भरती जाती ह . िजन खोजा ितन पाईयां ... हर जगह च रताथ होती ह ..और एक से एक नए आयाम हमारी मानिसक चेतना
के सामने आने लगते ह ये कु छ ऐसे
आयाम ह िजन पर सामा य लोग या सामा य
िव ास ही नही कर पाता ही यह भी संभव हो सकता ह .......इन सभी त य आज के उ िशि त वग के िलए या तो असंभव परा िव ानं के नाम से संबोिधत
या कपोल क पना ह ..िजस
साधक
को..जो क एक सामा य साधक या ेणी मे आते ह उसे ही मनि वय ने
कया .
यह श द अपने आप मे कतना गहरा अथ रखता ह ??? अपने आप मे कस िव को पश करता ह?? . कस कस द
ापी..
हांड मयी चेतना
ान के आयाम या आयाम को अपने अ तरगत रखता ह यह तो आप
इस िवषय पर जो साधना मक लेख इसी अंक मे दए ह उ ह पढकर वयं ही जान सकते ह ..
Tantra kaumudi June 2012
20 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
एक अ य अथ मे परा िव ानं उसी एक महा शि
Vol . 0 1 - No 11
या ह ??
िजसे परा शि
कहा गया ह उसक िबिभ
लीला ओ को जानने समझने का िव ानं ...
पर ब त ही गौर से देखा जाए तो “परा” कहा कसको गया ह ?? वा तव मे परा और परा परा ..शि
को कहा गया ह ..
सारत सारां परापराम - ( िन योषोडिशकारणव )
वा तव मे परा शि
से मतलब हमेशा महा ि पुर सुंदरी
देवी से होता ह , उ ह ही तं शा
“ परा “
के नाम से संबोिधत करते ह .
वे परा इसिलए कहलाती ह क
वे सृि
और कृ ित से परे भी ह .वे सव
शि
ह और सबको अित ांत
करके ि थत ह ,
उ ह परा इसिलए भी कहा जाता ह य क या शि
ुितय मे उ ह सृि
का सव
कहा गया ह .
परा इसिलए भी कहा जाता ह क न उनसे कोई पर ह न परे ह .
वह परा इसिलए भी ह य क उनक सहायता के िबना
आगे क पंि य मे हम यह समझने का य मम
ने इस परा शि
योिगनी दय
त व ,िचित ,इ छा , ान ,और
के बारे मे अपने
थ उ ह परमा शि
यदा सा परमा शि : वे
करते ह क
िशव भी सृि
अनेको उ
नही कर सकते ह .
थ तं यो ने..तं
शा
के
ंथो ने ..तं
या िवचार रखे ह ..
के नाम से सबोिधत करता ह .
ा िव व्
िपणी ||
तं आचय सोमानंद पाद ने “”” िशवदृ ी “’ मे सामा य शि
दशा से भी परे क दशा को “ परा” कहा ह .
अथ श े : पराव था ये या प रगीय् ते | युक या
कािशतो देव तत् शि
दशा यत : ||
इसिलए एक तरफ िव ा और वे (शि
) मे कोई भेद नही ह और दू सरी ओर शि मान और शि
नही ह . य क िजस िजस पदाथ क जो जो शि य य य य पदाथ य या या शि
ह वह एक ही आ द शि
ह और वही सव र महे र ह .
दा ता |
सा सा सव री देवी स् सव sिप महे र ||
Tantra kaumudi June 2012
21 | P a g e
मे भी कोई भेद
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
वा तव मे पराशि इस तरह शि ह . शि
िशव और शि ही सृि
िव
Vol . 0 1 - No 11
का सामर य ह ,िजस तरह बीज से अंकुर और अंकुर से बीज का ज म होता ह
ि थित संहार तीनो क िवधियका ह , िशव को िशव व
दानं करने वाली स ा ..शि
प ह और िव ातीत भी ..
अतः कोई भी खोज या अनुस धान या द ह तो िशव त व भी होगा
ान ...या िव ानं एकांगी नही हो सकता ह उसमे अगर शि
ही .इस तरह परा िव ानं को तं
क दृ ी से एक उसी परम महाशि
तव
क अन त
लीला िवलास को समझने का एक िव ानं भी कहा जा सकता ह तो .......
सरल श द मे कहे तो जो भी साम यतः हमारी सोच शि समाया
से आज परे ह ...वह सब इस परा श द के अंदर
आ ह ....िजसक कोई सीमा नही ह जो सीमातीत ह .. सामा य मानव क
िवचार शि
क एक सीमा ह पर इस “परा ” श द क
ान हण क शि
तो कोई सीमा नही ह .जो कल तक संभव था .पर काल क
ू र दृ ी के कारण .. आज सामने नही ह पर उजा को कोई न नही कर सकता ह और इस दृ य पुनः उसी
प मे देखना ..जानना
य ीकरण
और
ान के िनत िनत नूतन
आयाम
ऊजा को
को पुनः अपने सामने
करा देना ..इतना सरल तो नही ह . पर ह भी ...इस परा िव ानं के अंतगत
आयाम के अंतगत
या सोच
एक बार
आने वाले िविवध
आने वाली दु लभ ान और असीम शि शाली साधनाओ के मा यम से ......और भी सरल श द
मे कहा जाए तो जो भी अलौ कक ह आज िजसे हम नही समझ सकते ह सभी कु छ तो इस परा श द के अंतगत ह . पर यह
याए
कै से संभव ह आज
ज र
ाचीन काल मे घ टत घटनाये ऊजा
प मे होने के कारण
वे सुरि त ह ह पर उ ह देखना कै से या समझना कै से जाए .सदगु देव जी ने परा िव ानं के से स मे इसी का एक पहलु /एक चरण उ ह ने समझाया था क कस तरह करके उस ाण को सारे ह ...कहाँ या हो रहा
ह
ि
..एक साधक
ि
हांड मे फै ला देता ह और इस तरह से वह कु छ अथ मे से लेकर
समझने लगता ह बि क अगले चरण मे
अपने
ाण
ज र या
को िवखंडन
हांड मय सा हो जाता
वह भूतकाल से लेकर भिव य काल तक क घटनाओ को न के बल जानने वह इतनी यो यता पा लेता ह क कस एक घटना िवशेष पर क त
या
उसमे ह त ेप भी कर सकता ह और यह सब परा िव ानके मा यम से ही संभव ह .सदगु देव जी ने पूण िव तार से यह म समझाया ह . यह तो उ
तरीय एक म हो गया पर साम य जीवन मे .आ मा का आ हान करना ..उसने वातालाप करना और
अदृ य जगत मे ि थत लोको के बारे मे अनुस धान करना या जानकारी ा करने भी इस परा श द के अंतगत आते ह .इस तरह से देखा जाए तो यह श द अपने आप मे गहन अथ छु पाये नए आयाम से
भरा
ए ह .और िजतना जानते जाए उतने नय
आ है .
सारी िसि या ..सारे आलौ कक
ापार
फर चाहे वह अ य लोक क या ा हो या सू म शरीर या सशरीर
य न हो . यह सब इस परा श द के अंतगत ही आता ह .
Tantra kaumudi June 2012
22 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ही
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
इस तरह से हम देखे
Vol . 0 1 - No 11
तो कह सकते ह क
भूत
ेत
य
क र योिगनी और अ य उ
सम त अलौ कक घटनाओ के बारेमे स यता और िव ेषण के िलए
सम त दृ य और अदृ य जगत क घटनाओ को समझने के िलए
और अ य इतर योिनय से संपक करने और उनके बारे मे जानने के िलए लोक को जानने और संपक के िलए
ाचीन काल मे घ टत कसी भी घटनाओ को बुि
क
आज भी देखने और समझने
मनु य क सोच और उसक
सीमा से परे
मानव देह क अभी तक अदृ य मताओ को जानने के िलए ...
के िलए
कसी भी घटनाओ को जानने के िलए
सामा यत: िजस िव ानं के सहायता ली जाती ह वह सारी क सारी परा िव ानं के अंतगत आती ह . इस तरह से यह िव ानं मानव क
मता बढ़ाने और उसक िनि त बंधी बंधाई सोच को अनेक गुणा िव तृत
करने वाला
िव ानं ह .और िव ानं इस िलए ह क िनत नूतन नवीनतम खोजे इसम क जा सकती ह . अभी भी क जा रही ह . *************************************************************************************************************** ************************************************************************************************************ *
Para Vigyan………….Preliminary Introduction
Field of sadhna has no limits……………….the more we dive deep in to it, more we come up with the precious pearls of knowledge.Jin Khoja Tin Paaiyan(Whosoever searches, he gets it)………..is valid everywhere…..so many novel dimensions starts coming in front of our mental consciousness. These are such dimensions that common man or normal sadhak found it hard to believe that whether it can be possible…..All these facts……which are an impossible thing or mere imagination for normal sadhak or today’s highly educated category……these have been addressed to as Para Vigyan by strong-willed intellectuals. How much deep meaning this word carries???Which worldwide universal consciousness it touches in itself??Which divine knowledge’s dimensions or dimensions are contained within it, all this can be known by you after reading the sadhna-centric articles written on this subject in this edition.
Tantra kaumudi June 2012
23 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
What is Para Vigyan in a different sense?? That supreme power which has been called Para Shakti, the science to know various frolicsome (leela in Hindi) of her….. But if we see it more closely then who has been called “Para”?? In Reality Shakti has been called Para and Parapara…. SaaratSaaramParaparaam- (Nityo Shodashi Kaaranav)
In reality Para Shakti always means goddess Maha Tripur Sundari,Tantra scriptures address her only as “Para”.
She is called Para because she is beyond universe and nature .She is supreme power and is established after trespassing all.
She has also been called Para because she has been called highest element of universe, chiti, ichha (desire), Gyan (knowledge) and Kriya Shakti in hymns.
Para also because nothing lies beyond her
She is Para also because without her assistance, even Shiva can’t create.
In next few lines we will try to understand the thoughts of various high-level Tantriks……scriptures of Tantra Shastras…..connoisseur of tantra………regarding this Para Shakti… Yogini Hridaya scripture address her as Parma Shakti.
Tantra kaumudi June 2012
24 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Yadasa Parma ShaktihswechayaVishvRoopini || Tantra Acharya SomanandPaad has told in Shiv Drishtithe state beyond the state of normal power as “Para”. AthShaktehParaavasthaYektaryaParigeeyte| YuktyaPrakashito Dev stat Shakti dashayatah || Therefore on one hand, there is no difference between Vidya (knowledge) and Shakti (power) and on the other hand there is also no difference between shaktimaan (male gender of Shakti) and Shakti. Because various Shakti present in various material, are none other than the same Aadi Shakti and the same sarveshwar Maheshwar. YasyaYasyaPadarthsyayaya Shakti rudahrata | SaaSaaSarveshwari Devi SaSarvoopi Maheshwar|| In reality Para Shakti is combination of Shiva and Shakti. As sprout gets birth from seed and seed from sprout, in the same manner Shakti is the ruler of creation, maintenance and destruction.Authority to provide Shiva element to Shiva is ….Shakti. Shakti is in form of this world and beyond world too…. Therefore any of the discovery or research or divine knowledge….or science can’t be one-dimensional. If it has got Shakti element, it will have Shiva element too. In the same way, from tantra point of view, Para Vigyan can be called as one of the science to understand the infinite frolicsome of that superior Maha Shakti. So…… In simple words, all which is normally beyond the reach of our thought-power……all of that is encompassed within the word Para……………which has got no limits, which is beyond limits….Normal human being has a limit to receive the knowledge or has a limited power to think but there is no limit of the word “Para”. The things which were possible till yesterday but now it is not non-existent due to cruel vision of time.
Tantra kaumudi June 2012
25 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
But who can destroy energy and to see, to understand the visible and audible energy in the same form again and to manifest the novel dimensions of knowledge again…..it’s not that much easy. But it also is….through the medium of rare knowledge and very powerful sadhnas coming under the various dimensions of Para Vigyan……and in simple words which is other-worldly and can’t be understood by us today, all this comes under word Para. But how these processes are possible. Today the incidents which happened in ancient time are definitely secure being in energy form but how to see them or understand them. Sadgurudev in Para Vigyan Cassette has made us understand the first stage of such process that how one person…..one sadhak splits his own praan and spreads that praan in entire universe and in this way, in some sense, he becomes universal……Right from what is happening where to the incidents of his past and future can not only be understood by him but in the coming stages, he becomes capable enough to even focus on any specific incident or interfere in it.And all this is possible only through Para Vigyan. Sadgurudev has taught this procedure in full detail. This was one of higher-order procedures but in normal life doing the aavahan of souls (calling souls)….having conversation with them and conducting research or gathering information about the various loks present in invisible world come under the word Para. If seen from this angle, this word carries a deep meaning in itself and is full of new dimensions. All siddhis (accomplishments)…..entire other-worldly business, may it be journey of other lok or subtle body, all these come under the word Para. If seen from this point of view, we can say that
To contact and to know about bhut prets (ghosts) and ittar yonis.
To know about and contact the Yaksha, kinnar, yogini and other higher-order loks.
To analyze and check authenticity of entire supernatural incidents.
To understand the incidents of entire visible and invisible world.
To see and understand today any of the incident happened in ancient times.
Tantra kaumudi June 2012
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
To know about any incident which is beyond the reach of human brain or thoughts?
To know about the invisible capabilities of human body…..
The Science whose assistance is taken generally, all of them come under the Para Vigyan. In this way, this science is a science to augment the capability of human beings and to expand their limited thinking multiple times. And this is science because always new discoveries cam be conducted in it…..and are also being conducted now.
Tantra kaumudi June 2012
27 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
What is para jagat and yog tantra ?
‘शरीर को मा यम वीकार कर उस मा यम से अपने मूल आ म त व का िवकास योग है जो क आतं रक िजसमे
ि
या है
अपने अंदर क असीम शि य को जान कर उसका िनरंतर िवकास करता हैवही ँ तं इसी शारीर को .
मा यम बना कर
हांड क अनंत शि य को जान कर उसक◌ा सचन अपने अंदर करता हैव तुतः यही दोन
.क उपासना को ही आतं रक और बा यह आतं रक तथा बा
दोन
उपासना कहा गया है‘परा’ शि
क उपासना के बारे म यही कहा गया है क
प से होनी चािहए, इ ही दोन उपासना प ित का संयोजन ही पराशि
है, इ ही दोन उपासना का सामा य का िस ांत ही परािव ान है
Tantra kaumudi June 2012
28 | P a g e
कार .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
क उपासना
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
योगतं एक ऐसा पड़ाव है जो क आतं रक तथा बा
.और जब ये दोन प ितया िमलती है तो वह बनता है योगतं .
यह वह प ित है जो मनु य को अपने आतं रक तथा बा
हांड .
हांड के िबच म हैके बारे म प रचय देती है और
उसके दोन छोर को गाँठ लगा कर उसका संयोग कराती हैऔर दोन उसका बा
.साधना
हांड अनंत है इस िलए इस प ित क सीमाए .
