HOLIKA DAHAN - CHANDAALINI SADHNA VIDHAAN
होली पर्व की अप सभी को ढे र सारी शुभकामनाएं . जीवन की अवशयकता की प्राप्ति का मागग सगु म हो सके और कम प्रयासों में सफलता की प्राप्ति हो.आस हेतु व्यप्ति को काल गणना का ज्ञान होना चाप्तहए.जब हम ईप्तचत समय का चयन कर तदनरू ु प प्रयोग कर सके . प्तवप्तशष्ठ महु ूतग में की गयी साधना का प्रभाव भी ईतना ही तीक्ष्ण और प्तवप्तशष्ठ होता ह.. होली की राप्तरि का प्रयोग प्तवप्तभन्न प्रकार की साधना हेतु प्तकया जाता ह..साधक की ऄपनी मनोकामना होती ह., कोइ सौंदयग साधनाओं को संपन्न करना चाहता ह.,कोइ यप्तिणी,ऄप्सरा का प्रत्यिीकरण,कोइ षट्कमग में सफलता के प्तलए आसका प्रयोग करना चाहता ह. तो कोइ देवत्व की प्राप्ति हेत,ु प्तकसी का ई्े्य वशीकरण प्तसप्तधि होता ह. तो कोइ ऄ् प्तसप्तधि यों की प्राप्ति को सगु म करना चाहता ह.. कहने का ऄथग ये ह. की साधक की मनसा पूर्ती के लिए ये अद्भुर्त रालि है. हम हमारी कामना ऄनस ु ार प्तकसी भी साधना को आस राप्तरि में संपन्न कर पररणाम की प्राप्ति कर सकते हैं.सदगरु ु देव प्रदत्त,र्तंि कौमदु ी,ब्िॉग अथवा ग्रपु में लकसी भी भाई द्वारा अनुभूर्त साधना को संपन्न कर हम सफिर्ता की प्रालि कर सकर्ते हैं. लगभग हममें से सभी ने प्तकसी ना प्तकसी साधना का चयन अज की राप्तरि के प्तलए प्तकया प्तह होगा,अप्तखर आतना बहुमूल्य समय हम ससे क. से व्यथग जाने देंगे. आसप्तलए मैंने प्तकसी प्तवशेष प्रयोग को ना देने का प्तह मन बनाया था कयूप्तं क ईससे साधक के मन में दप्तु वधा ईत्पन्न होती. प्तकन्तु बहुत से साधक के मेल अये थे तीव्र धन प्राप्ति और वशीकरण शप्ति की सप्तममप्तलत प्राप्ति हेत.ु ऄतः मैं ये साधना ईसी हेतु यहााँ दे रहा हूाँ जो की पूणग तांप्तरि क साधना ह. जो प्तनयमों से परे ह..और होप्तलका दहन की राप्तरि को मारि ३ मािा करके आस मंरि में शप्ति ईत्पन्न की जा सकती ह.,प्तफर ज.से ज.से भप्तवष्य में अप आस मंरि को करेंगे,अपको स्वतः ही धन की प्राप्ति होते जायेगी. वस्ततु ः ये मंरि कइ प्तनयमों को प्तशप्तथलता देता ह. और शायद आसप्तलए बहुत से
साधक को ये रुप्तचकर भी लगेगा. शाम को भोजन नहीं करना ह..और होप्तलका दहन की राप्तरि का मतलब अज की राप्तरि का ९.३२ से सबु ह ३.५६ तक का महु ूतग पूणग साधनामय ह..ऄतः हम आसी महु ूतग का कोइ भी काल खंड प्रयोग कर सकते हैं,और ईसके बाद या पहले प्तकसी भी ऄन्य साधना को संपन्न कर सकते हैं.साधना के पूवग यप्तद कुछ ना खाया जाये तो बेहतर ह.. पलिम लदशा की और मख ु करके साधना की जाएगी,िाि या पीिे वस्त्र का माि आज प्रयोग करना है. दीपक लर्ति के र्तेि का प्रयोग होगा,धूप बत्ती का लनषेध रहेगा.उड़द के बड़े और कुछ लमष्ठान को भोग के रूप में प्रयुक्त करना है. गरु ु पूजन,मंि जप,गणपलर्त पूजन के पिार्त आप इस मंि की ३ मािा मगूं ा या रुद्राक्ष मािा से करें. ॎ नमो ईच्छछष्ट चंडाच्िच्न पुरपाटण क्षोभणी अकर्षषणी अकर्षषणी अकषषय अकषषय द्रव्य अनय अनय ह्रीं फट् स्वाहा || Om namo uchchhisht chandaalini purpaatan kshobhni aakarshini aakarshini aakarshay aakarshay drawya aanay aanay hreem phat swaha
साधना पूरी होने के बाद अप ऄगले प्तदन भोग अप्तद को सनु सान स्थान पर रख दें और बाद में आस मंरि को प्तबना नहाये,शौचाप्तद के प्तलए जाते हुए भी कर सकते हैं,प्तबना कुल्ला प्तकये,प्तबना महु धोये भी खाने के बाद भी कर सकते हैं. ऄथाग त शलु िर्ता अशुलिर्ता का ध्यान रखना अलनवायय नहीं है.इसका र्तात्पयय ये है की भलवष्य में लबना मािा अथवा मािा के माि १ मािा ही करना है,लफर िाहे आप जप जप स्थि पर बैठ कर करें अथवा लबस्र्तर पर,या झूठे महुं की अवस्था में. हााँ ये प्तवधान ह. जरुर ऄजीब कयूप्तं क आसमें शरू ु के ७ प्तदनों तक गंदे स्वप्न अप्तद दृप्त्गोचर होते हैं.प्तकन्तु ८ वे प्तदन से अपके जप के प्रभाव से यही शभु संकेतों में पररवप्ततगत हो जाते हैं जो की नकारात्मकता समाि होकर सकारात्मकता का ईदय बताती ह..धन के आकषयण और वशीकरण की र्तीक्ष्ण शलक्त की प्रालि होना इस
साधना के द्वारा संभव हो जार्ती है.इसी मंि की लसलि के बाद कई अघोर और र्तीव्र कायों का सम्पादन भी लकया जार्ता है.लजसके लिए अिग लवधान है.लजन पर हम भलवष्य में ििाय करेंगे.अज की रारि ी आस लघु प्तकन्तु प्तवलिण प्तवधान को अप प्रयोग कर लाभ पायें,यही कामना करता हू.ाँ HOLASHTAK KE KUCHH TAANTRIK PRAYOG
जय सदगरुु देव , प्तप्रय स्नेही स्वजन, ऄप्तत प्तवप्तश् और महत्वपूणग प्तदवस प्तक शरुु अत हो रही ह. होप्तलका्क जो प्तक होली के पूवग सात प्तदन पहले से प्रारंभ होकर धरु डें ी तक चलते हैं, एक तो तंरि प्तदवस और ईस पर होप्तलका्क ज.से प्तदवस, तो कयों ना आसका साथग क और सदपु योग हो---साधकों के प्तलए ही तो आस तरह के प्तदवस की ईपयोप्तगता होती ह. कयोंप्तक साधक ही ईस िण प्तवशेस को जानकर, समझ कर आसका ईपयोग करने से नहीं चूकते, वे जानते हैं प्तक जो कायग ऄन्य प्तदनों मे संभव ना हो, वो सब कायग या प्तसप्तधि आन प्तवशेस प्तदवस मे संपन्न हो ही जाते हैं . भाआयों बहनों म. जानती हूं प्तक ऄब अप सब हमेशा त.यार ही रहते हैं साधना करने के प्तलए------ :) वषग के महत्वपूणग प्तदवस दारुण राप्तरि जो प्तक होली दहन के प्तदन को कहा गया . महाराप्तरि याप्तन महाप्तशव राप्तरि , मोह राप्तरि , याप्तन कृष्णजन्मा्मी, और महाप्तनशा याप्तन प्तदवाली . आसके ऄलावा प्तवप्तश् प्तदनों मे जो प्तक दीघग कालीन प्तदवस हैं वे नवरारि ी (दोनों) और श्रावणमास . आस तरह हमारे पास साधनाओं के प्तलए बहुत समय प्तमलता ह. . परन्तु जब दीघग कालीन साधनाओं प्तक बात अती ह. तो सबसे पहले ध्यान अता ह. समय का प्तक समय कहााँ ह. , ऑप्तफस, प्तबजप्तनस, टूर और घर के
ऄन्य कायग ....... वही ऄनु भ.याजी वाली बात..... टेम नाय ह. ...... :) प्तकन्तु भाआयों बहनों कया हम एक प्तदन मे ही सफलता पूवगक साधना कर सकते हैं ? कया एक प्तदन मे ही प्तसप्तधि प्राि हो सकती ह. ? नहीं ना ! मेरे पास कुछ स ंसे म.सज े अते ह., प्तक कोइ एक प्तदन प्तक ससी साधना करवा दीजे प्तजससे प्तक मेरी धन समबन्धी समस्या हल हो जावे, या मेरी शादी प्तक समस्या, या कोटग प्तक समस्या, या प्तबजनस मे नक ु शान प्तक भरपाइ हो जाये . अश्चयग होता ह. प्तक हम जानबूझकर ससा क. से कह या कर सकते हैं, भाआयों म. जानती हूं प्तक अपकी मजबूरी कभी स ंसा करवाती ह. और ये सच भी ह., कुछ प्रयोग स ंसे ह. जो एक ही प्तदन् मे ऄप्तत तीक्ष्ण और शीघ्र प्रभावकारी हैं . प्तकन्तु वो अपको कुछ समय के प्तलए ही अराम देंगे. ज.से बीमारी मे अप तरु तं ददग से अराम के प्तलए दवाइ ले लेते हैं प्तकन्तु समझ दार लोग गोली नहीं ऄप्तपतु टीके का प्रबंध करते हैं, जो प्तक लाआफ टाआम के प्तलए होता ह........ ह. ना :) चलो ऄब हम मख्ु य बात पर अते हैं प्तक दीघग कालीन साधना अव्यक ह. या लघु प्रयोग ! तो समय प्तवशेष प्तक ईपयोप्तगता को समझा जाये तो तो लघु प्रयोग भी लाभकारी हैं . परन्तु भाआयों प्तजन्हें प्तसफग साधना के कइ ऄलग-ऄलग अयामों को छूना ह. या प्तसप्तधि के ममग को समझना ह. वे ऄव्य ज्यादा से ज्यादा समय साधना मे ही लगाते भी हैं और दीघग कालीन साधनाओ को ही ऄपनाते हैं..... :) याप्तन टीके का ही प्रयोग करते ह., प्तकन्तु प्तजनके पास समय प्तक कमी ह. या प्तजन्हें मजबूरीवश तरु तं अव्यकता ह. वे लघु साधना कर भी ऄपने जीवन प्तक समस्याओं को सरल करते ह........ और आसके प्तलए हमें समय प्तवशेस को समझना चाप्तहए.... ह. ना ... :) सदगरुु देव ने आस प्तवषय पर ऄनेक बार समझाया ह., िण के महत्व को, समय के महत्व को, प्तक एक साधक क. से ईस िण को पकड़ कर ईसका सदपु योग करता ह...... क. से वो ईस िण को ऄपने प्तलए प्रभावकारी बना लेता ह.......
ऄनेकों बार गरुु देव भजन रोककर या समयानस ु ार समय देखकर दीिाएं और प्रयोग करवा प्तदया करते थे........ तो कयों ना हम भी ईन िणों को पकड़ने प्तक कला सीखें? कयों ना हम भी ईस समय का सदपु योग करें..... :) ह. ना तंरि प्तदवस और ईस पर होप्तलका्क ह. ना प्तवप्तश् समय तो पकड़ लीप्तजए ईन िणों को, और कर लीप्तजए असान राह प्तजंदगी की ...... कयोंप्तक यही वो समय ह. प्तजसका साधक, प्तवशेसकर तंरि साधक, बड़ी बेसब्री से आंतज़ार करते हैं, कयोंप्तक यही वो समय होता ह. जब हमे हमारा ऄभी् प्तबलकुल सामने प्तदखाइ देता ह. बस अव्यकता ह. ईसे पकड़ने की...... भाआयों-बहनों सामान्यतः होली पर जो साधनाएं करना चाहते हैं वे या तो साबर साधनाएं या प्तफर ऄप्सरा या यप्तिणी प्तसप्तधि साधना . प्तकन्तु कुछ स ंसे साधक भी हैं जो आन सबसे हटकर कुछ ओर करना चाहते हैं, प्तकन्तु कया ? भाआयों सदगरुु देव स ंसे ही प्रश्नों के ईत्तर हेतु ऄकसर कुछ लघु प्रयोग दे प्तदया करते थे ------ :) भाआयों-बहनों तो ऄब अप त.यार हो प्तजसका मन जो करे या प्तजससे समबंप्तधत जो साधना करना चाहे का सकता ह. चाहे तो पूरे समय का ईपयोग करे या प्तफर आन सात प्तदनों मे से चनु कर १, २, ३ जो करना चाहे कर सकते हैं...... ये साधनाएं जो बदल सकती हैं अपकी प्तिया श.ली को, अपकी, प्तनयप्तत को---१- वशीकरण मन्रि - जो अपके जीवन मे सद.व काम अयेगा कयोंप्तक आसके द्वारा अप कोइ भी ऄसमभव कायग करवा सकते हैं...... २- प्तववाद और मक़ ु दमे अप्तद मे प्तवजय प्तदलाने हेत-ु स ंसा कोइ व्यप्ति ह. ही नहीं प्तक आस तरह प्तक प्तकसी प्तवबाद मे कभी ना फं से..... तो वो आसका प्रयोग कर सकते हैं... ३- प्तववाहोंपरांत कन्या के सख ु ी जीवन हेतु .... बड़े प्यार और लाड से बेप्तटयों
को पाला जाता ह. प्तकन्तु शादी के बाद ऄकसर कभी दहेज या और प्तकसी बात को लेकर ईसका जीवन नकग कर प्तदया जाता ह. और तब हम सोचते हैं प्तक ऄब कया करें...? तो कयों ना पहले ही ये ईपाय करके रख प्तलया जाये प्तजससे प्तक हमारी बेटी और बहन पूणग सख ु मय दामपत्य जीवन जी सकें .... भाआयों-बहनों ये सभी मन्रि म.ने ऄनेकों बार अजमायें हैं. ऄलग ऄलग स्रोतों से ये प्तवधान प्राप्य हुए हैं प्तकन्तु आनकी सफलता आनके प्रभाव को प्रमाप्तणत भी करती ह.. अज से ६-७ वषग पहले मेरे पप्तत बहुत बीमार हो गए थे, ईस म.ने कुछ समय तक ज्योप्ततष से समबंप्तधत कायग प्तकया और ईस मेरे पास हेंडप्तप्रटं और कंु डप्तलयााँ अती थी तथा म. ऄपने पप्तत की मदद से ही आन कायों को समहाल रही थी तब मैंने ये प्रयोग बहुत बार अजमाए, गरुु देव की कृपा से हर बार पूणग सफल भी रही...... ऄतः आस बार होली पर अप सबके प्तलए अररफ जी के कहने पर ये प्तदव्य और ऄप्तत तीव्र प्रभावकारी मन्रि ...... एक बात याद रप्तखये प्तक आस समय आन मंरि ो और सामग्री को अप प्तसधि कर रहें हैं, आनका प्रयोग तो बाद अव्यकतानस ु ार अप कर सकते हैं...... :) वशीकरण मंरि साधना सामग्री हेतु -- प्तसन्दरू , रोली, और तेल प्तजसे अप ऄप्तभमंप्तरि त करना चाहते हैं, तेल सरसों या प्ततल का हो . प्तदशा ईत्तर या पप्तश्चम, असन लाल, मूंगा माला वस्त्र भी लाल हो तो बेहतर या आकछा ऄनस ु ार . राप्तरि १० बजे के बाद स्नान कर पप्तश्चम प्तदशा प्तक ओर मंहु कर ब.ठ जाए,ाँ गरुु , गणपप्तत का संप्तिि पूजन कर गरुु मन्रि प्तक ४ माला संपन्न करें ओर संकल्प लें प्तक म. आस मन्रि को प्तसधि करने हेतु ये साधना संपन्न कर रहा हू.ं ... ऄब ऄपने सामने दो कोरे यानी नए प्तदये, एक कटोरी प्तजसमे िमशः प्तसन्दरू , रोली ,और
कटोरी मे तेल भरकर ऄपने सामने रख लें ..... प्तफर मूंगा माला से प्तनमन मन्रि प्तक मारि ५ माला संपन्न करें . और प्तफर चार माला गरुु मन्रि प्तक संपन्न करें व् मन्रि गरुु देव को समप्तपगत करें..... मन्रि "ॎ नमो आदेश गरु ु जी कौ, रो रो जोगणी, रो रो कािी, ब्रह्मा की बेटी, इन्द्र की सािी, सुका घट जावै र्तािी िौसठ जोगणी, अंग-अंग मोड़ी, अस्त्री पुरुष िगावै संग र्तेि, रै र्तेि क्या करै खेि अंगनीलभजी माया लनिगीर्त िौसठ योलगनी की आण पडै, छोड़-छोड़ गौरी हीरौं की वाट आवै, जौरी हमारी खाट मोह मन्ि छूटा जाई र्तो गरु ु गोरख नाथ को मास खाई फुरो मन्ि ईश्वरो मन्ि वािा." जब भी वशीकरण की प्तिया को प्रयोग करना हो तो आसी मंरि की १ माला कर तेल को समबंप्तधत व्यप्ति के वस्त्र पर लगा दें. --------------------------------------------------------------प्तववाद मक ु ्मे अप्तद मे प्तवजय प्तदलाने हेत.ु ... साधना सामग्री-- काले हकीक की माला, सफ़े द अक की जड़, प्तजसे अपको एक प्तदन पूवग प्तनमंप्तरि त कर लाना ह., लाल असन, दप्तिण या पप्तश्चम, वस्त्र लाल.... ऄब सफ़े द अक की जड़ को ऄपने सामने बाजोट पर लाल कपडे पर ही स्थाप्तपत कर लें और गरुु गणपप्तत पूजन संपन्न कर गरुु मंरि की ४ माला जप कर प्तनमन मन्रि की मारि ११ माला जप समपन्न करें---मन्रि " ॎ नमो भैरवायखड्गपरशहु स्र्ताय ॎ ह्ूं लवघ्नलवनाशय ॎ ह्ूं फट ॒ " आसके बाद भी गरुु मन्रि की चार माला जप करें .... मंरि जप के पश्चात दस ु रे प्तदन
ईस प्रप्ततप्तष्ठत अक की जड़ को हाथ मे धारण कर लें.अप स्वयं ही पररणाम की सकारात्मकता के सािी होंगे. भाआयों एक बात का ध्यान रखें की प्रत्येक जप के पहले और बाद मे गरुु मंरि की चार माला जप संपन्न करना ही ह....... ३- प्तववाहोपरांत कन्या के पूणग सख ु ी दामपत्य हेत.ु ... साधना सामग्री- सामभर नमक, सफ़े द असन, दप्तिण प्तदशा और समय लगभग सवा घंटा, आसमें माला प्रयोग नहीं होगी एवं कर माला का ही प्रयोग होगा, और सांभर नमक जो प्तक प्तकसी भी पंसारी प्तक दक ु ान मे बड़ी असानी से प्तमल जाता ह..... गरुु पूजन,गणपप्तत पूजन व मंरि जप के बाद नमक को सामने बाजोट पर रख कर ईसके सामने मंरि का लगभग सवा घंटे तक जप करें. मंरि "ॎ नमो भौगराज भयंकर पीर भूप सुर्तई धरइ जो दीखे मार करन्र्ता, सो-सो दीखे पााँव परन्र्ता ॎ नमो ठ: ठ: स्वाहा." कन्या के प्तववाह ईपरान्त वो आस नमक को लाल वस्त्र मे बांध कर स्वयं के शयन कि में रख ले.पूणग शाप्तन्त की प्राप्ति होगी. TANTRA SIDDHI- HAAJRAAT SAADHNAA
फटे कपडे, प्तबखरे और ईलझे बाल , ऄजीब सी ही वेशभूषा थी ईनकी और बहुत ऄसहज सा महसूस कर रहा था मैं ईनके साथ , पर बंगाली मााँ का अदेश था मेरे प्तलए की मझ ु े ईनके साथ रहना ह. और सदगरुु देव के द्वारा प्रदत्त प्तवप्तभन्न साधनाओं का जो संकलन और ऄनभु व ईन्होंने प्राि प्तकया ह. वो मझ ु े ईनके साप्तनध्य लाभ से लेना ह.. ईनके पास ससा संकलन ह. ससा सनु कर मैं काली खोह (प्तवन्ध्याचल) से मगु लसराय स्टेशन पहुचं कर जबलपरु जाने वाली ट्रेन में ब.ठ गया . रास्तेभर जो भी मााँ ने ईनके बारे में बताया था वही सब सोचता रहा , जबलपरु पहुच कर पहले बाज्नापीठ जाकर भ.रव के दशग न प्तकये और प्तफर मााँ नमग दा के तट
की और चल पड़ा. जबलपरु मेरा आसके पहले भी कइ बार जाना हो चूका था. और अश्चयग की बात ये ह. की हर बार एक नवीन रहस्य ही मेरे सामने खल ु ते जाता साधना जगत का. एक से एक प्तसधि ों से भरा हुअ शहर , चाहे वो ज.न तंरि से समबंप्तधत हो या प्तफर मप्तु स्लम या शाबर तंरि से समबंप्तधत , प्तकसी ज़माने में यहााँ की जाने वाली तांप्तरि क प्तियाओं का कोइ जवाब नहीं होता था पर समय के साथ साथ ये प्तसधि और आनकी परमपराएाँ गिु सी ही हो गयी थी. भाइ ऄरप्तवन्द, हसदबकस , जीवन लाल , मप्तणका नाथ , ऄवधूती मााँ और ऄब एक नए गरुु भाइ पाररतोष बनजी से मल ु ाकात होने जा रही थी. सन १९९३ की बात ह. च.रि नवरारि ी का प्तशप्तवर संपन्न होने के बाद मैं ऄपनी साधनाओं के प्तलए सीधे प्तवन्ध्याचल बंगाली मााँ के पास चला गया था और तबसे से गमी, गमी और गमी.ईस प्तशप्तवर में ही गरुु देव ने एक नवीन तथ्य का मझ ु े ज्ञान प्तदया था की “र्तमु शाक्त साधनाओं को संपन्न करने के लिए लवन्ध्यािि ििे जाओ और ध्यान रखो की शाक्त साधनाओं के स्वर र्तंि का गहन अभ्यास करना,उससे साधनाओं में शीघ्र ही सफिर्ता लमिर्ती है क्योंलक बाये स्वर द्वारा जब श्वास प्रश्वास की लिया िि रही हो र्तभी शलक्त मन्िों का जप उलिर्त होर्ता है क्योंलक मन्ि परु ु ष र्तब िैर्तन्य होर्ता है और दाये श्वास प्रश्वास की लिया के मध्य शलक्त सिु रहर्ती है परन्र्तु और बेहर्तर होर्ता है की लजस भी मंि का जप लकया जा रहा हो उस मन्ि के पहिे और बाद में “ई ं” बीज जो की कामकिा बीज है िगाकर जप करने से भगवर्ती शलक्त की लनद्रा भंग हो जार्ती है” इसी र्तथ्य को ध्यान में रख कर अपनी साधनाएं मैंने पूरी की. वहााँ से जब जबलपरु पंहुचा था तब मइ का मध्य अ गया था और मइ की गमी ज.से प्तदमाग को फोड ही डालती , सूरज प्तसर को ज.से प्तपघलाने को ही अतरु था, बोतल का पानी भी खत्म होने वाला था पर ज.से त.से जी कड़ा कर मैं लगातार चलते ही जा रहा था . मझ ु े मााँ ने बताया था की तमु हे सरस्वती घाट से नीचे ईतर
कर बस सीधे हाथ की तरफ नाक की सीध में चले जाना. लगभग ३ प्तकलोमीटर के ऄंदर ही शमशान से लगी हुयी ईनकी झोपडी ह. . पर मैं ईन्हें पहचानूगाँ ा क. से –मैंने मााँ से पूछा था. तमु ईसे नहीं बप्तल्क वो तझ ु े पहचान लेगा-मााँ ने कहा . बस आसी शब्द के सहारे मैं चलता चला जा रहा था , नमग दा जी की धाराओं में जो गप्तत धअ ु धाँ ार में रहती ह. ईससे कही ज्यादा सौमयता बस ईससे २ प्तक.मी. अगे आस सरस्वती घाट से लगकर बह रही ईनकी धाराओं में थी. तपती दोपहरी में जो सक ु ू न मझ ु े जल को बहते देखकर हो रहा था वो शब्दों में वणग न नहीं प्तकया जा सकता ह.. सबसे पहले मैंने जी भर कर नहाया ,वस्त्र बदले और अगे बढ़ता चलागया नदी के प्तकनारे प्तकनारे ही. ऄचानक प्तकसी ने मेरे नाम को पक ु ारा .... मैंने रुक कर देखा एक मध्यम कद काठी का गौर वणीय व्यप्ति मझ ु े हाथ प्तहलाकर अवाज़ दे रहा था. मैं ईस और बढ़ गया. जब मैं ईनके नजदीक पंहुचा तो ईन्होंने ‘जय गरुु देव’ कहकर मेरा ऄप्तभवादन प्तकया , मैंने भी ईत्तर प्तदया तो ईन्होंने मझ ु े साथ चलने के प्तलए कहा, बाकी सब तो ठीक था पर ईनकी वेश भूषा से मझ ु े बड़ी कोफ़्त हो रही थी, ख.र ज.से त.से ईनके घर तक पहुचे, कच्चा मकान प्तजसमे मारि दो कमरे थे , एक कमरा रसोइ और ब.ठक के काम अता था और दूसरे में बहुत सारे हस्तप्तलप्तखत ग्रन्थ,खरल,मगृ चमग असन,बाजोट,बाजोट पर करीने से रखे प्तवप्तवध यंरि तथा पूणग तेजस्वी तथा भव्य सदगरुु देव का प्तचरि ईस कमरे को भव्य ही बना रहा था. चाहे बाहर से प्तकतना ही छोटा प्तदख रहा था वो मकान पर भीतर से ऄजीब सा सख ु लग रहा था ईस घर में, ईस तपते प्तदन में भी ऄजीब सी शीतलता थी वहााँ पर. शाम हो गयी थी,पाररतोष भाइ ऄपनी मध्यान्ह साधना में व्यस्त थे और ऄब शाम प्तघर अइ थी.वे साधना कि से बाहर प्तनकले और मेरे पास ब.ठ गए, मैं भी भोजन और नींद लेकर स्फूप्ततग से भर गया था.वे मझ ु े लेकर नदी के तट पर चले गए जहा हम पानी में प.र लटका कर ब.ठ गए और बहुत देर तक चपु रहने के बाद मैंने ईनसे ईनके बारे में पूछा तो, ईन्होंने कहा-‚ सन १९८२ में मेरी सदगरुु देव से
मल ु ाकात हुयी थी तब मैं ऄपने नप्तनहाल प्तमदनापरु (बंगाल) गया हुअ था, नाना जी प्तक तंरि में बहुत रूप्तच थी और ईन्होंने सदगरुु देव से दीिा लेकर प्तवप्तवध साधनाएं भी संपन्न प्तक थी. बंगाली होने के नाते स्वभावगत हम सभी मााँ अप्तद शप्ति प्तक पूजा करते थे, मेरा रुझान मााँ काली प्तक साधनाओं में कही ज्यादा था , मैं घंटो नाना जी के पास ब.ठ कर ईनकी साधनाओं के ऄनभु व को सनु ा करता था.वे भी ऄपने ऄनभु व बताते और कइ चमत्कार भी प्तदखलाते. कया मैं भी ससा कर पाईाँगा-मैंने नाना जी से पूछा. प्तबलकुल कर पाओगे, पर तंरि का रास्ता आतना सहज नहीं ह., तलवार प्तक धार पर चलने से भी ज्यादा खतरनाक ह. पर,ये बहुत असान हो जाता ह. यप्तद कोइ समथग गरुु अपको ऄपना ले तो. तब मेरी प्तजज्ञासा और रुझान को देखकर ईन्होंने मझ ु े सदगरुु देव से प्तमलवाया और ईनसे दीिा देने प्तक प्राथग ना की.सदगरुु देव ने मझ ु े दीिा दी और प्तफर मैं ईनके प्तनदेशानस ु ार साधनाएं करने लगा, समय के साथ साथ साधनाओं को गप्तत भी प्तमलने लगी. सफलता ऄसफलता दोनों को पूरे मन से स्वीकार करता था मैं . ये देखकर एक बार सदगरुु देव जब जबलपरु अये तब,ईन्होंने मझ ु े ऄपने हाथ से प्तलखी हुयी एक तीन मोटी मोटी डायरी दी. प्तजसमे ईन्होंने प्तवप्तवध प्रकार के तांप्तरि क प्रयोग प्तलखे थे, बस ईन्ही डायरी के अधार पर मैं साधनाएं संपन्न करने लगा और प्तवप्तवध प्रकार की सफलता भी मैंने पाइ.‛ रात होते होते ही हम वाप्तपस लौट अये. रास्ते में ईन्होंने बताया की वे जीवन यापन के प्तलए बैंक में जॉब करते हैं. और ईनका स्थायी प्तनवास गोरखपरु ( जबलपरु ) में ह. , पर वो ऄपनी साधनाओं की वजह से प्तवगत कइ वषों से यहााँ पर रह रहे हैं. और मैं हमेशा ससा नहीं रहता हू-ाँ ईन्होंने ऄपने स्वरुप की तरफ आंप्तगत करते हुए कहा और हाँसने लगे. मैं ऄभी कोइ ऄघोर िम कर रहा हूाँ आसप्तलए ससी वेशभूषा हो गयी ह., आसके प्तलए मैंने ३ महीने की बैंक से छुट्टी भी ली हुयी ह.. रात में ईन्होंने ऄपनी प्रेत शप्तियों की मदद से मेरा मनपसंद भोजन बल ु वाया. कया अपको भय नहीं लगता? प्तकससे-ईन्होंने पूछा .