े व तुतः अनंत इसी िलए है य क मनु य अपने आप म अनंत है .और संभावनाये भी अनंत है
प अनंत हैतथा उसका आतं रक और समज पाया म क
Vol . 0 1 - No 11
प अनंत है.’ यो यतं के बारे म सदगु देव जब ान दान कर रहे थे तब ये जान
या है वा तिवक
प योगतं का और या है इसका सबंध पराजगत सेयु तो जो सू म है ., जो
समज से परे है, जो दु लभ है वही परा हैइसी िलए प .राजगत कोइ एक िवशेष जगत नह है, बि क जो जगत हमारी ि से ओजल है वह है पराजगत चाहे वह सू मजगत हो या मायाजगतयोगतं जगत से सबंिधत साधनाओ के सबंध . म जब सदगु देव समजा रहे थे तब कई एस दु लभ िवधान क
ाि
ई जो क सहज है और कोई भी
ा कर सकता हैसाधक अगर परा जगत से सबंिधत साधनाओ को करने से पूव पराशि साधना आगे क साधनाओ के िलए एक िनि त आधार बन जाती है िजसके बाद
ि
ि
उससे लाभ
क साधना कर ले तो वह .
को आगे क साधनाए सहज हो
जाती है और साधक के चेतना तर िवकिसत हो जाने के कारण काय सफलता क संभावनाए और भी बढ़ जाती है . पराजगत क ये लु एक साधक को कस माग का चुनाव करना है यह
ाय
याए
ि गत बात है ले कन कसी भी माग क अवलेहना या उपे ा
व तुतः उस ान क अवलेहना है जो क साधक को ा हो सकता था; साधक सभी माग तथा सभी साधन से ान ही तो ा करता हैऔर उनके अ भूत .पराजगत तथा उसके सबंध म पि मी देशो म लगातार शोध काय हो रहा है . है तथा हमारे ही देश म जो प रणाम भी उनको ा
वे है और हम उस शोध काय तथा िव ान को ही सव प र मानते
शोध काय हमारे ऋिष मुिनय ने कया था उसे ढ ग या अंधिव ाश का नाम दे दया जाता हैले कन अगर कोई
ि
.
िज ासा पूवक पुरातन ंथो का अ ययन करे तो उसे िनि त प से समज म आ जाएगा क आज से कई सो वष पूव इस िव ान आज के युग के शोध तथा प रणाम से कार का हज़ारो गुना यादा िवकिसत थाले कन काल
म म यह .
य क इन प धाितयो को िबना जाने और अपनाए ही उपे ा कर दी गई इसके पीछे कु छ वाथ .िव ाए लोप होती गई िबत करने के िलए मूल स य
ान को लु कपर तो का भी िवशेष योगदान रहा िज ह ने खुद को
ानी सार देना ही
यो य समजासाथ ही साथ िजन लोगो को इस कार के िवधान .इस कार समाज से यह िव ाये लोप होती चली गई . ले कन अगर यह िव ाओको इन िव ान को इन िवषयो को .का
ान था उ ह ने समाज से दू र रहना ही पसंद कया
हमारे पूवजो क शोध तथा सेकडो सालो क महेनत का प रणाम था इसे अपनाया नह गया उसे अनुभूत कर सुरि त नह कया गया तो यह लु या
के ती
ाय क जगह लु होने म यादा समय नह लगेगाएस ही दु लभ िवधान सदगु देव ने .
भाव को देख कर चमत समजाया था िजसका अ यास करने पर पराजगत क इन◌्कृत हो उठा म .
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Tantra kaumudi June 2012
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Para Jagat and Yog-Tantra Accepting body as the medium and developing our basic Aatm element with this medium is called Yoga, which is an internal process in which person knows about infinite powers present inside him and continuously develops them. On the other hand, Tantra ,making this body as the medium helps us to know about the infinite powers of universe and develops them inside us.Actually,these two types of upasana (worship) has been called inner and outer upasana. The same has been said about the upasana of “Para” Shakti that it should be done both in inner and outer form. Combination of these two upasana padhati is none but upasana of Para Shakti.Priniciples of the union of these two upasana is Para Vigyan and when these two padhati amalgamate, then Yog-Tantra is said to exist. Yog tantra is that mile-stone which lies in middle of inner and outer universe. This is that padhati which introduces person to his own internal and outer universe and unifies them after tying the knots at both ends of them. Since these two universes are infinite, therefore the possibilities and potential of this padhati is also infinite. In reality, Sadhna field is infinite because person is infinite in himself .His outer form is limitless and so is his inner form. When Sadgurudev was providing knowledge regarding Yog-Tantra then I was able to know and understand about the real form of Yog-Tantra and what relation it has with Para world. The one which is subtle, beyond our thinking, rare, that is Para. Therefore, Para world is not any special world, rather it is that world which we can’t see, it may be subtle world or Maya Jagat. When Sadgurudev was teaching regarding the sadhna related to Yog-Tantra world, some rare processes were obtained by me which are easy and any person can take benefits from it.If Sadhak, before doing the sadhnas related to Para Jagat, does the sadhna of Para Shakti then this sadhna become a definite base for his next sadhnas and his coming sadhna become simpler and due to increase in level of consciousness of sadhak, possibilities of attaining success in work also increases.
The Rare Procedures of Para Jagat Choosing of path by sadhak is personal matter but ignoring or dis-regarding any path is actually the disregard of that knowledge which sadhak could have obtained; all the path and all medium provides none but knowledge to sadhak.
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30 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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There has been continuous research going in western countries about Para Jagat and its related things and they have got amazing results also. We consider that research and science as only supreme and the research which was done by our sages and saints are termed by us as mere blind faith or hypocrisy. But if any person reads the ancient scriptures with curiosity then definitely he will understand that 100 years before, such type of science was thousand times more developed than research and results of modern era. But in course of time, these vidyas became obsolete. Because these padhatis were ignored without even knowing and following them.Behind this, few selfish people played a special role who in order to prove themselves as scholars thought it wise to make the basic true knowledge obsolete. In this ways, these vidyas became obsolete from society. Side by side, the person possessing knowledge about such kind of process, they preferred to stay away from society. But if these vidyas, these vigyans, these subjects which were results of research and hard-work of 100 years of our ancestors, are not followed and secured after experiencing them then it will not be long before they become extinct rather than being obsolete. Such types of rare process were taught by Sadgurudev which I practiced and was astonished by seeing the intense influence of these processes of Para Jagat.
Tantra kaumudi June 2012
31 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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Vol . 0 1 - No 11
sadhana to contact souls of para jagat
इस योग को करने पर साधक अपनी अवचेतन अव था या व अव था म िनि त
प से कसी मृता मा को िमलता है .
.यह मा एक दवसीय योग है ये साधना कई कार से अपने आप म खास हैधक म य क इस साधना म सा .◌े◌ं साधना साम ी के क आव यकता रहती हैऔर ये माला तथा दीपक इस साधना को िजतने .जाप के िलए
ा
प म िसफ दो चीज
माला तथा तेल का दीपक .
.भी बार करना हो उसे उपयोग म िलया जा सकता है साधक यह साधना कसी भी वार को कर सकता है ले कन समय रा ी काल म १ बजे से ले कर ३बजे तक के िबच का ३०: रहे, मं जाप इसी काल म हो जाना चािहए .माला मं जाप करना है २१ इस दरिमयान साधक को िन
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32 | P a g e
मं क .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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ये साधना करते समय कोई ब ब आ द चालु ना हो, कमरे म मा तेल क दीपक क रोशनी होनी चािहए . साधक को इस योग को िनव
हो कर या काले व
यह साधना अ यंत ही उ को ट क साधना है जो क
को धारण कर के करना चािहए . ि
के अवचेतन मन के मानस ार को खोल देता है िजससे क उस
अवचेतन अव था म कसी भी मृतआ माओ से संपक हो सके और वह आसानी से िमल सके इस साधना को म म
ि
ि
के अवचेतन मन म वेश कर उससे
अके ले ही स पन करे ., कसी क भी उपि थित म यह साधना नह क जाती.
: ॐ ल ल फट् (AumHlomBlomPhat)
जाप के बाद साधक उसी कमरे म सो जाएसाधक चाहे तो ग ा या कु छ भी िबछा सकता है ., अगर उस
म म पलंग
या खात आ द है तो साधक उसका भी उपयोग कर सकता हैमं जाप म .ले कन साधक को उसी कमरे म सोना है अके ले . साधक सो जाने पर अपने आप को उसी .ही या पूण होने के बाद साधक को एक अजीब तं ा का अहेसास होने लगता है त ा म पाएगा और साधक को कि◌सी भी मृता मा को देख पायेगा तथा उससे वातालाप भी हो सकता है .
To contact souls of Para Jagat After doing this process, sadhak in his subconscious state or in dream definitely meets dead soul. This is merely a one-day process. This sadhna is very special in itself for variety of reasons .Because in this sadhna, sadhak needs only two things as sadhna articles.Rudraksh rosary for chanting mantra and oil lamp (Deepak).And this rosary and lamp can be used any number of times for this sadhna. Sadhak can do this sadhna on any day however the time should be between 9 and 3:30 in the night. Chanting should be done in this duration. In this duration, sadhak has to chant 21 rounds of below mantra. At the time of doing sadhna no bulb should be switched on, only the light of oil-lamp should be present in the room. Sadhak should do this prayog without clothes or after wearing black clothes. This sadhna is very high level sadhna which can open the doors of sub-conscious minds of person whereby he, in his subconscious state,is able to contact any dead souls and that soul is able to enter the subconscious mind and meet him. Personshould do this sadhna all alone. This sadhna is not done in presence of anyone.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Mantra: AumHlomBlomPhat After mantra-jap, sadhak should sleep in the same room. Sadhak, if he wants can use mattress or any other thing. If that room has bed or khat (bed usually found in villages of India), sadhak can also use them. But sadhak has to sleep in that room only alone. During the chanting of mantra or after its completion sadhak starts feeling an amazing sleepiness. After sleeping, sadhak will find himself in this state and will be able to see any dead soul and conversation can also take place.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Victory oVer enemy through kundalini sadhana
कु डिलनी मनु य म िनिहत एक अ यिधक गुढ़ शि
है िजसे सामा यतः समझना आसान तीत होता है ले कन जेसे जेसे
उसको समझने का यास कया जाता है उतना से अिधक रह यमय तीत होने लगता हैयोगतं का यह एक ऐसा अजब . कया जा इसके मा यम से श ुओ का अंत हमारे शरीर क आतं रक शि य क कु डिलनी शि उसे बा
हे तो उसी महामाया का व प जो क
मा से भी .रह य है जो क अ यिधक गु रहा है
हांड को िनयंत .सकता है◌् रत करती है तो फर जब
याओ िवनीत कर काय सफल कये जा सकते है तो वही ँ उसे आतं रक
प से भी ाथना कर काय कये जा
सकते है. यह योग 8 दन का है.बजे के बाद शु साधक को
कर सकता है ११ यह योग साधक सोमवार रा ी म .
हचय का पालन अिनवाय है.साधक इस योग म काले व
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का उपयोग करे .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
रा ीकाल म साधक अपने साधना क
Vol . 0 1 - No 11
म दि ण दशा क तरफ मुख कर के बैठ जाएदेवी उसके बाद शांत िचत से .
उसके बाद साधक आँखे बंद कर के ना .कु डिलनी को णाम करे तथा कायिसि
हेतु ाथना करेिभ पर यान क त करे
तथा वहा पर अि कुं ड म जो भी आपका श ु है वह जल रहा है और भयभीत हो रहा है तथा देवी कु डिलनी िज ह ने नील प रधान पहने है वह श ु को दि डत कर रही है ऐसी क पना करेसाधक को आँखे बंद रख कर नािभ पर ऐसे ही यान . करते ए मं जाप करना हैमाला मं जाप करना रहता है जो क काली हक क ११ इसम .,
ा , सपअि थ माला से
कया जा सकता है. ॐ कु लकु डिलिन श ुं उ ाटय उ ाटय फट् (Aum Kul Kundalini Shatrum uchchaatay uchchaatay phat)
८ दन ऐसा करने पर िनि त
प से श ु उ पीिडत होने लगता है और उसका उ ाटन हो जाता हैइसके बाद माला को .
.िवस जत कर दे
Getting rid of enemies through Kundalini power (Serpent power) Kundalini, implicit in human being is very secret power. Generally it seems very easy to understand it but as we gradually make attempt to understand it, it becomes more mysterious than before. This is one such amazing secret of Yog-tantra which has been much hidden. Through the medium of it, destruction of enemies can be done by merely our internal power because at the end of the day, kundalini power is only the form of Maha Maaya who controls entire universe. So when the works can be accomplished after doing outer process, they can also be done by praying her internal form. This prayog is of 8 days. It can be started on any Monday night after 11 P.M by sadhak. It is compulsory for sadhak to remain celibate. Sadhak should use black dress for this prayog. Sadhak should sit in sadhna room facing south in the night-time. After this sadhak should pray to kundalini with peaceful mind for the accomplishment of work. After this sadhak should close the eyes and mediate on navel (called naabhi in Hindi) and imagine that your enemy is getting burntand scared in the agni-kund and goddess kundalini, in blue dress, is punishing your enemy. Sadhak have to chant this mantra meditating in this manner. Sadhak has to chant 11 rounds of rosary. Black Hakeek, rudraksh or sarp asthi (rosary made from bones of snake) rosary can be used.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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Aum Kul Kundalini Shatrum uchchaatay uchchaatay phat After doing this for 8 days, definitely your enemy is oppressed and his ucchatan is done. After this, offer the rosary in pond or river.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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Aatm sanjivani kriya sadhana
यह
या पराजगत से सबंिधत एक मह वपूण
या है िजसको स पन करने पर
लोग उसके संपक म रहना पसंद करते है, उसको सभी योग आज के युग के हर एक
ि
ि
पूण आकषण यु
हो जाता है .
े ो म अपने आप ही अनुकूलता ा होने लगती हैइसके अलावा .
के िलए मह व इस कार यह
.सवजन उस
ि
के अनुकूल रहना ही पसंद करते है
.रखता है इस योग को कसी भी दन शु साधक सफ़े द व
कया जा सकता है साधक को यह . योग
आसान या पीले व
हमु त म ही करना चािहए.
और आसान का उपयोग इस योग म करे.
अपने सामने घी का दीपक जला कर साधक आँखे बंद कर अपना मन सह ार पर क त करेइस योग को साधक िबना . अगर साधक माला का .माला के भी कर सकता हैउपयोग करना चाहता है तो
ा
या फ टक माला का योग कर
सकता है.ना रहता हैइसम एक घंटे के िलए सह ार पर यान क त करते ए मं जाप कर .
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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ॐ नमो चैत याय ं (Aum Namo Chaitanyaay Hoom ) यह योग साधक को ५ दन के िलए करना है दन म ५ साधक इन .कई कार के हती हैके बाद साधक खुद ही अवलोकन करे िनि त
प से साधक के एक आकषण शि
य अपने अंदर देख सकता है दन ५ . आकार ले चुक र. साधक ने अगर
माला का योग कया है तो उसे िवस जत कर दे. Aatm Sanjeevini Kriya This process is one of the important processes relating to Para Jagat upon completion of which sadhak becomes fully attractive. People likes to remain in his company, he starts getting suitable results in every fields automatically. Beside this, all the persons prefer to be in favor of that person. In this manner, this prayog holds importance for every person in today’s times. This prayog can be started on any of the day. Sadhak should do this prayog in Brahma Muhurat only. Sadhak should use white dress and aasan or yellow dress and aasan. After lighting the ghee-lamp in front of himself, sadhak should close his eyes and meditate on Sahastrar. This prayog can be done by sadhak without rosary too. If sadhak wishes to use rosary, he can make use of Rudraksh or sfatik rosary. In it, chanting of mantra should be done for 1 hour while meditating on sahastrar. om Namo Chaitanyaay Hoom Sadhak has to do this prayog for 5 days. Sadhak can see various types of scenes inside him. After 5 days sadhak should analyse himself on his own. Definitely, sadhak’s attraction power would have taken a shape. If rosary has been made use of in sadhna, then it should be immersed.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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sanket kriya siddhi sadhana
कृ ित हम िनत नवीन संकेत कसी न कसी
प म देती ही रहती है, हम कई बार उसको मा संयोग या क पना कह कर
उसक उपे ा कर देते है ले कन कु छ समय बाद ही हम अहेसास होता है क अगर हमने उस संकेत को समझ िलया होता तो फर हम लाभ ा हो सकता था या फर हािन नह होतीव तुतः यह संकेत बा मनः चेतना हम इस कार के
कृ ित िन मत संयोगो को एक संकेत के
न .ह होते है वरन हमारी आतं रक
प म देखने के िलए काय कराता रहता है; यादातर
ये नजदीक भिव य से सबंिधत होते है ले कन चेतना तर कम होने के कारण हम इन संकेत को समझ नही पातेइस िलए . अगर हम मनः चेतना का िवकास कर ले तो हम आने वाली घटनाओ के बारे म पहले से ही संकेत ा कर सकते हैइसके . .अलावा हम उस प रि थित के िलए या उस घटना के िलए तैयार रह सकते है िजससे क हमारा अिहत न हो इस योग को भी साधक कसी भी दन शु
कर सकता हैये योग म .◌्हमु त म या फर रा ीकाल म १० बजे के बाद
कया जा सकता है . साधक के व
आसान आ द सफ़े द रहे. दन का है ७ यह योग . दशा उ र रहे .
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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साधक को सव थम आँखे बंद कर के अपना यान ि ने पर क त करना चािहएउसके बाद साधक आतं रक
प से .
गुंजरण कर◌ेइस कार विन .इसके िलए साधक सांस खच कर ॐ का नाद करे ले कन साधक का मुख बंद होना चािहए . िमिनट तक गुंजरण १५ से १० इस कार साधक को .साधक के अंदर ही रहनी चािहए िजससे क गुंजरण
या हो सके
री नह है क एक ही सांस म इतनी देर करनाज़ .करते रहना है है, साधक िबच िबच म फर से साँस को अंदर खच सकता हैगुंजरण हो जाने पर साधक िन मं का जाप .इस
या के दौरान साधक का यान ि ने पर ही होना चािहए .
. फ टक या सफ़े दहक क माला से करे ॐ
मनःचेतना
ॐ
(om Shreem Hreem ManahChetnaa Hreem Shreem Aum)
साधक को ११ माला मं जाप करना चािहए दन म जब यह योग स पन हो जाए तब साधक को कसी भी काय से ७ . कावट आने वाली है या आ सकती पूव संकेत िमलना ारंभ हो जाते है क वह काय होगा या नह या फर या बाधा या है. इस कार साधक फर उस प रि थित के अनु प तैयारी कर सकता है तथा अपने काय म सफलता ा कर सकता है . भले ही यह योग साम य लगे ले कन इसको स पन करने के बाद
ि
को यह यान आता है क आज के युग म इस
योग के बाद .तनी अिधक आव यकता है योग क कसाधक माला को िवस जत कर दे. *************************************************************************************************************** ************************************************************************************************************** Sanket Siddhi Kriya (Process to unlock the hints) Nature always provides us novel hints in one form or the other. Most of the times, we ignore them, considering it as mere coincidence or imagination. But after sometimes we feel that if we would have understood the hint, we could have attained benefits from it or avoided the losses. In reality these indications are not eternal rather our inner mind’s consciousness works to visualize this nature made coincidences in form of signals. Most of the times they pertain to our immediate future but owing to our low level of consciousness, we are not able to understand these hints.Therefore,if we can develop consciousness of our mind, we can get the hints about the coming incidents in advance. Besides this, we can be well prepared for that condition or incident so that it does not harm us.
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This prayog too can be done by sadhak on any day. It can be done in Brahma Muhurat or in the night after 10 P.M. Sadhak should make use of white dress and aasan. Direction would be north. This prayog is of 7 days. First of all, Sadhak should close the eyes and meditate on third eye. After this, sadhak should do gunjaran in inner form. For this, sadhak should pull his breath inside and do the Naad of AUM but sadhak’s mouth should be closed. In this way, sadhak’s voice should remain inside so that gunjaran process can be done. In this manner, sadhak has to do gunjaran for 10-15 minutes. It is not necessary to do this much in one breath, sadhak in between, can pull his breath again. During this process, sadhak’s dhayan should be only on third eye. After gunjaran is done, sadhak should chant the below mantra by Sfatik or White Hakeek rosary. om Shreem Hreem ManahChetnaa Hreem Shreem om Sadhak should chant 11 rounds of rosary. When this process gets completed in 7 days, sadhak starts getting hints prior to any of his work that whether that work will be done or not or what will be the hurdles that are going to come or can come. In this way, sadhak can prepare himself in accordance with that situation and can achieve success in his work. May be this prayog may appear average, but after completing it person realizes the very need of this prayog in today’s era. After prayog, rosary should be immersed.
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ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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Saturn malefic Sadhe Sati period and Sapphire ?
मानव जीवन
हो के आधीन ह यह कहा जाता ह क ह ही रा य देते ह और ह ही रा य का हरण भी कर लेते ह
.वा तव मे बा
गत
और एक तरफ मा
प से तो यह समझ मे नही आता क यह कै से संभव ह क एक तरफ लाखो करोडो लोग
९ ह और सभी के जीवन को िनयं ण ...?? सामा य तक से सभी कु छ नही जाना या समझा
जा सकता ह खासकर जब बात परा िव ानं के त व क हो.. य क जहाँ मानव मि त क क सोच का अंत हो वहां से यह उ
ाक
कहते ह क कोई भी
बाते या
े
ारंभ होता ह .उ
थ तं य ,मन वी ....तं
मम य .... साधक
यह
ह सीधे सीधे हमारे जीवन मे कु छ नही करते ह बि क वे धना मक और ऋणा मक करणे
सा रत करते ह अब हर
ि
के कम जैसे ह वेसे ही उसको प रणाम ा
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होते ह .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
यह भी स य ह क हमने
ही इन कम का सृजन
कया
Vol . 0 1 - No 11
ह तो हमे ही प रणाम भी सहन करना होगा
और हम
साधना के मा यम से इन कम फलो को यून कर सकते ह . और यह सारा िव
कम पर आधा रत ह या देवता
के अ तरगत ही आते ह .और नव वाभािवक ह क मानव मा के नही बि क िवगत अनेको
हो मे
या दानव , य , क र
दंडािधकारी के
प मे
को उनका नाम सुनकर कु छ भय
सभी इस कम या का मक गित
शिन देव को काय
तता हो . य क कम फल भी के बल इस जीवन
जीवन का .. य क अगर सारे प रणाम इसी जीवन के
झूठ बोलते ही जीभ न हो जाये कु छ गलत काय करते ही हाथ न लगेगा .इसिलए का मक प रणाम हम
दया गया ह अतः यह
त
हो जाए तो सारा िव
ा तो होते ह ह पर कब ??? यहाँ
ण
िमलने लगे जैसे एक ण मे न होने
कृ ित के अपने िनयम ह .
इसी म मे साढ़े साती का नाम आता ह . शिन क ज म कुं डली मे च मा के साथ या उससे एक भाव आगे या पीछे होने पर यह ि थित बनती ह ,सभी वै दक योितष कार इस अव था को कोई ब त उिचत नही मानते ह और यह समय जो लगभग ७ १/२ साल का होता ह बेहद क कारक माना जा ता ह . और सामा य योितषी सीधे ही इस अव था मे नीलम पिहनने क सलाह दे देता ह जो क िबना
िवचारे तो कभी भी उिचत नही माने जा
सकती ह .नीलम के बारे मे सुिब यात त य यह ह क यह पिहनने के कु छ घंटे मे ही अपना
बुरा या अ छा असर
देने लगता ह .
यद
ि
को भय सा लगने लगे या
रात को डरावने से सपने आने लगे या
क दु घटना हो जाये भले ही वह छोटी या बड़ी हो या
अचानक हािन क ि तिथ
अपमान जनक अव था आ जाए या
चेहरे मे कु छ अंतर सा महसूस हो या
आखो मे दद आ द क सम या हो
बनने लगे या
तो त काल य द नीलम पहना ह तो उतार दे . िसफ यह सोच कर क नीलम ...इसिलए पिहना देना ह क
साढ़ेसाती चल रही ह .
या शिन क महादशा चल रही ह या
शिन क अंतदशा चल रही ह .
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
या शिन कमजोर ह इसिलए
या शिन ल ेश ह
इसिलए कदािप उिचत नही कहा जा सकता ह . सबसे पहले
तो यह समझना चिहये क भले ही शिन ल ेश
हो पर य द कुं डली मे पीिड़त ह या कमजोर ह या
नीच रािश के ह तो कदािप नीलम तो पिहनने को न कहे ..और यही त य अ य सभी िब दु ओ पर लगा कर देख क या शिन अशुभ भाव के
तीक तो नही ह
शिन कसी अ य
भाव के अिधपित खासकर
छठवे या आठवे के
कारण पीिड़त तो नही ह.अभी गोचर मे शिन ज म कुं डली मे कहाँ ह और ज म के शिन के सापे शिन क ि थित कै सी ह ...अतः यह मजाक नही बेहद
गंभीरता का िवषय
अभी गोचर के
ह िजसे उतनी ही गंभीरता से िलया
जाना चािहये िबना भलीभांित सभी त य के देखे बीना सीधे ही .......अगर ऐसा ह तो नीलम पिहनने से उनक अशुभता ही बढेगी अतः.....अतः इस अव था मे नीलम पिहनना उिचत नही ह . अगर कभी पिहनना ही पड़ जाए तो पहला तो ये क
कसी भी शिन वार को नीलम र ले ले
शिन देव का मं उस र
या िनराकरण ह . फर गंगाजल या दू ंध से धोकर उसक पूजन कर ,, फर्
करके कसी नीले कपडे मे बाँध कर धारण कर ले और य द राि मे भयानक सपने आते ह तो
को वािपस कर दे और कोई दू सरा नीलम का र ले कर यही
या पुनः करे ..वेसे भी आज कल शु
कहाँ आसानी से िमलते ह और अगर िमलते ह तो इतने मू यवान क सामा य दू सरा तो यह क
कुं डली का िव ेषण अ छे
से कया जाए .सभी त य
ि
रं
उसे ले नही सकता ह
को भली भांित देखा जाये परखा जाये
.िसफ साढ़े सा ती का भय या हौवा ..अपनी जेब भरने के िलए ना बनाया जाए ..इस समय काल मे भी अनेको के िलए उ ाव था मे जाने के माग खुले ह ऐसे अनेको के स सामने आये ह य क रािश और भाव का अपना अगर अथ ह तो न
का भी असर
य न माना जाए ...अतः िसफ एकांगी ख न बनाया जाए .
इसी तरह से लॉग Nikhil-alchemy2 .blogspot.com और Nikhil-alchemy नाम के फे सबुक ुप पर शिन देव क अनुकूलता के िलए कु छ अित िविशट साधनाए दी यी ह उनका लाभ लेना चािहए या .. कोई भी साधना जो क एक शु
और अ सं का रत
पारद से िनमािणतिशव लग पर क जा सक उसे करना चािहये जैसे क
मौिल र साधना तो अपने आप मे अित उ म िस
यी ह .
शिन के तांि क मं ो का जप अनु ान कह जयादा फली भूत देखा गया ह खासकर मनो योग पूवक वयं जप कया घटना
म
हो . और
होते ह .?? तब पूरे सात
ता कक दृ ी से देखा जाए
तो
तब , जब क सबंिधत
उिचत सा नही ह .
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ि
ने
या एक पुरे दन मे एक जैसी ही
साल को भले ही तीन भाग मे बांटा जाए और प रणाम कहे जाए
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चं
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
कु छ
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अतः जब भी साढ़े साती क बात सामने आये .तो साधना मक उपाय कर और ह उसे अनुकूलता
मे बदले .. और
उनसे संपक कर ..िन य िजस तरह से
कसी भी
योितष क अपे ा
जो भी ितकू लता सामने आ रही
जो इस शा
के स य मे अ छे जानकार
ह
ही अनेको ितकू लताओ मे कमी आएगी ..पर यह भी यान मे रखे क आज गली गली
योितष वग सामने आ गया ह उसमे ब त कम ही ह जो इस शा
क मयादा या ग रमा बढ़ाने
के िलए आज भी त पर ह . ************************************************************************************************************** Saturn sadhe sati and neelam (sapphire ) Its being said that and believe that
whole human
life is under the
power of planet s.
and these are grah/planets who give power and rajya and they are the grah/planets who snatch the same .in outwardly is quite difficult to understand that how is that possible only 9 planet
can control the life of so many
nothing can be
understand specially
hundreds million ?? but through normal logic
science like this .and specially
the elements of para psychology since
when the limit of normal thinking stop there the
space of para psychology or higher knowledge ,tantra marmagy ..and sadhak says that
when we are taking
or higher pragya starts. Our tantra aachary
these grah or planet directly does not
our life but they radiates positives and negatives rays so each one
do to
will get the result as
per his karms. Its true that if we produce this karma so that we have to bear the outcomes of these but we can reduce the fruits of
our evil karms of previous lifes .this whole world
run on the
wheel of karm ,and dev ,daanav ,angel and all are even us too .all are comes in the grip of karma. and in nav grah means nine planets .Saturn is consider as the dandadhikari or punishment giver position . so that its quite natural that every one
has some fears from
him since the outcomes of not only this life but from so many past lives …since if are gets the
out come of our karam instantly than whole world will be destroy
Tantra kaumudi June 2012
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.like if we said lie and our tong get destroy .and also doing something wrong our hand also destroy .so think about a minute . that’s why the karma result surely be given to us but when ??? here natures has its own rule . In this series Saturn sadhe sati periods comes. When in birth horoscope , Saturn is with moon or have one bhav ahead or backward where the moon
situated in his gochar
position this period starts, generally all the vadic astrologer consider this period not a good one , this period of 7 .5 years is very trouble some. And during this period advices from any astrologer and
astrologer
some ask
directly advices to wear sapphire or neelam
stone. That which can not a good solution until a very serious analysis is done. this
is
very well known facts associated with sapphire or neelam that within a few hour after its wearing this provides its result good or bad …
If having /feeling some fear
Bad dream comes in sleep
Some minor or major accidents happens
Sudden loss condition occurs
Some derogatory conditions rises.
Face has some changes
Eyes has some problems
If any of above happens than quickly remove the sapphire .
Tantra kaumudi June 2012
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If these are the basic thoughts for giving advice for wearing sapphire
Sadhe sati running
Saturn mahadasha period is running
Saturn anterdasha period is running
Or Saturn is week
Or Saturn is the lord of the ascendant or lagnesh .
But these are not consider good. At first , we have to understand
that
even Saturn is lord o the ascendant but in birth
horoscope , if Saturn is in week condition or neech rashi (debilitated condition ) than never advice for wearing
neelam stone , and other point like whether Saturn is not the lord of
some bad bhav .or Saturn is getting afflicted due to the aspect of
lord of sixth or eighth
bhav , as per gochar condition where is Saturn now in respect of birth horoscope . and what is its position with respect to birth Saturn position .so this is not a funny thing but a thing that has to be of great concern . Other wise without considering these facts , if the same advice creates much problem .. Suppose in any situation if wearing of that stone is a must than what will b e done .?/ Firstly , take that s tone on any Saturday and purify it with ganagajal or milk and
do jap
some tantraik mantra related to Saturn and tie it in blue color cloth and wear it , if bad dreams comes in nighttime , than replace that stone with another neelam stone and do repeat the same procedure ..but as you already knew that pure stone is not easily available , and if available than they are so costly that purchasing that is beyond the capacity of common man .