आन भूत प्रेतों से ... कयूाँ लगेगा भला, ये तो ऄत्यप्तधक प्तनरापद होते हैं.और सदगरुु देव ने आनको प्तसधि करने की आतनी सहज प्तवप्तधयााँ बताइ हुयी ह. की सामान्य व्यप्ति भी भली भांप्तत ऄपना जीवन यापन करते हुए आनको प्तसधि कर सकता ह.. रात को ईन्होंने काप्तलका चेटक का प्रयोग कर स्वणग का प्तनमाग ण कर के प्तदखाया , पारद प्तवज्ञानं के माध्यम से रत्नों का प्तनमाग ण क. से होता ह. ये समझाया. ईप्तच्छ् गणपप्तत प्रयोग के द्वारा वशीकरण की ऄत्यप्तधक सरल प्तिया बताइ. रोगमप्तु ि, बगलामख ु ी साधना द्वारा शरि ु स्तमभन का सरल मगर तीव्र प्रभावकारी प्रयोग,शमशान च.तान्यीकरण प्रयोग , दीप स्तमभन का प्तवधान समझाया, प्तकन मन्रि ों से तंरि प्रयोग दूर प्तकया जाता ह. ईसकी मूलभूत प्तिया समझाइ. पूवगजन्म दशग न की गोपनीय प्तिया बताइ. व्यापार वप्तृ धि के एक से बढ़कर एक प्रयोग प्रायोप्तगक रूप से करके प्तदखाया और आन सभी साधनाओं का अधार ईन डायररयों को मझ ु े देखने और नोट करने के प्तलए प्तदया, वे डायररयां १९६३,६५,६८ और ७३ की थी मैंने लगभग ४६८ प्रयोगों को ईनमे से २२ प्तदनों में प्तलखा. बाद में भी कइ बार मैं ईनके पास गया और ईन्होंने ईदारतापूवगक ईन प्तियाओं और साधनाओं को मझ ु े समझाया भी और प्तलखने भी प्तदया एक से बढ़कर एक प्रयोग थे वे सभी,बाद में मैंने ईनमे से बहुत से प्रयोग और साधनाएं संपन्न की तथा पूरी तरह सफलता भी पाइ. जब आस ऄंक का प्तवचार अया था तो हम सभी ऄपनी साधनाओं के प्तलए ६४ योगनी मंप्तदर में प्तमले थे तब मैंने ईनसे प्तनवेदन प्तकया तो ईन्होंने मझ ु े कहा की ऄब वो प्रयोग तमु हारे ऄपने हैं तमु ईन्हें प्तनप्तश्चत ही ऄन्य गरुु भाआयों और बहनों के साधनात्मक जीवन को अगे बढ़ाने के प्तलए देने के प्तलए स्वतंरि हो हाजरार्त प्रत्यक्षीकरण प्रयोग शि ु वार को चााँद प्तनकलने के बाद जौ के सवा प्तकलो अटे से एक पतु ला बनाओं प्तजसे की हाजरात कहा जाता ह., ये प्तिया शहर या गााँव के बाहर प्तकसी मजार पर जाकर संपन्न की जा सकती ह.. टोंटीदार लोटे में पानी ऄपने साथ लेजाकर ऄपने हाथ पााँव,महु धो ले और लगंु ी तथा जाली दर बप्तनयान या कुरता धारण करे रहे ,
यप्तद हरा असान और वस्त्र हो तो ज्यादा बेहतर रहता ह. .ईस मजार पर प्तहने का आरि और प्तमठाइ चढ़ा दे और असन पर वीर असन की या नमाज पढ़ने की मद्रु ा पप्तश्चम प्तदशा की और महु करके ब.ठ जाये और प्तदशा बंधन कर ऄपने सामने हाजरात को स्थाप्तपत कर सबसे पहले १०१ बार दरूद शरीफ पढ़े. अल्िाह हुम्मा सल्िे अिा सैयदना मौिाना महु लदव बारीक़ वसल्िम सिार्तो सिामोका या रसूिअल्िाह सल्ििाहो र्तािा अिैह वसल्िम. आसके बाद प्तनमन मन्रि की हकीक माला से ११ माला करे और ये िम एक शि ु वार से दस ु वार तक करना ह.,पतु ला वही रहेगा प्तजस पर अपने पहले प्तदन साधना ु रे शि की ह..ससा करने से हाजरात प्रत्यि हो जाता ह. तब ईससे तीन बार वचन लेकर ईसे जाने को कह देना और जब भी जरुरत हो ईसे बल ु ाकर कोइ भी ईप्तचत कायग करवाया जा सकता ह.. कमजोर प्तदल वाले साधक आस साधना को ना करे और करने के पहले गरुु की अज्ञा ऄव्य ले लें. मंि- या यैययि अिऊ इन्नी किलकया इिैिया लकर्ताबून करीम
ईन्न उन्नुहु लमन सुिैमाना लमन्न हु लबलस्मल्िालहरयहमालनरयहीम MAHAKAALRATRI AUR USKE GOPNIY PRAYOG
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प्रिय भाआयों और मेरी बहनों, जय सदगरुु देव, दीपावली का पवव अने वाला है,या ये कहें की हम ईसी महापवव की संक्ांप्रतकाल में गप्रतशील हैं.और शास्त्र प्रवप्रदत है की सक् ं ांप्रतकाल ऄपने अपमें ऄप्रिय्तीय शप्रियों का के न्द्र स्वयं में छुपाये रहता है,अवशयकता है मात्र ईसका ज्ञान ऄस्त्र से भेदन करने का.
ये महान पवव स्वयं में ईन रहस्यों को आस बार समेटे हुए है.जो की कभी मात्र कल्पना ही हो सकती है ईच्चतर साधकों के प्रलए भी. मझु े भली भांप्रत आस बात का व्यप्रिगत ऄनभु व है की कै से सदगरुु देव होली और दीपावली के पवव की तीव्र साधनाओ ं को शमशान में करने का हमें अदेश देते थे और कै से हम ईन रोमांचकारी ऄनभु वों से होकर ऄपने पड़ाव तक पहुचं ते थे....पड़ाव हााँ मात्र पड़ाव ही तो रही हैं वे या ऄन्द्य सभी साधनाएं चाहे प्रिर वो महाप्रवद्या साधना ही कयाँू ना हो...... तब...... तब...... तब लक्ष्य कया है ??????? लक्ष्य..... लक्ष्य है आन पड़ावों की रहस्यमयता को स्वयं में ईतारते हुए....अत्मसात करते हुए ब्रह्ांडीय चेतना से लबालब होकर ईस परम तत्व को स्वयं में ईतार लेना....प्रजसे वेद शास्त्र भी नेप्रत नेप्रत कहते रहें हैं.....और ईसे प्रनप्रखल तत्व कहा गया है....प्रजसका वणवन संभव ही नहीं है,और ना ही संभव है ईसकी प्रववेचना भी..... प्रकन्द्तु ईसे पाने का रास्ता तंत्र की आन्द्ही प्रक्याओ ं से होकर गजु रता है या प्रिर होकर गजु रता है पणू व समपवण की प्रक्या की दरुु हता से..... समपवण और दरूु ह ???? ये प्रकसने कहा की समपवण दरूु ह होता है....... कया नहीं होता है ??????? होता है और जो कहता है की नहीं ये दरूु ह नहीं है...वो एक बार प्रसिव एक बार ऄपने अप से,ऄपने प्रदल से पछ ू े की कया ईसने श्री सदगरुु देव के श्री चरणों में ऄपने अपको पणू व समप्रपवत कर प्रदया है.
जवाब ईसे खदु प्रमल जाएगा...कयंप्रू क पणू व समपवण के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है...अकांक्षा भी नहीं....सत्य भी नहीं....अनंद भी नहीं...... तब रहता है तो मात्र पणू व हो जाना. खैर साधनाओ ं के मागव का ऄनसु रण करते हुए भी हम क्मशः धीरे धीरे ईसी समपवण को समझते हैं. और ईसी क्म में दीपमाप्रलका महाकालरात्री के तांप्रत्रक पवव पर मैं ऄपने सक ं लन में से ३ साधनाओ ं का िकाशन ७ से १० नवम्बर के मध्य करूाँगा...ये साधनाएं सामान्द्य िाप्त नहीं हैं. और हैं एक से बढ़ कर एक.... हााँ करना है अपको त्रयोदशी से दजू तक.... और सबसे बड़ी बात अप एक समय में मात्र एक ही साधनाएं ही कर पाएगं े...(दीपावली का पजू न और दीपावली की रात्री की धन िाप्रप्त की साधनाएं मात्र आसके साथ की जा सकती है) दसू री बात च्तब्बती िक्ष्मी वशीकरण की साधना का मुहूतष ऄभी नहीं है,वो ३४ ददनों की साधना है,परन्तु ईसे और दकस तरीके से दकया जा सकता है,ईसे भी मैं अप सभी को २१ नवंबर को प्रेच्षत कर दूग ूँ ा,तादक अप ईस ऄच्िय्तीय यन्र का प्रयोग कर सकें .
प्रिलहाल मैं प्रजन तीन साधनाओ ं की बात कर रहा ह.ाँ ..ये एक से बढ़कर एक हैं . और अप ऄपनी चाहत के ऄनसु ार आसका ियोग कर लें... १. (सवष तीव्र शमसाच्नक शच्ि प्राच्ि) महाकाि भैरव युि भगवती धूम्रवणाष साधना – भगवती धमू ावती की साधना का ये सोपान साधक को शमसान साधना और आतर योनी शप्रियों पर ऄप्रधपत्य िदान कर देता है.साथ ही रोमाचं का,शप्रि िाप्रप्त का वो रहस्य जो षट्कमव साधनाओ ं की कंु जी साधक को िदान कर देता है.प्रिर भला कै से साधक सामान्द्य रह सकता है.
२. भगवती महाकािी प्राणबि च्सच्ि युि मुड ं चैतन्य साधना – कया अपने सोचा है की कै से अप ऄज्ञात के भय से कांपते कांपते जीवन गजु ारते हो...प्रतल प्रतल मर कर...कै से ऄपमान,दभु ावग्य...का दश ं अपको दप्रं शत करता रहता है...कै से कोइ भी तंत्र ियोग या आतर शप्रियां अपको या अपके पररवार को चंगु ल में ले लेती हैं...कै से कोइ भी टुच्चा व्यप्रि अपको वश में कर लेता है,जीवन को बबावद कर देता है...कै से ऄसिलता का भाव हमेशा अपको भयभीत करता है,प्रिर वो चाहे कायव का क्षेत्र हो,साधना का क्षेत्र हो या प्रिर जीवन का महासमर...ये ियोग महाकाली की मंडु शप्रि से िाणों में ऄप्रग्न भर कर ऄप्रवप्रजत कर देता है साधक को. ३. काम्यच्सच्ि ऐश्वयष प्राच्ि नखाच्नया पूणष च्सच्ि च्वधान – ऄद्भुत है नखाप्रनया तत्रं और गप्तु भी,एक से बढ़कर एक ियोगों को समेटे हुए नखाप्रनया तत्रं के ऄतं गवत अने वाली कइ साधनाओ ं में से वो ऄद्भुत प्रवधान जो साधक के आप्रच्छत कायों में तो साधक को सिलता देती ही है...ऐश्वयव और लक्ष्मी अबद्ध का गोपनीय रहस्य भी साधक को िाप्त हो जाता है. चयन अप करें गे...कइ महीनों की िाथवना के बाद मझु े आन्द्हें ऄपने अत्मीयों को देने की ऄनमु प्रत िाप्त हुयी है ईन प्रसद्धों या साधकों से प्रजन्द्हें गरुु कृपा से आनमे पणू व सिलता प्रमली और ईन्द्होंने ऄनग्रु ह करते हुए मझु े मेरी िाथवना पर प्रदया ..ऄब मात्र अप ऄपने ऄपने कामना ऄनसु ार आन्द्हें गप्रत दे सकते हैं और समपवण की प्रक्या का एक और कदम परू ा कर सकते हैं. TANTRA SIDDHI AUR PHYSICAL BODY-
और
साधना जगत में बड़ी-बड़ी ईपलप्रधधयों को अत्मसात करने के प्रलए एक गरुु , पणू व प्रवधान, ईप्रचत स्थान, ऄनक ु ू ल सामग्री और पणू व प्रनष्ठा की बात हमारे वेदों और ईपप्रनषदों में कही गयी है....प्रकन्द्तु एक ऄप्रत अवश्यक शप्रि प्रजस पर बहुत गहन ऄध्ययन तो नहीं प्रकया गया पर ऄपने अप में वो शप्रि आतनी ऄप्रधक महत्वपणू व है की यप्रद अपने ईसका वरन नहीं प्रकया तो सारी की सारी शप्रियााँ, प्रसप्रद्धयााँ धरी की धरी रह जाती है और वो ऄमल्ू य शप्रि है..... हमारी खदु की देह या शरीर जो भी अप कहना चाहो!!!!!! भारतीय तत्रं शास्त्रों में दो िकार से मानव
देह की श्रेष्ठता का वणवन प्रमलता है- एक तो समस्त ब्रह्ांड की प्रनयंत्रणकाररणी शप्रि हमारे माप्रस्तष्क के रूप में, प्रजसे ब्रह्ा और प्रशव का स्थान िाप्त है कयोंप्रक आसमें सप्रृ ि के प्रनमावण और सहं ार की क्षमता है और दसू रा महाशप्रि महामाया के रूप में प्रजसे तत्रं में पराशप्रि कहते है और जो आस परू े ब्रह्ाण्ड के कण कण में व्याप्त है प्रकन्द्तु मनष्ु य ही एक ऐसा िाणी है जो ना के वल आसे जाग्रत कर सकता है बप्रल्क आसे चैतन्द्य कर क्षमता ऄनसु सार आसका ईपयोग करने में भी सक्षम है. साधना जगत में अत्मा और परमात्मा के बाद यप्रद कोइ तथ्य या वस्तु बहुमल्ू य है तो वो है – मानव शरीर.....कयोंप्रक प्रजस िकार परमात्मा का सक्ष्ू म रूप या ऄंश हमारी अत्मा को कहा गया है ठीक वैसे ही हमारा शरीर आस परू े ब्रह्ांड का लघु संस्करण है कयोंप्रक पथृ वी, अकाश, ऄप्रग्न, जल, और वायु आन पंच महाभतू ों के एकीकरण से पहले आस समस्त बह्ांड की रचना हुइ और प्रिर ईन्द्हीं पंच तत्वों से हमारे आस पंच-भतू क शरीर को भी प्रनप्रमवत प्रकया गया प्रजसे तत्रं में पंचाप्रग्न कहते हैं......और आसी के तहत पथ्ृ वी तत्व से हमारे शरीर में चरम और नाड़ीयों का संग्रह बना, जल तत्व से रि, मत्रू और वीयव न प्रनमावण हुअ, ऄप्रग्न ने हममें क्षधु ा, तष्ृ णा, मोह और मैथनु ईत्पन्द्न प्रदया, वायु िाणवायु के रूप में हमारी देह में प्रवधमान है और अकाश तत्व ने हममें काम, लोभ और भय जैसी भावनाओ ं को जन्द्म प्रदया. हमारे आि देव का पता लगाने के प्रलए भी ईस प्रदन से गणना की जाती है प्रजस प्रदन हमारी अत्मा ने एक भौप्रतक देह को धारण करके आस लोक में जन्द्म प्रलया था कयोंप्रक यह एक प्रनधावररत तथ्य है की हमारे शरीर में प्रजस भी तत्व की िधानता होगी हमारा मन स्वत: ही ईससे सबं ंप्रधत देवी, देवता की और अकप्रषवत होता है जैसे अकाश तत्व के साथ भगवान प्रवष्ण,ु ऄप्रग्न देव के साथ जगतजननी मााँ अप्रदशप्रि, वायु तत्व के साथ भगवान भास्कर, पथ्ृ वी तत्व के साथ भगवान भोलेनाथ, और जल तत्व के साथ प्रवघ्नहताव भगवान गणपप्रत की तरि अकप्रषवत होना स्वाभाप्रवक है और आसका एक िायदा यह है की हमें पता चल जाता है की हमारा आि देव कौन है. योग शास्त्र में मनष्ु य के शरीर को प्रपंड मानकर आस परू े ब्रह्ांड की व्याख्या की गयी है की मानव देह के प्रकस ऄंग में कौन सी दैवी शप्रि प्रवराजमान है और आस देह की महत्ता को दशावने के प्रलए हमारे मनीप्रषयों ने तो यहााँ तक बताया है की मनष्ु य की वाणी, ईसका मन, िाण और प्रबंदु सब ऄपार दैवी शप्रियों के अश्रय स्रोत हैं आसीप्रलए इश्वर की पराशप्रि आच्छा, ज्ञान और प्रक्या के रूप में सबसे ऄप्रधक मानव शरीर में ही जाग्रत है. हमारी देह में आन तीनों पराशप्रियों
के के न्द्र क्मशः रृदय, माप्रस्तष्क और नाप्रभ हैं और आस बात का महत्व आस तथ्य से शायद अप ज्यादा ऄच्छे से समझ सकें की यह इश्वरीय पराशप्रि देवताओ ं में भी जागतृ नहीं होती कयोंप्रक वो भोग योनी में है जबप्रक हम कमव योनी में और हमारे शरीर में यह शप्रि कंु डप्रलनी के रूप में अप्रश्रत है प्रजसे जाग्रत प्रकये प्रबना अगे का मागव िशस्त नहीं हो सकता. तंत्र शास्त्र में ही स्त्री को मााँ अप्रदशप्रि के रूप में देखा जाता है और ईसकी देह पजू ा मााँ कामाख्या के रूप में की जाती है कयोंप्रक यप्रद स्त्री को के वल भोग की वस्तु ना समझा जाए तो ईसी को भैरवी के रूप में साध के अप मााँ अप्रदशप्रि के अशीवावद के पात्र बन सकते हो कयोंप्रक ब्रह्ी, वैष्णवी और रौरी यह तीनो शप्रियााँ एक प्रत्रकोण के रूप में हर स्त्री के शरीर में स्थाप्रपत है आसीप्रलए आस प्रत्रकोण को योप्रनरुपा कहा जाता है और आन शप्रियों की पजू ा योनी पीठ के रूप में की जाती है और वास्तव में देखा जाए तो हर स्त्री का शरीर ऄपने अप में एक योनी पीठ है प्रजसके बाएं कोण में ज्ञान शप्रि, दायें कोण में आच्छा शप्रि और सब से नीचे वाले कोण में प्रक्या शप्रि स्थाप्रपत है और योग में आसे कंु डप्रलनी शप्रि का कें दर माना गया है. और आसी कंु डप्रलनी को जाग्रत कर हम घंटों, महीनों या सालों समाप्रध की ऄवस्था में रह सकते है और आसका एक जीवंत ईदाहरण मेरे मास्टर है प्रजन्द्होंने मझु े शरीर को साधना हेतु योग्य बनाने के प्रलए असन प्रसप्रद्ध की साधना करवाइ थी कयोंप्रक मैंने मेरी अाँखों से साधना के समय ईनका असन भप्रू म से ईपर ईठा देखा था और वो ईस पर साधना रत थे, पहली बार असन प्रसप्रद्ध का चमत्कार देखा था,तो ऄपनी अाँखों पर प्रवश्वास नहीं हो रहा था की जो देखा है वो सच है या मेरी अाँखों का भ्रम पर बाद में ईन्द्होंने समझाया की यप्रद तम्ु हारा शरीर तम्ु हारे प्रनयत्रं ण में है और तमु ईसे एक दैवी शप्रि के रूप में प्यार और स्नेह करते हो, तो यह सब तमु भी कर सकती हो कयोंप्रक यप्रद शरीर कमजोर और उजाव रप्रहत है तो अत्म प्रचतं न सम्भव नहीं, आसका ऄपना एक मल्ू य है. यह के वल हड्प्रडयों और मांस से बना एक पतु ला नहीं बप्रल्क आप्रन्द्रयों की उजाव से प्रनप्रमवत एक शप्रि है और शप्रि के साथ अप संघषव नहीं कर सकते ईसे के वल साध सकते हो.....और यही सवोच्च साधना है. और
(TANTRA AUR PRET SIDDHI)
तंत्र का क्षेत्र ऄसीम सम्भावनाओ ं से भरा पड़ा है....आसमें ऐसा कुछ नहीं है प्रजसे ऄसंभव कह कर नजरऄदं ाज प्रकया जा सके . एक से बढकर एक प्रवधान, ऄचक ू ियोग और ऄप्रवश्वसनीय रहस्य!!!!! ऐसे ही रहस्यों की श्रख ं ला में एक नाम अता है िेत प्रसप्रद्ध का..... सबसे पहले हमें यह समझना होगा की यह िेत होते कया है....स्थल ू शरीर अत्मा का सबसे प्रिय और महत्वपणू व वाहक है आसीप्रलए अत्मा ऄप्रधक से ऄप्रधक ऄवप्रध के प्रलए आसी शरीर में रहना पसंद करती है और आसीप्रलए योप्रगयों ने भी साधना के प्रलए स्थल ू शरीर को ही महत्व प्रदया पर आस देह की ऄपनी एक सीमा और मयावदा है और आसी मयावदा का पालन करते हुए भौप्रतक देह जब ऄपनी ऄंप्रतम सीमा तक पहुचं जाती है तो अत्मा को प्रववश होकर आसका पररत्याग करना पड़ता है प्रजसे हम मत्ृ यु कहते है. स्थल ू देह को त्यागने के पश्चात ऄपनी ऄतप्तृ वासनाओ ं को परू ा करने के प्रलए अत्मा सक्ष्ू म शरीर धारण करने से पहले एक ऐसे शरीर का प्रनमावण करती है प्रजसे हम वासना शरीर या िेत शरीर कहते है. वाप्रस्तवकता तो यह है की यह एक ऐसा शरीर है प्रजसका प्रनमावण स्वतंत्र रूप से पणू वतः जीवात्मा ही करती है आप्रसलए आसकी प्रसप्रद्ध किदायक ना होकर आसको प्रसद्ध करने वाले साधक के ऄनक ु ू ल होती है कयोंप्रक ऐसे िेत यप्रद अपके वश में अ जाये तो यह अपका हर काम क्षण भर में कर देते हैं. खैर यह एक दसू रा प्रवषय है!!!!! प्रवषय पर पनु ः ध्यान कें प्ररत करते हुए......मरु ाओ ं के प्रवषय में समझाते हुए मास्टर ने एक बार बताया था की जन्द्म मरण से मि ु होने के प्रलए हमारे ऊप्रष मप्रु नयों ने ८४ योगासन और ८४ ही मरु ाओ ं का ऄलग-ऄलग ग्रथं ों में प्रववरण प्रदया है. हर असन और ईससे सम्बंप्रधत मरु ा का ऄपना एक प्रवशेष महत्व है कयोंप्रक आनके सयं ोजन से एक प्रवशेष ईजाव का जन्द्म होता है प्रजससे इथर में ईपप्रस्थत यह िेत अपके कायों को परू ा करने के प्रलए शप्रि ग्रहण करते हैं. तांप्रत्रक रप्रि से देखा जाए तो सत्व, रज, तम आन तीन गणु ों का प्रमप्रश्रत रूप ही िकृप्रत है पर यह तीनों गणु आस िकृप्रत में जहााँ प्रमप्रश्रत रूप से व्याप्त हैं वहां आसी ब्रह्ांड में आनकी ऄपनी ऄपनी स्वतंत्र सत्ता भी है. सम्पणू व जीप्रवत जगत भमू ंडल, चन्द्रमण्डल और सयू वमडं ल आन तीनों मंडलों में बंटा हुअ है और यह तीनों मंडल क्म ऄनसु ार तामप्रसक, साप्रत्वक और राजप्रसक गणु ों के ऄप्रधष्ठाता है. भमू डं ल से चन्द्रमडं ल के बायीं ओर तमोगणु तथा दायीं ओर रजोगणु की िधानता है. मध्य में जहााँ आन दोनों की सीमाएं प्रमलती है ईसे हम शन्द्ु य मागव के नाम से जानते हैं प्रजसका ईपयोग
महाप्रसद्ध योगी सन्द्यासी एक स्थान से दसू रे स्थान पर अने जाने के प्रलए करते हैं. चंरमंडल के बायीं ओर प्रस्थत तमोगणु में तामप्रसक अत्माएं प्रनवास करती हैं प्रजन्द्हें भौप्रतक जगत में हम िेत, बेताल, प्रपशाच आत्याप्रद नामों से जानते हैं. आसी शन्द्ू य मागव के समांतर एक ओर पथ है प्रजसे डामरोत्तम महा पथ कहते है ओर आसी पथ का ईपयोग यह िेत योप्रनयां भल ू ोक पर अने के प्रलए करती है ओर आन दोनों पथों के आतने पास होने की वजह से ही हमेशा समझाया जाता है की जब भी ऄपने सक्ष्ू म शरीर से कहीं जाना हो तो ऐसी व्यवस्था करके जाओ की कोइ अपको ईस ऄवप्रध में ईठाये नहीं कयोप्रकं एक बार पथ भटक गए तो वापसी संभव नहीं होती. िेतों के तमोगणु मागव से एक ओर मागव प्रनकलता है प्रजसे महाप्रदव्यौध मागव कहते हैं कयोंप्रक आसी मागव के रास्ते राजसी गणु सम्पन्द्न यक्ष-यप्रक्षणी, गन्द्धवव पथ्ृ वी लोक पर अते है....आस महाडामरी पथ और महाप्रदव्यौध पथ का संगम भमू ंडल के के न्द्र में होता है आसीप्रलए कभी कभी ऐसा होता है की प्रजस अत्मा का अवाहन प्रकया जाए ईसकी जगह कोइ और अत्मा अ जाती है कयोंप्रक डामरी पथ आन अत्माओ ं के अवागमन से भरा रहता है. िेत प्रसप्रद्ध से सम्बंप्रधत यह कुछ मल ू तथ्य हैं प्रजनका ज्ञान हर ईस साधक को होना चाप्रहए जो िेत को प्रसद्ध करना चाहता है कयोंप्रक यह एक ऐसी योनी हैं प्रजससे सबं ंप्रधत ऄज्ञान ईसको अपका नहीं ऄप्रपतु अपको ईसका दास बना सकती है पर यप्रद एक बार सिलतापवू वक आसे साध प्रलया तो यह ऄित्क्ष रूप से सदा अपके साथ रहते है और ना प्रसिव अपके मनोवांप्रछत काम करते है बप्रल्क ऄदृष रूप से हमेशा अपकी रक्षा भी करते हैं और तब तक सामने नहीं अते जब तक आनके स्वामी िारा आनका अवाहन ना प्रकया जाये. ऄनमु प्रत प्रमलने पर आससे सम्बंप्रधत ियोग और साधना भी दगंू ी प्रजससे िेत प्रसद्ध होता ही है. र
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सर्व प्रोक्ः पसर्व प्ञाननः पसर्व पाञाने पसर्ञानव्मन सर्व प्ञानन प्दञानत्री पश्री पदर्ी पमया ु ं पतर् पं चरणञानरवर्न्द || ं पय् श्रीस् ू को लोग मात्र ऐश्वयव िाप्रप्त का ही स्तोत्र मानते रहे हैं,और ऐसा मानना ईप्रचत भी था. कयंप्रू क समय और पात्र को देखते हुए मन्द्त्र मनीप्रषयों ने ऄथवा मन्द्त्र ममवज्ञों ने आसके भीतर के
रहस्यों को गप्तु ही रहने प्रदया. आसका बाह्य पक्ष ही िकाश में अ पाया. और समय के साथ साथ हम यही मान बैठे की श्रीसि ू मात्र धन िाप्रप्त हेतु भगवती महालक्ष्मी से की जाने वाली एक स्तप्रु त है,और दीपावली पर आसका पाठ करने से ऐश्वयव की वप्रृ द्ध होती है. जबप्रक सत्य आससे प्रबलकुल ईलट है,आसकी िथक िथक ऊचाएाँ साधक को ना प्रसिव ईसका ऄभीि िदान करती हैं,ऄप्रपतु ग्रह,काल,वस्त्र,प्रदशाओ ं का ईप्रचत संयोग साधक को िथक िथक पररणाम देता है. तत्रं की गह्य ु ता को समझ पाना तभी सभं व हो पाता है,जब ईसी राह का कोइ पप्रथक प्रजसने पहले ईस सिर को तय प्रकया हो,अप को ईस राह की दरुु हता और दगु वमता से पररप्रचत करवा दे.मेरी ईत्कंठा सह्स्त्रञानक्षरी पचंडी की साधना और ईससे जड़ु े रहस्य को समझने की थी,और मैंने पप्रत्रका के परु ाने ऄंकों में आसके बारे में पढ़ा भी था और जब मैंने आस बारे में मास्टर से पछ ू ा तो ईन्द्होंने बताया की “हमारे कइ गरुु भाइ बहनों ने आसकी गोपनीय कंु प्रजयााँ सदगरुु देव से िाप्त करी हैं और ईनके माध्यम से ऄपने जीवन के मनोरथ तो पणू व करे ही हैं साथ ही साथ ईन रहस्यों को भी समझा है,प्रजसे शास्त्र ऄभी तक गप्तु रखते अयें हैं और आसकी कइ िप्रक्याओ ं को मैंने रजनी प्रनप्रखल जी को संपन्द्न भी करते देखा है.और सदगरुु देव ने कभी भी कोइ ज्ञान लप्तु नहीं रखा है,बहुतेरे साधक हैं प्रजन्द्हें साधना की कंु प्रजयााँ प्रमली,पर वो ऄब प्रकसी के सामने नहीं रखना चाहते हैं”. साधना एक ही हो सकती है,मत्रं एक ही हो सकता है प्रकन्द्तु ईसके ियोग करने की पद्धप्रत ही ईसके िारा िाप्त पररणाम को स्पि करती है. जैसे हम स्वर प्रवज्ञान की साधना तो करते हैं,परन्द्तु हम ईसके आस रहस्य से ऄनप्रभज्ञ ही रहते हैं की स्वरोदय प्रवज्ञान या स्वरोदय तंत्र की पणू व प्रसप्रद्ध पञ्च तत्व की प्रसप्रद्ध के पश्चात ही िाप्त होती है और पञ्च तत्वों की प्रसप्रद्ध के िारा भौप्रतक सिलता तो िाप्त होती ही है साथ ही व्यप्रि जीवन के अध्याप्रत्मक लक्ष्यों को भी सहजता से िाप्त कर लेता है.और ये मात्र सांकेप्रतक नहीं होता है,ऄप्रपतु तत्व प्रसप्रद्ध का ऄभ्यास करने वाला साधक जैसे ही ईस तत्व का ध्यान ईप्रचत मागवदशवन में करता है ईसकी नाप्रसका ईस तत्व प्रवशेष की सगु ंध से सवु ाप्रसत हो जाती है. जैसे नवाणव मत्रं से ऄप्रभमप्रं त्रत प्रवप्रभन्द्न सामग्री साधक के ऄलग ऄलग ईद्देश्यों की पतू ी करती हैं.श्रीसि ू के गढू ाथव की यप्रद बात की जाए तो आसकी ित्येक ऊचा के सैकडो ऄथव प्रनकलते
हैं,कयंप्रू क आनका संयग्ु मन प्रवप्रभन्द्न ऄथों को दशावता है,प्रवप्रभन्द्न प्रवज्ञानों और प्रवप्रभन्द्न तंत्रों के ऄज्ञान को आन ऊचाओ ं के िारा समझा जा सकता है. स्वणव प्रनमावण की पद्धप्रतयााँ,सयू व प्रवज्ञान के गोपनीय प्रसद्धांत,प्रवप्रभन्द्न प्रसप्रद्धयों की िाप्रप्त, ऄमतृ त्व का सचं ार अप्रद आस सि ू के ज्ञान िारा संभव हो जाता है. जब हम साधना करने के प्रलए तत्पर होते हैं तो सिलता िाप्रप्त के या प्रसप्रद्ध िाप्रप्त के प्रचन्द्हों या संकेतों को हम समझना चाहते हैं,प्रजससे हम ईस मागव में अ रही बाधाओ ं को पणू वतयः पार कर सकें .वैसे तो बहुत से ऐसे संकेत होते हैं प्रजनके िारा प्रसप्रद्ध ऄप्रसप्रद्ध को समझा जा सकता है,प्रकन्द्तु स्वप्न के िारा हमें ऄचक ू ज्ञान की िाप्रप्त होती है,और यप्रद प्रनम्न प्रक्या का ियोग साधक ऄपने जीवन में कर ले तो वो ना प्रसिव भप्रवष्य सचू क स्वप्न सक ं े तों को समझने लगता है ऄप्रपतु वो व्यप्रि प्रवशेष से भी सम्पप्रकवत हो सकता है,मतलब प्रजस व्यप्रि के ,व्यवहार,चररत्र,हाल चाल को ईसे जानना है,ईस व्यप्रि की ये सब जानकाररयााँ भी ईसे स्वयं के स्वप्न के माध्यम से पाता चल जाती हैं. प्रकसी भी सोमवार की राप्रत्र को ९ बजे के बाद पणू वतया शद्ध ु ावस्था में श्वेत वस्त्र धारण कर सफ़े द असन पर बैठ जाएाँ,और सामने भप्रू म पर सफ़े द कपडा प्रबछाकर,ईस पर के सर प्रमप्रश्रत सफ़े द चन्द्दन के िारा एक गोला बना लें,गरुु पजू न और गणपप्रत पजू न के बाद घी का दीपक जला कर,ईस गोले में ऄनाप्रमका उाँगली से “सों सोमाय नमः” प्रलख दें और प्रिर ईस गोले को सफ़े द ऄक्षत से भर दें,आसके बाद सामने एक चांदी के ऄथवा ताम्बे के पात्र में जल भर कर ईन ऄक्षतों के उपर स्थाप्रपत कर दें.प्रिर प्रस्थर प्रचत्त होकर स्िप्रटक या सफ़े द हकीक माला से १ माला “ॎ ह्रीं श्रीं चन्द्रायै नमः” मंत्र की करें और आसके बाद प्रनम्न ऊचा का ३ माला जप करें और जप के बाद ईस पात्र पर िाँू क दें ऄथावत १ माला जप के बाद एक िाँू क मारना है. अर्द्ञानां पपुष्ाररणीं पपुवट पं वपंगेञानं पपद्ममञानवेनीम प् | चन्र्द्ञानं पविरण्यमयीं पेक्ष्मीं पजञानतर्दरोक पम पअर्ि प|| जप के बाद पनु ः पहले वाले मंत्र की १ माला करना है,और जप के पश्चात ईस जल का पान कर लेना है,जल का पान प्रकसी और पात्र में लेकर करना है,ये क्म ५ प्रदनों तक करना है और ईसके बाद अगे के प्रदनों में सोने के पहले २१ बार ईपरोि ऊचा का जप करके जल पी लें. और सो जाए.साधना कायव कर रही आसका पता अपको ऐसे लगेगा की ऄब अप स्वप्न भल ू ेंगे
नहीं,अगे समय के साथ अप ईसके गढू ाथव को भी समझने लगेंगे और वो अपको स्मरण भी रहेगा,तथा ऄब अपको प्रजसके बारे में जो जानना है अप ईसे एक सफ़े द कागज पर हल्दी से प्रलख कर ऄपने तप्रकये के नीचे रख कर सो जाएाँ,अपको स्वप्न में ईसकी ऄवश्य जानकारी िाप्त हो जायेगी, ये साधना अपको भप्रवष्य संकेतों की सचू ना देती है जो की स्वप्नेश्वरी साधना से िथक प्रवधान है,साथ ही आस ियोग को संपन्द्न करने वाला व्यप्रि द:ु स्वप्नों और स्वप्नदोष जैसे प्रवषाि िभावों से भी मि ु हो जाता है,तथा वो यप्रद प्रकसी और व्यप्रि को आस साधना का ५ प्रदन का क्म परू ा करने के बाद ऄप्रभमप्रं त्रत जल दे दे तो ईसके सेवन से वो व्यप्रि भी आन बाधाओ ं से मि ु हो जाता है,तथा साधक ऄपनी साधना में ऄपनी गप्रत को तो आस साधना के िारा समझ ही लेता है.वास्तव में ये चंर नाड़ी को जाग्रत करने का सरल प्रवधान है प्रजसे हमें करना ही चाप्रहए,साथ ही यप्रद व्यप्रि रजनी प्रनप्रखल दीदी िारा प्रलप्रखत पBHAGWATI BAGLAMUKHI TANTRAM - MAYA KAAL DRISHYAANVITA PARASHAKTI
कर लेता है तो वो आड़ा और प्रपंगला नाप्रड़यों की शप्रि को भी िाप्त करने की ओर ऄग्रसर हो जाता है,प्रजससे पराप्रवज्ञान का मागव ईसके प्रलए िशस्त हो ही जाता है.साधनाएं मात्र पढ़ने के प्रलए नहीं है,ऄप्रपतु आन सरल प्रवधानों को भी हम ना कर पाए तो ऄब दोष प्रकसका है. PRAYOG
LAAKINI SADHNA
मनष्ु य जीवन में ज्ञान का बोध प्रनप्रश्चत रूप से एक ऐसा तथ्य है प्रजसे प्रकसी भी रूप से नाकारा नहीं जा सकता. जन्द्म से ले कर मत्ृ यु तक व्यप्रि ऄपने प्रनत्य प्रक्या कलापों के माध्यम से कायों के माध्यम से या प्रवचारों के माध्यम से ऄपनी अतरं रक तथा बाध्य गप्रतशीलता के माध्यम से ऄपनी चेतना का प्रवकास करता है, ऄपने ऄप्रस्तत्व को ज्यादा से ज्यादा प्रनखारने की ओर हमेशा ियत्नशील रहता है. लेप्रकन आन सब के मल ू में जो तथ्य सारी प्रक्याओ ं का अधार बन कर चेतना को और प्रवकप्रसत करने की िेरणा िदान करता है वह है ज्ञान का बोध. मनष्ु य को प्रजतना भी ज्ञान का बोध होता है और प्रजस िकार के ज्ञान का बोध होता है ईसकी कायों की गप्रतशीलता भी ईसके ऄनरू ु प ही चलती है. और यह यात्रा स्व भवप्रत से ले कर ऄहं ब्रम्हाप्रस्म तक चलती है. कयों की पणू व ज्ञान पणू व सत्ता का ज्ञान िाप्त होने पर व्यप्रि की चेतना भी ईसी तरि गप्रतशील होने लगेगी. कायों तथा गप्रतशीलता का अधार वही बनेगा. ब्रम्हांड की संरचना की मख्ु य सत्ता ब्रम्ह है. और ईसी का ज्ञान ब्रम्हज्ञान है. और आसी ब्रम्ह का पणू व ऄंश ब्रम्हांड के सभी सक्ष्ू म से सक्ष्ू म में भी िस्थाप्रपत है. ईसी पणू व सत्ता के प्रवखडं न से ही तो पणू व