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ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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Secondly the birth horoscope is to be thoroughly analyzed a, all the facts must be properly weighted before reaching a final conclusion , merely showing the fear of sadhe sati just to get money ..cont be consider good .since many person during the sadhe sati time reaches career heights , since if rashis/zodic sign has some meaning than why not consider bhav and the effect of star ..so only one way or depending upon rashi is not correct . We have give so many sadhana related to Saturn planet in Nikhil-alchemy2.blogspot.com and also in the face book group having the same same . one should
take advantages of
that sadhanas. Any sadhana if done on a shivling that is made of asht sanskarit mercury …like Chandra maoulisher proved to be a great result giver . The anusthhan of Saturn tantraik mantra , specially if doen by the affteceted person proved to be a great result giver. and if seen from logical point during whole 24 hours many event happens , than even though we divide the 7.5 years in three part and say a one prediction can be a good things..? so when ever this word comes procedure and whether
do apply the sadhanatmak
you are facing trouble some condition in your life face it and
changes with the sadhana . and if you want to consult .than a consult a good astrologer who really knew the thing .not to those who are sitting every where and claiming to be the best .among those very few are really understand the garima and respect of this science.
Tantra kaumudi June 2012
49 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Some factS related to anubhut tantra
तं शा यह
तो सीमातीत ह और
पश करता ह ही तो
कम या यादा तं
इसक गहराई तो अथाह ह .और यह भी बात सच ह जीवन के
सम त आ या म जगत को सभी प
को भी समान
प से
सभी प
को
पश करता ह ही .
यह एक अलग त य ह .
साधना के भी अनेक आयाम ह और अनेक दृ ी से इन साधनाओ को देखा जा सकता ह . कया जासकता ह और
परखा जा सकता ह . पर कु छ बाते जो साधक को जानना चािहये ही . तं
या ह और अनुभूित का
या मह व ह ??
अनेक प रभाषा उपल ध ह पर जो कदािचत सबसे सरल ए , सारे िव
को द मय देखते
को समझना और पाना
ह वह यह क
ए अपने व व प को जानना
िजस एक सु वि थत ढंग से
स भव
हो पाए
जीवन के सभी प
और अपनी
अंदर छु पी असीम संभावनाओ
वह रा ता वह
या वह माग
कहलाता ह .
Tantra kaumudi June 2012
50 | P a g e
को साथ मे लेते
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
त
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
अनुभूित का सबसे सरल अथ ह क यह जानना क क गयी ही साथ यह एक एक मा
Vol . 0 1 - No 11
या सही ढंग से संचािलत ह या नही .और साथ
माप दंड नही ह . और साधना के सफल होने पर होने वाली उपलि धयां सभी
कु छ इस श द के अ तरगत ह . या साधना क सफलता का एक मा इस
का उ र
हाँ या नही
माप दंड .उसमे अनुभूित का होना ह .??
दोन मे कहा जा सकता
ह .अनेको
को साधना मे कोई भी अनुभूित नही होती
खासकर उन साधनाओ मे जो जीवन को प रव तत करने वाली होती ह दीघ कालीन होती ह . और साधक क दृ ी से देखा जाय तो िन य
प से हाँ कहा जायेगा
कसी नए
य क ये अनुभव उसको और दृ ढता से इस
पथ पर चलने के िलए एक इशारा या एक संबल बनते ह .तो इसका अथ हर जगह ,साधना माग और प रि तिथयाँ पर आधा रत ह . या दो साधक जो एक ही साधना और वह भी एक साथ कर रहे हो उनक अनुभूित अलग अलग होती ह .?? िन य ही ...भले ही एक ही साधना कर रहे हो ,पर उनके सं कार ,पूव ज मगत कम और प रि तिथयाँ वह पले बढे ह वह सब अलग अलग अलग
होता ह , जैसे कोई
आयाम जानना चाह ता
ह और
उस साधना
ह तो के बल
साधना के
ित साधक का दृ ी कोण भी तो हर साधक का अलग
को परखना चाहता
उस
म को करना
िजनसे
ह तो कोई
कोई स य के या
हांड के नए नए
चाहता ह तो कोई उस माग क साधनाओ का मानो
अिधपित ही बनना चाहता ह .इस कारण िन य ही अनुभूित भी अलग अलग होगी ही .पर कु छ मूल भूत बाते एक सामान हो सकती ह . या साधना काल और उसके बाद
अनुभव को ही अनुभूित क सं ा दी जा सकती ह ???
नही ऐसा नही ह , बि क िजस समय से साधक कसी भी साधना को समप समय से वह उस साधना को मानो उसने
ारं भ कर दया ह, और िविभ
ओ फस् या प रवार क हो या कसी का बीमार पड़ जाना या
करने का मन बनाता ह ठीक उसी कार क क ठनाईयां
फर वह चाहे
वयं के व थ मे नरम गरम होना साथ ही साथ
साधना समाि के उपरा त भौितक जीवन मे प रवतन भी इस अनुभूित का एक आव यक अंग
ह यह सभी तो
अनुभूित क सं ा मे आते ह. य क सारा जीवन ही साधना मय ह तब के बल साधना काल मे होने वाली या उसके बाद उसके प रणाम को
ही अनुभूित मानना उिचत नही ह .
या अनुभूित मे सबंिधत साधना इ के दशन िन य ही
वपन या य
मे ह ना भी आएगा ???
हाँ पर एक बात पहले से अ छी तरह से समझ लेना चािहये , क
जब तक साधक का एक तर न
आ जाए , तब तक सबंिधत साधना के देवता उस साधना काल मे सामने नही आते बि क वह कोई ओर धारण करके या छ भी एक मा
प मे या उनके कसी भी वाहन के
प मे साधक के सामने या
वपन मे आते ह पर यह
स य नही ह बि क वपन मे होने वाले दशन भी इस अनुभूित के वग मे आते ह .
Tantra kaumudi June 2012
51 | P a g e
प
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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Vol . 0 1 - No 11
या जो दृ य आख से दखे के बल वही ही अनुभूित मे आयगे ?? द
अनुभव को
के बल इि याँ
आख क एक सीमा ह यह और जो परा लौ कक
े
भी अनुभव होना भी इसी
वह भी भौितक
इि य क
सीमा मे बाधने का तो कोई अथ ही नही
अभौितक दृ य नही देख सकती ह पर कान तो द
विनय को भी
से सबंिधत ह .अतः ऐसा नही ह अनेको बार विन क अपे ा , द
य क
सुन सकते ह
सुगंध आ द का
ेणी मे आएगा ..अतः के बल आख और विन के मा यम से होने वाले अनुभव को ही
अनुभूित मानना उिचत नही ह . अगर कसी साधना मे कोई भी अनुभूित हो ही नही तब या उस साधना को सफल आ माना जायेगा ?? साधरणतः अनुभूित कसी साधना क सफलता का पयाय नही ह ,
फर कु छ साधना ये जैसे ि पुर सुंदरी साधना
आ द मे तो साधनाकाल मे अनुभूित होती ही नही ह , पर यह स य ह क कया गया मं जप कभी भी
थ नही जाता
या तो वह साधक के या फर उसके पूव जीवन के दोष को न करने मे उपयोिगत होता ह और एक बार जब तर आ गया तब अनुभूित भी होना
एक
ा र भ हो जाता ह
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Anubhut tantra - preliminary introduction
The tantra shastra has no boundary and its depth also has no limit .and this is true that it touches the all aspect of our life ,may be less or more but that is different things . There are many dimensions of the tantra sadhana and that has many way or aspect through that can be seen or tested but there are some general point for a sadhak point of view he must know . What is tantra and what is the importance of anubhuti or experience ?? There are many definitions of the
tantra among them what is most easy to understand is
,that which consider or include all the aspect of life ,and have a view that whole world is divine ,and through that knowing the real self and able to understand the unlimited potential hidden in side us and able to acquire that with a systematic way .that way or marg is tantra .
Tantra kaumudi June 2012
52 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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The very easy meaning of anubhuti is that to know whether the process or sadhana running in right direction and pace or not , the anubhuti is
not a only measure stick .even
the
experiences that happens after the sadhana ‘s successful completion are also come in it .
The only measure stick
for Whether the success of any sadhana is to have anubhuti in that
?? The answer may be said in both way yes or no . many sadhak does not have any anubhuti or experience in the sadhana’s particular
that which are for
completely .and having longer duration .but path
surely answer will be yes since
having the power to change life
taking consideration any new sadhak on this
these anubhuti or initial experiences provide him a
good foundation and help and support and a indication for him that his sadhana is on the right way. So that depends upon the place ,the sadhana marg and the conditions.
Is it possible that ,two sadhak who are doing the same sadhana, in the same place but may have different anubhuti or experiences.?? Why not .even though they are doing the same sadhana
but their individual sanskaar ,
previous life karmas and condition through which they brought up all are different ,and every one has a different approach why he is doing that sadhana . some one try to testify some through that interested to know the hidden secret of the universe and truth and may be some one who just want to do the kram or process .and may be some who want to be the lord of that marg ,so that’s why the anubhuti or experiences will be different even they are doing the same sadhana .
Tantra kaumudi June 2012
53 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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Only The experiences during the sadhana and after the completion of the sadhana
are
came in the definitions of anubhuti?? No its not like that , the time when a sadhak made or prepare his mind sadhana ,his sadhana
kaal is just
to go for any
begun on that moment .and many types of
obstacles/obstruction whether they may be related to his office or his family life or his health
or the health of any near or dear one and
sadhana
the changes in
anubhuti .since
after the successful completion of the
his material life surely positive all are in side the
whole life is a sadhana . than the anubhuti during
boundary of
the sadhana kaal is
alone consider for anubhuti is not correct.
Whether The darshan of isht deity in dream or in reality are consider in the anubhuti ?? Surely answer is yes. One thing that need to be understand first until a sadhak reached a level or str the isht deity of the sadhana directly not come to him ,instead of that they prefer to come through other way some times in dream sometimes the form of isht deity vahan. So it does not matters all are consider in the definitions of anubhutis.
What we are able
to see through
our
eys , are only
comes inside
the definitions of
anubhutis.?? Divines experiences can not
be limited
or
classified or consider only the
material or physical senses only . since eyes has a limit
the basis of
she can not see the metaphysical
thing but ear can listen the sound related to divine field. and not only this some times the divine fragrances / sugandh are also come in this category .so any thing can be possible .
Tantra kaumudi June 2012
54 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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If we do not have any anubhuti during a sadhana , can that sadhana be consider a successful completed sadhana ..? Anubhutis are not the measure stick for the success of any sadhana
they are just guiding
post , that helps you . some sadhana like tripur sundari mahasadhana ,no experiences happens during the sadhana kaal . is it true that the mantra jap sadhana
kaal does not
go in waste ,that
may be
happens during the
utilized in removing the previous life
dosha’s/sins and once a stage is reached the anubhutis started .
Tantra kaumudi June 2012
55 | P a g e
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Anubhut tantra sadhana—some importanat facts
अनुभूित अपने आप म एक द अनुभूित एक एसी
या है जो क
का िनमाण होता है और जीवन के प
श द है. जीवन के हर एक े म इस श द क मह ा अपने आप म अवणनीय है. ि
के आ म त व भू त व तथा मनः त व को जोड़ने का काम करती है. इसे से मृित क सू मता का आभाष मनु य को होता रहता है. तं
श द क मह ा समजना मुि कल नह है. उपािध देते है. इसी
ह का अंशभाग
साधना के मा यम से एक िनि त शि
े के साधक के िलए इस
हांड अपने आप म एक वतं स ा से संचािलत रहता है िजसे हम हांड के हर एक जड़ और चेतन म रहती है. तं साधक कसी न कसी
का सहारा ले कर इसी दोन
हांड को जोड़ने क
हक पम
या म संल रहता है. और
इस कार वह एक पूण स ा म अपने आप को इस कार एकाकार कर लेता है क जहा पर उसका अलग होना संभव नह होता और वह खुद एक
ह बन जाता है. यह पूणता पथ पर जो साधक क गित होती है वह अनुभूित है.
Tantra kaumudi June 2012
56 | P a g e
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Vol . 0 1 - No 11
और िजसको वो पार कर चूका है वह अनुभूत होता है. चाहे वह ान शि शि
का प रणाम य न हो. य क जो िजतना ही शरीर, मन तथा
ही सा वत और थायी होता जाएगा. िनि त
हो या
या शि
या फर वह इ छा
हांड पी आ म त व से जुडता जाएगा वह उतना
प से अनुभूित जब बार बार आकार लेती है तब वह ठोस होती जाती है,
थायी होती जाती है, शंका को िनमूल करते ए वह शरीर मन तथा आ मा म उतरता जाता है और वही आगे अनुभूत बन जाता है. और यही अनुभूत स य तथा इससे आगे सा वत स य बन जाता है. य क स य हर एक
ि
के िलए अलग
अलग हो सकता है ले कन मूल उ सग का स य सभी के िलए एक ही होता है. उदहारण के िलए हर एक शि
है यह हमारे मूल उ सग
ह का स य है ले कन
ि
प से अ सर होती है,
अंदर उतारने क कला है, अपने आप म
होते है. इस कार मनु य क या ा
ह क और अ सर होती है य क वह हर
है अनुभूित से अनुभूत क और. ले कन सा त स य को
के अंदर
का स य अपने आप म अलग हो सकता है. ले कन इससे मूल
स य म प रवतन संभव नह हो पता. उसी स य के आधार पर ही सभी स य िवभ पूणता क और िनि त
ि
ि
ण एक िनतांत या ा होती
मा से नह जोड़ा जा सकता न. तं तो
ह से घुल िमल जाने क
या है; फर यह
हांड को अपने
ि गत रहे भी तो कै से? साधना
जगत म भी कु छ ऐसे ही िनतांत स य मोती है जो क अनुभूित से आगे बढे ए है, जो क अनुभूत है. एसी तांि क िजसका योगा मक और से प रणाम क
याए
या प इतनी बार अनुभूत हो चूका है क वह सा वत हो गई, थायी हो गई िजसमे िनिचत प
ाि होती ही है. य क वह सामा य
या न रह कर
हांडीय
या बन चुक है. एसी साधनाए
िनि त सफलता दान करती ही है. साधक का जीवन कम पाप या सं कार इस िबच नह आ सकते, अगर एक
ि
अपने
हाथ से अपने गाल पर तमाचा मारेगा तो चाहे उसने कतने पाप कये हो या चाहे कतने भी पु य कये हो उसको गाल पर दद क अनुभूित होना िनि त है; एक ठोस दान करती ही है. िजस साधनाए एसी ही ती
हांडीय शि
हांडीय िनयम से आधार पर क गई िवशेष
या अपना फल पूण
प से
ने यह िनयम बनाया है उसी िनयम का आधार है अनुभूत तं . अनुभूत तं
याए है जो क हमेशा िनि त
प से प रणाम क
ाि करवाती ही है. एसी
याए काश
म नह आई, इसके पीछे कई कार के कारण हो सकते है ले कन ऐसा भी नह है क इस कार क
याए लु हो गई है.