ब्रह्ाण्ड का सजवन हुवा है. और ईसका मख्ु य प्रवखडं न दो भाग में हुवा. सदाप्रशव तथा शप्रि. अगे ईनके ही प्रवप्रभन्द्न ऄश ं प्रवखप्रं डत ऄवस्था में सभी जड़ तथा चेतन बने. शप्रि स्त्री तत्व का िप्रतप्रनप्रधत्व करती है. तथा ईन्द्ही के ऄगप्रणत स्वरुप हम सब के मध्य प्रवद्यमान है. प्रकसी भी ठोस में तब तक चेतना नहीं होती जब तक वह शप्रि संयि ु नहीं हो जाता. हमारे अतंररक तथा बाह्य ब्रम्हांड में जो भी चेतना का अधार है वही शप्रि है. तथा जहााँ पर भी आसकी सत्ता है वहााँ पर ईसका एक नतू न ही स्वरुप है. मनष्ु य तथा बाकी प्रजव में एक मख्ु य ऄतं र यह है की मनष्ु य ऄपनी चेतना का प्रवकास ऄनंत रूप से कर सकता है. कयों की मनष्ु य में मख्ु य शप्रि का स्वरुप कुण्डप्रलनी के रूप में शरीर में ही प्रवद्यमान होता है. आस प्रलए मनष्ु य को बाह्यगत चेतना की खोज तथा िाप्रप्त नहीं करने के प्रलए प्रकसी नतू न तथ्य की अवश्यकता नहीं है, या प्रिर बाह्य रूप से ईसके प्रलए वैचाररक भावभप्रू म की अवश्यकता नहीं है. वह खदु ऄपने ऄदं र की सप्तु शप्रियो के जागरण मात्र से पणू व ब्रम्हज्ञान की िाप्रप्त कर सकता है. कयों की जो भी बाह्य है वह अतंररक भी है. आस प्रलए प्रजस िकार से ब्रम्ह तथा ब्रम्हांड बाह्य रूप में प्रवद्यमान है ईसी िकार वह अतंररक रूप में भी वही प्रवद्यमान है. और मनष्ु य ऄपने ऄदं र एक पणू व ब्रम्हांड को समाप्रहत प्रकये हुवे है तो वह कुण्डप्रलनी के स्वरुप में ही है. कुण्डप्रलनी के मख्ु य सात चक्ों में मल ू ाधार से ले कर सहस्त्रार तक सप्त चक्ों में पणू व वणव तथा मातक ृ ा शप्रियां प्रनप्रहत है, जो की सभी देवी तथा देवता के बीज है. मंत्रो का अधार है. आस प्रलए ऄगर आनको चेतन कर प्रलया जाए तो प्रनप्रश्चत रूप से सभी देवी तथा देवता को साध प्रलया जा सकता है और आन सब प्रवखप्रं डत स्वरुप का मल ू ब्रम्ह ही तो है. आसी प्रलए यह ऄपने मल ू तत्व तक पहोचने से सबंप्रधत िप्रक्या है. आस िकार व्यप्रि क्मशः एक एक चक्ों से सबंप्रधत देवी या देवता की साधना को पणू व कर लेता है. वास्तव में यह एक कप्रठन और धैयवपणू व सिर है. जेसे की स्पि है, शप्रि के प्रवप्रभन्द्न स्वरुप ही अधार बनते है प्रकसी ठोस, शव, परुु षतत्व या घनात्मक की चेतना िप्रक्या से. आसी अधार पर सभी चक्ों के प्रनयत्रं ण तथा सचं ार से सबंप्रधत हर एक चक् की ऄपनी एक ऄप्रधष्ठात्री शप्रि है. ऄप्रधष्ठात्री के भी कइ ऄलग ऄलग स्वरुप चक्ों के मध्य प्रवद्यमान रहते है. स्वाभाप्रवक है की यह देवी स्वरुप जो की चक्ों से सबंप्रधत है वह ऄत्यप्रधक शप्रिसम्प्पन होती है तथा ऄपने साधको के कल्याण करने के प्रलए हमेशा तत्पर
रहती है. साधक कल्पना कर सकता है की जो कुण्डप्रलनी में परू ा ब्रम्हांड समाप्रहत है ईनके मख्ु य चक् की ऄप्रधष्ठात्री साधक को कया कुछ िदान नहीं कर सकती. वास्तव में आन शप्रियोंकी साधना तथा साधना पद्धप्रतयााँ गप्तु और गढ़ु रही है. कयों की साधक प्रनप्रश्चत रूप से ऄत्यप्रधक शप्रि सम्प्पन आन साधनाओ के माध्यम से हो सकता है. मप्रणपरु चक् ऄपने अप में एक ऄत्यप्रधक गढ़ु तथा रहस्यमय चक् रहा है. आस चक् िाण का के न्द्र है. सजवन क्षमता से सयं ि ु है. कयों की व्यप्रि जब गभव में होता है तो ईसकी चेतना नाप्रभ के माध्यम से ही बनी रहती है. आसके ऄलावा सजवन या सरं चना करने की क्षमता आस चक् में है आसके पौराप्रणक कइ ईदहारण प्रमलते है. िाणों के प्रवखडं न तथा सयू व और ऄप्रग्न रूप यह चक् मनष्ु य शरीर का के न्द्र रहा है. मनष्ु य के अतंररक शरीर भी आसी जगह से जड़ु े हुवे होते है. वस्ततु ः जब मनष्ु य के स्थल ू शरीर से वासना, सक्ष्ू म आत्याप्रद कोइ भी शरीर ऄलग होता है तो भी वह नाप्रभ से रजतरज्जू के माध्यम से जड़ु ा हुवा रहता है. आस चक् की मख्ु य शप्रि देवी लाप्रकनी है. देवी के कइ स्वरुप आस चक् में प्रवद्यमान है. तथा आनकी साधना पद्धप्रत ऄपने अप में ऄत्यप्रधक कप्रठन ईग्र और गप्तु कही जाती है. कयों की साधना के बाद, साधक को कइ िकार के लाभों की िाप्रप्त होती तथा आन शप्रियों की साधना में कइ बार ऄत्यप्रधक भयावह प्रस्थप्रत भी बन जाती है. ेवान प्स्तुत पसञानधनञान पदर्ी पस पसबवं धत पएसी पसञानधनञान पिै पजरोक पाी पसौम्य पिै. पआसमें पसञानधा प ारोक पवासी पभी प्ाञानर पाी पभय पाी पवस्थवत पनिीं पबनती पिै. पआस पसञानधनञान पस पसञानधा पारोक पाइ प ेञानभों पाी प्ञानवि पिरोकती पिी पिै पजस पाी पररोकग पमुव् पपट पस पसबवं धत पसमस्यञानओ पाञान प समञानधञानन पयरोकगशव् पाञान पवर्ाञानस पचतनञान पाञान पवर्ाञानस पमञाननवसा पशव्यों पाी प्ञानवि प ेवान पआस पसञानधनञान पाी पसबस पबड़ी पईपेवधध पिै पसञानधा पचतुथव पअयञानम पा पस्थञाननों पमें प वर्चरण पारन पा पयरोकग्य पबन पजञानतञान पिै. पसञानधा पमें पयि पक्षमतञान पअ पजञानती पिै पाी पर्ि पऄपन प शरीर पमें पअतंररा पशरीर पारोक पजञानगृत पार पचतुथव पअयञानम पा पस्थञाननों पमें प्र्श पार पसा. पआस प स्थञाननों पारोक पदख पसा पवजसारोक पदखनञान पसञानमञानन्य पर्द्वट पस पसंभर् पनिीं पिरोक पतथञान पआस पवसद्ध प स्थेों पाी पयञानत्रञान पार पसा पजिञानं पपर पस्थे ू पशरीर पा पमञानध्यम पस पजञाननञान पसञानमञानन्यतः पसंभर् प निीं पिै. पआस पसञानधनञान पमें पवासी पभी प्ाञानर पाी पारोकइ पभय पाी पवस्थवत पनिीं पबनती पिै. पसञानधा प ारोक पिरोक पसातञान पिै पसञानधनञान पसमय पमें पशरीर पाञान पतञानपमञानन पबढ़तञान पिुर्ञान पऄनभ ु र् पिरोक पेवान प आसमें पभय पर्ञानेी पारोकइ पबञानत पनिीं पिै पसञानधा पवनवचंत पिरोक पार पपूरी पसञानधनञान पार.
साधक यह साधना प्रकसी भी प्रदन शरू ु कर सकता है. यह साधना राप्रत्रकाल में १० बजे के बाद ही की जाए. साधक लाल वस्त्र पहेन कर लाल असान पर बैठ कर ईत्तर प्रदशा की तरि मख ु बैठ जाए. साधक को ऄपने सामने एक तेल का दीपक लगाना चाप्रहए. आसके ऄलावा ओर प्रकसी भी चीज़ की अवश्यकता आसमें नहीं है. आसके बाद साधक लाप्रकनी ध्यान का ११ बार ईच्चारण करे ेञानवानी पध्यञानन प– नीेञानंदर्ीं पवत्रर््ञानं पवत्रनयनेवसतञानं पर्द्ंवटवणमग्रु रूपञानं र्ज्रंशव्ं पदधञाननञानमभयर्रारञानं पदक्षर्ञानम पक्रमण प ध्यञान्र्ञान पनञानवभस्थ पपद्म पदशदेवर्ेस्ावणवा पेञानवावन पं तञानं मञानंसञानशीं पगौरर्ञानसृाह्रदयर्तीं पवचन्तयत पसञानधान्र्द्ः ध्यान मंत्र के ईच्चारण के बाद साधक ऄपनी अाँखे बंद कर के प्रनम्न मंत्र का ईच्चारण करे . साधक को स्िप्रटक माला से ११ माला मत्रं जाप करना है. मत्रं जाप करते समय साधक का ध्यान अतंररक रूप से नाप्रभ पर हो. ेञानवानी पमवणपुर पमन्त्र प- प पगुं परं पटं पठं पड पं ढ पं णं पतं पथ पं द पं ध पं न पं रं पगुं प सञानधा पारोक पयि पक्रम प७ पवदन पता पारनञान पचञानविए. प७ पवदन पमें पसञानधा पारोक पवर्वर्ध प्ाञानर पा प ऄनुभर् पिरोक पसात पिै पेवान प७ पवदन पबञानद पसञानधा पारोक पवनवचत परूप पस पयि पक्षमतञान प्ञानि प िरोकती पिै पाी पर्ि पऄपन पशरीर पा पअतंररा पशरीर पारोक पजञानगृत पार पचतुथव पअयञानम पा पगुि प क्षत्ररोक पारोक पदख पसा पतथञान प्र्श पार पसा. पेञानवानी पमत्रं प पटं पठं पड पं ढ पं णं पतं पथ पं द पं ध पं नं पिै प ेवान पऄनुभर् पअयञान पिै पाी पमवणपुर पा पमुख्य पबीज पाञान पसम्पुट पारन पपर पआस पमत्रं पाी प तीव्रतञान पबढ़ पजञानती पिै पआसा पऄेञानर्ञान पांाञानेमञानवेनी पमें पवनदेशञाननुसञानर पआस पमंत्र पमें प गुरुबीज पाञान पसम्पुट पवदयञान पजञाननञान पचञानविए पवजसस पसफेतञान पसुवनवचत पिरोक पिी पजञानए. पआस प ्ाञानर पयि पपरू ञान पमन्त्र पगुं परं पटं पठं पड पं ढ पं णं पतं पथ पं द पं ध पं न पं रं पगुं पबनतञान पिै. पजरोक पाी पाइ प्ाञानर पाी प वसवद्ध पद पसातञान पिै. प पमञानेञान पाञान पवर्सजवन पनिीं पारनञान पिै. पसञानधा पआसस पभवर्ष्य पमें पभी पआस प मंत्र पाञान पजञानप पार पसातञान पिै.
जरोक पव्यव् पयि पपूणव पक्रम पनिीं पार पसात पर् पेरोकग पवन्य परञानवत्र पमें पसरोकत पसमय पअँख पबदं पार प ा पआसी पमंत्र पाञान पमञाननवसा पईच्चञानरण पनञानवभ पपर पध्यञानन पाेंवर्द्त पार पारत परि पतरोक पआसस प सबंवधत पऄनुभर् पिरोकन पेगत पिै. प YAKSHINI,APSARA SADHNA KI KUNJI - YAKSHINI APSARA SAAYUJYA SHASHTH MANDAL
Saundaryavataam saa urdhvorvataam purna tantramev sindhum | Divyorvataam saa saahcharya praaptum || Yakshini apsaraavai sahchari sadaam saa | Rudrormandal sthiraam ch bhavati vashyavaa || It’snext to impossible to describe the wonders of Tantra Field. Therefore by pseudolanguage of suggestive method in the composed “Saundarya Kalpalataa Sindhum” it has been said that in the ocean of Tantra, the saudrya and upwardrace is not easily achievable, rather for achieving one has to do churning process in oceanictantra field, which at least in today’s date is not at all easy. Because, purity of character and toughpersonality are the essential key factors of measuring depth in Tantra field and a prime quality as well.And the one who has these qualities can
speedily go high and achieve the beauty of it.And a sadhakwho got control on Beauty and sharpness, can achieve divinity very easily. And for this Yakshini and Apsarasadhnaas are chief, continuously introducing the new facts and secret mysteries of Tantra field, guiding and supporting like best friend and giving right suggestions are main aspects.There are no lackings in methods of Shastraas, Mantra Maharnav, mantra, saundaryaanavpaddhati,tantraratnakar, bhutdamartantraetc are filled with such sadhnaas only. Still after taking help but why is it like that we didn’t get support of these Saundaryaas..? Is the method is wrong? Is there any fault in Mantra? Is the method incomplete? Nope… it is not like that. Rather we may have forgotten that every sadhna contains some secretive facts, after following and using it, if we do authentic provision then for sure the percentage of success becomes multiple. As per our Personnel speed we may get late in achievement of success, but after making right hardship didn’t get success is just impossible. For Sadhnaa different type of material is required, Time, space, in creation of positive environment which always provokes your conscious towards sadhna. You can’t deny the necessity of these sadhna material. Every sadhna contains a specific liquid and yantra whose absence gives bad results. For achievement in Sadhna Field mantra, yanta and tantra all three are required. Then only success is possible. And this is not just happens with MahavidyaSadhnas but also applied on each sadhna procedure. Conversation forum which is organise on YakshiniApsarasadhna at Jabalpur on 12th August, in which we are going to discuss about the base facts of these sadhnas and the material as well and which will be provided only to the participants our guru brothers and sister of this seminar.And which i.e. YakshiniApsarasaayujyashashthmandal.And the speciality of this Mandal is I am explain below.. Studiously we have decided that only for those participating brothers and sisters we will provide this only o them. By which they can treasure the rare and important material for their whole life and
take maximum benefit. The whole procedure of Yantra is going to be explained in seminar only. Whosoever brothers and sisters had participated in Sadgurudev’sshivir, they very well know the significance of Yantras and sadhna material. If you have to MahavidyaSadhna then also you need to form three Mandal, then only their physical establishment, self-establishment, collaboration, attraction, success and their complete association can be achieved. If any MaaValgamukhiSadhnak had not done the base primordium process, the whole activation of Atharva sutra process and the purifaication process, then he cannot get the complete association of Mahavidhya. May he gets compatibility in his work is different thing. Because it is for sure that you definitely get Sadhna effects. As this is mere impossible that we do actions and less result is achieved. And for this if we understands the above shloka then it is clearly mentioned that – Yakshini Apsara vai sachari sadaam saa Rudrormandal sthiraam ch bhavati vashyavaa We can get forever association of Yakshini and Apsaras but for this some freezing and establishment has to be done in Rudra Mandal. literally we need to understand as to what is the meaning of Mandal??? For getting success in Apsara and YakshiniSadhnas the formation of three Mandals and the coincidence of Purna Yakshini Apsara Saayujya Shashth Mandal is essential. The formation process is that tough that a normal sadhak cannot do it. The whole mandals are divided into 3 parts. 1. RudraMandal 2. ApsaraYakshiniMandal 3. Yakshini Siddhi Mandal
And each three Mandals have 2-2 sub mandals on combining which a whole mandal is formed. And this is how 3 complete mandal forms a complete mandal. And which joining of 6 yantras forms a complete Siddhimandal, then only complete success becomes possible for Sadhak. If we try to understands this sequence – In theRudra Mandal first Mandal or the Yantra is Siddhi Shiv KuberMandal , in which the Lord Mahakaal who is the owner of Sharpness and Beauty and on kindness of his sadhak gets whole KaamBhav and gets a boon to establish complete control over it. In the success of these saundaryaSadhnas, his establishment is done in complete Tantrokt Form, which consists some special kriyaas, on using this, the component establishment, worship, geometrical notation, cosmic consciousness etcis achieved. And the PaurushBhav or the AdhipatyaBhaav which is must in Sadhna is given by him. Due to which at the time of Sadhna complete control is there and doesn’t get affected by sexual excitement. Nor he needs to face problems like night fall and neither erotic thought breaches his sadhna. Along with that Lord Mahakaal and his disciple Yakshraj kuberand notation of his Shakti is added in same yantra, because we all are aware about this fact that Kuber is lord of Yakshinis and without his kindness the association of Yakshini is far away, no glimpse of experience is achieved. The second Yantra of this RudraMandal is Kamakshi Bramhaand Aakarshan Yantra in which the Bhagvati kaam Kala Kaali’s kalaas are established via which the connection between the sadhak and Apsara and Yakashini is formed. And they easily contact the sadhak, and along with their Art forms and knowledge they give their association to sadhak and sets free from obstacles. The both yantraas of Rudra Mandalgives success in Yakshini and Apsara .Now in any classified forms of this sadhna, you the need this mandals at any cost.. Now turns come of second mandal which is Apsara Siddhi Mandal. In this mandal two other mandals are there. 1.ApsaraMandal– which makes sadhak capable of doing this sadhna and keeps away his negativity from him in sadhna duration, doing the purification of sadhak and preparing him to become capable enough for imbibing the beauty, is the main work area of this Mandal. The whole Apasaras are presented in their geometrical form. Due to which it becomes easy to do notation process of them later which becomes their universal residence. In 1993 Sadgurudevtold, that this Yantra is
must in Apsara and TantraSadhnas and maximum sadhak had achieved complete success in it. The sub mandal of the same one or yantra is Saundarya Bhaagya Lekhen mandal, by its support whichever powers sadhak achieved in saundaryasadhna becomes capable to treasure is properly, and this beauty is not just external but also see the effects in every aspect of life. When sadhak do complete self-activation then, all these Saundarya Balas are bound to come close to him. Now the Third Mandal is Yakshini Siddhi Mandal. In this 2 other sub mandals are there. 1. Shodashi Mandal its main work is to provide the invisible association of those 16 main Yakshinis who consists 4-4 yakshinis under them. This is how each yakshini hold 4 Vidyaas, of which achievement is bowed in form of success. By the way in shastras, every Yakshini is said to be a holder of one Art form and one Vidya, but being the owner of 4-4 yakshinis indirectly they become the holder of 4 Vidyaas. Now this how 16*4 = 64, they becomes the holder of 64 Tantras and Vidyaas. The formation which tatva of sadhak is needed or which class is fructifying him, such indication is given to sadhak in his sadhna duration via dreams. Then after what type of miniature efforts is needed by sadhak is also indicated by them. The same mandal’s sub mandal is Purna sammohan Vashikaran Mandal – in sadhna duration the only attraction is not important but also they get under control of sadhak and provide complete reconcilability, is also a must knowing fact.Whole personality of sadhak becomes magnetic and with the help of such powers he should get continously upgrade towards Devvarg. Not only just other persons contact him personally but also the other Vargclass also get eager to do that so. And providing such capabilities is the main area of this mandal In this way the combination of these three mandals forms a Yakshini Apsara Sayujjya Shashth Mandal . In this one yantra this 6 yantraas are inclusive which are noted in the same sequential manner as explained above. Every sub mandalPraanpratishtha, Abhishek (pious ritual), Chaitanyikaran (activation) and diptikaranpracess is done by different types of material, herbs and mantras. Some of them pranpratishtha is done via Vajramarg, some by Shakti marg, some in mid night or some in early morning in brahma muhurt. And when all process is done on 6 yantras then they are summon up and collaborated then only they are fruitful. Well, it is not easy to activate any yantra. Tons of soul force is required.. Because sadhak should know that the whole notation process is done in order of nature, say which type of methods and all is required… etc..
After getting this yantra, more you need is some essential materials like AbheeshtYakshiniApsara basic Yantra, rosary and process. Rest secret methods are done after attempting the combination in the yantra. Thereafter which Mudras are need to be done... which facts should be adhere, what type of routine is required are must to know. | On this one Yantra the desired cost is too much, whosoever wants to make it on his own or wants to understand the process of formation need to spend 14 days and 7-7 hours, they themselves will come to know the authenticity of this Yantra. You can understand the method of Praanpratishtha, Mantras and Mudraas and what material should be collected, which is not related to us because you only are involved in creation process. | Well we are fortunate that we got financial support from many our brothers and sisters, and due to that support only this plan is executed. Their selflessness always inspired us to step forward. Therefore in togetherly in making of these yantras it made large difference and became cost effective. Due their support I dared to putforth this infront of you. Fortunately when we will meet in Jabalpur I would explain the whole process and all as how to use it.| Sadgurudev told the usage of above Yantras are at different time spans. And this is got by that grand tradition. These individual yantras are used in various types of sadhnas and every experiment was successful. He clearly mentioned that amongst Siddhas these yantras are famous with their different names. I have expressed my heart feeling…. Whether they have reached to you or not…. Is depending up on your thoughts and time span….. ===========================================================
सौंदयषवतां सा ईर्ध्वोवषतां पूणष तंरमेव च्सन्धुं | ददव्योवषतां सा साहचयष प्रािुम || यच्क्षणी ऄप्सरा वै सहचरी सदां सा | रुद्रोमंडि च्स्थरां च भवच्त वश्य वा ||
तंर जगत की ऄद्भुतता का वणषन कर पाना ऄसंभव ही है....तभी तो व्यंजना पिच्त के कू ट भाष में रच्चत “सौंदयष कल्पिता ससधु” में ये कहा गया है की तंर के सागर में सौंदयष और ईर्ध्वषरेतस गच्त की प्राच्ि सहज संभव नहीं हो पाती है,ऄच्पतु ईसके च्िए तंर रुपी सागर का मंथन करना ऄच्नवायष होता है,जो की आतना सहज कम से कम अज तो नहीं है,कयूंदक चररर की शुिता और व्यच्ित्व की सुदढृ ता तंर सागर की गहराइ को मापने का ऄच्नवायष गुण होना चाच्हए साधक में | और च्जस साधक में ये गुण होता है वो सहज ही तीव्रता और सौंदयष दोनों को ही हस्तगत कर िेता है | और च्जसने सौंदयष और तीव्रता को ऄपने वश में कर च्िया,ईसे ददव्यत्व तो सहज ही प्राि हो जाता है | और आस हेतु यच्क्षणी और ऄप्सरा की साधना ही सवोपरर होती हैं, नवीन तथ्यों और गूढ़ रहस्यों से साधक को सतत पररच्चत करवाना, ईसका मागषदशषन करना और सच्चे च्मर की भाूँच्त ईसे साहचयष और ऄपनी सिाह प्रदान करना ही आनका गुण होता है | शास्त्रों में च्वच्धयों की कमी नहीं है , मंर महाणषव,मंर सागरी,मंर ससधु, सौन्दयाषणव पिच्त, तंर रत्नाकर,भूत डामर तंर अदद ग्रन्थ आन साधनाओं से भरे हुए हैं | दकन्तु आनका सहयोग िेने पर भी आन सौंदयष कृ च्तयों का साहचयष कयूूँ नहीं प्राि हो पाता है ? कया च्वधान गित है ?
कया मंर में रुरट है ?
कया पिच्त ऄधूरी है ? नहीं .... ऐसा कदाच्प नहीं है | ऄच्पतु हम शायद ये भूि गए हैं की दकसी भी साधना की कु छ गुि कुं च्जयाूँ होती हैं,च्जनका ऄनुसरण और प्रयोग करते हुए यदद प्रामाच्णक च्वधान दकया जाए तो सफिता का प्रच्तशत कइ गुना बढ़ जाता है | हमारी कार्षमक गच्त के अधार पर भिे ही सफिता च्मिने में च्विम्ब हो,दकन्तु पररश्रम करने पर सफिता ना च्मिे ऐसा संभव नहीं है | साधना के च्िए च्वच्भन्न सामच्ग्रयों की ऄच्नवायषता होती ही है, काि, स्थान,वातावरण को ऄनुकूि करते हुए जो अपके च्चत्त को िगातार साधनोंमुख करते रहें | और आन सामच्ग्रयों की ऄच्नवायषता को अप नकार भी नहीं सकते | प्रत्येक साधना में दकसी खास द्रव्य या यन्र की ऄच्नवायषता तो बनी ही रहती है,च्जसके ऄभाव में साधना से पररणाम की प्राच्ि दुष्कर ही होती है | साधना जगत में पररणाम प्राच्ि के च्िए मंर,यन्र और तंर आन तीनों का ही सहयोग ऄच्नवायष होता है,तदुपरांत ही पररणाम संभव हो पाता है | और ऐसा मार महाच्वद्या साधनाओं
में ही नहीं होता है ऄच्पतु प्रत्येक साधना के च्िए ऐसा ही च्वधान है | जबिपुर में १२ ऄगस्त को जो यच्क्षणी ऄप्सरा साधना पर हम गोष्ठी अयोच्जत कर रहे हैं, ईसमे आन साधनाओं की अधारभूत सामग्री के रूप में च्जस सामग्री को हम गोष्ठी में भाग िेने वािे भाइ-बहनों को प्रदान करने वािे हैं वो है,यक्षिणी ऄप्सरा सायज् ु य षष्ठ मंडल | और आस मंडि की च्वशेषता कया है,आसका वणषन मैं नीचे की पंच्ियों में कर रहा हूूँ | हमने पूणष मनोयोग से मार गोष्ठी में सहभागी होने वािे भाआयों और बहनों को ही आसे देने का च्नश्चय दकया है,तादक ईपरोि साधनाओं से सम्बंच्धत सवाषच्धक महत्वपूणष सामग्री सम्पूणष जीवन के च्िए ईनके पास हो और वे ईसका प्रयोग कर पूणष िाभ ईठा सके | यन्र के प्रयोग का पूणष च्वधान गोष्ठी में ही बताया जायेगा | च्जन भी भाआयों और बहनों ने सदगुरुदेव के साच्नर्ध्य में साधना च्शच्वरों में भाग च्िया है वे ये तथ्य भिी भांच्त जानते हैं की यंरों और सामच्ग्रयों की ऄच्नवायषता का कया महत्त्व होता है | यदद अपको महाच्वद्या साधना करनी हो तब भी ईस हेतु अपको तीन मंडिों का च्नमाषण करना ही होता है, तभी ईनका शरीर स्थापन,अत्म स्थापन,सायुज्यीकरण, अकषषण,सफिता प्राच्ि और पूणष साहचयष प्राि दकया जा सकता है | यदद माूँ वल्गामुखी का कोइ साधक हो और ईसने मूि ईत्स जागरण और ऄपने ऄथवाषसर ू का पूणष जागरण और च्नमषिीकरण ना दकया हो तो ईसे आस महाच्वद्या का पूणष साहचयष नहीं च्मि पाता है हाूँ ईसके कायों को ऄनुकूिता च्मि जाये ये एक ऄिग बात है | कयूंदक साधना का प्रभाव तो अपको प्राि होता ही है....ऐसा हो ही नहीं सकता है की हम कमष करें और ईसका ऄल्प पररणाम भी प्राि ना हो | और आस हेतु यदद हम उपर च्िखी हुयी श्लोक की पंच्ियों के भावाथष को समझे तो ईसमे स्पष्ट च्िखा हुअ है की यच्क्षणी ऄप्सरा वै सहचरी सदां सा | रुद्रोमंडि च्स्थरां च भवच्त वश्य वा || यच्क्षणी और ऄप्सरा का साहचयष तो सदैव प्राि हो सकता है दकन्तु आस हेतु ईसका कीिन और स्थापन रूद्र मंडि में करना होता है | वस्तुतः ये समझना ऄच्त अवश्यक है की ये मंडि कया है ???
ऄप्सरा और यच्क्षणी साधना में पूणष सफिता प्राच्ि हेतु तीन मंडिों का संयोग कर पूणष यच्क्षणी ऄप्सरा सायुज्य षष्ठ मंडि का च्नमाषण अवश्यक कमष होता है | आस मंडि की च्नमाषण प्रदिया ही आतनी जरटि है की आसे सामान्य साधक नहीं कर सकता है, सम्पूणष मंडिों को ३ भागों में च्वभि दकया गया है | १. रूद्र मंडि २.ऄप्सरा च्सच्ि मंडि ३.यच्क्षणी च्सच्ि मंडि और आन तीनों मंडि में से प्रत्येक मंडि में २-२ ईपमंडि होते हैं च्जनके योग से एक पूणष मंडि का च्नमाषण होता है |और आस प्रकार ३ पूणष मंडिों के च्मिने से १ पररपूणष मंडि का च्नमाषण होता है | और आस प्रकार आस पूणष च्सच्ि मंडि में एक साथ ६ यंरों का योग होता है,तभी पूणष सफिता के दशषन साधक को संभव हो पाते हैं | यदद हम आसे समझे तो िम आस प्रकार होगा रूद्र मंडि में प्रथम मंडि या यन्र च्सि च्शव कु बेर मंडि होता है, च्जसमे भगवान महाकाि का जो तीव्रता और सौंदयष के ऄच्धपच्त हैं और च्जनकी कृ पा से साधक को पूणष काम भाव,और काम भाव पर च्वजय प्राच्ि का वरदान च्मिता है,आन सौंदयष साधना में सफिता के च्िए आनका स्थापन पूणष तांरोि रूप से दकया जाता है च्जसकी कु छ च्वच्शष्ट दियाएूँ हैं च्जनके प्रयोग से ऄंग स्थापन,पूजन,ज्याच्मतीय ऄंकन,ब्रह्माण्ड चेतना प्राच्ि अदद संभव हो पाती है और साधना में जो पौरुष भाव और ऄच्धपत्य का भाव ऄच्नवायष है ये ईसे ही प्रदान करने वािे हैं च्जससे साधना के समय संयम भाव के वो पूणष च्नयंरण में होता है,च्जससे कामोिेग से वो पीच्ित नहीं होगा |ना ही ईसे स्वप्नदोष जैसी बाधा का सामना करना पिेगा और ना ही कामुकता की तीव्र िहर ईसकी साधना को ही भंग कर पायेगी | साथ ही भगवान महाकाि के साथ ईनके ही च्शष्य यक्षराज कु बेर और ईनकी शच्ि का ऄंकन भी आस एक यन्र में ही संयुि रूप से होता है,कयूंदक आस तथ्य से हम सभी ऄवगत हैं ही की कु बेर यच्क्षच्णयों के स्वामी हैं और आनकी कृ पा के बगैर यच्क्षणी का साहचयष तो दूर साधक को ऄनुभूच्त का ऄनुभव भी दूर दूर तक नहीं हो सकता है | आस रूद्र मंडि का दूसरा यन्र कामाक्षी ब्रह्माण्ड अकषषण यन्र होता है,च्जसमे भगवती काम किा कािी की किाओं का स्थापन दकया जाता है और च्जसके िारा साधक और ऄप्सरा तथा
यच्क्षणी के बीच एक सूर का च्नमाषण होता है | और वे सुगमता से साधक से संपकष स्थाच्पत कर सकती हैं,ऄपनी सम्पूणष किाओं और च्वद्याओं के साथ वे साधक को ऄपना साहचयष प्रदान करती हैं और ईसे प्रच्तकू िता से मुि रखती हैं | रूद्र मंडि के दोनों यन्र साधक को यच्क्षणी और ऄप्सरा दोनों ही साधनाओं में सफिता प्रदायक होते हैं, ऄब चाहे अप दकसी भी एक वगष की साधना करें तब भी ये एक मंडि तो अपको चाच्हए ही | ऄब बारी अती है च्ितीय मंडि की जो की ऄप्सरा च्सच्ि मंडि होता है | आस मंडि में भी दो मंडि होते हैं १.ऄप्सरा मंडि –जो साधक को ऄप्सरा साधन के योग्य बनाता है और ईसकी नकारात्मक ईजाष को साधना काि में दूर रखता है,साधक का शोधन कर ईसे साधना के योग्य बनाना तथा सौंदयष को अत्मसात करने की क्षमता देना,आस मंडि का प्रमुख कायष है | सम्पूणष ऄप्सराओं की आस मंडि में सांकेच्तक ईपच्स्थच्त होती है | च्जसके कारण ईनका ऄंकन आसमें सहज हो जाता है और आस प्रकार ये ईनका ब्रह्मांडीय अवास ही हो जाता है | सदगुरुदेव ने १९९३ में आस यन्र को ऄप्सरा साधना और तंर साधना के च्िए ऄच्नवायष ही बताया था,और बहुतेरे साधकों ने ईस समय आसका प्रयोग कर सफिता पायी थी | आसी मंडि का दूसरा ईपमंडि या यन्र सौंदयष भाग्य िेखन मंडि होता है,आसके सहयोग से साधक सौंदयष साधनाओं के िारा च्जन शच्ियों की प्राच्ि करता है,ईसे सहेज कर रखता है और ये सौंदयष च्सफष बाह्यागत नहीं होता है ऄच्पतु,जीवन के प्रत्येक पक्ष और साधनाओं में आसका प्रभाव वो स्वयं देख सकता है,जब साधक से आस मंडि का पूणष अत्म चैतन्यीकरण हो जाता है तो बरबस ही आन सौंदयष बािाओं को ऄपने िोक से आसके पास तक अना पिता है | ऄब तीसरा मंडि यच्क्षणी च्सच्ि मंडि होता है,आसमें भी २ ईपमंडि या यन्र होते हैं १. षोडशी मंडि आस मंडि का मुख्य कायष साधक को ईन १६ मुख्य यच्क्षच्णयों का ऄगोचर साहचयष प्रदान करना होता है च्जनके ऄच्धकार में ४-४ यच्क्षणी होती है | आस प्रकार प्रत्येक यच्क्षणी के ऄच्धकार में ४ च्वद्याएं होती है,च्जसकी प्राच्ि वो साधक को साधना के पररणामस्वरूप करावा सकती है |वैसे शास्त्रों में प्रत्येक यच्क्षणी को एक च्वद्या या किा प्रदान करने वािा कहा गया है,दकन्तु चार चार के समूह की एक स्वाच्मनी होती हैं तो ऄपरोक्ष रूप से ४ च्वद्याओं पर ईनका ऄच्धपत्य सहज होता है | आस प्रकार १६ गुच्णत ४=६४ तंर या च्वद्याओं की ये ऄच्धस्वाच्मनी होती हैं | साधक के च्नमाषण तत्व के अधार पर कौन सा वगष ईसे फिीभूत होगा,आसका संकेत ये १६ यच्क्षणी साधना काि में ही साधक को स्वप्न के मार्ध्यम से दे देती हैं| तथा साधक को और कया प्रयत्न करना चाच्हए आसके सूक्ष्म संकेत भी साधक को वे प्रदान करती हैं | आसी मंडि का दूसरा ईपमंडि या यन्र होता है पूणष सम्मोहन वशीकरण मंडि – साधना काि में बात मार अकषषण की ही नहीं होती है ऄच्पतु वे पूरी तरह साधक के वशीभूत होकर
पूणष ऄनुकूिता भी प्रदान करे ,ये भी ऄच्नवायष तथ्य होते हैं | साधक का व्यच्ित्व पूणष चुम्बकीय हो और वो आन शच्ियों के साहचयष से स्वयं भी देव वगष की और ऄग्रसर हो,मार मानव वगष ही नहीं ऄच्पतु ईसकी सम्मोहन शच्ि से ऄन्य वगष भी ईससे संपकष करने के च्िए अतुर हो,ये क्षमता प्रदान करना आसी मंडि के ऄंतगषत अता है | आस प्रकार आन तीन मंडिों का योग करने से यच्क्षणी ऄप्सरा सायुज्य षष्ट मंडि का च्नमाषण होता है| आस एक यन्र में ६ यंरों का समावेश होता है,जो आन्ही िमों से आस महामंडि में ऄंदकत होते हैं| प्रत्येक ईपमंडि की प्राणप्रच्तष्ठा,ऄच्भषेक,चैतन्यीकरण और ददच्िकरण ऄिग ऄिग सामग्री,वनस्पच्तयों और मंर से होती हैं,दकसी की प्राण-प्रच्तष्ठा वज्रमागष से होती है,तो दकसी की शाि पिच्त से,दकसी की मर्ध्य राच्र में तो दकसी के च्िए ब्रह्ममुहूतष का च्वधान है | और जब छहों यन्र पर दिया पूणष हो जाती है तब आनका योग करवाकर सायुज्यीकरण करवाया जाता है,तभी ये फिदायक होते हैं | दकसी भी यन्र को चेतना देना आतना सहज नहीं होता है,कयूंदक साधक को ये भिी भांच्त ज्ञात होना चाच्हए की आस यन्र का ऄंकन सृच्ष्ट िम से हो रहा है या संहार िम से,दकस पिच्त से आसका अवरण पूजन आत्यादद होगा अदद अदद | आस मंडि की प्राच्ि के बाद साधना काि में अवश्यक सामच्ग्रयों में अपको अपकी ऄभीष्ट यच्क्षणी ऄप्सरा का मूि यन्र,मािा और च्वधान ही िगता है,बाकी की गोपनीय दियाएूँ तो ईसका संयोग आस यन्र से करने से ही संपन्न होती है... तदुपरांत दकन मुद्राओं का प्रदशषन होना चाच्हए...दकन बातों का र्ध्यान अवश्यक है...कया ददनचयाष होनी चाच्हए अदद बाते ही अवश्यक होती हैं | आस एक यन्र के च्नमाषण पर िागत मूल्य ही बहुत अ जाता है,और जो भी भाइ बहन आसका च्नमाषण च्वधान समझना चाहे और स्वयं आसकी च्नमाषण च्वच्ध को प्रमाच्णकता से अत्मसात करना चाहे वो ऄपने बहुमूल्य समय में से मार १४ ददन और ईन ददनों के ७-७ घंटे देकर स्वयं ही आस यन्र का च्नमाषण कर सकते हैं...आस की प्राण प्रच्तष्ठा च्वच्ध और मन्रों तथा मुद्राओं को समझ सकते हैं तथा हेतु आसकी जो भी सामग्री िगेगी,वो अपको ही जुटानी है,ईससे हमारा कोइ िेना देना नहीं है,कयूंदक च्नमाषण काि में अप स्वयं ही आस कायष को सम्पाददत करें गे | हम आस कायष में सौभाग्यशािी रहे हैं की हमें ऄपने कइ भाइ बहनों का अर्षथक सहयोग च्मिा है और ईस सहयोग की वजह से हमारी कइ योजनाओं को गच्त भी च्मिी है,ईनकी च्नस्वाथषता हमें च्नरं तर कर करने की और प्रेररत करती है और आसी कारण एक साथ आनकी प्राण प्रच्तष्ठा अदद करने के कारण आनके च्नमाषण मूल्य में बहुत ऄंतर अ गया है| ईन सभी सहयोच्गयों के कारण ही अज पुनः आस कि कवच्ित च्वधान को मैं सबके सामने रखने का साहस कर रहा हूूँ|
जब अप सभी से जबिपुर में च्मिने का सौभाग्य च्मिेगा तो आस महा मंडि का कै से प्रयोग दकया जाता है,ईस हेतु हम च्वधान भी स्पष्ठ करें गे | ईपरोि यंरों का ऄिग ऄिग समय पर सदगुरुदेव ने प्रयोग कराया है,और ये ईसी महान परं परा से प्राि हुए हैं,आनमे से प्रत्येक यन्र को च्भन्न च्भन्न साधनाओं में भी प्रयोग दकया गया है,और प्रत्येक प्रयोग प्रभावी रहे है | ईन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा था की च्सिों के मर्ध्य ये यन्र ऄिग ऄिग नामों से भी प्रचच्ित रहे हैं | मैंने तो ऄपने ददि की बात कह दी..... ऄब वो अप तक पहुूँचती है या नहीं......ये तो अपके भावों और कािगच्त पर ही च्नभषर है..... “च्नच्खि प्रणाम” “जय सदगुरुदेव”
****ARIF**** ****NPRU**** Posted by Nikhil at 2:09 PM 3 comments: Labels: APSARA, SEMINAAR, TANTRA SIDDHI, YAKSHINI SADHNA
Tuesday, June 19, 2012 AMBUVACHI YOG AUR POORN TANTRA SIDDHI – GUPT NAVRATRI VIDHAAN
Kaalo Ashwo Vahti Saptrashmih Sahastraksho Ajaro Bhuriretah | Tamarohanti Kavyo Viyashichatstasay Chakraa Bhuvanaani Vishwa || It means that Kaal (Time) have seven ropes, it drives thousands of axis and is immortal and have ever-young body. It is running continuously on his path like mahabali ashv (Horse).And entire world, all evolved material and creatures are roaming being entangled in its circle and they are not able to cross it…..Only stable, learned ones and sadhak who is free from infatuation of mind can ride this horse of time and can go beyond it or accomplish it. Sadhak‟s life is something similar to it where he continuously put his efforts to get himself introduced to secrets of Kaal. But without right hard-work, continuous practice and authentic guidance, this will remain merely as imagination. But with it other things are to be kept in mind that sadhak should have the knowledge of correct moments of time. Therefore, it is necessary to know about how to use these moments, how to give completion to these processes. The seven sadhnas which we selected for June month, yantra related to it have reached all brothers and sisters. But we deliberately delayed the providing of the Vidhaan. Because merely giving procedures and Vidhaan cannot give completeness in this subject and nor the festival of sadhna can‟t be celebrated fully. Because all these preparation were incomplete. Remember that for this purpose there was shortage of one important sequence not only for these seven sadhnas but also thousands of sadhna process in future would have remained incomplete. Remember that sadhna of sadhak can‟t be complete without authentic sadhna article. For example if you understand that if I want to talk only then any of mobile phones will do…is it right?.....if you have to listen songs, then you have to select the phone having facility of F.M .But when we talk about internet surfing……mobile
banking….chatting….video calling….ticket booking…then….we need one phone which have all these facilities and multimedia facility. Now you will get authentic yantra every time, but for getting complete power, how you will get “Sarv Vidya Saadhy Kaamna Poorti Vijay Maala”??? Do you know that this time, time from 20 June to 28 June is amazing……this time is best for accomplishing various sadhnas. Presence of Guru Pushya constellation……that too on 21 date, days of Gupt Navraatri ……2-2 Sarvarth siddhi yog, first on 21 and second on 28…..and amazing Ambu Baachi yog……can any Muhurat better than this can be obtained……But if we accomplish the above rosary fully then for getting the success in all births and for the coming generations, this rosary being present as legacy will keep on providing accomplishment. This is not a normal rosary but describing its importance is very cumbersome task. But still I will describe following qualities….. Providing full cooperation in fulfillment of wish Beneficial in combining with Sammohan power To increase self confidence Saving from untimely deaths and bad incidents Providing the pleasure of children For getting desired business or job For getting desired life partner For getting respect and dignity For establishing full control over Kaam Element For providing luxury For increase in remembrance power Capable of augmenting concentration power and meditation capability For remedying tantra obstacle For attaining security chakra. For definite success in Tantra sadhnas For complete success in various sadhnas By this rosary, various sadhnas can be done and it is not necessary to immerse it rather after each sadhna there will be successive addition in its power. And wearing it provides good fortune. Do you think that something can be more important than its construction that too doing this all important activity by your own hands? Now the time has come that we not only have the knowledge about energizing of sadhna articles and process to instill consciousness in them but also we can do it ourselves. Side by side, we have to accomplish the Poorn Tantra Safalya Mantra also. We can utilize this precious time for progress of our life. And once we accomplish these two processes fully, then future sadhna life becomes completely safe from negativity of fear and failure. Vidhaan1. First of all clean the worship place with clean water and do the arrangements in such a way that we can face North. 2. Dress and aasan will be of red colour. 3. Spread clothes of red colour also on wooden plank (Baajot)
4. Time will be second phase of night i.e. from 10:00 P.M to 3:00 P.M. 5. Take bath and sit on the aasan after wearing clothes. 6. Worship items will primarily consist of kumkum mixed I kg rice , oil Deepak( whichever you use for worship), Bhoj Patra or piece of white paper, Rakt Pushp,6 lemon ,4 coconut, leaf of Paan (everyday new) and if you do not get it then supaari used for worship purpose,new knife,Kumkum,9 cardamom,27 clove,small-2 9 red colored handkerchiefs, water container made up of copper, sweet made up of milk or mishri (sugar-candy), any fruit. 7. The rosary you need to accomplish( Rudraksh, sfatik, Hakik (white, yellow or red),Munga ,Kamal gatta rosary will be better) 8. For chanting Guru Mantra, it is correct to use Guru Rosary. 9. In other word, separate rosaries have to be used for accomplishment and for chanting guru mantra. Pronounce “Om” 5 times in complete manner after establishing picture of Guru, Guru Yantra, Ganpati yantra or picture on Baajot. Do the poojan of Sadgurudev and Lord Ganpati in complete panchopchar way. Then chant at least 4 rosaries of Guru Mantra and 1 rosary of Tantrokt Ganpati Mantra. OM GANADHYAKSHO KRISHN PINGLAKSHAAY NAMAH || After that, pray to Sadgurudev and lord Ganpati for success in sadhna. Now make one maithun chakra by kumkum on floor in front of Baajot. Establish one small plate of cooper on Baajot in front of Guru Picture and also make yantra inside it. Now wash the rosary with clean water in different container and after wiping it, place it in that plate in which maithun chakra has been made and which is established on Baajot. Now pronounce dhayan mantra 5 times Ati Sulalit Veshaam Haasay Vaktraam Trinetraam, Jit Jald Sukaantim Patt Vastaam Prakashaam | Abhay Var Karadhyaam Ratn Bhushaabhi Bhavyaam, Sur Taru Taal Peethe Ratn Sinhasansthaam || Now the new knife which you have kept put an ornamental mark on it by kumkum. Pronounce below mantra 21 times and press it under aasan which is beneath your left feet. FREM FREM KROM KROM PASHUN GRIHAAN PHAT SWAHA And after that do the 3 rosaries of Maha mantra of Aadya Shakti Maa Kamakhya “Treem Treem Treem”. After that, write the Poorn Tantra Safalya mantra by kumkum on Bhoj patra. Establish it over the bindu in center of triangle written on floor. OM HREENG AING KLEENG KREEM HUM HUM KREEM KREEM PHAT
And now place one lemon in one of the angles of triangle. Again while chanting mantra, place second lemon inside second triangle. In this way place 6 lemons in six triangles. OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE STHAPYAAMI NAMAH || After that do the poojan of Bhoj Patra by kumkum-mixed rice while chanting below mantra. OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE AKSHATAAN STHAPYAAMI NAMAH || Now do the poojan of Bhoj Patra by kumkum while chanting below mantra OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE KUMKUM STHAPYAAMI NAMAH || Now offer flowers OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE PUSHPAM STHAPYAAMI NAMAH || Now do the poojan through dhoop-deep. OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE DHOOPAM DEEPAM STHAPYAAMI NAMAH || Now do the poojan by navidya and fruit OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE PHALAM-NAIVEDYAM STHAPYAAMI NAMAH || Now offer one coconut. OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE NAARIKEL STHAPYAAMI NAMAH || Now the rosary which need to be accomplished, take it out from that container and rotate it in your hand while pronouncing below mantra 11 times i.e. the way we use thumb and fingers in chanting, do it like that. Maale Maale Mahamaale Sarv Tatv Swrropini| Chatuvargstavyi nyast stsmame Sidhida Bhav || Now with that rosary, chant one round of below mantra OM HREEM SHREEM AKSHMAALAAYAI NAMAH || Now chant one round of below mantra from same rosary-
OM SARVMAALAA MANIMAALAA SIDDHI PRADAATRAYI SHAKTI RUPINYAI NAMAH || Now again establish that rosary in that container. And do its poojan by Rakt pushp, coconut, leaf of paan (everyday new) and if not possible then supaari used for worship, 1 cardamom, 3 clove and navidya. When you are offering sadhna article, then pronounce below mantra and chant “Samarpayaami Namah” in end of mantra after taking the name of article which you are offering. ExampleOM HREEM SHREEM AKSHMAALAAYAI NAMAH RAKTPUSHPAM SAMARPAAYIMI ,NAARIKEL SAMARPAAYIMI…..etc etc After that, accomplish chetna Kriya on that rosary by kumkum-mixed rice while chanting below mantra. This mantra has to be chanted for at least 20 minutes or 108 times and Akshat has to be offered while chanting. OM AING HREENG SHREENG AM AAM IM EEM RIM RRIM LRM LRIM EM AIM OM OUM AM AH KAM KHAM GAM GHAM INGAM CHAM CHHAM JAM JHAM INYAM TAM THAM DAM DHAM NNAM TAM THAM DAM DHAM NAM PAM PHAM BAM BHAM MAM YAM RAM LAM VAM SHAM SHHAMSAM HAM KSHAM || Now pray that rosary by below mantra and offer flowers on it. Om Tvam Maale Sarv Devanaam Sarv Siddhi Prada Mta | Tem Satyen Mem Siddhim Dehi Maatarnamoostute || Now chant 5 rounds of “Poorn Tantra Safalya Mantra”. And in the end, offer mantra Jap in feet of Sadgurudev. This sequence will go on up till 28 June…Remember lemon should be placed on first day only. Coconut should be established on first and last day. After the sequence is completed, put the rosary in that container and cover it with red cloth. On second day, it has to be covered with other cloth.in the same way on all 9 days; it has to be covered with new cloth…and the old one have to be kept separately. On 29 th June, all articles(except rosary and Bhoj patra),along with the cloth spread on Baajot should be tied and after praying to Sadgurudev for success, keep it in any place where nobody comes and wash the floor….Yes keep in mind that Maithun chakra will be made only on first day on floor and container. There is no need to make it daily. Immerse the Bhoj patra in clean water. I will only say that such fortune is attained by few ones that there is right opportunity and secret process are obtained. You all get full benefits from this fortunate festival, I pray to lotus feet of my Praanadhar. =====================================================
“कािो ऄश्वो वहच्त सिरच्श्म: सहस्राक्षो ऄजरो भुरररे ता: | तमारोहच्न्त कवयो च्वयच्श्चतस्तस्य चिा भुवनाच्न च्वश्वा ||”
ऄथाषत काि सात रच्स्सयों वािा और हजारों धुररयों को चिाने वािा तथा च्नजषरादेह से युि और ऄमर है | वह महाबिी ऄश्व के समान च्नरं तर ऄपने पथ पर दौि रहा है | और समस्त संसार,ईत्पन्न पदाथष तथा जीव अदद ईसके आसी चि में फं सकर घूम रहे तथा ईसे पार नहीं कर पा रहे हैं...मार च्स्थरप्रज्ञ,ज्ञानी और मन की असच्ि से मुि साधक ही आस काि रुपी ऄश्व की सवारी कर आससे परे जा सकते हैं या साध सकते हैं | कु छ ऐसा ही तो है एक साधक का जीवन,जहाूँ वो िगातार प्रयास करता रहता है,काि के रहस्यों से पररच्चत होने का | दकन्तु ईच्चत पररश्रम,सतत ऄभ्यास और प्रामाच्णक मागषदशषन के ऐसा होना मार कपोि कल्पना ही कहिाती है | दकन्तु आसके साथ साथ ये भी र्ध्यान रखना अवश्यक है की साधक को काि के ईपयुि क्षणों का ज्ञान भी हो, ऄतः दकन क्षणों का कै सा प्रयोग करना है,ईनमे दकन दियाओं को पूणषता दी जा सकती है,ये जानकारी भी होना अवश्यक है | हमने च्जन सात साधनाओं का चयन जून माह के च्िए दकया था | ईनसे सम्बंच्धत यन्र तो सभी भाइ बहनों के पास पंहुच ही गए हैं,दकन्तु हमने जान बूझ कर साधना च्वधान देने में च्विम्ब दकया था | कयूंदक मार प्रदिया और च्वधान पंहुचा देने से ही आस च्वषय को ना तो पूणषता च्मि सकती थी और ना ही सफिता का पूरी तरह से ईत्सव मनाया जा सकता था | कयूंदक ये तैयारी ही ऄपूणष थी | याद रच्खये आस हेतु एक बहुत महत्वपूणष िम का ऄभाव था और मार आन सात साधनाओं के च्िए ही नहीं ऄच्पतु भच्वष्य में दकये जाने वािे हजारों साधनात्मक च्वधान ऄपूणष ही रहते | याद रच्खये साधक की साधना प्रामाच्णक साधना सामग्री के बगैर पूणष नहीं हो सकती है | ईदाहरण के च्िए अप ये समच्झए की यदद मुझे मार बात करनी है तो कोइ भी मोबाइि फोन चिेगा नहीं बच्ल्क दौिेगा..... ठीक है ना... ऄब गाने भी सुनना हो तो दफर ऐसा फोन चुनना पिेगा, च्जसमे एफ.एम. की सुच्वधा हो दकन्तु जब बात ईसमे आन्टरनेट सर्फफग की हो...मोबाआि बैंककग की हो...चेट की हो....वीच्डयो कासिग की हो...रटकट बुककग की हो...तब.....तब..हमें एक ऐसा फोन चाच्हए ना,च्जसमे ये सारी सुच्वधाए और मल्टीमीच्डया की सुच्वधा भी हो....| ऄब अपके पास प्रामाच्णक यन्र तो हर बार पंहुच जायेगा,दकन्तु अप पूणष शच्ि प्राच्ि के च्िए “सवष च्वद्या सार्ध्य कामना पूती च्वजय मािा” कहाूँ से िाओगे ???? कया अप जानते हैं की आस बार २० जून से २८ जून तक का काि ऄद्भुत है...च्वच्वध साधनाओं को च्सि करने के च्िए पूणष सफिता प्रदायक है | गुरु पुष्य नक्षर की ईपच्स्थच्त...वो भी २१ तारीख को,गुि नवराच्र के ददवस ....२-२ सवाषथष च्सच्ि योग,पहिा २१ को और दूसरा २७ जून को...और ऄच्िय्तीय ऄम्बुबाची योग...कया आससे ऄद्भुत मुहूतष साधना के च्िए प्राि हो सकता था| हम मार एक साधना ही आस गुि नवरारी में कर पाएंगे...दकन्तु यदद हम ईपरोि मािा को पूणष च्सि कर िे तो जन्म जन्मांतर की साधनाओं में सफिता हेतु और अने वािी पीढ़ी के च्िए भी ये मािा एक धरोहर के रूप में ईपच्स्थत रहकर च्सच्ि प्रदान करती
रहेगी | ये कोइ सामान्य मािा नहीं है,ऄच्पतु आसके महातम्य का वणषन करना दुष्कर है,दफर भी च्नम्न च्वशेषताओं का मैं ईल्िेख करना चाहूूँगा –
१. २. ३. ४.