गु मुखी परंपरा से एसी साधनाये िनतांत गितशील रही है. इन साधनाओ के पीछे कई कार के सू म
हांडीय िनयम काम
करते है तथा शि यो को साधना साथ इन अनुभूत तांि क
या से बा य हो कर साधक का काय करना ही पड़ता है. अगर साधक पूण िन ा के
याओ को स पन करे तो उसे कभी भी िनराशा का सामना नह करना पड़ेगा.
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Anubhut Tantra Sadhna Anubhuti (emotional experience/feeling) is a divine word in itself. Significance of this word in every field of life is indescribable in itself.Anubhuti is one such activity which unifies the Aatm element, Bhu element and Manah (mind) element of person. This result into creation of Smriti (remembrance) and human being can feel the subtlety of aspects of life.
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It is not difficult for sadhak of tantra field to understand the importance of this word. Universe in itself is directed by one independent authority which is titled as Bramha by us. Every static and dynamic thing of the universe contains the part of this Bramha. Tantra sadhak, in one form or the other, using the medium of sadhna, taking assistance of one definite power tries to unify these two universes. In this way, he unifies himself with that complete authority in such a way that it is not possible for him to separate him and he himself become Bramha. The journey of the sadhak on this path of completeness is called Anubhuti and the one which he has crossed is called Anubhut. It may be the result of Gyan Shakti (Knowledge power), Kriya Shakti (power of action) or will power. Because the more one connects with body, mind and Aatm element, more one will become immortal and permanent. Definitely when feeling starts taking shape repeatedly, it starts getting concrete, permanent. And this becomes Anubhut truth (experienced truth) and then immortal truth. Because truth can be different for each person but truth of basic origin is same for everyone. For example every person has got power inside him. This is the truth of our basic origin Brahma but the truth of person can be different in itself. But it is not possible for the basic truth to change. On the basis of that truth, all truths are divided. In such manner, journey of human being progress towards completeness definitely, progress towards Bramha because at every point of time, it is the continuous journey from Anubhuti towards Anubhut. However, immortal truth can’t be identified with merely one person .Tantra is an art of imbibing universe inside us. It is process of dissolving ourselves in Bramha .Then how can it be personal? In sadhna world there are such absolute true pearls which have progress beyond Anubhuti, they are Anubhut (experienced).Such tantric process whose action aspect have been experienced so many times that they have become
immortal and permanent and results are definitely obtained through them. They have
become universal process rather than a normal activity. These sadhnas definitely provide success. Sanskars, sins and karmas of sadhak can’t come in between . If one person slaps himself; he will definitely feel the pain irrespective of whether he has done good deeds or committed sins. The special process based on concrete universal rule provides complete results. The basis of the rule made by the universal power is Anubhut Tantra. Anubhut Tantra Sadhnas are such intense process which definitely provides the results. Such process have not come into light .There can be many reasons behind it but it is not that they have become obsolete.
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Such sadhnas have always been in vogue through Guru Tradition. Behind these sadhnas, many types of subtle universal rules work and the forces, being compelled by sadhna process, have to definitely do the work of sadhak. If sadhak do these Anubhut tantric processes with full dedication, he will never be disappointed.
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Vijyaa sadhana
एक पूण सुखमय जीवन के िलए िनि त
प से धन क मह ा को िन ववा दत
प से वीकार कया जाता है. अपने
जीवन को सुखमय तथा ऐ यवान बनाना कौन पसंद नह करेगा. ले कन यह सहज ही संभव नह हो पता है. कई बार म
ि ि
के कम का फल नह िमलता है और अगर िमलता है तो वह िवपरीत
चाहे धन ाि के िलए कतनी भी कोिशश कर ले ले कन उसे सफलता ा होती ही नह . इसके पीछे कई
कार के कारण हो सकते है. ले कन एसी ि थित म
ि
का जीवन बोिजल और अ यंत ही जीण हो जाता है.
योग देवी िवजया से सबंिधत है. यह योग साधक को िन
प म िमल जाता है, एसी ि थित तुत
लाभ पहोचाते है
साधक को धन ाि म बा य िवगत तथा वतमान जीवन के पापदोष का शमन करता है िजससे क साधक को धन क
ाि संभव हो सके
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इस साधना को करने पर
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गृह शांत होते है तथा उनक कृ पा ा होती है, इस कार धन ाि के माग म
अगर कोई हबाधा है तो वह हट जाती है तथा ह क कृ पा ि
साधक को अगर
ा होती है
ापर आ द का
ान नह है तो उसे देवी अ तः फु रणा जागृत कर साधक के िलए
माग स त करती है, इसके अलावा
ापर मंद या बंद पड़ गया हो तब भी इस साधना के मा यम से उसे
पुनः उसे गितशील कया जा सकता है, देवी सारे
वधान दू र करती है
अगर साधक का धन कही का या फस आ है तो उसे उस धन क
इस साधना से साधक के सामने आय के नये नये तो
खुलने लगते है तथा कसी न कसी
ाि होती रहती है. कई बार साधक को आकि मक प से धन क इस कार यह साधना साधक को कसी भी
ाि हो जाती है प म धन क
ाि हो जाती है.
प म धन देने के िलए समथ है और साधक को िनि त धन क
ाि
करवाती ही है. इस साधना को साधक शु वार क रा ी म ११ बजे के बाद शु सव थम साधक
ान कर के लाल व
करे.
धारण कर, लाल आसान पर बैठे. साधक का मुख उ र दशा क तरफ होना
चािहए. साधक के अलावा साधना क म और कोई नह होना चािहए. अगर साधक िवजया य
कही से ा कर सके तो उस पर साम य पंचोपचार पूजन करे, अ यथा देवी िवजया क
एसी त वीर को ा करे िजसमे देवी के एक हाथ म कमल और एक हाथ म घट या कलश ज़ र हो. इस कार यं उपल ध न होने पर त वीर को ा कर उस पर पूजन करे. अगर यह भी कसी भी कार से संभव नह है तो साधक महाल मी का िच
थािपत करे और पूजन करे. इस साधना म साधक को तेल का दीपक लगाना है. तेल कसी भी
कार का हो सकता है. साधनाकाल म साधक को
हचय का पालन करना चािहए.
इसके बाद साधक मूंगामाला या िव ुत माला से मं जाप ारंभ करे साधक पहले एक माला मं जाप िन ॐ कमलवािसिन सा ा यिस इसके बाद साधक िन ॐ
मं का करे
ं ं नमः
िवजया मं क ११ माला जाप करे
सव िवजयमंगल िवजयाये मं गलदाियिन
११ माला हो जाने पर साधक िन ॐ कमलवािसिन सा ा यिस
म
ॐ
क फर से एक माला मं जाप करे
ं ं नमः
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यह म अगले ७ दन तक बना रहे. ८ वे दन शु वार को साधक १०१ आ ित गुलाब और शहद से िमला कर अि म सम पत करे. अगर यह संभव नह हो तो शहद म गुलाब का इ डाल कर आ ित देनी चािहए. यह आ ित ॐ सव िवजयमंगल िवजयाये मंगलदाियिन
ॐम
से सम पत करनी है.
साधक को इस साधना समा होते होते ही िविच अनुभव होने लगते है तथा क मत से बंद वे आय और धन ाि के सभी दरवाज़े खुलने लगते है. साधक को य
या िच
पूजा थान म रखना चािहए. माला को िवस जत नह
करना है. आगे साधक अगर हर शु वार को इस िवजया मं क एक माला करते रहे तो उसके जीवन म धन सबंधी अभाव नह रहता.
Vijayaa Sadhna – for definite attainment of wealth Importance of wealth is accepted indisputably for living a complete happy life. Who will not like his life to become happy and prosperous but this is not possible easily. Many times, person does not get the results of his karmas and if he gets, he gets the opposite results. In such a condition, person can make many attempts to attain wealth but he does not get any success. There can be many reasons behind this. But in such a condition life of the person become burdensome and much withered. The prayog mentioned is related to Vijaya.This prayog provides following benefits to sadhak.
It destroys the sins of present and past lives of sadhak which were obstacle in attainment of wealth so that sadhak can attain wealth.
Every sadhna pacifies displeased planets and their blessings are obtained. In such a manner, if there is any obstacle due to planet in attainment of wealth, it is cleared and blessings of planet are obtained.
Sadhak, if does not have any knowledge of business then goddess activates sadhak’s inner consciousness and shows the way to sadhak. Besides this if business has stopped or facing recession then this sadhna can again help the business to flourish. Goddess gets rid of all obstacles.
If sadhak’s money is stuck somewhere, he gets that money.
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Vol . 0 1 - No 11
New sources of wealth and income open for sadhak and he gets money on one form of the other. Some times sadhak gets instant money.
In this way, this sadhna is capable of providing wealth to sadhak in any form and definitely helps sadhak to attain money. Sadhak should start this sadhna on any Friday night after 11:00 P.M. First of all, sadhak should take bath and wear red clothes. Sit on the red aasan. Sadhak should face north. There should be no one except sadhak in sadhna room. If sadhak can get Vijaya Yantra, then he should do normal Panchoopchar poojan of it.Otherwise, he should obtain such picture of goddess Vijaya in which goddess has lotus in one hand and earthen pot in the other. In this manner, worship this picture in case you do not get the yantra. If this is also not possible then sadhak should establish the picture of Maha Lakshmi and worship it.In this sadhna, sadhak has to use oil-lamp. Any type of oil can be used. Sadhak should follow celibacy during sadhna duration. After this, sadhak should start chanting mantra with Munga or Vidyut rosary. Sadhak should chant one round of following mantra om KamalVaasini Saamraajya Siddhim Hoom Hoom Namah After that sadhak should chant 11 rounds of the below Vijaya Mantra om Shreem Hreem Sarv Vijay Mangal Vijayaaye Mangaldaayini shreem Hreem om After 11 rounds, sadhak should again chant one rosary of below mantra om KamalVaasini Saamraajya Siddhim Hoom Hoom Namah This process has to be done for 7 days. On eighth day, on Friday sadhak should offer 101 oblations of rose and honey in fire. If this is not possible, then rose scent should be put in honey and then oblation should be offered. This oblation has to be offered while chanting om Shreem Hreem Sarv Vijay Mangal VijayaayeMangaldayinishreem Hreem om.
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63 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Sadhak starts having amazing experiences when sadhna is nearing completion, the doors for income and attainment of wealth opens for him (which was once closed by his fortune). Sadhak should keep yantra and picture in his worship room. Rosary should not be immersed. If sadhak do one round of this rosary on every Friday, then he does not face any shortage of money in his life.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
sarv kaary siddhi sadhana
जीवन म मनु य के ऐसे कई काय होते है िजनमे सफलता िमलना िनतांत आव यक होता है. साधक को अपने कये गए काय म कई बार सफलता ना िमलने पर हताश तथा िनराशा का सामना करना पड़ता है. कई बार धन यश और स मान क ाि के िलए काय क िसि
होना एक आव यक बदु बन जाता है. इस कार
ि
अपना तथा अपने प रवार का गौरव
ऊँचा उठाने के िलए य शील ज़ र रहता है ले कन उसे मनोवांिछत सफलता ना िमलने पर
ि
का जीवन क मय बन
जाता है. तं म कई ऐसे उपाय है िजसके मा यम से साधक अपने मनोवांिछत काय म सफलता क
ाि कर सकता है. यह
काय जीवन के कसी भी प
से सबंिधत हो सकते है, कसी से मुलाकात करना या फर
करना, या फर कोई मह वपूण सफर पर जाना हो, इस कार सव काय क िसि
ापर म उ ित के िलए याण
के िलए साधक यह योग करना
चािहए. इस योग के िलए साधक को ७ हक क प थरो क ज़ रत पड़ती है. साधक को यह योग बुधवार क रा ी म १० बजे के बाद करना चािहए. साधक
ान करने के बाद सफ़े द धोती पहने और सफ़े द आसान पर बैठ जाए. दशा उ र रहे.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
अपने सामने एक सफ़े द माल म ७ हक क प थरो को रख दे. और उसे लोहबान का धुप दे. इसके बाद साधक सफ़े द हक क माला से िन
मं क एक माला जाप करे.
अलक मलक क खबर जो लावे सात पीर पैगंबर आवे एक माला मं जाप हो जाने पर साधक एक हक क प थर को अपने हाथ म ले और मं बोल कर उस पर फूं क मारे. इस कार ७ बार फूं क मारे और उसे रख दे. इस कार सातो प थरो पर ये साधक को यह
म ७ दन तक करना है और ७ वे दन उस
पोटली बाँध कर रख दे. जब भी कभी काय िसि
या करे.
या पूण होने पर उन सातो प थरो को उसी
माल म
करनी हो तब उस पोटली को हाथ म ले कर सातबार मं का मन ही मन
जाप कर के फूं क मरे और अपनी इ छा को बोल कर उसे जेब म रख ले और काय के िलए चले जाए तो काय सफल होता है. वापस लौट कर पोटली को लोहबान का धुप दे कर वापस रख दे. इस साधना म साधक को चािहए और जब भी काय िसि
के िलए जाना हो तो पहले
चािहए. यह पोटली जीवन भर कायिसि
ान शुि
हचय त का पालन करना
कर के पिव अव था म ही इसका योग करना
फल देती रहती है.
Sarv Kaarya Siddhi sadhna There are many works of human beings in life in which attaining success is extremely important. Sadhak has to sometimes face disappointment due to non-attainment of success in the works done by him. Sometimes accomplishment of work becomes essential element for attainment of wealth, fame and respect. In this manner, person always tries to raise prestige of himself and his family but non-attainment of desired results makes his life troublesome. There are many ways in tantra by which sadhak can attain success in desired work. These works can be pertaining to any aspect of life. Meeting someone or making attempts for progress of business or going on any important journey; likewise for accomplishment of all these works sadhak should do this prayog. For this prayog, sadhak needs 7 Hakeek stones. Sadhak should do this prayog on Wednesday night after 10:00 P.M. Sadhak should take bath, wear white dhoti and sit on white aasan. Direction should be north. Place 7 stones in white handkerchief in front of him and worship it whit dhoop of Lohbaan. After that sadhak should chant one round of the below mantra with white Hakeek rosary. Alak Malak Kee Khabar Jo Laave Saat Peer Paigambar Aave
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66 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
After chanting one round, sadhak should take one stone in his hand and while chanting mantra, blow on it.In this way, blow 7 times and keep it. Repeat this process on all seven stones. Sadhak should do this process for 7 days and on seventh day after completion of process; sadhak should tie these stone in that handkerchief. Whenever any works need to be accomplished then sadhak should take that bundle in his hand and mentally chant the mantra 7 times and spell out his wish and keep that bundle inside his pocket. Sadhak should then go for his work. Work will be accomplished. After returning, worship the bundle with Lohbaan Dhoop and keep it again. Sadhak should follow celibacy during sadhna duration and whenever sadhak has to go for accomplishment of work, he should first take bath and then use it in pure condition. This bundle helps in accomplishing the work all the life.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Vashikaran sadhana
कई बार जीवन म अचानक से इसे संकट आ जाते है िजनका िनकाल ज़ द से ज द ना करने पर पुरे प रवार को दु ःखमय जीवन जीने के िलए बा य होना पड़ जाता है. कई बार प रवार म से कोई
ि
वह असामािजक कृ य क और अ सर हो जाता है. या फर कु संगत म फस कर बबाद कर लेता है. इसके अलावा कई बार कई
ि
परेशान और
बुरी संगत म फस जाता है, एसी ि थित म ि
अपने आप ही अपना सारा जीवन
त कर के अपने श ुता का प रचय देते है. या फर
अपने काय थल पर हमारे कये गए काम पर कोई और अपना हक जमा कर सारा यश ा ि थित म
ि
कर लेता है. व तुतः एसी
धीरे धीरे िहन् भावना से िसत होने लगता है और कई कार के मानिसक रोग से िसत हो जाता है.