मनोकामना पूती के च्िए पूणष सहयोगी | सम्मोहन शच्ि से युि करने में िाभकारी | अत्मच्वश्वास वृच्िकारक | ऄकािमृत्यु और दुघाषत से बचाने वािी | संतान सुख देने में समथष | मनोवांच्छत व्यवसाय या नौकरी की प्राच्ि हेतु | मनोवांच्छत जीवन साथी प्राच्ि हेतु | सम्मान और प्रच्तष्ठा की प्राच्ि हेतु | काम तत्व पर पूणष च्नयंरणकारी | ऐश्वयष प्रदारी | स्मरण शच्ि में वृच्ि कारक | एकाग्रता शच्ि और र्ध्यान क्षमता की ऄभी वृच्ि करने में सक्षम | तंर बाधा च्नवारण हेतु | सुरक्षा चि प्राच्ि हेतु | तंर साधनाओं में च्नच्श्चत सफिता दायक | च्वच्वध साधनाओं में पूणष सफिता प्रद | आस एक ही मािा से च्वच्वध साधनाएं की जा सकती है,और ईसका च्वसजषन ऄच्नवायष नहीं है,ऄच्पतु प्रत्येक साधना के बाद आसकी शच्ि में ईत्तरोत्तर वृच्ि होती जायेगी | और आसे धारण करना ही पूणष सौभाग्यदायक है | कया अपको िगता है की आसके च्नमाषण से महत्वपूणष कु छ भी हो सकता है वो भी स्वयं के हाथों ही आतनी महत्वपूणष दिया संपन्न करने से | कािानुसार ऄब समय अ गया है की सामच्ग्रयों की प्रच्तष्ठा और ईनमे चेतना का प्रवाह करने की दिया का ना च्सफष हमें ज्ञान हो ऄच्पतु,ईसे हम स्वयं ही संपाददत भी कर सके | साथ ही पूणष तंर साफल्य मंर को भी आसी काि में हमें ऄंगीकार कर च्सि करना है | हम आस बहुमूल्य समय को ऄपने जीवनोत्थान हेतु ईपयोग कर सकते हैं | और एक बार जब हम आन दोनों दियाओं को पूणष रूपेण च्सि कर िेते हैं,तो अगे का साधना जीवन भय और ऄसफिता की नकारात्मकता से सदैव सुरच्क्षत रहता है | च्वधान – सवषप्रथम पूजन स्थि को भिी भांच्त स्वछछ जि से साफ़ कर िे,और ईत्तर ददशा की और मुख कर सके ,ऐसे स्थान का चयन कर िे | वस्त्र व असन िाि रं ग के होंगे | सामने बाजोट पर भी िाि रं ग का वस्त्र च्बछा दें | समय राच्र का दूसरा प्रहर ऄथाषत १० बजे से ३ बजे के मर्ध्य का होगा |
५. स्नान कर वस्त्र धारण कर ऄपने असन पर बैठ जाएूँ | ६. पूजन सामग्री में मुख्यतः कुं कु म च्मच्श्रत १ दकिो ऄक्षत (साबुत चावि),तेि का दीपक (जो भी अप पूजन के च्िए प्रयुि करते हों),भोज पर या सफ़े द कागज़ का टुकिा,रि पुष्प,६ च्नम्बू,४ नाररयि,पान का पत्ता(रोज नया) और नहीं च्मिे तो पूजा की सुपारी,नया चाकू ,कुं कु म,९ आिायची,२७ िोंग,छोटे छोटे ९ िाि वस्त्र के रुमाि जैसे टुकिे, ताम्बे का जि पार,दूध की च्मठाइ या च्मश्री,कोइ भी फि | ७. च्जस मािा को अप च्सि करना चाहते हैं(रुद्राक्ष,स्फरटक,हकीक सफ़े द,पीिा या िाि,मूंगा,कमिगट्टे की मािा का प्रयोग करना बेहतर है) | ८. गुरु मंर जप करने के च्िए ऄपनी गुरु मािा का प्रयोग दकया जाना ईच्चत है | ९. ऄथाषत च्सि करने के च्िए ऄिग और गुरु मंर जप के च्िए ऄिग मािा का प्रयोग करना है | ये बात बार बार बताना ईच्चत नहीं होगा | बाजोट पर गुरु च्चर,गुरु यन्र,गणपच्त,यन्र या च्चर की स्थापना कर,”ॎ” का पूणष रूप से ५ बार ईच्चारण करें तथा सदगुरुदेव और भगवान गणपच्त का पूणष पंचोपचार च्वच्ध से पूजन करें | तथा गुरु मंर की कम से कम ४ मािा संपन्न करें और १ मािा तांरोि गणपच्त मंर की संपन्न करे | “ॎ गणार्ध्यक्षो कृ ष्ण सपग्िाक्षाय नमः ||” OM GANADHYAKSHO KRISHN PINGLAKSHAAY NAMAH || तत्पश्चात सदगुरुदेव और भगवान गणपच्त से साधना च्वधान में सफिता के च्िए प्राथषना करे | ऄब कुं कु म से बाजोट के सामने भूच्म पर एक मैथन ु चि का च्नमाषण करे | और ताम्बे की एक छोटी सी थािी बाजोट पर भी गुरु च्चर के सामने स्थाच्पत करें और ईसमे भी मैथुन चि का ऄंकन कर िें | ऄब मािा को दकसी ऄिग पार में शुि जि से स्नान करवाकर और पोंछ कर ईस थािी में स्थाच्पत कर दें च्जस में मैथुन चि ऄंदकत है और जो बाजोट पर स्थाच्पत है | ऄब र्ध्यानमंर का ५ बार ईच्चारण करे – ऄच्त सुिच्ित वेशां हास्य वकराम् च्रनेराम, च्जत जल्द सुकाच्न्तम् पट्ट वस्त्रां प्रकाशं | ऄभय वर कराढयां रत्न भूषाच्भ भव्यां, सुर तरु ताि पीठे रत्न ससहासनस्थाम् || ऄब जो नया चाकू अपने रखा हुअ है ईस पर कुं कु म का च्तिक िगाकर च्नम्न मंर का २१ बार ईच्चारण कर ईसे ऄपने बांये पैर के असन के नीचे दबा िेंफ्रें फ्रें िों िों पशुन् गृहाण हुं फट् स्वाहा || FREM FREM KROM KROM PASHUN GRIHAAN PHAT SWAHA
और आसके बाद गुरु मािा से ही अद्य शच्ि माूँ कामाख्या के “रीं रीं रीं” महा मंर की ३ मािा संपन्न करे | तदुपरांत भोजपर पर पूणष तंर साफल्य मंर कुं कु म से च्िख कर भूच्म पर च्िखे च्रकोण के मर्ध्य जो सबदु बना है ईस पर स्थाच्पत कर दे | ॎ ह्रीं ऐं किीं िीं हुं हुं िीं िीं फट् || OM HREENG AING KLEENG KREEM HUM HUM KREEM KREEM PHAT और ऄब एक नीम्बू को च्रकोण के एक कोण में च्नम्न मंर बोिते हुए स्थाच्पत कर दें | दफर मंर बोिते हुए दूसरा नीम्बू दूसरे च्रभुज में स्थाच्पत कर दें | आस प्रकार ६ च्नम्बुओं को ६ च्रकोण में स्थाच्पत कर दें | ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते स्थापयाच्म नमः || OM AIM HREEM HASOUH TRIPURE AMRITARNAVVAASINI SHIVE SHIVANANYARUPINYAI TE STHAPYAAMI NAMAH || आसके बाद ईस भोजपर का पूजन च्नम्न मंर बोिते हुए कुं कु म च्मच्श्रत ऄक्षत िारा करे | ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते ऄक्षतान समपषयामी नमः || ऄब कुं कु म िारा ईस भोजपर का पूजन च्नम्न मंर बोिते हुए करे – ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते कुं कु म समपषयामी नमः || ऄब पुष्प ऄपषण करे – ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते पुष्पं समपषयामी नमः || ऄब धुप-दीप िारा पूजन करे – ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते धूपं दीपं दशषयाच्म नमः || ऄब नैवेद्य या फि िारा पूजन करे – ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते फिं-नैवद्य े म समपषयामी नमः || ऄब १ नाररयि को ऄर्षपत करे – ॎ ऐं ह्रीं ह्सौ: च्रपुरे ऄमृताणषववाच्सनी च्शवे च्शवानन्यरुच्पन्यै ते नाररके ि समपषयामी नमः || ऄब च्जस मािा को च्सि करना था ईसे पार में से ईठाकर और हाथ में िेकर च्नम्न मंर का ११ बार ईच्चारण करते हुए घुमाते जाये ऄथाषत जैसे मािा करते हुए हम ईूँ गच्ियों और ऄंगूठे का प्रयोग करते हैं,वैसे ही करें | | ग
भ ||
ऄब ईसी मािा से १ मािा मंरजप च्नम्न मंर का करे – ॐ
||
OM HREEM SHREEM AKSHMAALAAYAI NAMAH || तत्पश्चात च्नम्न मंर का जप १ मािा ईसी मािा से करे ॐ
रुच्पण्यै
||
OM SARVMAALAA MANIMAALAA SIDDHI PRADAATRAYI SHAKTI RUPINYAI NAMAH || ऄब ईस मािा को वापस ईसी पार में स्थाच्पत कर दें.,और ईसका पूजन ऄब मािा का पूजन रि पुष्प,नाररयि,पान का पत्ता(रोज नया) और नहीं च्मिे तो पूजा की सुपारी, १ आिायची,३ िौंग और नैवेद्य से करे | जब अप सामग्री ऄर्षपत कर रहे हों तब च्नम्न मंर का ईच्चारण करते हुए करे और मंर के ऄंत में च्जस सामग्री को अप ऄर्षपत कर रहे हों,ईस सामग्री का नाम िेकर समपषयामी नमः कहे | ईदाहरण – ॐ
रिपुष्पं समपषयामी ,नाररके ि समपषयामी .....अदद अदद
आसके बाद ईसी मािा पर कुं कु म च्मच्श्रत ऄक्षत च्नम्न मंर बोिते हुए चेतना दिया संपन्न करे ,ये मंर कम से कम २० च्मनट या १०८ बार बोिते हुए ऄक्षत के दाने ऄर्षपत करते जाना है |
ॎ ऐं ह्रीं श्रीं ऄं अं आं ईं ऊम् ऊम् िृं िृं एं ऐं ओं औं ऄं ऄ: कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञ* टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं िं वं शं षं सं हं क्षं || OM AING HREENG SHREENG AM AAM IM EEM RIM RRIM LRM LRIM EM AIM OM OUM AM AH KAM KHAM GAM GHAM INGAM CHAM CHHAM JAM JHAM INYAM TAM THAM DAM DHAM NNAM TAM THAM DAM DHAM NAM PAM PHAM BAM BHAM MAM YAM RAM LAM VAM SHAM SHHAMSAM HAM KSHAM || आसके बाद मािा को च्नम्न मंर से प्रणाम करें और ईन पर पुष्प ऄर्षपत करे – ॐ
| s
||
आसके बाद आसी मािा से पूणष तंर साफल्य मंर की ५ मािा जप करे | और ऄंत में सद्गुरु चरणों में मंर जप ऄर्षपत कर दें | यही िम ऄंच्तम ददवस तक ऄथाषत २८ जून तक रहेगा...याद रच्खये नीम्बू मार पहिे ददन स्थाच्पत करने हैं,नाररयि पहिे और ऄंच्तम ददवस स्थाच्पत करना है | िम समाि होने पर मािा को ईसी पार में रख दे और िाि वस्त्र के टु किे से ढांक दें,दूसरे ददन दुसरे वस्र्त्र से,आसी प्रकार ९ ददनों तक च्नत्य नए वस्त्र से ढांकना है...और पुराने वािे को ऄिग रख देना है |२९ जून को सभी सामग्री(मािा और भोजपर को छोिकर ) बाजोट पर पर च्बछे वस्त्र में बांधकर सदगुरुदेव से पूणष सफिता की प्राथषना करते हुए दकसी वीरान स्थान में रख दे
और फशष को धो या पोछ िें...हाूँ याद रच्खये मैथन ु चि मार पहिे ददन ही भूच्म और पार में बनेगा,ईसे च्नत्य बनाने की जरुरत नहीं है | भोजपर को स्वछछ जि में च्वसर्षजत कर दे | मैं मार यही कहूूँगा की ऐसा सौभाग्य दकसी दकसी का ही होता है की सही ऄवसर हो और गुह्यतम दियाओं की प्राच्ि हो,अप सभी को आस सौभाग्यशािी पवष का पूणष िाभ प्राि हो,यही प्राथषना और कामना है मेरी ऄपने प्राणाधार के श्री चरणों में | SIDDH KUNJIKA AUR PAARAD VIGYAN RAHASYA
तंरमागष में गच्तशीि होने वािे प्रत्येक पच्थक को "च्सद्र्ध्कुंच्जका" के रहस्य का ज्ञान होना अवश्यक है | जीवन के च्वच्वध पक्षों में आनके ऄथष च्भन्न च्भन्न हो सकते हैं,दफर वो चाहे अर्षथक ईन्नच्त का क्षेर हो,अर्ध्याच्त्मक ईन्नच्त का क्षेर हो या दफर अरोग्य की दृच्ष्ट से आसकी भूच्मका का बोध हो..... सदगुरुदेव की ज्ञान दृच्ष्ट ने आस ऄद्भुत मंर के ईन रहस्यों को ऄनावृत दकया था जो जन सामान्य के पहुूँच से बहुत दूर या ऄगम्य है....ईन्ही से प्राि एक ऐसा रहस्य च्जसमे आस मंर के गभष में छु पे ईन ममों का ज्ञान भी समाच्हत था जो रस च्वज्ञानं की दुरुहता को सहज ही हि दकया जा सकता है....बस ईसी और एक कदम .....
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Labels: PAARAD, TANTRA SIDDHI
Blows and counter-blows have become part and parcel of life. Now times are gone when people used to fight giving you open challenge. Now harming you in hidden manner have become the only motive. There are many categories of people mentioned in shastras…….there are many among these also which want to disturb others without any reason……Harming anybody for sake of money only or for land. Or being jealous with your progress, creating various kinds of conspiracy against you. Sadhak belonging to the field of tantra very well knows how to deal with such problems. But there is wide gap between knowing it and doing it.Stambhan is one of karmas under Shat Karmas (6 process of tantra).Every one of us are well introduced to the form of prime deity of Stambhan Goddess Balgamukhi .If the person does not have any solution in mind, he can take the procedural knowledge of this Vidya and use it for his own security. Definitely he will benefit from it. But it is very hard to find the person capable of providing this knowledge and the person who can use it appropriately…..and the problem is that how to take time out for doing such type of prayog. Everyone is hard-pressed for time; this fact is known to everybody. There are both type of process in field of tantra: those consuming more time and those taking less time. Generally it is said that first of all less timeconsuming process should be paid attention and if the results are not as per our need then the attention should shift to high-order sadhna .This is correct too since where there is need of needle then why to use sword. And in the base of Tantra Mantra, there is one important part or science called Yantra Science…..even a small portion of it has not been revealed so far……This science has been full of so many amazing hidden and hard to believe secrets. The various prayogs given by us have been the matter of appreciation among various saints, tantra acharyas and various high-order tantra
scriptures. Hundreds have done them and taken benefits from it.This need of the hour is that if we have time, why not we do this prayog which have been so accurate and tested. These easiest processes have their own significance. Make this yantra.It can be done on morning of any auspicious day. For making yantra, one can use the stick of pomegranate or any other appropriate stick which is available. Mixture of Kumkum and Gorochan has to be used as ink for writing yantra. Yellow dress and yellow aasan will be more appropriate. Take resolution (Sankalp) in the beginning of prayog. Keep in mind that write the name of the person in middle of yantra who is troubling you. After making yantra i.e. after writing the name of person, this yantra has to be kept in clay container for full one day and dhoop, deep and navidya has to be offered. On the next day, place one clay plate above the clay container (in which yantra was kept) and tie this container nicely with any cloth. Keep it in any far-off place where nobody comes. After doing this, that person is not able to frame any harmful plan against you. After this do Sadgurudev poojan and chant Guru Mantra as per your capacity and pray for your success. ===================================== घात प्रच्तघात तो जीवन का खासकर अज के , तो एक ऄंग वह भी अवश्यक बन गयी हैं वह समय कहीं कोसों दूर चिा गया जब िोग सामने चुनौती दे कर ििना पसंद करते थे . ऄब तो गुि रूप से अपको नुकसान पहुचना ही एक मार मकसद रह गया हैं, यूूँ तो शास्त्रों मे िोगों की ऄनेक प्रकार की श्रेच्णयाूँ ईल्िेच्खत हैं . ईनमे से कु छ ये भी हैं की ऄकारण ही दूसरे को परे शां करने वािे ...दकसी की जमीन पर या दकसी को च्सफष कु छ धन के च्िए नुकसान पहुचने वािे . या अपकी ईन्नच्त से जि कर अपके च्िए तरह तरह के षड्यंर का च्नमाषण करने वािे . तंर क्षेर का साधक आन सभी समस्यायों को कै से च्नपटा जाये यह भिी भांच्त जानता हैं पर जानने और करने मे कोसो की दुरी होती हैं ,षट्कमष मे से एक कमष स्तम्भंन्न भी हैं
और स्तम्भनं की प्रमुख देवी भगवती बल्गामुखी के स्वरुप से कौन नही पररच्चत होगा , च्जसे कोइ भी ईपाय ना सूझे तो च्वच्धवत ज्ञान िे कर आस च्वद्या का प्रयोग ऄपने रक्षाथष करें च्नश्चय ही ईसे िाभ होगा . पर न तो आस च्वद्या का ज्ञान देने वािे और न ही ईच्चत प्रकार से प्रयोग करने वािे अज प्राि हैं .और् सबसे बिी समस्या यह हैं की आन प्रयोगों को करने के च्िए कै से समय च्नकािा जाए .अज समय की दकतनी कमी हैं यह तो हम सभी ऄछछी तरह से जानते हैं ही . साधना क्षेर मे दोनों तरह के च्वधान हैं िंबे समय वािे और कम समय वािे भी ..साधारणतः यह कहा जाता हैं की सबसे पहिे कम समय वािे च्वधानों की तरफ गंभीरता से देखा जाना चाच्हये और जब पररणाम ईतने ऄनुकूि ना हो च्जतनी अवशयकता हैं तब बृहद साधना पर र्ध्यान दे यह ईच्चत भी है कयोंदक जहाूँ सुइ का काम हो वहां तिवार की कया ईपयोच्गता .. और तंर मंर के अधारमे एक महत्वपूणष ऄंग या च्वज्ञानं हैं यन्र च्वज्ञानं ..ऄभी भी आसका एक ऄंश मार भी सामने नही अया हैं . एक से एक ऄद्भुत गोपनीय और दाूँतों तिे ऄंगि ु ी दवा िेने वािे रहस्यों से ओत प्रोत रहा हैं यह च्वज्ञानं. हमारे िारा ऄनेक प्रयोग जो ददए जाते रहे हैं वह ऄनेको मच्नच्शयों ,तंर अचायों और ईच्च तांच्रक ग्रंथो मे बहुत प्रशंच्षत रहे हैं और सैकडो ने ईनके प्रयोग दकये हैं और िाभ भी ईठाया हैं , अवश्यकता बस आस बात की हैं की यदद समय हो तो कयों न आन प्रयोगों की करके भी देखा जाये जो ऄनुभत ू और सटीक रहे हैं . आन सरितम च्वधानों का ऄपना एक महत्त्व हैं.आस यन्र का च्नमाषण करें . दकसी भी शुभ ददन प्रातः काि मे कर सकते हैं . यन्र च्नमाषण के च्िए ऄनार या जो भी ईच्चत िकिी प्राि हो ईसका ईपयोग कर सकते हैं . यन्र िेखन मे स्याही च्सफष कु कु म और गोरोचन को च्मिाकर बना ना हैं . वस्त्र पीिे और असन का रं ग पीिा हो तो कहीं जयादा ईच्चत होगा . प्रयोग के शुरुअत मे संकल्प िे . यह र्ध्यान रखे की यन्र के बीच मे ईस व्यच्ि का नाम च्िखे च्जसने अपको परे शां कर् रखा हो यन्र च्नमाषण मतिब ईस व्यच्ि का नाम च्िखने के बाद पुरे एक ददन आस यंर को एक च्मटटी के वतषन मे रखना हैं और धूप दीप और नैवद्य े ऄर्षपत करना हैं .
बाद मे मतिब दूसरे ददन आसके उपर (च्मटटी के वतषन) च्जसमे यह यन्र च्नमाषण के बाद रखा हैं दकसी ऄन्य च्मटटी की प्िेट ईसके उपर रख दे और ऄछछी तरह से आस पार कोदकसी कपडे से बाूँध कर .दकसी दूर च्नजषन स्थान पर रख दे . ऐसा करने से वह व्यच्ि दफर अपके च्िए कोइ हाच्न का रक योजना नही बना पाता हैं . आसके बाद सदगुरुदेव जी का पूजन और गुरू मंर का जप यथाशच्ि करे औरसफिता के च्िए प्राथषना करें ...
****NPRU**** Posted by Nikhil at 3:29 AM No comments: Labels: KAARYA SIDDHI SADHNA, LAGHU PRAYOG, TANTRA SIDDHI, YANTRA RAHASYA
Monday, June 4, 2012 DURLABH PRAYOGON KE SARAL RAHASYA - 2
और
****NPRU**** Posted by Nikhil at 11:28 PM 1 comment: Labels: TANTRA SIDDHI, TANTRA VIDEO CLIPS
DURLABH PRAYOGON KE SARAL RAHASYA-1
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****NPRU**** Posted by Nikhil at 11:17 PM 1 comment: Labels: TANTRA SIDDHI, TANTRA VIDEO CLIPS
Friday, June 1, 2012 TANTRA GYAN SHRINKHLA -2 (LING RAHASYA AUR MANAH SHAKTI JAAGRAN VIDHAAN-1 ) –२( र और : र -१ )
In Last Article, we discussed about what are those seven levels of mind whose bhedan can be done and after that we can unify conscious and subconscious state of mind and attain the state of super-conscious mind (Maha Chetan).For this we definitely needs Shivling, we can plan regarding Shivling considering our faculty of reasoning and capacity, but this is essential. As I told you earlier, there are three types of Shivling1. Sthul Ling (Visible Ling) 2. Sookshma Ling (Subtle Ling) 3. Para Ling This order of attainment of universal powers, when completed by Yogi, then in its root, complete combination of these three lings takes place. Remember that Mind is the master of infinite powers, but they are in dormant state and if we unify those two states of mind then definitely, attained Maha Chetan mind entrust the authority of its infinite powers to us. The padhati which I am telling you, it will automatically keep on introducing you to the experiences. Just you have to do it with full dedication and besides this, do the process as it has been told here. Above, I have given you information about three lings which are known as Isht Ling Praan Ling Bhaav Ling (Para Brahamandeey Ling)
by the sadhak. These three lings are related to three important states of mind, upon unifying these three lings, three states of mind also get unified and all the seven levels also become one. Till now, we have only heard of two states of mindConscious Mind (Outer Mind) Sub-Conscious Mind (Inner Mind) But there is one state also in middle of them which is known by sadhak by the name of Chetan-Avchetan Man (Conscious-Subconscious mind).In this state, activation of power takes place but there is shortage of consciousness due to which sadhak cannot attain full mastery and sometimes, deviating from the path, due to the ego of power, he degrades. Therefore, after attaining Maha Chetna state, understanding the infinite secrets will require the use of outer symbols. It has been said also “Chandrama Manso Jaatah” meaning moon is the indicator of mind. The speed of mind is infinite but it is full of instability (playful) and parad is also very instable and full of infinite powers. Therefore, when making use of full process, parad is combined in accordance with Kramik Vidhaan (sequential procedure) then instability of mind vanishes. But it does not mean that those who cannot attain parad Shivling can’t do this process.it is not like this. Their speed and progress may remain slow but activation and bhedan of chetna and Manah Shakti (mind-power) will definitely take place. The three lings which I have mentioned above, their qualities are also similar with those three statesIsht Ling – Sakal ling Praan Ling –Sakal Nishkal Ling Bhaav Ling (Para Brahamandeey Ling) –Nishkal or Para Ling
Now let’s see their situation at those seven level, these three important levels will be First, Fourth and Seventh. If you see it carefully then situation of Aadi (start).Madhya (middle and ant (end) is formed whose complete union lead to completion of journey towards completeness. I have told you earlier also that these seven levels contain different abilities meaning as we cross one level and reach the other level, automatically we get acquainted with the knowledge hidden in first level or first layer. But acquiring knowledge and mastering it are altogether different things. Therefore, for mastering it, complete Kramik Vidhaan needs to be done. 1. Chetan –Isht Ling 2. Smriti 3. Avchetna 4. Sarjana – Praan Ling 5. Jeewanaat 6. GarbhSuvistrita (Antasyog) 7. Brahmand Chetna – Bhaav Ling Meaning that as we complete the journey from first to the fourth level, union between the Isht Ling and Praan ling happens and as we reach the seventh level, these three lings become one. And then the three lines of great triangle present in our Muladhaar which represents Mind, Praan and soul get activated and thereby activates the triangle also. And the center of triangle i.e. bindu which symbolizes Shiva provides everything i.e. “Bhogasch Mokshasch Karsth Ev Ch”| The journey of Aatm Ling (Bhaav Ling) is possible only when we have attained Maha Chetan mind. Then only we can see Great Triangle (Maha Trikon) and Aatm Ling.But before this, we have to make use of the symbol of outer consciousness Isht ling. On any Monday, wake up in Brahma Muhurat and after taking bath, sit in siddhaasan facing towards North. One should wear yellow, red or white dhoti or saree. Aasan should be of blanket and on it aasan should be woolen or silky. Remember that color of aasan should be same as that
of your dress. After spreading the cloth of color mentioned above, on Baajot in front of you, establish Isht Ling in copper container. Now do the panchopchar poojan of your Guru and Ganpati using Dainik Vidhi. Then pronounce “Om” 11 times. Now sitting erectly and stably, pronounce “Hum” beej 5 minutes and you have to pronounce it with intensity. Mental chanting or chanting it in lower voice should not be done rather medium voice should be used. Besides this ,contract your anus gate with intensity but keep in mind that this contraction should be in sync with the sound of “Hum” otherwise our preliminary process will become errorenous.Vibration in naval starts takes place through this activity and also the union of Praan Vayu and Apaan Vayu. After this, uses Yoni Mudra i.e. close both your ears with thumbs of your hands, both your eyes with both forefingers, both your nostrils with middle fingers and both your upper and lower lips through the union of both ring fingers and little fingers. Before this, using Kaaki Mudra, pull breath inside using mouth and then only close your mouth. Now concentrate on your Trikoot (third eyes) where vermillion mark (on fore head) is applied by ladies. After some time, you are able to see light .Now remove your fingers and again do the “Hum” beej process for 5 minutes. Then again do the Yoni Mudra process meaning that you have to repeat this whole process 2 times. Now establish Shivling in your left hand because Isht ling is established or can be established on physical body and while touching it with middle and ring finger of right hand, do the Upaanshu jap (chanting mantra in such a way that it is audible only to us) the mantra given below for 30 minutes. “ओम ह्रीं श्रीं मेधा प्रज्ञा प्रभा च्वद्या धी धृच्त स्मृच्त बुच्ि सच्हताय च्वद्येश्वरी श्रीं ह्रीं ओम” “Om Hreem Shreem Medha Pragya Prabha Vidya Dhee Dhriti Smriti Buddhi Sahitaay Vidhyeshwari Shreem Hreem Om”
As you go more deep into your chanting, you will automatically start experiencing divinity and heat. Mind will become extremely peaceful .This process has to be done for 7 days. In seven day you will start experiencing yourself something which in your view, you have not experienced earlier. Now you are able to experience the hidden truth easily and…. To Be Continued “Nikhil Pranam” ========================================
च्पछिे िेख में हमने यही चचाष की थी की मन के वो सात स्तर कौन से हैं,च्जनका भेदन कर हम मन की चेतन और ऄचेतन ऄवस्था का अपस में योग कराकर महाचेतन मन की प्राच्ि कर सकते हैं| आसके च्िए च्शवसिग की ऄच्नवायषता होती ही है,हम ऄपने ऄपने च्ववेक और सामथ्याषनुसार च्शवसिग की योजना बना सकते हैं,दकन्तु है ये ऄच्नवायष,कयूंदक जैसा की मैंने बताया ही था की च्शवसिग के तीन प्रकार होते हैं – १. स्थूि सिग २. सूक्ष्म सिग ३. परा सिग ब्रह्मांडीय शच्ियों की प्राच्ि का ये िम जब एक योगी पूणष करता है तो ईसके मूि में आन्ही च्रच्वध सिगों का पूणष संयोग होता है | याद रच्खये मन ऄनंत शच्ियों का स्वामी है,दकन्तु वे सुिावस्था में हैं और यदद हम मन की ईन दोनों ऄवस्थाओं का अपस में योग करवा दें तो च्नश्चय ही प्राि महाचेतन मन ऄपनी ऄनंत शच्ियों का स्वाच्मत्व अपको सौंप देता है | जो पिच्त मैं अपको बता रही हूूँ,ये ऄनुभूच्तयों से स्वतः ही अपका साक्षात्कार कराते जायेगी,बस पूणष च्नष्ठां के साथ अप आसे संपन्न करे और साथ ही जैसा िम बताया गया है ईसे वैसे का वैसा ही संपन्न करें | उपर मैंने अपको तीन सिगों की जानकारी दी है च्जन्हें साधक – आष्टसिग प्राणसिग भावसिग (परा ब्रह्मांडीय सिग)
के नाम से जानते हैं, ये तीनों सिग मन की तीन महत्वपूणष ऄवस्थाओं से सम्बंच्धत हैं,च्जनका अपस में योग होते ही मन की तीनों ऄवस्थाओं का अपस में योग हो जाता है और सातों स्तर अपस में एकाकार हो जाते हैं | वैसे हम ने ऄभी तक च्सफष मन की दो ही ऄवस्थाएं सुनी हैं – चेतन मन (बाह्य मन) ऄवचेतन मन (ऄंतर मन ) दकन्तु आनके मर्ध्य की एक और ऄवस्था भी है च्जसे साधक चेतनऄवचेतन मन के नाम से जानते हैं | आस ऄवस्था मेर शच्ियों का जागरण तो हो जाता है दकन्तु ईनमे चैतन्यता का ऄभाव रहता है,च्जसके फिस्वरूप साधक पूणष स्वाच्मत्व नहीं प्राि कर पाता है और कभी कभी मागष से भ्रष्ट होकर शच्ि के मद में पच्तत भी हो जाता है | ऄतः महाचेतनावस्था की प्राच्ि कर ऄनंत रहस्यों को समझने के च्िए बाह्य प्रतीक की अवश्यकता पिेगी ही | कहा भी गया है की “चंद्रमा मनसो जात:” ऄथाषत चंद्रमा मन का प्रतीक है | और मन की गच्त ऄथाह दकन्तु चंचिता से भरी हुयी है और पारद भी पूणष चंचिता और ऄथाह शच्ियों से युि है,ऄतः जब िच्मक च्वधान ऄनुसार पारद का पूणष च्वच्ध के साथ न्बंधन कर ददया जाये तो मन की चंचिता भी समाि हो जाती है | दकन्तु आसका ये ऄथष भी नहीं है की जो पारद सिग की प्राच्ि नहीं कर सकते हैं वो ये च्वधान संपन्न ही नहीं कर सकते,ऐसा नहीं है,हाूँ ईनकी गच्त और प्रगच्त थोिी मंद रहेगी दकन्तु चेतना और मन: शच्ि का जागरण और भेदन ऄवश्य होगा | उपर मैंने च्जन तीन सिगों का वणषन दकया है, ईनके गुण भी मन की ईन्ही तीन मुख्यावस्था से साम्य रखती है – आष्टसिग – सकि सिग प्राणसिग – सकि च्नष्कि सिग भावसिग (परा ब्रह्मांडीय सिग) – च्नष्कि ऄथवा परा सिग ऄब जरा हम आनकी च्स्थच्त मन के ईन ७ स्तर पर भी देख िेते हैं, ये तीन महत्वपूणष स्तर होंगे पहिा,चौथा और सातवाूँ | यदद अप र्ध्यान से देखग ें े तो अदद,मर्ध्य और ऄंत की ही च्स्थच्त तो बन रही है ना च्जनके पूणष योग से पूणषत्व तक की यारा पूरी होती है |मैंने पहिे भी यही कहा है की ये सातों स्तर च्वच्भन्न क्षमताओं से युि हैं ऄथाषत जैसे ही हम एक स्तर को िांघ कर दुसरे तक जाते हैं स्वतः ही हमें पहिे स्तर या पहिी परत में बंद रहस्य का ज्ञान हो जाता है | दकन्तु ज्ञान होना और स्वाच्मत्व पाना ये दो ऄिग ऄिग बातें हैं, ऄतः स्वाच्मत्व के च्िए तो पूणष िच्मक च्वधान को संपन्न करना ही होगा |
१. चेतन – आष्टसिग २. स्मृच्त ३. ऄवचेतना ४. सजषना – प्राणसिग ५. जीवनात ६. गभषसुच्वस्तृता (ऄन्तश्योग) ७. ब्रह्माण्ड चेतना – भावसिग ऄथाषत जैसे ही हम पहिे से चौथे िम तक की यारा पूरी करते हैं वैसे ही आष्टसिग और प्राणसिग का योग हो जाता है, और जैसे ही हम सातवें स्तर तक पहुचते हैं वैसे ही ये तीनों सिग एकरूप हो जाते हैं | और तब हमारे मूिाधार में च्स्थत महा च्रकोण की तीनों रे खाएं जो मन,