इसके साथ ही साथ
ि
के प रवारजन भी एसी सम याओ से पीिड़त होने लगते है. एसी ि थित म कोई उपाय सफल न
हो तो वशीकरण का सहारा लेना चािहए. वशीकरण कोई िहन् िव ा नह है वरन इसका उपयोग कई वाथ
ि यो ने
िहन् वृितयो के िलए कया इस िलए समाजम इस िव ा के नाम से अकारण ही भय फै लने लगा है. एक डॉ टर छु री से कसी क जान बचाता है और दु वाये ा करता है वही एक खुनी इसी से कसी का खून करता है और पूरा जीवन ब दु वा लेता है ले कन इसम छु री का या दोष. वशीकरण भी एक उ म िव ा है िजसके मा यम से जीवन म संकटो से मुि सकती है. और एसी नाज़क प रि थितयो म और आज के युग म इस कार क साधना िनतांत आव यक है.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
िमल
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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इस साधना को स पन करने के िलए साधक के पास सा य (िजस पर योग कया जाना है) के कपडे का टुकड़ा, या फोटो होना आव यक है. साधक इस योग को मंगलवार से शु साधक
ान कर लाल व
करे. साधक को रा ी काल म ११ बजे के बाद यह साधना शु
करनी चािहए.
को धारण करे. साधक का मुख उ र दशा क तरफ हो. अपने सामने सा य के कपडे का टुकड़ा
या फोटो या दोन को लाल व
पर थािपत करे और तेल का दीपक जला ले. इसके बाद साधक िन
मं क
ा माला
से २१ माला जाप करे. ॐ चा डाली अमुकं व य व य ं फट् इसम अमुकं क जगह सा य
ि
का नाम ले. मं जाप के बाद साधक अि
विलत कर के उसमे उबली ई मसूर से २१
या १०८ आ ित इसी मं से दान करे. यह म ५ दन तक ज़ारी रखे. ५ वे दन मं जाप और आ ित हो जाने पर उस व वो मानिसक प से आ ा दे. जेसे क कोई
ि
या त वीर पर जो इि छत भावना हो
अकारण परेशान कर रहा हो और उस पर योग कया गया है तो व
या
त वीर को हाथ म रख कर मन ही मन यह उ ारण कर आ ा देनी है क तुम मुझसे श ुता को भूल जाओ और कसी भी प से मेरा अिहत या परेशां नह करोगे. इस कार ५ बार दोहराए. जब ये हो जाए तो दू सरे दन साधक माला और व /फोटो को कसी िनजन थान पर छोड़ कर घर लौट आए. इस योग क यह िवशेषता है क साधक
ि
को भावना
दे सकता है क उसे या करना है. यह साधना व रत
प से अपना भाव दखाती है और साधक को इस योग का असर दूसरे ही दन से दखाई देने लगता
है. Vashikaran Sadhana: In the life, many times so many troubles arrive which are needed to be removed as soon as possible or else it may result in the sad living of the whole family. Many times person from the family gets trapped in the in appropriate company of the person and in such situation mind of the person derives to the anti social activities. And being trapped in such antisocial company one ruins own life. Apart from this, people start acting enemies with no reason by troubling and torturing. Or it may be that in our workplace someone else receives credit by establishing their rights forcefully. Actually, in such situation person slowly starts moving towards loosing self confidence and gets trapped in many mental disorders. Apart from this, family members of the suffering person also get affected with many such troubles. In all such situations when nothing works, one may go for the Vashikarana. Vashikarana is not cheap art but few selfish people used it for cheap acts thus in society this became scary name.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
One doctor may receive many blessing by using knife for the operation other person use that knife for the murder and receives many curses of the people but what is the fault of knife in this? Vashikaran is also great prayog with medium of the same one may have rid on many troubles of the life. And in such critical condition and also in todays world such processes are very essential.
To accomplish this process, sadhak should have piece of the cloth or the photograph of the person on which Prayoga or process is being carried out for vashikaran.
Sadhak should start this process from Tuesday. This process could be started after 11 in the night. Sadhak should wear red cloths after having bath. Sadhak should sit facing north. Sadhak should place in front of him a piece of the cloth or the picture (of the person on which process is being done) on the red cloth and one should light lamp of the oil. After this, sadhak should chant 21 rounds of the following mantra with the rudraksha rosary.
om Chaandaali Amukam Vashy Vashy Hoom Phat
In this process one should chant the name of the desired person on the place of “Amukam”. After mantra chanting one should give the 21 or 108 offerings of the boiled lentils (masoor ) in the fire with the same mantra.
This process should be continued for five days. On the fifth day after mantra chanting and fire offerings mentally order could be given on that piece of the cloth or on the picture by taking it in hand. for example if someone is troubling with no reason then one can mentally order that you will forget that you are my enemy and in any form you would not trouble or torture me in the future. This way one should repeat the order five times. When this is done then on next day sadhak should drop the rosary and piece of cloth/picture to uninhabited place and should return to home. Speciality of this process is one can give mentally order to the desired person that what that person should do.
This process gives quick result and sadhak will start watching the effect from the very next day.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Sadhana for
कई बार
ि
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To geT success in workplace
को अपने काय थल म कई कार क सम याओ से
त रहना पड़ता है. बॉस बात नह मानते, सह कम ओ
का आचरण ठीक नह होता है, या फर दू सर क अपे ा हमेशा आपको ही कसी न कसी प म काय क अपू त का कारण घोिषत कया जाता है. कई बार यह भी देखा गया है क
ि
को हमेशा से िहन् भावना से िसत रहना पड़ता है, य क
उसके काम क हमेशा अनदेखी कर दी जाती है, सहकम िविवध कार के इलज़ाम लगाते है तथा काम थोप देते है, साथ ही साथ कसी भी कार के नुकशान क िज मेदारी भी कार के उप व अपने उ कम के
ि
ि
के ऊपर अपना
के ऊपर लाद दी जाती है. यु िविवध
ारा भी होते रहते है. एसी ि थित म साधक एक य
क तरह बन जाता है जो िसफ
काम कर सकता है ले कन उसमे कसी भी कार क भावना नह होती. ये सम या आज के युग म बहोत पायी जाती है क ि
को उसके काम के अनु प वेतन नह िमलता, जब मोशन या उ ित क बात आती है तो उ कम मुह मोड लेते है
और वह थान कसी और अयो य
ि
को दे दया जाता है.
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ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
यह अ याय सी ि थित कसी भी
ि
के जीवन के अंदर कई
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कार क सम या खड़ी कर सकती है,
ि
हमेशा
िचडिचडा बना रहता है और वा य िबगड़ने लगता है. एसी ि थित म साधक खुद ही अपने साथ याय कर सकता है इस योग से. यह योग अपने आप म उ म है य क यह साधक को एक साथ कई कार के लाभ दे सकता है. साधक को अपने सभी सहकम से मदद िमलना ारंभ हो जाती है, साधक के िखलाफ अगर कोई ष जाता है, सभी श ुता का भाव याग कर उससे िम ता पूवक तथा िनि त
ं बना रहा हो तो वह िनमूल हो
वहार करने लग जाते है. साधक को
प से साधक म एक नया आ मिव ास आ जाता है. साधक को यो य पद और उ ित क
ेय क
ाि होती है
ाि होती है. एक
कार से देखा जाए तो साधक के आसपास का पूरा वातावरण साधक के अनुकूल बनने लग जाता है. इस योग को साधक कसी भी दन शु म सफ़े द व
कर सकता है. समय रा ी काल म १० बजे के बाद का हो. साधक को इस योग
का योग करना चािहए और सफ़े द आसान पर उ र या पूव क तरफ मुख कर बैठना चािहए. इसके बाद
साधक अपने सामने देवी मातंगी का िच इसके बाद साधक शि
थािपत कर के उनका पंचोपचार पूजन करे.
माला या मूंगा माला से िन
ॐ मातंगी इ छापू त
मं क ११ माला मं जाप करे.
ं नमः
मं जाप के बाद साधक देवी को जाप सम पत कर सो जाए. इस कार यह योग ११ दन तक करे. इसके बाद बारहवे साधक दू ध क बनी ई िमठाई छोटी क याओ म यथाशि िवतरण कर दे तथा माला को कसी देवी मं दर म दि णा के साथ रख दे. साधक पूण होते होते साधक वयं ही अनुकूलता का अनुभव करने लगेगा.
For the progress in the workplace Many time person remains in varieties of the troubles at the workplace. Boss do not listen, not proper behaviour of the colleagues, or else you are announced to be responsible for the task not accomplished, many time such thing has also been seen that one suffers from mental troubles because they remained un noticed and neglected. Colleagues keeps on blaming and pressure their workload on the person, with that any harm caused is also blamed on the person such way many troubles are made by colleagues. In such situation, person becomes machine who can work but with no feelings. This trouble is faced by lot many people that one does not receives payment comparatively to the work done and when it comes to the promotion then superior changes the face and that place is assigned to someone else who is not appropriated. Such injustice may cause many troubles in the life of the person. One may stay annoyed and health gets dull.
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ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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In such situation sadhak can make justice by them self with this sadhana. This process is very important process because this process can give many benefits altogether. Sadhak starts receiving help from the fellow workers and if there is any trap is being formed for the sadhana that vanishes. Everyone starts acting friendly and forgets all the behaviour of being enemy. Sadhak starts receiving appreciation and for sure sadhak starts feeling new dose of self confidence. Sadhak receives appropriate post and promotions. Whole surroundings of the sadhaka starts being favourable.
This prayog could be start on any day. Time should be after 10 in the night. Sadhak should use white cloths and white sitting mate (aasana) and should sit facing north or east direction. After that sadhak should establish picture of goddess Matangi and should do the panchopachara poojan (poojan with five materials)
After that sadhak should chant 11 rosaries of following mantra with Shakti Rosary or Munga rosary.
om Maatangi IchchhaPoortim Shreem Hreem Hoom Namah
After mantra chanting offer the same to the goddess and go to sleep.
This way, the process should be continued for the 11 days. On the 12th day, one should offer sweets made with milk to the small girls and rosary should be placed to some goddess temple with some amont. When sadhana is about to get complete, sadhaka will start experiencing favourable conditions.
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To acTivaTe asTral body -- sadhana
मनु यशरीर अपने आप म अ भुत रचना है. एक साधारण मनु य अपने जीवन म अपनी थूल देह को ही एक मा देह मान कर अपना पूरा जीवन िनकाल देता है. ले कन मनु य के इसी देह म और ६ शरीर जुड़े ए होते है. इस कार ये ७ शरीर मनु य म होते है. यह शरीर एक दू सरे से जुड़े ए होते है. एक साधक के िलए अपनी थूल देह से आगे जाने के िलए यह आव यक होता है क वह अपने थूल शरीर से जुड़े ए दूसरे शरीर को अलग करे और उसे वतं स ा दे. थूल शरीर म प
त व क मा ा इस देह के
याकलाप के िलए आधार है ले कन दू सरे शरीर म प
है. इस िलए थूल देह क जो काय
मता होती है उसमे और अ य शरीर क जो काय
त व के
माण म अंतर आ जाता
मता है उसमे बहोत ही बड़ा अंतर
है. सू म शरीर एक ऐसा शरीर है िजसके भूिम तथा जल त व क मा कम होती है. इस शरीर के मा यम से कर सकता है जो वह थूल देह से नह कर सकता. य क भूिम तथा जल त व क अ प मा गु वाकषण से मु
ि
वो काय
होने के कारण वह
रहता है. हजारो िमल क या ा वह अ यंत ही अ प समय म कर सकता है, इसके अलावा कई कार के
यो को देख तथा सुन सकता है िजसे देखना या सुनना थूल देह से संभव नह होता. इसके अ वा सू म शरीर के मा यम से तथा
ि
उन जगह पर भी जा सकता है जहा पर थूल देह से जाना संभव नह हो पाता. ले कन इससे सबंिधत साधना याए अपने आप म बहोत ही गु तथा पेचीदा रही है.
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इस िलए इस िवषय पर यादा काश नह पड़ा है. व तुतः सू म शरीर को थूल शरीर से अलग करना इतना सहज नह है. य क वह ठीक एक पड क तरह है जो क गभ म होता है. वो चेतन रहता है ले कन जागृत नह . इस िलए ज़ री होता है क उसे जागृत कया जाए. ता क उसक अपनी वतं स ा का िवकास संभव हो सके . शरीर के जागरण के सबंध म है. इस साधना के मा यम से से
ि
ि
तुत साधना योग सू म
अपने सू म शरीर को जागृत कर सकता है. िजसके मा यम
उन जगह पे जा सकता है जो क चतुथ आयाम म है, या फर िजसे लोक लोकांतर भी कहा गया है. साधना करने
के बाद
ि
को अपने आप म एक ह कापन अनुभव होने लगता है और कई बार उसको ऐसा अनुभव होता है क वह
अपनी वयं क देह से अलग है. कई बार त ा तथा व या भाव अव था अचानक से आ जाती है और
ि
सू म शरीर
के मा यम से एसी जगह पर पहोच जाता है िजसको साम य आँख से देखना संभव नह है. इस साधना को कसी भी दन शु शु
कया जा सकता है. साधक यह योग
करे. साधना के िबच म कसी भी कार का कोई भी
साधक सफ़े द व
हमु त या फर रा ी काल म १० बजे के बाद
वधान ना आए इसक सुिवधा पहले ही कर लेनी चािहए.
तथा आसान का योग करे. दशा उ र रहे. साधक को सव थम आँखे बंद कर के अपनी नािभ म यान
क त करना चािहए. इसके बाद साधक ११ माला मं जाप करे. यह मं जाप फ टक माला से होना चािहए. ॐ
ल
यह योग इसी
ह हांडवै ल ि
फट
को सात दन तक करना चािहए. साधक को माला पूजा थान म रखनी चािहए. साधक अगर चाहे तो
या को आगे के दन म भी कर सकता है िजसमे इस माला का वापस योग कया जा सकता है. Activation of the astral body:
Human body is wonderful creature in itself. Normal human being will spend his whole life with a belief that there is only one single body. But there are 6 bodies attached with this human body. This way there are seven bodies altogether in human. These bodies are attached with each other. For a sadhaka to make move ahead from his main body to the next one, it is essential that to separate one body from another and to give it independency power.
In the main body, five basic elements are
responsible base for the all activities and functions of the body but in other bodies’ proposition of these elements are different than the main body. Therefore, there is a vital difference between working capacity conditions of the main body and the other bodies. Astral body or sukshma sharira is one of the bodies which has low amount of the earth and water element. With the help of this body, one can do the tasks which main body or in other words basic body cannot do. Because by having lesser amount of the earth and water element in the body it remains free from the gravity. Travel of the thousands of the miles could be done in very short span of the time. Apart from that many kind of the scenes could be seen and could be heard which could not be heard or could be listening through normal body.
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Also one can visit many places which could not be done with normal body. But processes and sadhana related to this subject had always remained tough and secret. With this reason, this subject has not much rich in term of material available. However to separate astral body from the normal body is not easy process. Because it is just like ingot or the foetus which is conscious but not awake. This way it is essential to awaken it. So that its own independence can take place. Presented procedure is in regards to active astral body. With the medium of this sadhana one can active their sukshm sharer or astral body with the help of the same one can go to the places of forth dimension or in which are also called as other worlds. After sadhana is done, one may feel very light and many time experiences take place like the body and one is being separate. Many times suddenly mental position move to unconsciousness, dreamy or semi conscious state and with the medium of astral body one reaches to the place which could not be seen with normal vision.
This sadhana could be started from any day. Sadhak can start this prayoga in BramhaMuhurta (after 4:30 in morning) or after 10 in the night. One should arrange everything in that way that in the time duration of sadhana no disturbance should be faced. Sadhak should use white cloths and white aasana. Direction should be north. Sadhak should first concentrate on the navel with closed eyes. And then one should chant 11 rounds of the following mantra. This mantra chanting should be done with Crystal rosary.
om Hreem Kleem BramhBramhaandavai Kleem Hreem Phat
This process should be done for seven days. Rosary should be placed in worship place. If sadhak wish, one may continue the process after sadhana period is over and the same rosary could be brought in use again.
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SWARN RAHSYAM -11
अिभभूत ही हो गया था म उस अ भुत दृ य को देखकर , मुझे कभी सदगु देव ने बताया था क कायाक प के रह य क तलाश म िसफ एक रस् शा ी ही नह बि क वै ािनक भी लगे ए ह, और ये स य ही है क हमारे समृ
आयुवद म ही इस
िव ा का रह य छु पा आ है , चाहे िनगु डी क प क बात हो, अंकोल क प क बात हो, या फर िस सबके मूल म ही पारद कही न कही दृ य या अदृ य है.
और
कहा
ीमोदक , इन
प म िवराजमान है . कायाक प का चतन भी इसके िबना संभव नह भी
गया
है
क .............
वो सृजनकता ,वो परम त व रस ही तो है . और यही वजह है क जीवन म पूणता क बात हो तो उसमे रस का समावेश करना ही पड़ेगा. और रस श द ही प है ...... रस यु
ापक अथ िलए ए है . िव ा, मान-स मान, धन ,िनरोगी काया आ द उसी रस का
वो परम शि
खैर उस दृ य को देखने के बाद मुझे
,माँ परा बा, आ द शि
ेत बदु और र
Tantra kaumudi June 2012
सर वती के
प म उपा य ह.
बदु के रह य को समझने क कही अिधक बैचेनी थी..........
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
जब हम फर साथ म बैठे तो मने बगैर देर करे कहा क ... आप मुझे कु छ बता रहे थे . तो उ ह ने कहा क अरे धीरज धरो एक रस शा जब
के पिथक को इतना
सदगु देव
ेत बदु और र
ने
यहाँ
ाकु ल नह होना चािहए .
भेजा
है
तो
म
तु हे
शांत
कर
के
ही
यहाँ
से
बदु के बारे म बता रहा था. िन य ही अब तक तुम समझ ही गए होगे क
को कहते ह ,पर अलग अलग स दाय म इसके जो िभ वातालाप
के
िभ
भेजूंगा .हाँ
तो
म
ेत बदु िशव वीय या पारद
नाम रखे गए ह उनके पीछे ब त गूढ़ रह य ह जो म
म य
तु हे
बताता
र ँगा.
अब जो म बताने जा रहा ँ वो यान से सुनो और आ म-सात करो यूं क यही आंत रक क िमया क वा तिवक कुं जी है और रस-िस
का
पशुं
और
मनु य
म
परमल य या
अंतर
है
, या
भी............ तुम
जानते
हो
?????
पशु को समय का आभास नह होता ,उसे ये मालूम नह होता है क समय के साथ साथ उसक अव था म या प रवतन होता जा रहा है ,मनु य को समय का आभास भी होता है और होने वाले प रवतन क जानकारी भी . अब हम समय को जी रहे
ह
या
समय
हम
ये
कहना
तो
मुि कल
है
एक
सामा य
मनु य
के
हम कालाि म ित ण जलते जा रहे ह और हम इसका पता भी नह लगता. ये कालाि समय का ही आ मा का ही पयाय है . हमारी दृ ि
िलए......
प है और समय
ु होती है अथात हम एक िनि त दू री तक ही दखाई देता है .या ये कह लो क
वतमान काल म भी िसफ वतमान का वतमान ही दृ यमान होता है. वो
तीत वतमान और अनागत वतमान को भी नह
देख पाता. यही कारण है क कालाि उसे जलती रहती है .भूत और भिव य तो उसक क ादृ ि से भी परे है . तब ऐसे म पैदा होना और मर जाना ही उसक िनयित बन जाता है . ले कन समय को पकड़ कर यािन अपने आ म- ान को चैत य कर जो तीन काल को दृ ि पथ पर सदैव बनाये रखता है , उसे भली भांित देख लेता है, वो कम के फलाफल से परे हो जाता है तब वो जीवन तो जीता है ले कन दृ ा बनकर कठपुतली बनकर नह , कालाि उसका कु छ िबगाड़ नह पाती. ये अव था िस
क होती है . अब या तो यहाँ क जाओ या इसके आगे बढ़ जाओ . इस जीवन से परे िवगत जीवन या आगत ज म को
भी जो जान लेता है और आ म ान को उस तर पर ले जाता है जहाँ वो उन ज मो के रह य से न िसफ अवगत हो जाता है बि क आ म- काश म उन कम-फल को भ मी भूत कर क याणकारी हो जाता है ,ये अव था महािस
अव था कहलाती है
. पर जो सभी ज म से परे जाकर अपने मूल बदु को ही देख लेता है अथात उ म को ही खोज लेता है और अपने आ मकाश को परम काश म बदल देता है ,तब उसक िवराटता से सम त से परे ये परम योित रह य को ा
ा ड ही आलो कत हो जाता है ,सव ज म रह य
कर लेने क अव था ही परम िस
अव था कहलाती है ,जहा वो ही कता,वो ही
पालक और वो ही िवलय कारक हो जाता है. वो समय भाव म नह आता बि क उसे समय अथात आ मा का मूल ही ात हो
जाता
है
और
ान
हो
वैसे तो तीनो ही तर पर आप को िनजरा देह क िवहीन
देह
द
देह
क
ाि
Tantra kaumudi June 2012
जाता ाि
है
उस
आ मा
क
प रपूणता
हो जाती है पर, वासना शरीर से ऊपर उठकर साधक
के
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विच तन
का
िवषय
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
क.
ान देह या देह है
..........
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
अब आप ये कहोगे क
ेत बदु और र
Vol . 0 1 - No 11
बदु का इस बात से या लेना देना है .... तो आप ये समझ लीिजए क आ मा को
ही पारद या बदु कहा गया है, कालाि से परे तो आप तभी जा सकते ह जब आप क पकड़ आ मा पर हो या ये कहे क आपक आ मा कािशत हो , यूं क देखने के िलए काश का होना अिनवाय है . और आ म काश म ही तो आप इस जीवन के तीनो कालो , या पूव ज म, पुनज म के कम या उससे भी परे आ म-उ म और गमन के रह य को जान पाते ह. पहले तर पर आपक
ु ता का याग हो जाता है और आप िवराटता क और कदम बढ़ा देते ह अंितम अव था म आप वयं
अपनी और
िवराटता ये
या
इतना
असंभव
को भी
कहकर
नह
है
जान
यद
महानुभाव
हम
ेत
जाते बदु
चुप
का
ह.
आ य
हो
ले
ल
गए
..........
मने कहा क ये बात तो स य है क रस के आ य को लेकर ही हम रसमय अथात पूण हो सकते ह पर ये कै से
संभव
या मक
प से
है???????????
उ ह ने कहा क सदगु देव ने इस रह य को समझते ए कहा था क “पूण सं कार यु जारण और चारण कया गया हो , द
तो......
पारद से िजसमे सम त र
का
ओषिधय तथा िस ौि धय से िजसका मदन कया गया हो ऐसे पारद से अ भुत
संयोगो म पूण िशव थापन तथा पूण ल मी थापन
या संप कर रसे र का िनमाण कया जाये तथा उस िशव लग म
स त व “भू,भुवः, वः ,मह,जनः, तपः, स यम” का थापन कर य द ि ने मं का जप कया जाये तो िन य ही ाण च ु जा त हो जाते ह . और तब साधक के िलए िवगत और आगत दोन ही ज म सहज दृ य मान हो जाते ह , न िसफ अपना
बि क
अय
लोगो
ऐसे रसे र को पश करते ए िजस भी देवता का आवाहन कया जाता है ,वे ि थित
म
पूण
य
भी
ऐसे ही िव ह पर आप बदु साधना, नाद साधना, द
,और
का य
होते ही ह, पहले िब बा मक और उ
ऐसा
होता
साधना,अ ुण साधना,िस
साधना,अदृ साधना, िस ा म साधना,िनरंजन साधना और परम साधना कर महा िस कर सकते ह. इन साधन का मह व तो वही जान सकता है िजसने इ ह ा
भी.
ही
है
.
साधना,परमे ी साधना,िच तापुत और परम िस
अव था को ा
कया हो ,एक एक साधनाएं बेशुमार मोितय
से तोलने यो य ह. कसी भी एक साधना से जीवन प रव तत हो जाता है और देखने के िलए िमल जाती है एक नवीन आ म-दृ ि . ये पारदे र व तुतः आपका ही आ म
प होता है िजसे पड या िव ह
प म आप थािपत करते हो, िजन स लोक के
बारे म मने ऊपर बताया है वो स त व आपके स शरीर का ही तो ितिनिध व करते ह .िजनका स ब ध जैसे ही रस- लग से होता है आपका रस ,आपका बदु भी चैत य होते जाता है .और जैसे जैसे उसक चैत यता बढती जाती ह वैसे वैसे आपका आंत रक
कायाक प
होते
जाता
है
और
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दीघायु य
के
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साथ
ा
होता
है
दृ ा
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
भाव
भी.
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
य द साधक ऐसी साधना नह भी कर पाए तो भी अकाल मृ यु, अकाल क से मुि
तथा ऐ य यु
जीवन तो िमलता ही
है . एक भी उदाहरण मने अपने जीवन म नह देखा जब मेरे स गु वर के ये वचन िम या ए ह . शत बस यही है क रसलग
वैसा
ही
बना
होना
चािहए
जैसा
क
ऊपर
व णत
है
.
(यहाँ एक बात बताना म अपना धम समझता ँ क मने ऐसा ही रस- लग थािपत कया है और आज जो भी कु छ मुझे िमला
है
वो
इ ही
रस
पुनः वाता को आगे बढ़ाते ए महानुभाव कहने लगे क ारा आकाश गमन और प छेदन क
लगम
के
आशीवाद
ेत बदु का ही दू सरा
प
से
ोम तं या
ही
है
)
ोम िव ानं है िजसके
या संप होती है . तथा संप होती है महा अचरजकारी “ ”ं गु टका क
ाि जो
अ य लोको से आपका संपक कर देती है........ *************************************************************************************************************** *************************************************************************************************************** * Watching that scene so soulfully I was totally transported. Sadgurudev had told me sometime back while discovering the secrets of rejunevation not only the chemists but also the scientists are chasing the truth. Its extremely right that such learnings are conceal in our assets of Ayurveda .whether it is about the Nirgundi Kalp, Ankol Kalp or Siddha shrimodak etc..Somewhere around in direct or indirect way alchemy (parad) is the reason behind all of this. No one can think about rejunevation without it. Therefore it is said that it is only the alchemy that is the prime creation of universe. If we talk about the completeness of life, it would have been filled with the power of Parad for earning the wealth, knowledge, respect, fame and vivacity
in
our
life…
Alchemy includes that key power which is worshipped in form of Godessess Saraswati. Well after watching that incredible scene I was very eager to know more about the Rakt Bindu and Shwet bindu. When we sit down together, without delay I immediately started asking about the alchemy……the moment I opened my mouth, he said don’t be so excited. One alchemist (ras shastri) should be very calm and patient. If Sadgurudev had sent you here you ll not go with empty hand... So be quiet and just keep watching…
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
So I was telling you about the Rakt Bindu and Shwet bindu…I t would have been very much clear that Shwet Bindu is known as Lord Shiv sperms (virya) or alchemy. But in different communities it has a different name which has secretful meanings. That you will come to know in the upcoming paras…
Now I am going to tell you that truth which each alchemist wish to know and aims for…Ttry to imbibe it. Do you
know
whats
the
difference
between
animal
and
human
being???
Animal could not sense the effect of time. They not even aware lifespan which they really live. Not even able to grab the time difference which changes occur in their condition. But human beings can sense and smell the value of time. It is quite difficult to say whether we are living time or time has subjugated us…
Unknowing we were on fire, each second of Kalagni is swallowing us… We do not know the Kaalagni is only the form of time…and time is the soul. Our eyesight is trivial. I mean to say we are able to see at certain point only. Or you can say in present time we can see present of present only. He not even can see the past niether present i.e. why Kaalagni flames us... past and future is far away from his imagination. In that way taking birth and meeting death becomes his fate. But if one will trap the time and imbibe it in his inner knowledge would be able see past, present and future clearly as good as picture…This is called as Siddha Awastha. Well one can stop here and can live the proud feeling for rest of the life or can step forward. Apart from this life when he become able to see the previous birth and the prolonged one can sense the consequential… which leads to his prime benefits then he becames the Mahasiddha Sadhak. But who steps into that part where he could feel and directly face his Bindu and converts his inner light into prime light, then the whole universe get enlightened…this is known as the Param siddha awastha... Where he
becames
the
doer,
the
maker
and
the
destroyer…
Although on all three stages you get the divine body. It is known as the stage of beyond death where no form of body is reason of your demotion… you are simply on peak…… “The complete soul.”
Now the question in you mind is how the shwet bindu and Rakt bindu are related here…So understand that soul is known as alchemy here or point.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
You can move against the kaalagni if you are heartly imbibe with your soul or we can say the soul is enlightened universally, because without light there is no visibility…as in that innerlight you would be able to know your previous births, future happenings and all such secrets which are untouched yet. On first stage you sacrifice the triviality and step towards the gargantuan and ultimately you know you’re colossal inside... This
activity
After
is
real
saying
possible
if
such
you
take
things
the
support he
of
Shwet
became
Bindu…… quiet…
I said this is correct that with the alchemy only we can reach the completeness but how come the activity can
occur???
He said while giving understanding to us, Sadgurudev told us that in Alchemy as a whole world in which all stones are combined (jaran and charan), by divine medicines and siddh medicine whose mardan has been done. By such alchemy solids we can form the Shiv and the lakshmi form and can get the Raseshwar as the byproduct. And in that Shivling if we add and establish the seven tatva i.e. “bhu, bhuv, swa, maha, jana, tap, satyam and along with that if trinetra chanting process is done then definitely the Pran chakshu get awaken. Afterwards the sadhak can easily know and see the past present future not onlyrelated to him but
of
others
also.
In that way by worshiping Raseshwar and chanting any of God and Goddesses will definitely appear. First in some symbolic form and then in original form will appear infront of us. It really happens. In same way you can attempt the Bindu Sadhna, Naad Sadhna, Divya Sadhna, Akshunna Sadhna, Siddha Sadhna, Parmeshti Sadhna, Chintapurti Sadhna, Adrishta sadhna, Siddhashram sadhna, Niranjan Sadhna and Param Sadhna can achieve the Mahasiddha and Paramsiddha stage. Only he will know the importance of such sadhna who would have attempted it successfully. Each sadhna is incredible. Any of sadhna can change
the
whole
life
of
sadhak
and
gives
you
the
internal
divine
eyesight.