और
क
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भ क क ऄथाषत ”भ ग
क कर
कर उ कक
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भ क भ क
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अत्मसिग(भावसिग) तक की यारा तभी संभव हो पाती है जब हमने महाचेतन मन की प्राच्ि कर िी हो,तभी हमें ईस महा च्रकोण और ईस अत्मसिग के दशषन हो पाते हैं | िेदकन ईसके पूवष हमें बाह्य चेतना के प्रतीक आष्टसिग का प्रयोग करना ही पिेगा | दकसी भी सोमवार को ब्रह्ममुहूतष में ईठकर स्नान अदद से च्नवृत होकर पीिी,िाि या सफ़े द धोती या साडी पहनकर ईत्तर ददशा की और मुख कर च्सिासन में बैठ जाना है | असन कम्बि का हो और ईस पर कोइ भी रे शमी या उनी असन हो,याद रच्खये स्वयं के वस्त्रों के रं ग का ही असन प्रयोग दकया जाना है | सामने बाजोट पर ईपरोि ऄनुसार ही वस्त्र च्बछाकर एक ताम्र पार में आष्टसिग की स्थापना कर दे | ऄब दैच्नक च्वच्ध से स्वगुरु व गणपच्त का पंचोपचार पूजन करे ,तत्पश्चात “ओ ” का ११ बार ईच्चारण करे | ऄब च्स्थर और सीधे बैठकर “ ” बीज का ५ च्मनट तक ईच्चारण करे तथा साथ ही,यहाूँ ईच्चारण तीव्रता के साथ करना है मन ही मन या हिके स्वर में नहीं बोिना है ऄच्पतु मर्ध्यम स्वर का प्रयोग करना है,साथ ही गुदा िार को तीव्रता से च्सकोिते रहे,दकन्तु याद रच्खये ये संकुचन “हुं” की र्ध्वच्न के साथ ही होना चाच्हये,ऄन्यथा प्रारं च्भक दिया ही गित हो जायेगी | आस दिया से नाच्भ में स्पंदन प्रारं भ हो जाता है और प्राण वायु का ऄपान वायु से योग भी |
तत्पश्चात योच्नमुद्रा का प्रयोग करे ऄथाषत हाथ के दोनों ऄंगूठे से दोनों कान,दोनों तजषनी से दोनों अूँखें,दोनों मर्ध्यमा ऄंगुिी से नाक के दूनो च्छद्र और दोनों ऄनाच्मका और दोनों कच्नष्ठका के योग से उपर और नीचे के होंठो को बंद कर दे | आसके पहिे काकी मुद्रा का प्रयोग कर मुख के िारा श्वांस खीच िे,तब जाकर मुख बंद करें | ऄब ऄपना र्ध्यान ऄपने च्रकू ट ऄथाषत जहाूँ सबदी िगायी जाती है वहाूँ पर कें दद्रत करें | थोिे ही समय बाद हल्का सा प्रकाश ददखना प्रारं भ हो जाता है | ऄब उूँगिी हटाकर दफर से “हुं” बीज वािी दिया ५ च्मनट करे ,दफर से योच्नमुद्रा वािा िम करे ,मतिब २ बार ये िम दोहराना है | आसके बाद बाएं हाथ में च्शवसिग स्थाच्पत करे कयूंदक आष्टसिग को स्थूि देह पर धारण दकया जाता है या दकया जा सकता है,और दाच्हने हाथ की मर्ध्यमा और ऄनाच्मका उूँगिी का स्पशष करा कर – “ओ
भ
र
ओ ”
मंर का ३० च्मनट तक ईपांशु जप करे ,जैसे जैसे अपके जप में तल्िीनता अएगी वैसे वैसे अपको स्वतः ही ईसकी ददव्यता और ईष्णता का ऄनुभव होता जाएगा,मन ऄथाह शांच्त में डू बता जायेगा,ये िम ७ ददनों तक करना है | सात ददनों में ही अप स्वयं ही ये ऄनुभव करिेंगे की कछछ ऐसा ऄप ऄनुभव करे िगे हैं ऄपने दृच्ष्टकोण में जो पहिे ऄनुभव नहीं दकया है ऄब अपकी दृच्ष्ट छु पे हए सत्य को असानी से ऄनुभव कर रही हैं और........... िमशः “
ख
”
****RAJNI NIKHIL**** ****NPRU**** Posted by Nikhil at 2:36 AM 1 comment: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Tuesday, May 22, 2012 Shakti rahashyam (secret of power) –
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साधना जगत की ऄद्भुत शच्ियों की खोज में ना जाने दकन दकन साधकों से मेरी मुिाकात हुयी....पर ये भी एक सबसे बिा सत्य रहा है की,च्जस ददन से सदगुरुदेव ने मेरा हाथ ऄपने हाथों में पकिा था.... बस प्रच्त क्षण ऄभय और च्नच्श्चन्तता ही ऄनुभव होती थी..... हर पर ऄनोखा सुकून मानों अत्मा को महसूस होता रहता था. च्जस भी च्जज्ञासा की मन के जि में ईत्पच्त्त होती...ईसी क्षण जैसे वो हौिे से ईसे शांत कर के ये ऄहसास दे देते दक “ऄरे तू तो मेरा ही है,आतना व्यच्थत कयूूँ होता है.... याद रख जब भी तेरे मन को कोइ प्रश्न ऄपनी चुभन से व्यच्थत करे गी....तब तब मैं ईसका समाधान ईसी मन से च्नचोि कर च्नकाि कर तुझे दे दूग ूँ ा....ईसी मन से जहाूँ मैं च्चरकाि से सदा सदा के च्िए ऄपने प्रत्येक च्शष्य के ह्रदय में च्वराजमान हूूँ.और ऐसा अजन्म होगा और प्रत्येक च्शष्य के च्िए होगा...यह च्नच्खि वाणी है” बस तबसे कोइ सचता ही नहीं रही मन में . जब भी मेरे मन के सरोवर में कही से च्जज्ञासा का पत्थर च्गरता और ईसमे िहरे ईत्पन्न होती या मन दक शांच्त भंग होती...तब तब सदगुरुदेव ऄपनी ऄमृतवाणी से या तो स्वयं या दफर ईनका कोइ ज्ञानांश सन्यासी या गृहस्थ च्शष्य अगे बढ़ कर ईन तरं च्गत िहरों को ऄपने ईत्तरों से शांत कर देता .और एक बात मैं अपको जरुर बता देना चाहता हूूँ दक जब भी दकसी ज्ञान दक चाह में मैं कही गया तो ईस साधक का व्यव्हार मेरे च्िए पूणष ऄनुकूि रहा है और ईसने ये ऄवश्य कर स्वीकार दक ईसे पहिे ही बता ददया गया था दक यहाूँ तुम्हारा अना सदगुरुदेव ने पूवषच्नयोच्जत दकया हुअ था .और ऐसा प्रत्येक च्शष्य के च्िए ईन्होंने च्नधाषररत दकया हुअ है...दकसे कब देना है ,कया देना है....ये पहिे से ईन्होंने तय कर ददया है . यारा के ईसी काि में मेरी मुिाकात सदगुरुदेव के पूणष शाि च्शष्य कौि मच्ण च्शवयोगरयांनद से मुिाकात हुयी . सदगुरुदेव दक अज्ञा से ईन्होंने सवर्ध्यवाच्सनी के परम पावन पीठ को ऄपनी साधनाओं के च्िए चुना था . वो ईसी पवषत दक एक ऄत्यच्धक गुि गुफा में
अज भी साधनारत हैं . और ईसी गुफा में मेरी ईनसे मुिाकात हुयी और दशषनों का सौभाग्य प्राि हुअ . थोिे ही समय बाद मैंने मानो प्रश्नों दक बौछार कर दी थी ईन पर ,और वो ईतने ही शांत भाव से मंद च्स्मत होकर मुझे ईत्तर देते रहे और रहस्यों दक नवीन परतों को ईधेिते रहे .(ईन्होंने सैकडो प्रश्नों के ईत्तर ददए थे,परन्तु आस च्वशेषांक में च्वषय वस्तु पर अधाररत जो प्रश्न हैं ,मैं मार ईनमे से कु छ को ही यहाूँ दे रहा हूूँ...च्जससे च्वषय को समझना ऄपेक्षाकृ त असान रहेगा) शच्ि कया है,आसके दकतने रूप होते हैं ??? सरि शब्दों में यही कहा जा सकता है दक सम्पूणष ब्रम्हांड मार च्जसकी कल्पना से साकार हो गया हो और च्जसके प्रभाव से प्रकृ च्त सृजन, पािन और संहार कमष में जुटी हुयी हो ,ईसी च्चन्मयी परात्पर ज्योच्त को शच्ि कहा जाता है . ये दकसी भी रूप में हो सकती है. आसका प्रभाव सभी पर होता है दफर चाहे वो चेतन हो या ऄचेतन.प्रकट रूप में हम च्जन्हें शच्ि देने का ईजाष देने का या दफर बि देने का स्रोत मानते हो,वे सभी भी आसी परा शच्ि से ही शच्ि प्राि करते हैं .ये परा शच्ि स्थूि, सूक्ष्म या दकसी भी रूप में हो सकती है . ये सभी प्राच्णयों में च्वद्यमान है , आसी के कारण हम सृजन तथा ऄन्य कमष सम्पाददत कर पाते हैं. और च्वचारों की ईत्पच्त्त का मूि भी यही शच्ि है . आसके दकतने प्रकार होते हैं ? भावगत्ता के अधार पर गुणों की तीन ही च्स्थच्तयां होती हैंसत् रज तम ठीक आन्ही गुणों के अधार पर तीन दियाएूँ सृजन ,पोषण और च्वर्ध्वंश होती है . और आन दियाओं को शच्ि के तीन अधारभूत शच्िमान(च्जनके िारा शच्ि ऄपने कायों को सम्पाददत करती हैं) संपन्न करते हैं . याद रखने योग्य तथ्य ये है की च्जस प्रकार गुणों के तीन प्रकार होते हैं, ठीक ईसी प्रकार आन गुणों की ऄच्धष्ठारी तीन मूि ऄच्धष्ठारी शच्ियां होती हैं. महाकािी – तम महािक्ष्मी – रज महासरस्वती – सत् उपर जब बात मैंने शच्िमानों की कही तो ईसका ऄथष यही होता है की शच्ि तथा शच्िमानों में कोइ भेद नहीं होता है , ये एक दुसरे से प्रथक नहीं दकये जा सकते है, शच्िमान आन्ही शच्ियों की प्रेरणा से ऄपने ऄपने कायों का सञ्चािन करते हैं. जैसे महाकाि च्शव संहार का, च्वष्णु पािन का और ब्रम्हा सृच्ष्ट के सृजन का. एक प्रकार से ये समझ िो की सृच्ष्ट का कोइ भी कायष या कण च्नरथषक नहीं है. प्रत्येक दिया या व्याि प्रत्येक कण पूणष शच्ि युि होता है. शच्ि की व्याख्या के िम में ये भी समझना ऄत्यच्धक ईपयोगी होगा की मानव ऄपना च्वकास कर देव स्तर तक पहुच सकता है और ऄपने ऄभीष्ट को प्राि करता हुअ ऄपने ऄच्स्तत्व
को साथषक कर सकता है. और ये च्स्थच्तयां तभी सार्ध्य हो पाती है जब अप पररष्कृ त रूप से च्नम्न सात शच्ियों को सदा सवषदा के च्िए पूणष संकच्ल्पत होकर ऄपना व्यच्ित्व बना िेते हो. और यदद पूणषता के साथ च्नम्न सात शच्ियां अपको पररष्कृ त ऄवस्था में प्राि हो गयी तो कु छ भी ऄसार्ध्य नहीं रह जाता है . प्रज्ञा शच्ि चेतना शच्ि वाक् शच्ि दिया शच्ि च्वचार शच्ि आछछा शच्ि संकल्प शच्ि ये ईपरोि तीनों मूि शच्ियों के ही पररवर्षतत रूप है. कया आनके ऄच्तररि कोइ और शच्ि नहीं है च्जसकी ऄच्नवायषता मानव जीवन में प्रकृ च्त िारा च्नयोच्जत की गयी हो ???? है कयों नहीं.... काम शच्ि की ऄच्नवायषता सवोपरर है . जीवन में पररपूणषता काम भाव से ही अती है. सृजन के मूि में यही भाव च्वद्यमान है तभी तो वेद भी काम को देवता कहते हैं . काम का मूि गुण अकषषण है ... जो च्विान होते हैं वे काम को आछछा शच्ि का ही पयाषय मानते हैं . तंर तो यहाूँ तक कहता है की सृच्ष्ट में च्जतने भी प्रकार की ऐषणायें हैं,ईनके मूि में यही काम शच्ि ही है. आस च्िए ये सम्पूणष च्वश्व ईसी परमशच्ि की आछछा या काम भाव का ही च्वस्तार कहिाती है. जीवन के सारे चैत ,सामाच्जक और वैषच्यक च्नयमों के मूि में काम भाव ही होता है. परमात्मा से िेकर अत्मा तक के च्जतने भी सम्बन्ध होते हैं वे सब अकषषण,काम और मैथुन(योग) से ही युि होते हैं. दकसी भी प्रकार की पररच्स्थच्त में दकसी भी प्रकार के सम्भोग में दफर वो चाहे अच्त्मक हो या बाह्यगत, वो अददशच्ि ही काम शच्ि के रूप में पररणत होती है कायष करती है. भिा ये कै से माना जाये की सभी कायों के पीछे यही कामशच्ि कायष करती है ... सृजन तो समझ में अता है की आसी काम भाव से ईत्प्रेररत है,परन्तु भिा संहार से आस काम भाव का कया िेना देना ??? आसे ऐसा समझा जा सकता है की यदद अप दकसी के अकषषण में बांध जाते हैं और अगे जाकर प्रेम करने िगते हैं तब भी तो अप एक समय बाद ईसकी ऄपने से प्रथकता सहन नहीं कर पाते हैं तब अप कया करते हैं... ईसे अत्म एकाकार करने की कोच्शश करते हैं . ऐसे में या तो अप ईसमे च्विीन होने की चेष्ठा करते हैं या ईसे ऄपने में च्मिाने की. भूख समाि करने की अपकी िािसा या आछछा भोजन के प्रच्त अपको अकर्षषत करती है... ऄब ऐसे में ईस भोजन का जो थोिी देर पहिे तक ऄपना ऄिग ऄच्स्तत्व था... अपके भोजन के प्रच्त अकषषण के कारण,ईस
भोजन की सत्ता का ही ऄंत कर देता है. ये च्नयम प्रत्येक प्राणी पर समानान्तर रूप से कायष करता है. परमात्मा से ही ऄंश प्राि कर अत्मा मनुष्य शरीर धारण करती है आस िम में मनुष्य जन्म िेता है, जीवन के सुखों का ईपभोग करता है और अच्खर में एक समय बाद मृत्यु ईसका वरण कर ईस अत्मा को पुनः परमात्मा की तरफ गच्तशीि कर देती है तो कया आसके मूि में परमात्मा की काम शच्ि कायष नहीं करती है जो की वो ऄपने ऄंश का च्विीनीकरण ऄपने में कर के संपन्न करता है. कया यहाूँ पर सृजन हुअ ..... नहीं ना..... िेदकन िौदकक दृच्ष्ट से ये संहार भी सृजन की तरफ एक कदम ही तो है. अप दकसी से जब प्रेम करने िगते हैं तो तीव्र अकषषण के कारण ईससे सम्भोग करने की तीव्र िािसा को अप कया कहेंगे ..... कया वो मार आच्न्द्रय िोिुपता है ,नहीं... ईसके मूि में भी अपकी ऄपने प्रेम या ऄभीष्ट से प्रथक ना रह पाने की चरम िािसा ही तो है जो की ईसके ऄच्स्तत्व का योग ऄपने ऄच्स्तत्व से करवाने के च्िए ईत्पन्न होती है. तब वह दो हो ही नहीं सकते ..... रह जाते हैं तो मार एक ही. ये ऄिग बात है की एक साधक ,एक च्शष्य ,एक योगी आस भेद को अत्म एकाकार िम ऄपना कर दूर करता है और सामान्य ऄवस्था में सामान्य मनुष्य शरीर का योग कराकर. परन्तु तंर शरीर से उपर ईठ कर अत्म योग की बात करता है आसी काम शच्ि का सहयोग िेकर. आस प्रकार ये काम शच्ि ईसी अददशच्ि का ही तो रूप होती है च्जसके वशीभूत होकर वो तम,रज और सत् गुणों का पािन च्भन्न च्भन्न रूप में करती है. तांच्रक दृच्ष्ट से तम,रज और सत् गुणों की ऄच्धष्ठारी शच्ि महाकािी,महािक्ष्मी और महा सरस्वती को ही कयूूँ माना जाता है,कया ऐसा नहीं हो सकता है की महािक्ष्मी रज के बजाय तम गुणों का प्रच्तच्नच्धत्व करे ??? नहीं ऐसा नहीं हो सकता है... सृच्ष्ट के अरं भ में जब सृजन भी नहीं होता है,पािन भी नहीं होता है.तब ऐसे में मार पूणष ऄन्धकार ही होता है ...जब मार महाच्नद्रा की ईपच्स्थच्त ही ऄपने पूणष साकार या च्नराकार रूप में होती है.और ये तम तत्व ही महाकाि है...च्जसके ऄधीनस्थ काि भी सदा भयभीत रहता है . एक बात ईल्िेखनीय है की शरीर का च्वसजषन काि के िारा सम्पाददत होता है और अत्मा पर काि का कोइ प्रभाव नहीं पिता है, अत्मा सदैव काि से परे रहकर मार महाकाि िारा ही च्तरोच्हत होती है. ईसी महाकाि की शच्ि है महाकािी, जो संहार भाव की प्रणेता है . ये शच्ि प्रियच्नशा के मर्ध्य काि से सम्बन्ध रखती है ,आसी की ईपच्स्थच्त से ये संसार च्शववत बनकर साकार है , जैसे ही आनका िोप होता है ,च्शव को शव बनने में एक क्षण नहीं िगता है,चूूँदक ये प्रियच्नशा ऄथाषत राच्र से सम्बंच्धत हैं और है आनका सम्बन्ध मर्ध्य काि से तब ऐसे में ये जहा तम को दशाषती हैं वही ये संिांत रूप में ऄपने ऄंदर रज ऄथाषत पािन-पोषण और सत् ऄथाषत सृजन के गुणों को भी रखती हैं. परन्तु महािक्ष्मी तम भाव से प्रेररत नहीं है और न ही महा सरस्वती ही रज से सम्बंच्धत हैं. आसच्िए संहार का गुण तो कदाच्प आनमे नहीं हो सकता है. हाूँ ये ऄिग बात है की महाच्वद्या रूप में ये जब ऄपना योग तम से कर िेती हैं तो ये संहार भी कर सकती हैं.
अपने महाच्वद्याओं की बात कही है ,तो कया सारी महाच्वद्याएं आन्ही तीन मूि शच्ियों का रूप होती हैं,कया पंचमहाभूत तत्वों से आनका कोइ िेना देना नहीं होता है ???? नहीं ऐसा नहीं है ,जब हम अदद शच्ि की बात करते हैं तो ईसका ऄथष बहुत च्वराट होता है,अदद शच्ि से मेरा मतिब राजराजेश्वरी षोडशी च्रपुर सुद ं रीसे है, ईन्ही के तीन गुणों की ऄच्धष्ठारी वे तीनों महा शच्ि हैं. वैसे श्रीकु ि की मूि महा च्वद्या षोडशी च्रपुर सुन्दरी को माना जाता है. परन्तु ईनका मंर और यन्र महाच्वद्या रूप में च्भन्न ही होता है ,और जब वे अदद पराशच्ि राज राजेश्वरी होती हैं तो ईनका मूि यन्र श्री चि या श्री यंर ही होता है जो की आस ब्रम्हांडीय रूप का ज्याच्मतीय रूप प्रदर्षशत करता है,ऐसा रूप जो ऄकल्पनीय शच्ियों को प्रदर्षशत करता हो. रही बात पंचमहाभूतों की तो प्रत्येक तत्व २ महाच्वद्याओं का प्रच्तच्नच्ध है ,और आस प्रकार ५x २=१० होते हैं, आसमें भी र्ध्यान रखने वािी बात ये है की प्रत्येक तत्व के दो गुण होते हैं . ईष्ण शीत आसी प्रकार प्रत्येक तत्व की दो महाच्वद्याओं में से एक महाच्वद्या ईग्र भाव से युि होती हैं और दूसरी शांत प्रकृ च्त से युि होंगी. च्जस प्रकार ईस पराशच्ि की शच्ि से ही सूयष और चन्द्र दोनों प्रकाच्शत होते हैं, और सूयष जहा ईष्णता देता है वहीं चंद्रमा शीतिता देता है.िेदकन दकतने अश्चयष की बात है की सूयष की ईष्णता जहाूँ मानव में ताप,तेज और तीव्रता िाती है, अत्मकें दद्रत होने के च्िए हमें प्रेररत करती है,वही, चंद्रमा की शीतिता और प्रकाश हमारे मन को अह्िाददत और काम भाव की तीव्रता से युि कर देती है. जीवन के प्रत्येक कमष की ऄच्धष्ठारी कोइ ना कोइ च्वशेष शच्ि होती है.तंर में च्जतनी भी दियाएूँ होती हैं वे सभी दकसी खास शच्ि के ऄंतगषत ही अती हैं,यही कारण है की बहुधा िोगो को जब आन कमों की ऄच्धष्ठारी शच्ि का ही ज्ञान नहीं होता है तो भिा ईनके िारा दकये गए तांच्रक कमष कै से सफि हो सकते हैं . ऄज्ञानतावश दकया गया कै सा भी सरि से सरि प्रयोग आसी कारण सफि नहीं हो पाता है . आसच्िए यदद दिया से सम्बंच्धत शच्ि का ज्ञान हो जाये तो ज्यादा ईच्चत होता है.... जैसे – वशीकरण – वाणी स्तम्भन – रमा च्विेषण – ज्येष्ठा ईच्चाटन – दुगाष मारण – चंडी या कािी के ऄंतगषत अते हैं . आसी प्रकार तंर और ईससे जुडी प्रत्येक दिया का यदद च्वच्धवत प्रयोग दकया जाये तो दिया से सम्बन्धी शच्ि पूणष च्सच्ि देती ही है.
भिा वो कै से संभव है ?? कयूदं क महाच्वद्या आत्यादद िम तो ऄत्यंत जरटि कहे गए हैं कोइ च्बरिा ही आसमें सफिता पा सकता है, ठीक आसी प्रकार मैंने ये भी सुना है की दुगाष सिशती एक तांच्रक ग्रन्थ है , और मैंने ये भी सुना है की यदद सही तरीके से आसका पथ या प्रयोग दकया जाये तो शच्ि के प्रत्यक्ष दशषन संभव होते ही हैं, और वह कौन सी मूि दिया है जो सरि और सहज भाव से जीवन के चतुर्षवध पुरुषाथों की प्राच्ि करवाती ही है ?? देखो ये तो सही है की महाच्वद्या को पूणषता के साथ च्सि कर िेना एक ऄिग बात है परन्तु , बहुत बार साधक ऄपने जीवन की सामान्य से परे शाच्नयों या कायों के च्िए सीधे ही आन महाच्वद्याओं का प्रयोग करने िगता है , जो की ईच्चत नहीं कहा जा सकता है ,कयूंदक ऐसी च्स्थच्त के च्िए तो अप च्जस महाच्वद्या का मन्र जप करते हैं हैं या च्जसे वषों से कर रहे हैं , यदद मार ईनके मन्र का च्वखंडन रहस्य समझ कर मन्र के ईस भाग का ही प्रयोग दकया जाये तब भी अप को समबच्न्धत समस्या का च्नच्श्चत समाधान च्मिेगा ही. जैसे मान िीच्जए कोइ साधक भगवती तारा की ईपासना कर रहा है और ईसके पररवार के दकसी सदस्य को स्वास्थ्य सम्बन्धी जरटि बीमारी हो गयी हो .... तब आसके च्िए मूि मंर की दीघष साधना के बजाय ईस मन्र या स्तुच्त के एक च्वशेष भाग का प्रयोग भी ऄनुकूिता ददिा देता है .... ‘तारां तार-परां देवीं तारके श्वर-पूच्जतां, ताररणीं भव पाथोधेरुग्रतारां भजाम्यहम् . स्त्रीं ह्रीं हूं फट् ’ - मन्र से जि को ऄच्भमंच्रत कर ईससे च्नत्य रोगी का ऄच्भषेक करे , तो ईसके रोगों की समाच्ि होती है. ‘स्त्रीं रीं ह्रीं’ मन्र से १००८ बार ऄच्भमंच्रत कर ऄक्षत फे कने से रूठी हुयी प्रेच्मका या पत्नी वाच्पस अती है . ‘हंसः ॎ ह्रीं स्त्रीं हूं हंसः’ मन्र से ऄच्भमंच्रत काजि का च्तिक िगाने से कायाषिय,व्यवसाय और ऄन्य िोगो को साधक मोच्हत करता ही है. वस्तुतः मूि साधना से च्सच्ि पाने में बहुत सी बातों का र्ध्यान रखना पिता है . च्जनके सहयोग से ही ईस महाच्वद्या साधना में च्सच्ि च्मिती है. यथाशरीर स्थापन आत्यादद. और एक च्नच्श्चत जीवन चयाष को भी ऄपनाना पिता है .तभी सफिता प्राच्ि होती है ,ऄन्यथा ये साधनाए तो साधक का तेि च्नचोि देती हैं ,आतनी च्वपरीतता बन जाती है साधक के जीवन में की वो आन साधनाओं को च्सि करने का संकल्प ही मर्ध्य में छोि देता है . रही बात दुगाष सिशती की तो हाूँ ,च्नश्चय ही ये सांगोपांग तंर का बेजोड ग्रन्थ है और आसके मार्ध्यम से देवी के समच्न्वत और च्भन्न च्भन्न तीनों रूप के दशषन दकये जा सकते हैं,बस ईनके च्िए च्नच्श्चत च्वच्ध का प्रयोग करना पिता है . यदद आसके च्िए भगवती राज राजेश्वरी की साधना कर िी जाये तो सोने पर सुहागे वािी बात हो जाती है . एक बात कभी नहीं भूिनी चाच्हए की मन्र ,ईस मन्र की आष्ट शच्ि और साधक ये तीनों साधना काि में एकात्म ही होते हैं ,यदद साधक आसमें ऄंतर िाता है तो ईसे सफिता नहीं च्मि सकती है . प्रत्येक साधना में सद्गुरु की प्रसन्नता अपको सफिता ददिाती है , आसच्िए हमें सदा सवषदा ऐसे कृ त्य ही करना चाच्हए , च्जससे ईन्हें प्रसन्नता का ऄनुभव हो. जब एक सामान्य व्यच्ि भी प्रसन्न होकर
हमरे कायों को सरि कर देता है तब ऐसे में ब्रम्हांडीय च्वराटता च्िए हुए सदगुरुदेव के प्रसन्नता हमें कया कु छ प्रदान नहीं कर सकती है. शच्ि प्राच्ि की मूि साधनाएं कौन कौन सी हैं ,च्जन्हें संपन्न कर साधक सक्षमता को प्राि कर ऄभीष्ट को पा िेता है ??? शच्ि की दकसी भी रूप में साधना की जा सकती है, दफर वो चाहे पुरुष रूप में हो या स्त्री रूप में ,ईससे कोइ फकष नहीं पिता कयूंदक सिग बदि जाने से शच्ि का मूि स्रोत नहीं बदि जाता है.आसच्िए मन में ये भाव कभी नहीं रखना चाच्हए की ये पुरुष देव की साधना है तो आससे शच्ि की प्राच्ि नहीं होगी या ये स्त्री देवता की साधना है तो आससे ज्यादा शच्ि की प्राच्ि होगी. चाहे वो पुरुष देवता हो या स्त्री देवता, ऐसा नहीं है बहुत कम िोग होंगे च्जन्हें ये पता होगा कीशुि ऄथाषत काम शच्ि की सबदु साधना की मूि शच्ि काि भैरव होते हैं,च्जनके तांच्रक िम को ऄपनाकर कोइ भी ऄद्भुत यौवन को प्राि कर सकता है और पा सकता है पूणष स्त्रीत्व या पूणष पौरूषत्व . और काि भैरव की शच्ि की प्राच्ि का ईनका मूि स्रोत वो अदद शच्ि ही तो होगी,च्जसे च्नच्खि शच्ि या राज राजेश्वरी कहा जाता है. सैकडो साधनाओं में से कु छ सरि मगर तीक्ष्ण प्रभाव से युि साधनाएं च्नम्न ऄनुसार हैं ,जो की साधक के जीवन को ऄपनी जगमगाहट से भर देती हैं और ईसकी ऄपूणषता को पूणषता में पररवर्षतत कर देती हैं. ==================================================== In the search of amaizing powers of sadhana world, I met with so many sadhaka…but this is the biggest fact that the day when sadgurudev hold my hand in his hand… at the very same moment I started feeling no worries and state of Insouciance at every moment… every moment it was a peace which my soul was feeling. Any doubt arise in the mind…at the very next moment he used to vanish it by this way “ you are mine, why are you so much of Distressed…remember, whenever any of the question will trouble you, at that time I will give you by extracting your same mind, from the mind which is the source of my place in the heart of the disciples for and from infinite time duration, this will continue for whole life and will happen for every disciple this are my words.” From that moment there has been no place of worry in the mind. Whenever any curiosity comes to the mind and when it affects on the peace of mind… at those very specific moments sadgurudev himself or any of his loving sanyashi or gruhasth disciple came forward and established the peace of mind by their valuable answers. Here I would like to mention specifically that whenever I went to anywhere with a will to have knowledge at that time the behavior of those specific sadhaka have remained completely positive for me and they had always accepted that they already had information about my arrival and the meeting has been designed already by the sadgurudev. And he have designed this for his every disciple…who and where to give and what to give, he had decided already from long.
In that time period of my travel I met Sadgurudev‟s purn Shakt disciple Kaul Mani Shivayogatrayanand. With order of sadgurudev he selected very sacred vindhyavasini peetha for his sadhana. He is still in his sadhana in a secret cave of the same mountain. And I met him in the same cave and got blessing of his glimpse. In very short span of time I started shooting my questions, and he too kept on answering my all questions with peace and smiles on the face & kept on revealing secrets. (He answered hundreds of questions, but in this special issue I am giving few of them which are related to the subject which can make subject easy to understand.) What is the shakti (power), how many form does it have? In simple words whose imagination have caused complete universe and with whose effect nature keeps on works in creating, rearing and vanishing that only infinite light is called as Shakti. It could be in any form. It leaves effect on all rather living or non living. In tangibles, those who are classified as power supplier, energy supplier or force supplier those all receives power from this supreme power. This supreme power could be in tangible, non tangible or in any other form. It stays inside all beings, with only which we can accomplish task of creation and others. And base for the thoughts to be created is the same power. How many types are there? On the base of nature, it has three conditionsSat Raj Tam Holding the base of particular nature there is existence of three main processes of creation, rear and vanishes. And this processes are done by three base of shaktis, Shaktimaan ( by whose medium shakti does the processes) . it is the point to be remembered that the way there are three main type of nature, the same way there is three main controlling power goddesses for those nature. Mahakaali – tam Mahalakshmi – raj
Mahasawashwati – sat What I said above about the shaktimaana that does mean that there is no difference between shakti and Shaktimaana, they are inseparables, shaktimaan accomplish their tasks with inspiration of these shaki only. Like mahakaal in vanishing, Vishnu in rearing and creation of bramha. This way, understand this that any of the process or particle is not insignificant. Every process and particle is full of shakti. In the definitional description of shakti, it is also an essential point to understand that humans can reach to the stages of god by processes of development and can make his existence meaningful by accomplish his life desires. And these conditions could only be accomplished when you make these seven main powers your personality completely by being full determined and devoted. And if you accomplished this main power in their complete form then there would remain nothing impossible. Pragya shakti Chetana shakti Vaak shakti Kriya shakti Vichar shakti Ichha shakti Sankalp shakti These are modulated forms of the main three powers only. Apart from these, is there any other shakti which is pre-designed by nature for the requirement of human life? Yes why not… requirement of Kamashakti is paramount. The fullness of the life comes throught Kaama Bhav only. In the base of creation this nature only stays for which even Vedas have classified it under Gods. The main property of kama is attraction… Scholars always understand Kama as synonymous of Ichha shakti. Tantra says at extent that every type of thing which are liable do have the
base as kama Shakti. For this only, this whole universe is called as ichha or kaama bhav‟s expansion. All regulations of life subjected to socialism and subjects do have base as kama bhav. From the supreme soul to the normal soul all the relations exists, all those are accompanied by attraction, kama and maithoona (sex) {more specifically „Yoga‟}. In any situation in any type of sambhoga either internal or external, the task is done by the supreme Shakti by emerging a form of kama shakti. How does it could be understandable that behind every task there is work of kama shakti…creation could be understand that it is derived with kama bhav but what does it have relation with vanishing or destruction? This could be understand that in case that if you are in attraction with someone and further you start loving then too after a particular time duration you cannot tolerate what do you do at that time…you again try to merge your soul. In that condition either you try to merge yourself in that person or you try that person to merge with you. Your wish to overcome hunger will always attract you to the food… in that condition before a short time that particular food was having a very different form in itself…because of your attraction to that food, it ends the existence of food. This rule works on every being equally. With the separation from supreme soul, normal soul gets to be human and in this way, human takes birth, have pleasures of various comfort and at last one day cause of death will again make it move to supreme soul so don‟t kama shakti of supreme soul work in the base of this which is done by merging its part in itself. Is there a creation? No…but from the cosmic vision it is also a step to the creation. When you start loving someone with a strong attraction you feel to have a sex with person what you will call this…is it just a physical satisfaction, no…in the base of this there is a desire not to remain separate with that peson which is on extreme level which came up just to merge yourself with that person. At that time it does not stays two…anything stay behind is one. It is another thing that one sadhak, disciple, yogi will have internal self merge and stay far of it and in normal situation merging a normal body. But tantra speaks about aatmayoga being ahead from body and that too with the help of this Kama power only…this way this kama shakti stays form of the supreme shakti by being attracted to which it works with different form of tam, raj and sat. In the tantra sight, why controlling goddess of tam, raj, sat are believed to be mahakali, mahalkashi and mahasaraswati respectively? Is it not possible that mahalakshmi works with nature of tam instead of raj???
No, it cannot happen. In the dawn of universe where there was no creation, there was no rear. At that time there was complete darkness only… when presence of mahanindra is there in its form of saakar and niraakar. And this tam element is mahakal only…from which kaal (time) even stays feared. Here it is to be noted that destruction of the body is done by kaal and there is no effect of the same on the soul. Soul always stays apart of kaal and covered with mahakaal. The same mahakal have mahakali as shakti, who is precursorproducer of the destruction. This shakti haves relation with middle time of pralaynisha. The presence of the same makes this world exist being covered with shiva, when it disappear, there is no moment time shiva turning in shavaa (death body or non existence). As it is related with pralaynisha means night time and they have a relation from middle time this way when it represents tam, it also has raj (to rear nature) and sat (creating nature) in the sankrant form. But mahalakshmi is not inspired from tam nature and neither maha sarashwati have relation with raja. This way there is no possibilities of them to have nature of vanishing. Yes, it is completely different condition when they get connected with tam in form of mahavidhyas, at that time they can even accomplish destructions. You just spoke about mahavidhya, so does all mahavidhyas are form of these three base powers, does they have not any relations with panchamahabhoota ???? No, it is not that way, when we are speaking about aaadhya shakti (supreme power) then it has a very big meaning, from aadishakti I mean to say Raajraajeshwari Shodashi Tripur Sundari; holding the three main nature of her, there stands three maha shaktis. Perhaps, main mahavidhya of shrikul is taken as shodashi tripur saundari. But her mantra and yantra in mahavidhya form is different, and when she is parashakri raaj raajeshwari then her main base yantra is shri chakra or shri yantra which is represents geometry form of universe, the one which is holder of unimaginable powers. And about panchmahabhuta then every element represents 2 mahavidhyas, and this way 5X2 = 10 occurs, in this too there is a notable thing that every element has 2 nature Ushn (hot) Sheet (cold) This way, from ever element‟s 2 mahavidhya one would be with ugra nature and second would be having peaceful nature. The way sun and moon owns light with that
parashakti, where sun gives heat and moon gives cold. But how strange is this, where heat of the sun provides warmth, splendor and intensity in humans, which inspire us to concentrate with oneness; the cold shine of moon gives excitement to the mind and make it filled with kama bhav. Behind the each and every action ( karma) of life there is a special ownering shakti, to whom we call Adhishthaatri Devi, related to that action is responsible for its happening similarly in tantra every procedure is carried out under the command of some special power but there are number of people who don‟t know which deity is regarded as the supreme power of which procedure than how they expect success in tantra as we all know little knowledge is dangerous thing and it‟s this little knowledge which becomes the cause root of failure in the easy to easiest process of tantra so it‟s better to have the complete knowledge of process and its authority likeSuch procedures as Vashikaran- Vaani Stambhan- Rama vidveshhan- Jyeshhtha Uchchatnan- Durga Maaran - fall under the authority of Chandi or we can say Kaali. Now the doubt here rises is…. Who takes its guarantee that if the whole procedure is carried out properly then its related supreme power will bless you??? As all the process and procedures related to Mahavidya is entitled as the toughest one and out of hundreds ones a single unique one gets success in them…..Just like that I have heard that Durgasapatshatii is a tantric granth and if carefully and properly its practicals should carry out than the deity is bounded to mark its appearance in front of sadhak and which is that fundamental process which helps to attain complete man power ( Chaturvidh Purusharth) in life that too by following easy going way??? Now here the all answers are there…..firstly let me make it clear for all of you that to get all Mahavidya Sidh is something different matter…..so its completely unfair if a sadhak starts to use these Mahavidhyaas just to get rid of his daily life‟s minor problems and situations as he can get them settle down just by doing the mantra jaap of that deity which he is doing from a long time back and for this he just need to understand the Vikhandan Rehasya of that mantra as which section of mantra will help him to which type of action…..definitely he will get the solution…..see how simple it is….isn‟t it……ya it is if the doer is conscious. Let me make it more simple for you with an example……now just think there is a sadhak who is doing Bhagwati sadhna but at the same time someone is suffering from severe health disease in his family………than he just to change the section of mantra that is at the place of basic mantra‟s Dheerg Sadhna he should enchant that mantra or Satotra of it which deals with health portion as –
…..Tara Taar-Pra Devi Tarkeshwer-Poojtiyan, Tarini Bhav Pathodherugratara Bhjamyahm...Streem Hreeng Hum Phat…just get the water enlighten (abhimantrit) with this mantra and give it to that person everyday he will soon recover his health. “Streem Treem Hreem” by making the rice (akshht) enlightens (abhimantrit) with this mantra jaap 1008 times and then throwing them away is helpful in getting back angry beloved or wife. If a sadhak put a tilak of enlighten kajal on his forehead with the mantra “Hans: Om Hreeng Streem Hum Hans: then every person in his office or business place gets attracted towards him. Finally in order to get sidhi in basic sadhna one need to pay attention at number of things because with the co-operation of these small things one get sidhi in Mahavidya. For this one need to follow a decided life style and shreer sthaapan process otherwise these sadhnaas can make your life living hell. Sometime situation become so severe that sadhak drop his resolution in between. Now come to our first question so the answer is YES!! Durgasapatshatii is a marvelous granth of Saangopaang Tantra and by following its complete process one can have the blissful presence of the whole three figures of Durga Deity but to have this divine feeling one need to follow proper procedure. If a sadhak does the sadhna of Bhagwati Raj Rajeshwari for this than its divinity becomes peerless. Always remember one thing that during sadhna- mantra, supreme authority of that mantra and sadhak becomes one during sadhnaa period as if there remains any gap then forget about success. In every sadhna Sadgurudev‟s happiness is essential for success so one should do such deeds which can bring smile on Sadgurudev‟s face as smile is a power to get your work done from a common person then think what will its reaction if it spread on the lips of the Highest Divine Power of this Universe. Which are the base sadhanas of shakti, after accomplishing which, sadhak will have their desires fulfilled? Sadhana of shakti could be done in any form, rather it is in form of man or woman, there is no difference because changing the gender will not change the basic source of energy. Therefore it should never be in mind that this is male deity so the shakti could not be gain or this is female deity so more energy could be generated. Rather it is male or female diety, it is not so many people know about thissukra i.e. kaam shakti‟s bindu sadhana have kaal bhairava as base shakti, of which anyone can adopt the process and have extraordinary beauty and can have complete femininity or robust. And source to have energy for kaal bhairav would be the main basic shakti only, which is called as nikhilshakti or raaj raajeshwari. From hundreds of sadhanas few easy but extreme powerful sadhanas are as followed, which can bloom life of the sadhaka and will convert emptiness into totality.
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और
TRY YOUR LEVEL BEST, THAN LEAVE THE RESULTS ON GOD…… मेरे मास्टर मुझे ऄकसर यह बात समझाते हैं की कायष चाहे कोइ भी हो, कै सा भी हो हमारे हाथ में होता है ईसे पूरी आमानदारी के साथ करना, कयोदक हार और जीत एक ही च्सक्के के दो पहिु होते हैं पर आसका यह ऄथष भी नहीं होता है की हम कोइ ईम्मीद ही ना रखें कयोदक ईम्मीद पर तो दुच्नया कायम है ....पर साथ ही साथ आस बात को भी याद रखें की तंर भावनाओं पर नहीं चिता, ईसे चिाता है हमारा दृढ़ संकल्प, हमारी ऄन्तश्चेतना और हमारे ऄंदर की प्राण ईजाष....कयोदक कमजोरी कै सी भी हो वो हाच्नकारक ही होती है. संशय हर ररश्ते का दुश्मन होता है, जहाूँ आसके होने की अशंका भी होने िगे वहां दफर दूसरी कोइ भावना नहीं रूकती. कयोदक हर ररश्ते का अधार च्वश्वास से बंधा होता है और हमें च्सफष ऄपने च्हस्से की वफा च्नभानी होती है और आन्ही सब बातों का र्ध्यान हमें ऄपने साधनात्मक जीवन में भी रखना पिता है. बहुत से सवाि ऐसे होते हैं जो साधना काि में हमारे मनमच्स्तष्क को च्हिा कर रख देते हैं और जब तक सही ईत्तर ना च्मिे तब तक ना तो साधना में मन िगता है और ना ही दकसी और काम में कयोदक हाथ में मािा िेकर घंटो अूँखें बंद करके बैठने से ऄगर च्सच्ियाूँ च्मिती तो शायद अज हर दूसरा अदमी शंकराचायष होता....बात ऄटपटी है पर ईतनी ही सत्य भी..... अम तौर पर ऄकसर यह सवाि हमारे मन में अते हैं१. साधना दकस समय पर शुरू करनी है और कब तक करनी है, आसे करने का सबसे ईच्चत काि कौन सा है च्जसमें यह च्सि हो जायेगी..... २. मेरे पास प्राण प्रच्तच्ष्ठत यंर या मािा नहीं है तो मैं कया करूं...... ३. कै से पता चिेगा मुझे यह मंर च्सि हुअ या नहीं...... ४. यदद में बताए गए समय पर साधना नहीं कर पाया तो कया? मैं दुबारा आसे कब कर सकता हूूँ.... ५. मैंने आतने िाख ऄनुष्ठान आस मंर के कर च्िए हैं पर मेरा यह कायष च्सि नहीं हो रहा है ऐसा कयों.... और ऐसे ही ढेरों प्रश्न च्जनकी गणना करना ऄसम्भव है.
ऄब िम से आन प्रश्नों के ईत्तर१. हर साधना का ऄपना एक च्वशेष च्वधान और ईसे करने का समय होता है आसमें कोइ दोराय नहीं है और यदद ईस साधना को ईसी समय में दकया जाए तो वो फिीभूत भी होती है यह भी सत्य है पर यह सोचना की च्सच्ि हाथ में मािा च्िए हुए मेरे सामने ईपच्स्थत हो जाए यह ईच्चत नहीं है कयोदक साधनाओं को करने के पश्चात ऐसा तो होता नहीं है की अपको अपकी ददनचायष मैं ईसका प्रभाव ददखाइ ना देता हो, मन-मुताच्बक प्रभाव च्मिने का ऄथष ही यही है की अपके िारा दकया गया मंर जाप फिीभूत हो रहा है और ऄगर हम यह बात करें की हम देवी को प्रत्यक्ष करने के मनोरथ से साधना कर रहे थे मगर वो प्रत्यक्ष नहीं हुइ तो आसका एक सीधा सा ईत्तर यह है की हजारों वषष िग जाते हैं ऐसी दिया के सम्पन्न होने में और साथ ही साथ ऄच्त कठोर च्नयमों का पािन करना होता हैजैसे की च्वशेष खान पान, पूणष मयाषददत जीवन और ऄच्त कठोर च्वधान तब जाके कहीं यह दकयाष च्सि होती है और यदद हम यह कहें की ५०० साि का समय मार ५ हफ्तों में संकुच्चत हो सकता जाए तो यह थोडा मुच्श्कि है...पर कया यह बात कम है की परा शच्ियाूँ ऄप्रत्क्ष रूप से ही सही पर अपको ऄपना साच्नर्ध्य तो दे रही हैं ना. साथ ही यदद आनका पूणष च्सच्िकरण करना हो तो ऄल्प काि के च्िए ही सही साधक को पूणष मयाषददत और संयच्मत जीवन शैिी का पािन करना ही होगा,याद रच्खये प्रकटीकरण और पूणष च्सच्ि दो ऄिग ऄिग बाते हैं. अपको आस करठन मागष को कै से सार्ध्य करना है ये अपको सिं संकल्प शच्ि से तय करना ही होगा. २. ऄब दूसरा प्रश्न प्राण प्रच्तच्ष्ठत सामग्री का हर साधना में ऄपना एक महत्वपूणष स्थान है और ईस साधना को च्सि होने में आनका च्वशेष योगदान होता है आसीच्िए जहाूँ तक सम्भव हो साधना करने से पहिे बताइ गयी सामग्री को प्राि कर िेना चाच्हए पर यदद कभी ऐसा हो की यह सब अपको नहीं च्मि रहा है तो कया मार सामग्री के ऄभाव में साधना को ना करना कया ईच्चत है?..... नहीं ऐसा नहीं सोचना चाच्हए कयोदक ऄगर कु छ नहीं है तो कया गुरु च्चर तो है जो ऄपने अप में प्राण प्रच्तच्ष्ठत है और वो मािा तो है च्जससे अप गुरु मंर करते हो तो बस बन गया काम.....साधना को सम्पन्न करने से पहिे सदगुरुदेव का अशीवाषद ऄच्नवायष होता है तो कया ईन्ही सदगुरुदेव को प्राणों में बसाए हुए यदद सामग्री के ऄभाव में भी हम कोइ साधना सम्पन्न कर रहे है तो वो सफिता देने से पहिे यह सोचेंगे की आसने सामग्री का ईपयोग नहीं दकया तो आसे सफि होने का कोइ ऄच्धकार नहीं.....नहीं ऐसा कभी नहीं होगा कयोदक वो हमारे प्राणों से जुिे है और वो जानते हैं की दकन कारणों वश ऐसा दकया गया है तो यकीन माच्नए वो ऄपने अशीवाषद से अपको वंच्चत नहीं रखेंग.े ...... ३. ऄब हम बात करते हैं की यह बात कै से पता चिे की च्जतना मंर जाप दकया है वो हमें च्सि हुअ है या नहीं.....तो मंर च्सि ना हुअ हो आसका तो प्रश्न ही नहीं ईठता कयोदक आस ग्रुप में साधनाओं से संबच्ं धत जो भी मंर ददए जाते है वो सब जागृत होते हैं, आसीच्िए तो अपको बस ईनकी ऄच्धकतम से ऄच्धकतम ५१ मािा करनी पडती हैं और वो भी आसच्िए की मंर शच्ि और अपकी प्राण ईजाष में एक सामंजस्य बैठ जाए और साधना में होने वािी ऄनुभच्ू तयाूँ मंर के
जाग्रत ऄवस्था में होने का ही पररणाम है. ऄब जरा सोच्चए जाग्रत मंर के साथ साधना करने में पसीने छू ट जाते हैं तो कया हो यदद अपको स्वयं वो मंर जाग्रत भी करना पिे तब शायद आस जीवन में मार एक-दो साधनाएं कर पाना ही सम्भव होगा. पर साधना सम्पन्न हो जाने के बाद ईसको छोि देना भी ईच्चत नहीं है.....मास्टर हमेशा कहते हैं एक बार मंर और अपकी प्राण ईजाष एक हो जाने पर भी कु छ ददनों के ऄंतराि से और यदद सम्भव हो तो प्रच्त ददन ईस मंर की कम से कम एक मािा कर िेनी चाच्हए च्जससे की अप दोनों (मंर और अप) का अपसी तािमेि बना रहे. ४. हर साधना को करने का एक समय ददया जाता है पर ऐसा कभी-कभी हो जाता है की हम ईस समय से चूक जाते हैं तो आसमें घबराने जैसी कोइ बात नहीं है अप ईस साधना को कभी भी कर सकते हैं बस आस बात का र्ध्यान रखें की अप ईस समय च्वशेष से जान बूझकर ना चुकें हों और सदगुरुदेव तो हमेशा कहते हैं की जब भी ऄंदर से महसूस हो तभी साधना करनी चाच्हए कयोदक जबरदस्ती मन को मार कर असन पर अूँख बंद करने का कया ओच्चत्य जब हमारा मन ही ईस काम को नहीं करना चाहता है. ५. ऄब अते हैं हमारे ऄंच्तम प्रश्न पर तो ईसका एक सीधा सरि ईत्तर यह है की हमारे िारा की गयी साधना की च्गनती तो हम करते हैं पर वो च्गन कर की गयी साधना दकतने मन से की गयी थी आसका नतीजा कहीं ओर से अना होता है....हमारे हाथ में च्सफष ऄपना कमष करना है वो भी पूरी इमानदारी के साथ. ऄब अप खुद ही सोच्चये हमारी पूरी चेतना तो मािा को च्गनने में िगी पिी है तो हमने मंर जाप दकया ही कहाूँ? हमने तो बस असन पर सदगुरुदेव के सामने बैठ कर च्गनती की है.... मेरे मास्टर हमेशा समझाते हैं ररश्ता चाहे माूँ-बेटे का हो, पच्त-पत्नी का हो या दफर गुरु-च्शष्य का ऄगर हम ऄपने च्हस्से की वफ़ा च्नभाएंगे तो ईस ररश्ते को ऄटूट बंधन में बंधने से कोइ नहीं रोक सकता और हमारे सदगुरुदेव तो हमारे प्राणाधार हैं मतिब वो हम में ही हैं तो कया हम ऄपने अप के प्रच्त इमानदार नहीं रह सकते.....रह सकते हैं.....हैं ना J ==============================
My master often tells me one thing that whatever may be the work, how it may be, it is in our hands to do it with full honesty. Because winning and losing are two sides of the same coin but it does not mean that we don’t expect at all because it is the hope that sustains the life…….Side by side we should also keep one thing in mind that Tantra does not run on our feelings, it is based on our strong resolution, our inner consciousness and the power of inner praan……because whatever may be the weakness, it is always harmful.
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Doubt/suspicion is the enemy of every relation .Where there is even a slightest of apprehension about it, there no other feeling can sustain because trust is the cornerstone of every relation and we only have to fulfill the loyalty of our portion and all these things have to be kept in mind in our spiritual life too. There are lots of questions which shake our mind and brain during the sadhna duration and when we do not get the correct answers then neither we feel like doing sadhna nor any other work. Because if siddhis were obtained by just taking rosary in hands and sitting for hours while closing you are eyes, then every second person would have been Shankracharya…… this may seem strange but it is that much true…. Generally these questions arise in our mindAt what time one should start sadhna and up till what time it has to be done. Which is the best time for doing sadhna in which sadhna can be accomplished…? I do not have energized yantra and rosary then what should I do….. How would you know that this mantra has been accomplished (siddh) by me or not…. If I was not able to do sadhna at the time told to me then what? When I can do it again….. I have done lacs of anushthan of this mantra but this work is not getting accomplished. Why is it so…..and such type of so many questions which can’t be counted. Now answers to this question in the same sequence……. Every sadhna has got its own special rules and there is definite time for doing any sadhna. There are no second-opinion on it.It is also true that If the sadhna is done during that time then it is fructified also but thinking that siddhi will appear in front of me with garland in her hands is not correct .Because it never happens after doing sadhna that you do not witness its influence in your daily-life. Getting the desired influence simply means that mantra jap done by you is getting fructified and if we say that we were doing the sadhna with the desire of manifesting the goddess but she did not appear then answer to it is quite simple that such an activity takes thousands of year to materialize and one need to follow very strict rules.—like special eating habits, full disciplined life and very strict rules then only this activity is accomplished. If we say that the duration of 500 years can be compressed into merely 5 weeks then this is little bit difficult……But is this not enough that Para powers though invisible , are giving their assistance to us. If one
wants to completely accomplish them then may be for a shorter period, but sadhak would have to definitely follow complete disciplined life-style. Keep one thing in the mind that manifestation and complete accomplishment are two different things. You have to decide by your strong will power that how to accomplish this difficult path. 2. Now second question. Energized sadhna articles paly a very important role in every sadhna and they contribute a lot in accomplishing sadhna. Therefore wherever it is possible, one should attain the sadhna articles before doing any sadhna but if you are not able to get them then is it right not to do the sadhna in the absence of these articles?......No we should not think like this because if we do not have anything so what? We have Guru picture which is energized in itself and we have the rosary by which we chant Guru mantra so our work is done……It is compulsory to obtain the blessings of Sadgurudev before doing any sadhna then if we, with Sadgurudev in our heart, are doing any sadhna in absence of sadhna article, then will he think before giving us success that he has not used sadhna articles so he does not possess the right to succeed. ……never will it happen like this because he is connected to our heart and he knows the reason why we have done like this, so trust me, he will never deprive us of his blessings. 3. Now we will talk about how we will know that the mantra jap which have done has been accomplished to us ……so there are no question mark over nonaccomplishment of mantras because all sadhna related mantras which are given in this group are activated in themselves therefore you just have to chant maximum 51 rounds of rosary of them and that too so that coordination develops between power of mantra and power of your praan. Experiences in sadhna are only the results of activated state of mantras. Now just think that how you toil hard to do sadhna with activated mantras then what will happen if you have to activate mantras on your own .Then probably it will be possible to do only 1 or 2 sadhnas in entire life. But it is not correct to leave the mantra after completing the sadhna……Master always says even after mantra and power of praan becoming one, after a gap of few days or if possible, one should chant at least one rosary so that mutual coordination is maintained between you both(Mantra and you). 4. Time is given for doing every sadhna but it happens sometimes that we miss that time.so we need not to worry in this case. You can do that sadhna anytime .Just keep this thing in mind that you should not have missed that particular time intentionally and Sadgurudev always used to say that whenever you feel from
inside, do the sadhnathen only. Because what is the point in doing sadhna forcefully when you are not feeling like doing it. 5. Now we come to our last question. A simple and easy answer to this is that though we count the sadhna we do but how passionately we have done the sadhna( which we have done while counting ).Result of it has to come from somewhere else……Our job is to do our karma that too with total honesty. Now you think yourself when our full consciousness is busy in counting the rosaries then where we have done our mantra jaap? We have just counted the rosaries sitting on our aasan in front of Sadgurudev. My Master always says that any relationship whether it is of mother-son, husbandwife or guru-shishya, if we fulfill the loyalty of our part then nobody can stop that relation from being ever-lasting. And Our Sadgurudev is our Praanadhar (base of our praan) meaning he is inside us so can’t we remain honest to ourselves…….we can…..isn’t it?
****ROZY NIKHIL****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 12:13 AM No comments: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Friday, May 18, 2012 –१
“च्नरं तरकृ ताभ्यासादंतरे पश्यच्त ध्रुवं |
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तदा मुच्िमवाप्नोच्त योगी च्नयतमानस: ||” योगी च्नरं तर ऄभ्यास के िारा ही स्वयं को स्वयं के भीतर देखने में समथष हो पाता है और ऐसा हो जाने पर च्नश्चय ही ईसके मन और च्नयच्त से वो मुि हो जाता है | दकन्तु कै सा ऄभ्यास,कै सी दिया का प्रयोग साधक को मन: शच्ि का स्वामी बनने में सहायक होता है,ईसके पहिे ये समझना ज्यादा महत्वपूणष है की अच्खर मन की ईपयोच्गता साधना की सफिता के च्िए आतनी जरुरी कयों है ? अपने कहावत तो सुनी ही होगी की – “मन के हारे हार है और मन के जीते जीत” ऄथाषत यदद अप दकसी कायष को करना चाहते हैं तो अपको अपके मन का पूणष सहयोग अवश्यक होगा,यदद जरा सी भी न्यूनता रही तो एक सरि कायष को भी पररच्स्थच्तयाूँ आतनी जरटिता दे देती हैं की अपका सफि होना नामुमदकन ही हो जाता है | ये तो हुअ कहावत का सामान्य ऄथष दकन्तु एक साधक ऄपने मतिब का ऄथष आस कहावत में ऐसे ढू ूँढ िेता है की यदद अप जीवन युि में ऄपने मन से हार जाते हो तो भच्वष्य में अप कभी नहीं जीत पायेंग,े दकन्तु यदद अपने मन को ऄपना स्वामी बनाने की ऄपेक्षा खुद ईस पर च्नयंरण स्थाच्पत कर ईसका स्वामी बन जाए तो,तब ऐसे में वो मन की ऄनंत शच्ियों का प्रयोग कर प्रत्येक पररच्स्थच्त को ऄपने ऄनुकूि बना सकता है | मन के दो पक्ष होते हैं – १. बाह्य पक्ष या बाह्य मन २. ऄंतर पक्ष या ऄन्तः मन वास्तव में ये दो मन ना होकर मन के दो पहिु होते हैं | और सम्पूणष तंर दिया की सफिता आन्ही दोनों पहिुओं को अपस में च्मिाने से च्सि होती हैं, बाह्य से भीतर की यारा ही तो तंर योग या साफल्य योग कहिाता है | ऄपरा से परा पथ पर ऄग्रसर होने की दिया मन के आन्ही दोनों पक्षों का योग करने से पूरी होती है तब जाकर मन पर ना च्सफष च्नयंरण हो पाता है ऄच्पतु वो ऄपनी ऄनंत शच्ियों से साधक को पररपूणष कर देता है | १.ऄच्नयंच्रत मन या ऄधषच्नयंच्रत मन साधक के जीवन में मार भटकाव ही िाता है | २. ऐसी च्स्थच्त में साधक ना तो गुरु के प्रच्त समर्षपत हो पाता है और ना ही साधना के प्रच्त वो पूणष श्रृिावान रह पाता है | ३.चररर की स्वछछता मन के सहयोग पर ही तो च्नभषर करती है, मन ही हमें संबध ं ों के प्रच्त च्नष्ठावान बनाता है |ऄन्यथा च्वकृ त मन दकसी भी ररश्तों की मयाषदा हमें समझने नहीं देता, तब ऐसे में माूँ,बहन,बेटी जैसे पच्वर ररश्तों के प्रच्त भी अपका स्नेह कामुकता में पररवर्षतत हो जाता है | अज हम जो भी ऐसी खबरे सुनते,देखते या पढते हैं,वो सभी आसी च्वकृ त मन के दुष्पररणाम ही हैं | ४. मन ही प्राण और अत्मा के साथ योग कर अपको पूणत ष ा देता है,और जब दकसी में आनके मर्ध्य का बि कमजोर हो जाता है तो ऐसे में व्यच्ि ना च्सफष कमजोर मनोबि का स्वामी होता है बच्ल्क ईसकी दकसी भी क्षेर में सफि होने की संभावना ना के बराबर ही होगी |
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५. ऐसा व्यच्ित्व ऄपने जीवन में दकसी को प्रभाच्वत नहीं कर सकता,और ना ही वो ऄपने िक्ष्य को सफितापूवक ष प्राि कर पायेगा | ६. उपर के सबदु पढ़ने के बाद कया ये नहीं िगता है की साधना में सफिता तो बहुत दूर की बात होगी | दकन्तु यदद दकसी दिया च्वशेष से मन के दोनों पक्षों का योग करवा ददया जाये तो मनोबि,प्राणबि और अत्मबि के पूणष योग से साधक पूणषत्व को प्राि करता ही है | ये दो प्रकार से संभव है | दिया योग िारा तंर साधना की िम साधना के िारा सदगुरुदेव ने बहुत पहिे “दिया योग” पर पूरा ८ ददवसीय च्शच्वर िगाया था और आस दिया को प्रायोच्गक रूप में संपन्न करवाया था | वास्तव में मन की दोनों ऄवस्था का योग करने पर साधक ऄनंत रहस्यों की कुं जी पा िेता है तब दीघाषयुष्य, ददव्यता ईसे सहज ही प्राि हो जाती है | मानव शरीर में जो सिचिों का च्ववरण अता है वो प्रतीक है ईन सि ऄवस्थाओं का ईन सि ऄवस्थाओं का जो ऄपूणत ष ा से पूणषता की और बढते हुए िमशः हस्तगत होते जाती है, सदगुरुदेव कहते हैं की वैसे सम्पूणष शरीर में चिों की संख्या १०८ होती है दकन्तु मूि शच्ि के न्द्रों के रूप में सात चिों को मान्यता दी गयी है | हमने उपर मन के दो पक्षों की बात की है या दो ऄवस्थाओं की बात की है | दकन्तु आन ऄवस्थाओं के बीच में सात परते होती हैं च्जनका िच्मक भेदन करने के बाद ही दोनों पक्ष एक हो पाते हैं, तब ना बाह्य चेतन मन होता है और ना ही ऄचेतन मन, तब होता है तो मार पूणष संचत े न मन | और आसी की प्राच्ि एक साधक का ऄभीष्ट होती है | मन के ये सात स्तर च्नम्नानुसार होते हैं चेतन स्मृच्त ऄवचेतना सजषना जीवनात गभषसच्ु वस्तृता (ऄन्तश्योग) ब्रह्माण्ड चेतना और मन के दोनों पक्षों के मर्ध्य आन्ही सात परतों से च्वभि है | सामान्य मानव बाह्य मन की ऄवस्था में ही जीता है और दफर वैसे मर जाता है,ना तो कोइ ईपिच्ब्ध ईसे प्राि होती है और ना ही जीवन का कोइ िक्ष्य ही | मैं मार आतना बता दूूँ की सदगुरुदेव हमेशा से यही कहते हैं की आन परतों में से जो पहिी का भी भेदन कर िेता है वो जीवनमुच्ि और भोग दोनों प्राि कर िेता है तब दूसरी तीसरी,चौथी,पांचवी अदद की शच्ियों का भिा कया वणषन दकया जा सकता है |
ऄब बात करते हैं आनकी भेदन प्रदिया की तो “च्शवसिग” के च्बना ये िगभग ऄसंभव है | ऄतः एक प्राण प्रच्तच्ष्ठत च्शवसिग अपके पास होना ऄच्नवायष है | कै सा भी च्शवसिग अपके पास होना चाच्हए | मैं पारद च्शवसिग का प्रयोग ज्यादा ईच्चत समझती हूूँ ,कयूदं क ऄन्य तत्वों की ऄपेक्षा अत्मबि और ब्रह्मांडीय उजाष का सबसे बिा कें द्र च्वशुि पारद होता है | िमशः ऄन्य तत्वों,धातुओं से च्नर्षमत च्शवसिग में ईत्तरोत्तर उजाष की तीव्रता मंद होते जाती है | च्शवसिग के तीन प्रकार होते हैं | १. इष्टसिग २. प्राण सिग ३. भाव सिग या अत्म सिग इष्ट सिग बाह्य और सकि सिग होता है और िम साधना के प्रथम स्तर का जागरण और भेदन के च्िए अपको ऄपने बाएं हाथ में च्शवसिग का स्थापन कर दाच्हने हाथ के मर्ध्यमा और ऄनाच्मका उूँगिी का स्पशष कराकर मंर का जप करना होता है ...... िमशः ..... ================================================
“NirantarKritaAbyaasadantrePashyatiDhruvam | Tada Muktimvaproti Yogi Niyatmanasah ||” Yogi, only upon continuous practice, becomes capable to see himself inside him and when it happens, he frees himself from mind and destiny. But which practice, which process helps sadhak to become master of the power of mind. Before this, it is very much important to understand that why; afterall, the utility of mind is so much necessary for success in sadhna? You all would have listened to proverb in Hindi that ---“Man kehaarehaarhainaur man kejeetejeet”(Victory lies in conquering our mind) Meaning if you want to do any work then complete cooperation from your mind is necessary. If there is even a little bit of deficiency, then even the simple tasks are made to look cumbersome by the circumstances and it becomes impossible for you to get success. This was the simple meaning of the proverb but the sadhak derives his own interpretation from this proverb that If you loses to your mind in the battle of life then you can never win in future. But if instead of mind becoming your master, you
become its master after establishing control over it then in that case you can utilize the infinite powers of mind and make every situation favourable. There are two aspects of mind1. Outer aspect or Outer Mind 2. Inner aspect or Inner mind
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In reality, they are not two minds rather they are two facets of mind. Success of entire tantra process lies in combining both these aspects together. Journey from outer to inner world only is called Tantra Yog or Safalya Yog. Advancing forward on Para path from Apara Path is completed when these two aspects are united. Then only, mind not only gets controlled but also mind, with its infinite powers, makes the sadhak complete. Uncontrolled mind or half-controlled mind only deviates the sadhak off the track in his life. In such a situation sadhak neither remains dedicated to his Guru nor develop a sense of trust towards sadhna. Purity of our character depends only on cooperation from our mind. Mind only makes us faithful towards our relations. Otherwise, distorted mind never allows us to understand the dignity of any relationship. In such a case even your love towards pure relations of mother, sister and daughter is transformed into lust. Today the news we see, hear or read is the ill-consequences of this distorted mind only. Mind only gives you completeness after combining with praan and soul. And whenever the strength between them is weakened in any person then in such a case person does not only become master of low morale but also chances of his succeeding in any field are negligible. Such a personality can never impress anyone in his life and nor he will be able to successfully attain his goal. Do you not feel after reading the above points that success in sadhna will be distant dream for him? But if, by any special process, these two aspects of mind are united then due to the total combination of Praanbal, Manobal and AatmBal, sadhak definitely attains the completeness. This is possible in two ways. Through Kriya Yog. Through Kram sadhna of tantra sadhna.