Actualy this Pardeshwar is your figure only which is established in the form of statue or picture.The seven tatvas which I quoted above are the representative of you seven bodies only.The moment it got connected with the Ras Lingum (alchemy) it awakens the inner Bindu of within.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
The way it increases the quantity in your body the rejenevation happens unknowing which is just unbelievable.
Along
with
that
you
are
blessed
with
the
Drishta
Bhav.
If sadhak not even reach the ultimate stage but is blessed with the power of facing strongly the sudden accident, serious diseases and can live healthy and wealthy life full of happiness.I have not even seen a single example which can prove my Sadgurudev’s wordict wrong. That to be only on such condition when “Ras-ling”
should
be
made
in
prescribed
manner.
(Here I would like to admit rather I feel my duty that I have established the same Ras lingum and done the same
process
and
in
result
I
have
achieved
success
in
whatever
I
did)
Again continuing the discussion he enlightens the new topic of Vyom tantra or Vyom Science which is the second name of Shwet Bindu. By which the Flying in air (Akashgaman and Paksh-chhedan) activity could be done. And get the most extreme siddha “Ksham” Gutika which directly connects you to the other unseen worlds.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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EFFECTIVE SARAL LAKSHMI PRAYOG
ल मी त व क उपयोिगता
से आज कोई भी इनकार नही कर सकता ह . हर जगह
अपना ही एक मह व रहा ह . और ल मी के कसी न कसी
ि
चाहे साधू
हो या स याशी या अ य कोई
पहले तो भगवती महाल मी के
क आराधना साधना तो करनी ही चािहये .और बृहद साधनाओ क अपे ा ही एक मह वता होती ह .और इन योग सुचा
देश काल मे इसका सभी को
भगवती
प क आव यकता तो होती ह .
सदगु देव जी ने कई कई बार कहा ह क हर साधक को
ही चािहए
हर
कसी न कसी
छोटे छोटे सरल
व प
योग क अपनी
को सरल साधनाओ को जैसे भी ..जब भी समय िमले करते रहना
य क यह युग अथ धान ह और जीवन को न के बल भौितक अिपतु आ याि मक जीवन को
प से गितशील करने के िलए अथ क आव यकता ह .
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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तभी तो वै दक ऋिषय ने अथ को जीवन के िलए आव यक ४ पु षाथ मे से एक माना ह . साधनाए यूँ तो जीवन के सभी प
को पश करती ह
भाग पर जाता ही ह .पर एक सरल सा ल मी योग
कु छ का अिधक तो कु छ का कम .पर
जो क आप सरलता से कर सकते ह अपने दैिनक जीवन
मे शािमल कर सकते ह .िजसमे ऐसे कोई िनयम नही ह क आपको कोई सम या व
पर कोई िनयम नही ह वस् इतना क आप
असर तो सभी
ातः काल उठ कर
हो बि क माला या आसन
ान कर िजतना भीसंभव हो इन मं का
जप करे .कम से कम एक माला मं जप मतलब १०८ बार तो िन य उ ारण तो हो ही . मं :
ॐ
ल मी ,मम गृहे धन पुरे चता दू रे दू रे वाहा||
********************************************************************************************************** ********************************************************************************************
Saral lakshmi prayog No body can deny the importance of lakshmi tatv in human life . in each palace, time this has its unique importance whether the person may be sadhu or sanyashi or any other one ,each one has in need of the forms of goddess lakshmi . Sadgurudev ji many times
clearly told us that
every sadhak must worship or do the small
duration sadhana of goddess lakshmi as and when he gets time .and sadhana of small duration proved to be a great help instead of doing must
do
sadhana related
a lengthy sadhana . whenever one has a time he
to goddess lakshmi of small duration .the
financial aspect or
importance has a more valuable aspect in this era . our vedic rishis place artha a place in
four
major work or purusharth . Every sadhana effects every aspect of our life ..on some plane may be little less
or on some
place little more . this is very simple prayog , there is no strict rules associated with this sadhana. No restriction on mala colour of asan etc.
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सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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only thing is needed that after the morning bathe do at least 108 times of repletion of this mantra ..every day. मं :
ॐ
ल मी ,मम गृहे धन पुरे चता दू रे दू रे
वाहा ||
Om hreem shreem shreem shreem shreem shreem shreem shreem lakshmi mam grahe pure chinta dure dure swaha ..
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ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
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TOTKA - VIGYAN
इनको एक ब त ही सरल साधना भी कहा जाता ह .यह हर बार सफल ह गे ऐसा तो नही कहा जा सकता ह पर सफलता का ितशत ब त अिधक रहा ह
फर जीवन क हर् सम या के िलए..हर बार बृहद बृहद साधनाए करना
तो उिचत सा नही दखाई पड़ता तो ऐसे समय कई कई बार ये सरल से योग िज ह टोटके भी कहा जाता ह ब त असर दायक सफल रहे ह तो .. 1. भालू के बाल मदा रय
के पास
आसानी से िमल जाते ह अगर उन बालो को कसी तावीज़ मे रख कर
धारण कर िलया जाए तो िजनको भी बुरे और डरावने व आते ह उ ह ऐसे वपन नही आयगे . 2. जब भी रिववार को पु य न
आये तो उस दन िगलोय क जड़ लाकर गले मे धारण कर ले तो
सांप आ द से भय नही रहता ह . 3. गभवती मिहला क कमर मे नीम क जड़ बाँध देने से
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सव पीड़ा ब त कम हो जाती ह .
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
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4. आजकल पंचमुखी
ा
भी नकली िमलने लगे ह
धारण कर िलया जाये तो
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तो एक असली पंचमुखी
ा
को
दय के पास
दय रोग मे अनुकूलता िमलती ह .
5. यूँ तो कु िपत शिन ह क शांित के िलए अनेक लोग घोड़े क नाल से या नदी क नाव क क ल से बनी अंगूठी धारण करते ह पर गुलाब क जड़ भी धा रण क जा सकती ह.इससे भी उतनी ही अनुकूलता िमलती ह. 6. य द कसी को
ोध अिधक
आता हो तो मेहँदी क जड़ को ताबीज मे रख कर धारण करने से
ोध
िनयं ण मे ब त सहायता िमलती ह . 7. िजस कसी को ऐसा बुखार आता हो जो कभी कम हो जो कभी
यादा तो इस के स मे िच क सीय
इलाज़ के साथ साथ काली तुलसी क पि य क माला को धारण करने से ब त लाभ िमलता ह . 8. य द गाय को भो य पदाथ दए जाए और उसक पीठ पर हाथ फे रा जाए तो ह वाधा पीिड़त या या अ य वाधा से पीिड़त 9. गभकाल न
ि य को लाभ िमलता ह .
कसी भी मिहला के िलए ब त
चल रहा हो उस समय
ही सावधानी
वाला
काल
होता ह
एक सुपाड़ी अगर मिहला क कमर मे बाँध
तो जब भी अनुराधा
दया जाए तो गभ क र ा
बनी रहती ह . 10. भगवान गणेश क अनुकूलता कसे नही चिहये . उनक अनुकूलता या स ता से सारे काय सहज िस जाते
ह . और यह त य तो सभी जानते ह क
हो
दु वा दल भगवान गणेश को कतने ि य ह पर इसके ही
साथ लाल कनेर के पु प भी अ पत कये जाए तो अनुकूलता कह ज दी दृ ी गोचर होती ह .
************************************************************************************************************* ************************************************************************************************************ Totke for you They can be considered as a
simple sadhana , but each and every time you will get positive or
100 % result that cannot be sure . but getting success through these has a very high percent . and its also true and quite natural that every time bigger and lengthy sadhana for any problem is not a god solutions .when such problems comes using this totke can be quite effective .
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1. The hair of bear can be easily found from any snake charmer and if those hairs put in a taviz and wear that .than those who are suffering from bad dreams
can get much relief.
2. Gat a giloy ‘s roots on any Sunday when pushy star also falls on the day , than fear from snake biting can be removed to much extent . 3. If neem roots are tight
around the
waist of any pregnant
women the
pain occurs on
delivery time can be reduced . 4. Now a days getting a original panchmukhi rudraksha is also a problem but if that can be wear near of heart than this will proved to be a good for heart related problem. 5. As
the metallic horse shoe string
considered a good
or ring made of
the small metallic pins of any boat is
remedy to over comes Saturn related problem
but in this case , the
roots of rose flower can also be wear. 6. Those who are suffering from excessive anger can wear roots of mehadi plants , this also prove d to be very benefitted. 7. If any one suffering from
the fever
that is
regularly
up and down than in this case ,
wearing the garland (mala ) of leaves of black tulsi proved to be very effective. 8. When offering food to the cow if any one, very pleasantly touches its back and neck with his open hand , this also becomes very helpful for problem related to
getting relief from
grah vadha or
evil planets.
9. The pregnancy period is a very critical period for any woman and if during theses period when anuradha star falls on that day one supari if tied around her waist, this become s very effective for the protection of unborn .
10. Who do not want
to get the blessing of bhagvaan ganesh
completed smoothly, and durvaa dal is
so that all his work wil be
consider the best offering to him but red kaner
flower is also considered best for offering to him..
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AYURVEDA : SOME TIPS
आयुवद तो मानव जीवन के िलए वरदान ह .पर इस वरदान का योग या जानकारी ब त कम ही आ ह . अगर इसके कु छ सरल सरल बाते भी इ तेमाल क जाए तो भी आप पाएंगे
क आपक सौदयता
मे कु छ ओर
िनखार तो आएगा ही .तो य न कु छ बेहद ही सरल उपाय आपके िलए एक बार फर ..
1. दही और नीबू को अ छी तरह से िमलाकर
चेहरे पर लगाये
फर हलके गुनगुने पानी से चेहरे को
धो
ले , चेहरे मे काि त आ जायेगी . 2.
सी दू र करने के िलए अंडे मे तीन चार बुँदे नीबू का रस अ छी तरह से िमला ले और इसे धीरे धीरे अ छी तरह से अपने के श क जड़ो मे लगा ले . फर कु छ देर के बाद आप हलके गुनगुने पानी से अपना िसर धो ले .
3. सुबह
ान करने से पहले य द पैर के अंगूठे मे सरस का तेल मल िलया जाए तो आख क रोशनी ठीक
रहती ह .
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4. िजनको क पुटर का
यादा
काम पड़ता ह वह
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लगभग १ / १ घंटे मे दोन हथेली को रगड़ ले
और
अपनी आखो पर धीरे से हथेली रखे ..इससे आख को आराम िमलता ह . 5. गुलाब क प ीय गाल
का सौदय मे ब त अिधक योग होता ह अगर
मे लगाये और हलके गुने गुने पानी से धो ले तो गाल
6. कोहनी का
यान ब त सारे
लोग नह
इसक प य को दू ध मे िमलाकर
का रंग और भी िनखर आता ह .
रखते ह फल व प
वाभािवक सा ह अतः इसके िलए स दय शा ी कहते ह क
वहां क वचा का काला सा पड़ जाना नीबू के िछलके से य द ह का हलका
रगडा जाए तो कु छ ही दन मे वचा का रंग िबलकु ल पहले जैसा हो जाता ह . 7. पैर को मुलायम बनाने के िलए म खन से हलक हलक मािलश पैर क करे . 8. दन मे य द एक बार या रात को सोते समय हलक सी मािलश कर ली जाए तो नीद और भी अ छी आती ह 9. आख का िवशेष यान रखना चिहये .इसके िलए हरी पालक और गाजर का जूस यथा संभव लेते रहना चिहये . 10. ात:काल हलक फु लक
ायाम
आपको व थ रखने मे ब त मदद करती ह . य क शरीर मे खून
का वाह जो बढ़ जाता ह .
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Ayurveda for you Ayurveda is like a boon for mankind but very little or less use of this divine science happens in this era , and if very simple
advices , if used than that would be very helpful for maintain our
beauty. so why not try some advices .. 1. Thoroughly mix curd with lemon juice and apply slowly to your face and than wash with mild hot water , proves to very good for maintaining glow of facial skin. 2. To remove the dandruff mix
two three drop of
lime juice
to
egg and
after thoroughly
mixing apply this to the roots of the hairs after some time wash your hair with mild hot water.
Tantra kaumudi June 2012
91 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
3. Before taking bath in the morning , if we massage thumb of toe with sarso oil that very much helpful to maintain eye’s health . 4. Those who are doing work many hors straightly on the computer ,if they rub their palm a little bit and gently place them on closed eyes this will be very relaxing for the eyes. 5. The rose petals are very mush used in beauty product or beauty purpose ,if these one thoroughly mix with milk and applied on the checks and after some time wash with mild hot water , the glow will be more. 6. Many people does not pay much attention on the health of elbow skin and some that become little bit blackish color , so if
that place is rub with the skin of used lemon ( the
chhilka of nibu),than that skin regain its original color . 7. If we massage with butter to our legs that will become more soft . 8. Before taking sleep , if mild massage is done to the whole body , that will be more helpful and relaxing. 9. One should take juice of palak and gajar since this will be much better for eyes health . 10. The light exercise if done in the morning hours , that will be good for maintaining good health .
Tantra kaumudi June 2012
92 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
In the End With
आप भाई बिहन और िम ो के बढ़ते
आ
मेहनत
ेह
को
अंक समाि
सभी दन
गु
ित दन के
हम लगातार और अिधक े रत
करता
ह
अब
the
ever
increasing /growing your support and love/sneh gives us more and more
ये strength to work hard to come up to
क ओर ह, आपको ये अंक कै सा
your expectation ,we here,have a faith
लगा , हम सभी को िब ास ह क यह अंक that आपके अपे ाओ पर खरा उतरा होगा .
this
issue
come
up
your
expectation, like that we work for you
इसी तरह हम सदैव आपके आशा पर खरे all is the prayer to beloved sadgurudev ji. उतर ,सदगु देव भगवान से यही ाथना ह . Our next issue will be
अगला अंक
व वध िस
और मु लम तं महा वशेषांक
VIVIDH
SIDDHI
TANTRA
AUR
MUSLIM
MAHAVISHESHANK for
होगा इसके िव तृत िववरण के िलए लॉग पो ट details of that plz wait for related post in का इं तज़ार करे the blog.
िवगत अंक क भांित इस बार भी म अपने सभी गु भाई ,बिहन से यही िनवेदन करना चा ँगा क , इस इ पि का ओर लॉग के बारे म .. समान िवचार धारा वाले ि य को अवगत कराये / बताये .िजससे सदगु देव जी के द ान से वे भी लाभाि वत हो सके .
Tantra kaumudi June 2012
Like in previous issue
,this
time
also make a deep request to you all as our guru brother and sister please inform other
guru
brother
about
this
magazine and blog.
93 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत
e
ॐ ीं सदगु दे व चरण कमले यो नमः
Vol . 0 1 - No 11
Plz do visit blog Nikhil-alchemy2.blogspot.com
&
yahoo group Nikhil
alchemy
We Are
praying to our beloved Sadgurudev ji Specially on your
Sadhana
Success
, Spiritual
Achievement and Material Growth
and your devotion to Sadgurudev ji”
JAI SADGURUDEV
Tantra kaumudi June 2012
94 | P a g e
सा धना साधयेत या शर रम पातयेत