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Sadgurudev, very much earlier, conducted 8 day shivir on “Kriya Yog” and made us do this process practically. In reality, upon doing union of these two states of mind, sadhak gets key to infinite secrets .Then he easily attains divinity and long life. The description which we get of seven chakras in human body, they are the indicator of those seven states (those seven states, which are attained respectively while progressing towards completeness from incompleteness).Sadgurudev said that though there are 108 chakras in entire body but seven chakras have been recognized as the basic power centres. We have discussed about the two aspects or two states of mind but between these two states there are seven layers. Their respective bhedan leads to a state where these two aspects become one. Then there is neither outer conscious mind nor subconscious mind. Then what remains is only full conscious mind. And attaining this state is the aim for any sadhak. The seven levels of minds are as followsChetan Smriti Avchetna Srajana Jeevanaat GarbhSuvistrita(Antashyog)
7. Brahmand Chetna And between the two states of mind, these are the seven layers. Normal person lives in the states of outer mind and dies also in such a state. Neither he gets any achievement nor does he attain any goal of his life. I may tell you one fact that Sadgurudev used to say that who does the bhedan of only first layer among these layers; he not only frees himself from life but attains bhoga also. Now, how can we describe the powers of second, third, fourth, fifth etc. Now we will talk about the bhedan process which is virtually impossible without Shivling. Therefore, it is necessary for you to have an energized Shivling.Any type of Shivling you can have. I prefer the use of Parad Shivling because as compared to other elements, centre of universal energy and spiritual power is pure Parad. Respectivelyin the Shivling made from other elements or metals, intensity of power successively goes on decreasing. There are three types of Shivling 1. Ishtling 2. Praan Ling 3. Bhaav Ling or Aatm Ling
Isht ling is an outer and total ling. For the first stage of jagran and bhedan in Kram sadhna, you have to establish Shivling on your left hand and chant the mantras while touching Shivling with middle and ring finger…. To be Continued….
****RAJNI NIKHIL****
****NPRU**** Posted by Nikhil at 4:27 AM 1 comment: Labels: TANTRA DARSHAN, TANTRA SIDDHI
Wednesday, May 2, 2012 .. ...??(Is This Nikhil Work Of ……………these few Sanctimonious….??? )
अज आस बात को जानने की ...समझने की बहुत अवश्यकता हैं की यह च्नच्खि कायष हैं कया?? ...च्जसे देच्खये वही आस शब्द को आस्तेमाि दकया जा रहा हैं .एक् ग्रुप के कताष धताष अज कि .....कु छ 1. कया चीख च्चल्िाकर ..प्रिाप करने से आनका सारा व्यच्िगत कायष च्नच्खि कायष हो गया 2. वह भी ऄपने ग्रुप मे ..बता रहा हैं ..आन तथाकच्थत की ऄपने ही ग्रुप मे आनकी भाषा पढ़ तो िे एक बार ...... 3. कौनसा महा च्सि हो गया हैं .
4. बात करे गा यह भगवती काम किा कािी की ..ऄगर यह च्सि हैं ..तो हैं आसकी सामथ्यष की काम किा कािी के ऄयुत अक्षरी मंर का एक बार सही सही ईच्चारण कर दे ..कर ही नही सकता ..कयोंदक च्जस महाकाि संच्हता के काम किा कािी खंड मे यह मंर हैं ईसमे भी ३१४ बीजाक्षर हैं ही नही ..कया यह च्बना देख.ें .सही ईच्चारण कर सकता हैं.. मैं चुनौती देता हूूँ की यह कर के ददखाए ..मैं आसकी गुिामी के
च्िए तैयार हूूँ ... हैं
सामथ्यष आसकी की यह कया यह च्खिवाि सा नही बन गया हैं ....सच्चाइ किवी हैं ..च्नच्खि कायष की अि मे ऄपने व्यवसाय की अि मे ...आसकी मानच्सकता को अप समझ िे ...... 5. हम पर अरोप करते हैं की हम
दकताबो से देख कर च्िख रहे हैं .जबदक आनके यहाूँ की
पच्रका खुद,चंडी प्रकाशन,कल्याण, दच्तया पीताम्बर पीठ, चौखम्बा प्रकाशन से पूरी पूरी ईतरी
पिी रहती हैं, .कया एक भी अवरण पूजन ......कयोंदक यह तोकाम किा कािी
च्सि हैं ...पूरा सुना सकता हैं .सामथ्यष ही नही हैं आसमें ..ऄब शब्दों से नही चुनोती से बात करे ये .....शब्द तो कोइ भी च्िख िे गा ऄपने ग्रुप मे ..यह बताये की कहाूँ यह ऄपनी महा च्सिता की बात सबके सामने तैयार हैं रखने को ..हम आं तज़ार कर रहे हैं ..बोिे तो सही ... 6. ऄब आनका च्नच्खि कायष कहाूँ से हो गया?? ..ये तो हमारी परम्परा से भी नही हैं .आनके गुरु स्वयम्भू हैं ईनसे तो हमें कोइ सरोकार नही हैं(कयूदं क ईन्हें हमारे सदगुरुदेव ने गुरु मनोनीत नहीं दकया है). तो जब आनका गुरु आतना सक्षम हैं तो यह खुद कयों हम सब से हाथ जोि जोि कर की यह हमजाद साधना दे दो या यह ऄल्के मी की प्रदिया बता दो .. च्गड च्गडा ते दफरते रहे हैं .कया आसे ऄपने ही गुरु पर भरोषा नही हैं ...और आन महानुभाव की सारी मेि हम सामने रखने जा रहे हैं ..तादक आस कियुग के
एक मार
स्वम्यम्भु काम किा कािी के च्सि साधक का रूप भी तो पता चिे ....यह व्यच्ि दम्भोच्ि करता हैं की आसे काम कािा कािी च्सि हैं ऄगरऐसा हैं तो. भगवतीका च्सि .सामने अ कर बात करे गा िोगों के सामने..... न की .ऄपने ग्रुप मे ...चीखता च्चल्िाता रहे ... 7. हमने कभी नही कहा .की हमारा पास साधनाओ का खजाना हैं कयोंदक हमारे पास हमारे सदगुरुदेव िारा दी गयी ऄनेको डायरी हैं .अच्धकाश च्शच्वरों के नोट्स हैं , जो हमने ऄपने गुरु भाआयों के पास जा जा कर खुद आककठे दकये ...हमने ऄनेको च्सिो के पास जा
जा कर के साधनाए िी हैं . हमने कभी भी यह दावा नही दकया की ब्रम्हांड मे च्सफष मेरे पास हैं ,औरमैं यह करसकता हूूँ या वह .......और तब भी मंच पर दकताबो से र्ध्यान पढ़ कर ईच्चररत कर रहे हैं. आनका कब से च्नच्खि कायष हो गया .ऄगर आनका गुरु सक्षम हैं तो जो सक्षम गुरु का च्शष्य होता हैं ..वह दकसी दूसरों के सामने च्गड च्गदाता नही है .आस स्वयम्भू च्सि की मेि अपको आस का ऄसिी चेहरा ददखायेगी और मैं सारी की सारी मेि जल्द ही पच्ब्िश करने वािा हूूँ च्जसमे आसका वास्तच्वक चेहरा सब देखग ें े . 8. कयोंदक हम गुरु नही हैं ..नही हमने कोइ योग्यता ऐसी हैं की दकसी को ब्रह्मत्व दीक्षा दे सके .ना कभी होगी ही ...कयोंदक हम च्सफष च्शष्य हैं .और हमारे
माता च्पता हमारे
सदगुरुदेव हैं . और हम हैं जो च्नच्खि कायष की बात कह सकते हैं . 9. सदगुरुदेव ससह वत रहे और ससहों का ईन्होंने च्नमाषण दकया ...कायरो का नही ..भीतर घातीयो का .... च्भखाररयों का नही ..दरवाजे दरवाजे ..भीख मांग कर च्नच्खि कायष करने के ऄपना व्यवसाय चिाने आन च्भखाररयों का तो कच्तपय नही ...ईन्होंने आसे कब से च्नच्खि कायष कौन कर रहा हैं या नही का च्नधाषरण करने वािा बना गए ??.खुद ने अज तक कया दकया हैं च्नच्खि कायष के नाम पर जो अज िगा हैं ..प्रमाण पर देने .बस बना िे ग्रुप ....आकठ्ठा करके भीि िगा िे .........िगे चीखने च्चल्िाने ....... जबान हैं , मुह ं हैं तो खुि गया हैं तो किवा ही च्नकिेगा ..नाम िेने से च्नच्खि का च्शष्य नही हो जाता हैं ...पर मुह ं चिाने से च्नच्खि च्शष्य बनने वािे को हम सभी देख ही रहे हैं . 10.
और अज मै सदगुरुदेव िारा च्नमाषच्णत तैयार खिा हूूँ दक बोिे तो ये दकस ज्योच्तष ग्रन्थ की बात करते हैं जो आन महानुभावो ने अत्मसात दकया हो ..कौन सा ऐसा तंर ग्रन्थ हैं आन तथाकच्थतों ने ऄपने जीवन मे ईतारा
हो ....मैं शुरू से िेकर ऄंत तक
सुना दूं ..मुझे गवष हैं मेरे सदगुरुदेव ने मुझे दी हैं क्षमता ...मैं चुनोती के च्िए तैयार हूूँ ...., कौन से देवी देवता के अवरण पूजा या ऄन्य तांच्रक च्वधान की बात हैं मैं च्बना कोइ दकताब च्िए खिा हूूँ ....... हैं सामथ्यष की ये महा ज्ञानी स्वयम्भू महाच्सि बने बैठे ... दो तीन पेज भी सुना दे ...को न से तंर ग्रन्थ दक बात करते हो जो आन महा पुरुषों को याद हो...... कठ्सस्थ हो ये बताये मुझे ....... तीन पेज तोआन्हें याद नही ,,,,ब्रम्हाड का यह पूजन और वह पूजन की बात करते हैं ....
11.
महानुभाव
हैं ..बहुत गरज गरज कर ..दक च्नच्खि च्शष्य ऐसा होता हैं और च्नच्खि
च्शष्य वैसा हैं ..मैं ये कर दूं और वह ..मुझे काम किाकािी च्सि हैं और ये देवता भी ......आनकी िगभग १०० से ज्यादा मेि मेरे पास रखी हैं च्जसमे हाथ जोि कर च्गद च्गडा भीख मांग रहे है की कोइ मेरी नही सुनता ..मेरे पर कजाष हो गया हैं ,. दक अप िोग मेरी मदद करो.....मैं मरने जा रहा हूूँ ..और यह दकमैने यह दकया पर यह तंर प्रदिया भी ऄसफि हो गयी . १२. अज आन्ही के साथ एक ओर खिे हैं जो आनके आशारे पर मेरे बारे मे यह च्िखने मे नही चुके दक एक ग्रुप मे गुरु भाइ की प्रशंशा दूसरे
गुरु भाइ के िारा की जा रही हैं
..ईसकी वाह वाही की जा रही हैं ...और ईसे मनो सदगुरु से बढ़कर बताया जा रहा हैं .मच्हमा मंच्डत दकया जा रहा हैं .. आनको िग गया की मानो सदगुरुदेव की सनदा की जा रही हो .......आनसे यह पूछ ं े दक कहाूँ ऐसा च्िखा हैं या च्िखा था . अज के बि आन्ही को को यह ज्ञान हैं बाकी कया सारे
ऄच्नभ्ग्य हैं .ईन्हें कु छ समझ मे नही अता .सारे बाकी
ऄधकचरे ज्ञान वािे हैं च्सफष ये दो चार ..ही के बि ज्ञान वान हो गए ..... पर ऄब ..ऄब कया हो रहा हैं जो खुद पथ भ्रष्ट के साथ खिे हैं व कौन सा यह च्सि हैं या हो गया हैं .. १३. जो गाच्िया दे कर बात करे तो वह सही..कया हैं यह .........?? ..जय महाकािी जी च्िखने से बिे तंर च्सि हो गए ..हैं सामथ्यष तो सामने अये ....पता तो चिे की दकतने बिे तांच्रक हैं या मांच्रक हैं कया ये जनाब हैं ऄपने गुरु के पट्ट च्शष्य ....कया ये जो अज समाज के सामने खिे होकर चुनोती की बात कर सके गें ..,,ऄपने ग्रुप मे
बैठकर
दम्भोच्ि दकतनी हैं सामथ्यष
हो .दो चुनोती
तो सामने
अ कर
खिे
तो
करिो
.........................ईसी व्यच्ित्व की यह दम्भोच्ि ....कीमैं यह भी प्रदिया दे सकता हैं दकमैं यह कर दूं और वह ..है .. ऄगर सामथ्यष तो सामने खिे हो जाओ कु छ तो पता चिे दक दकतने बिे च्शष्य हो ........कया सीखा हैं अज तक आसने ऄपने ....जो दे सको ..च्सि करके ददखा सको .. १४.ऄब ऄपने ग्रुप मे मुह ं न चिे ऄगर हैं सामथ्यष तो बात करे चुनौती की ..ग्रुप तो कोइ भी बना सकता हैं ...
१५. मैं जो च्सफष और च्सफष च्शष्य के रूप मे ही काम मे िगा हूूँ च्जसका ऄब मैं नही अप सभी भी स्वयं एक प्रमाण तो हो ही ........तो सबको खि रहा हैं ..आन .सबकी अखों मे ,मेरे िारा दकये गए कायष शूि की भांच्त चुभ रहे हैं ..पर .मैंने तो कभी ऄपने कायष को च्नच्खि
कायष नही कहा ..च्सफष आतना कहा यह की मेरा स्वपन हैं यह करना ..जो
मैंने देखा हैं ......की मैं ऄपने सदगुरुदेव के ये ऄधूरे कायष को पूरा करने मे जो हो सके वह करूूँगा ...हर हाि मे हर कीमत दे कर ...आसके च्िए मुझे दकसी के प्रमाण पर की जरुरत नही हैं . १६. ऄब हम साधनाए
देते हैं तो दकतनी बार स्पस्ट कर चुके हैं दक वह या तो सदगुरुदेव
िारा दी गयी होगी या ईनके दकसी सन्याशी च्शष्य च्शष्याओ िारा या दकसी ऄनुभवी च्सि के िारा
जो हमें च्मिी हैं च्जनकी हमने पूबष ऄनुमच्त िी हैं..हम कोइ खुद तो
च्नमाषच्णत करते नही .. वह साधना च्वच्ध या च्वधान ...... के बि के बि गुरु भाइ के रूप मे ही हमें अगे देने को दी गयी हैं ....या जाती रही हैं .जैसी की ईन्होंने या ईस च्सि ने अज्ञा दी हैं और यह सारी बाते ऐसी हैं हैं दक जैसा दकसी बिे भाइ को साईं दकि चिानी बनती हैं तो वह ऄपने छोटे भाइ को सीखा रहा हैं . आसमे गुरु बन ने की बात कहाूँ से अ गयी .. १७. अचायष चाणकय सही कहते हैं दक सीधे वृक्ष
पहिे काटे जाते
हैं. मैं जो ऄच्त
च्वनम्रता से आनके साथ पेश अया ..दक मेरे भाइ हैं ..कम से कम मेरी भावनाओ को सम् झेगे पर ......आस च्वनम्रता को आन सभी ने मेरी कमजोरी ही समझा ... ही माना .... तभी आन सभी की आतनी च्हम्मत हुयी .. आन पाखच्ण्डयो को देच्खये ये स्वयम्भू गुरु के च्शष्य तो बन गए पर गुरु मन्र तो आनका ऄपना होना था.पर ऐसा नही ऄभी भी ....कयोंदक ऄपना सदगुरुदेव प्रदत्त गुरु मंर हैं ही ऐसा की ईसे कोइ भी दीक्षा या च्बना दीक्षा च्िए ही भी करे तो ईसका कायष तो होगा ही . तो आन की चाि बाजी देच्खये गुरु मंर ..सदगुरुदेव वािा
ही ईपयोग कर रहे हैं
स्वयं का गुरु मंर कयों नही हैं ...पर ऄब आनके सारे कायष च्नच्खि कायष हो गए ..जो ये करें सब च्नच्खि कायष हो गया ..
कयों नही कहते की मेरा ऄपना कायष हैं .......ऄरे च्शष्य भी बने रहते तो समझ मे अता जब स्वयम्भू गुरु बन गए हैं तब यह तो सद्गुरु देव के कथन का दुरुपयोग हैं , तब ऄब च्शष्य कै से ..और कु छ ऐसे ही महानुभावो के समथषक .ये हमसे प्रशन पूछ ं रहे हैं .....तब च्नच्खि कायष कै सा ..पर नही जी हैं ..के बि आन्ही का हैं ..और कोइ च्वरोध नही .. ऄगर हैं आतने बिे च्सि ..काम कािा कािी च्सि तो यह सब कया हैं .. १८. हमारे कायों पर हंसी और अपच्त्त . पर कौन सा ऐसा कायष हैं जो च्सफष आन्ही कु छ की समझ मे अ रहा हैं बाकी तो सभी की बुच्ि हैं ही नही के बि आनकी को च्वच्शष्ट प्रज्ञा च्मिी हैं .आनकी च्वच्शष्ट प्रज्ञा से कौन सा ऐसा महत काम अज तक आन महानुभावो ने दकया हैं ..
१९.
क
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ख
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क क
क र ..
ऄतः अप सभी से च्नवेदन हैंदक सदगुरुदेव के नाम पर या च्नच्खि कायष के नाम पर यदद कोइ कहता हैं तो सतकष
रहे ..और हर जगह ऄपनी च्वद्या बुच्ि का का ईपयोग
जरुर
करें पर हम ही समझने को तैयार नही होंगे तो ........यह तो होना ही हैं ..और ऄछछे से समझ जाए ..तो भच्वष्य मे दकतनी
बार अप ठगे जाने
से अप बच जायेंगे ......अपकी
भावनाओ के साथ कोइ खेि नही कर सके गा ...स्वयं साधनाएं कररये ,मार पढ़ कर खुश नहीं होआए...प्रामाच्णक च्वधान है...अपकी मेहनत है तो अप कै से सफि नहीं होंगे.....साधना करना ऄकमषण्य होना नहीं है ..बच्ल्क सद्गुरु के चरणों का अश्रय िेकर ऄपने भाग्य को पररवर्षतत करने की दिया है.....और अप ईनका ऄंश हैं अप ऐसा कर सकते हैं ....ऄवश्य ऐसा कर सकते हैं....अपको सामग्री मैं ईपिब्ध करवाउंगा तादक ये मिाि ना रहे की प्रामाच्णक सामग्री नहीं थी और वो भी मुफ्त...कयूंदक मैं खचष वहन कर सकता हूूँ..पर मेरा कोइ भाइ खचष के भाव में ज्ञान ऄजषन ना कर पाए ऐसा नहीं होगा.... ऄब जो कारवां चिेगा तो आस महीने के च्िए ईपिब्ध साधनाए
भी अपके सामने हैं
पर ..अने वािे ऄगिे महीने के च्िए
भी
ईपिब्ध साधनाए भी अपके सामने अज हैं ..पर ये अपको १० जून से ईपिब्ध हो पाएंगी १० जुिाइ तक के च्िए ..और ऄब ये कारवां रुके गा नही ..मैं हमेशा भाइ के रूप में साथ हूूँ... ना मुझमे दीक्षा देने की पारता है और ना ही मैं सफिता दे सकता हूूँ ..दकन्तु अपको सत्य और प्रमाच्णकता से पररचय तो करवा सकता हूूँ....मैं शांत स्वभाव का ऄवश्य हूूँ दकन्तु कायर नहीं ...सदैव चुनौती का सामना करने के च्िए तत्पर ....और अमान सामना होने पर कौन जीतेगा कौन हारे गा ये तो सभी को ज्ञात हो ही जाएगा...
१० जन ू से १० जुलाइ के ललए चयलनत साधनाएं ... १. क्षकन्नरोत्तम साधना- लकन्नर जगत से संपकव स्थालपत करने,ऄलभनय और कला के क्षेत्र में पण ू व ता प्रालि हे तु. २. गैबी हमजाद प्रयोग- मुलस्लम तंत्र का ऄनोखा लर्धान लजससे हमजाद को बाध्य होना ही पड़ता है प्रत्यक्ष होने के ललए. ३. पण ू ण नीलतारा मेधा प्रयोग-तीव्र स्मरण शलि और लर्द्या तत्र् को अत्मसात करने हे तु. ४. साबर क्षसक्षि क्षिधान- आसके बाद सबर साधनाओं में सफलता लनलिन्त ही होती है. ५. सौंदयण लक्षू तका प्रभेदा प्रयोग- लतब्बती बौद्ध तंत्र की र्ह पद्धलत जो पण ू व सौंदयव और धन की प्रालि कराती है ६. दृश्यशक्षि पराक्षन्िता साधना- काल ज्ञान दशव न और परा लर्ज्ञान के क्षेत्र में ऄभत ू पर्ू व सफलता प्रालि हे तु. ७. ऄघोर क्षिरूपाि साधना – शमशान साधनाओं में ऄग्रणी तथा शम्शानेश्वर धम्र के दशव न और लसलद्ध से सम्बंलधत लर्धान. ू लोचन =============================================== Today there is very much a need to understand that what is the Nikhil Work??.......Whosoever you see, is using this word. Administrator of one group these days….. 1) Just by shouting loudly and crying hard, will their whole personal work become Nikhil work? 2) That too in his own group…..he is telling like this…….Just see the language what this guy has used in his own group……. 3) What sort of Maha Siddh he has become…
4) He is talking about Goddess Kaam Kala Kaali……If he is siddh …..then has he got the capability to simply pronounce once the Aayut Aakshari mantraof Kaam Kala Kaali…..He can‟t do it…..Because The Kaam Kala Kaali part of Mahakaal Samhita which contains this mantra itself does not have 324 beej alphabets…..Can he pronounce it ….without seeing it….I am giving a challenge to do this…..I am ready to become his slave…..Has he got the capability….Has this not become like a child play…..Truth is bitter….in the cover of Nikhil work ,in the cover of his business…Understand the mentality of him. 5) They are accusing us of copying from the book whereas their own magazine is simply the carbon copy of Chandi publication, kalian, Datiya Peetambara Peeth and Chaukhamba publication. Can he tell any Aavaran poojan ( an essential process in tantra process) since he is Kaam Kala Siddh…….he does not have that much competence………….now it‟s time to accept the challenge rather than simply uttering words…anyone can write in his /her group….has he ready to prove his credentials as Maha siddh…..we are waiting…….come on…. 6) Now how can his work are called Nikhil work?? He even does not belong to our tradition. His guru is self-made and we do not have any relation with him (because our Sadgurudev has never nominated him as our Guru).If his Guru is capable, then why he is asking us all to provide Humzaad Sadhna or any alchemy process? Does he not trust even his own Guru and now we are going to disclose all the mails of this great person so that we know about this self-made Kaam Kala Kaali Siddh sadhak“..If that person is boosting of being a Kaam Kala Kaali Siddh“If it is like this then this Bhagwati siddh would come in the front of people“..rather than crying hard in the group“ 7) We have never claimed that we have the treasure of sadhna. Because we have the various dairies given by Sadgurudev himself““we have the notes of most of the shivirs which we have gathered from our guru brothers ““we have taken sadhna from various siddhs running after them. We have never claimed that we are the only one in the universe having these sadhnas “and I can do this and that“..And they are chanting the dhayan mantra on stage looking from the books, how can their work be called Nikhil work. If his Guru is capable, then the disciple of capable guru never bows down in front of anyone. The mail of this self-made Siddh will show his true face to you all and I am going to publish his all mails very soon so that its actual face is seen by everyone. 8) Because we are not Guru“.neither do we possess the capability to provide Brahmtav Diksha nor we will have it in future“.Because we are only disciples and Our Sadgurudev is both our father and mother and we are the one who can talk about Nikhil work. 9) Sadgurudev has always remained like lion-like and he has made only lions …not the cowards…..not the beggars…..also not those who run their business of doing so called Nikhil work begging everywhere…How can Sadgurudev make this person authority to decide who is doing Nikhil work and who is not??What he has done on his own…. and how can he give the certificate of Nikhil work….Just make a
group……gather the crowd……and started shouting….Just taking his name does not make anyone disciple of Nikhil…and we are saying this Nikhil disciple being made by just uttering words. 10)And Today I am here, prepared by Sadgurudev …just tell the name of any Astrology scripture which this great person has imbibed…..tell any tantra scriptures which they have followed in their life….I can tell it from start to end. I am proud that Sadgurudev has given me the ability….I am ready for challenge…Whose lord‟s Aavaran poojan is it or any tantric process, I am here standing without book…..Has this self-made Maha siddh got the capability to even tell 2-3 pages……..tell the name of tantra scripture which they know by heart….they do not even know 2-3 pages…..and they talk about Brahmand and other poojan…. 11)He is a great person….very blatantly they say….that Nikhil disciple is like this and like that …..I can do this and that…..I have got Kaam Kala Kaali siddh and this god too……I have got 100 mails of him where he is begging that nobody listen to me…..I am debt-ridden….please help me ….I am going to die….and I did this process but that was unsuccessful. 12)One more person is standing by his side who left no stones unturned to write about me that in one group , one guru brother is praising other , he is being appreciated and he is being lauded more than Sadgurudev…he got the impression that Sadgurudev is being criticised….Can someone ask him what is written and what was written. Today he is the only one who is learned, rest of us are unaware. Rest of people do not know anything. Rest all are empty minded only these 2-4 are scholars….But now….What is happening now they themselves are standing by the side of the person who has deviated from the path and how he was siddh or has become so.. 13) Talk in abusive manner, is it right“..?? Just by writing Jai Mahakaali, they have become tantra siddh“..If capable, come forward“.let’s see how big tantrik or mantrik this guy is,disciple“.Can he accept the challenge in front of the society“..express your ego in your group, have you got the capability to throw the challenge That I can do this and that“If you are competent come forward. We should know how great disciple you are, what all you have learnt up till now“.what you can provide“what you can accomplish.. 14)Don’t shout in your group. If you have the competence, let’s talk about challenge. Anyone can make group. 15)I have been doing work only and only as a disciple whose proof now is not only me but you all too““they are getting jealous“Works done by me are pricking you like thorn“.But I have never called my work as Nikhil work“.I have just told that it is my dream to do this“which I have seen“.That whatever I can do , I will do to fulfill all the incomplete works of Sadgurudev“..at any cost“.and for this I do not need any certification from anyone.
16)Now we give sadhnas, how many times we have clarified that these were either given by Sadgurudev or his Sanyasi disciples or we would have got from any experienced siddh. We have taken prior permission from them“..we ourselves do not make these sadhnas“ “ These sadhna process “.we have been told to give just as Guru Brothers only and these are given in the same way he or the siddhs have ordered. This is something like if an elder brother knows how to ride the cycle, he is teaching his younger brother. How can the talks of being Guru arise“. 17)Acharya Chanakya has rightly said that straight trees are cut first. The extreme politeness with which I treated him…that he is like my brother…..at least he will understand my feelings….but they all considered my politeness to be my weakness only…..that‟s why they gained the courage to do so…. See thisSanctimonious who became the disciples of self-made Guru but their Guru mantra should be of their own but still…because our Guru Mantra given by Sadgurudev is such that if someone chants it after taking any Diksha or without Diksha, his works will be done. See their cleverness they are using the Guru Mantra given by Sadgurudev, why they do not have their own Guru Mantra….But their works are called Nikhil work…..whatever they do is Nikhil work. Why they can‟t say it‟s their personal work…..If they would have remained disciples only, we could have understood it.When they have become self-made guru, then it is the misuse of Sadgurudev words. How can they be called disciples now….and supporters of these great persons are questioning us…… only their work is Nikhil work…and no opposition…. If they are that much siddh…..kaam kala Kaali siddh then what all is this…. 18)Having objection and laughing on our work.. But what is that work which only they are able to understand. Rest all are mindless, only they have got the special intelligence. What great work they have done up till today by using this special intelligence. 19)Spreading religious animosity and disturbing the peace or getting it disturbed is never the work of Nikhil‟s disciple. Sadgurudev has never given importance to it while giving Diksha. Before becoming a disciple, it is necessary to be good human being. Who can‟t understand religion and morality, what more that fool can understand. Religious wild acts are the domain of empty minded people, not of the persons who are dedicated to tantra or spirituality. It is knowledge and everyone has a right on this knowledge. Therefore it is our sincere request to you all that be cautious of the one who talks anything in the name of Sadgurudev of Nikhil work…..and always use your mind. But if we are not willing to understand….then this will happen always…..and if we are able to grasp it, wed will be saved in future so many times from being
cheated…….nobody would be able to play with your feelings……do sadhnas yourself, do not be pleased merely by reading them…..if it is authentic process…if you have done hard-work….then how you will not be successful….Doing sadhna is not being inactive…. Rather it is the activity to transform your fate taking support of divine lotus feet of Sadgurudev…..and you are part of him so you can do it…definitely you can do it…..I will make the sadhna articles available and that too free of cost so that you never have regrets that sadhna articles were not authentic because I can bear the cost…but it will not happen that any of my brother could not attain knowledge just because he could not afford it…..This tradition will go on from now. You already have the sadhnas for this month but for the next month also sadhnas are also available now……But this will be given only from 10 June and will be valid up till 10 July…..and this tradition will never stop now…I am always with you as your brother….Neither I am suitable to give Diksha nor I can provide you the success….but I can at least introduce you to truth and authenticity…I am polite but not a coward…always ready to accept the challenge…..and at the time of confrontation , you all will know who will win and who will lose. Selected sadhnas for 10 June to 10 July 1) Kinnarottam Sadhna: To establish contact with kinnar world , for attaining completeness in field of acting and arts. 2) Gaibi Humzaad Process:An amazing process of Muslim tantra whereby Humzaad is compelled to manifest himself. 3) Poorn Neeltaara Medha Prayog: To imbibe intense remembering power and Vidya element. 4) Sabar Siddhi Vidhaan: After this, success in sabar sadhna is assured. 5) Saundarya Lutika Prabheda Process: Padhati of Tibet Boudh tantra which provides complete beauty and wealth. 6) Drishyashakti Paranivata Sadhna: For getting amazing success in field of Kaal Gyan darshan and Para Vigyan.
7)
Aghor Virupaaksh Sadhna:Process related for siddhi and darshan of shamshaaneshwar Dhoomra Lochan ( who is the foremost in Shamshaan sadhna) और ब Seven sadhnas of this Month and rules in context of these sadhnas , effective from now)
(
च्मरो , ऄब समय हैं कु छ
बहुत ही किे च्नयम और गंभीर बातों को अपके सामने रखने का .यह यारा जो
अज 5 वषष से ऄनवरत चि रही हैं , पर समय के आस सबदु पे ऄगर ऄभी कु छ भच्वष्य को दृच्ष्टगत रखते हुए च्नयम न रखे ..तो कु छ कठोर च्नणषय न च्िये गए तो .... और ईनका कठोरता से पािन न दकया गया तो ... दकये गए श्रम का ईतना पररणाम नही प्राि होगा .. हमें जो भी ईच्चस्थ ददशा च्नदेश प्राि हुए हैं . और जो हमारा आतने ददन से आस ग्रुप को देख कर अकिन रहा हैं ..ईसे र्ध्यान मे रखते हुए .. आससे पहिे की अप च्नयम पढ़े कु छ बाते पहिे अत्म मंथन कर िे
तभी साथषकता रह पायेगी
..अपके श्रम की और हमारे श्रम की भी .. कयोंदक साधना कोइ हास पररहास का नही बच्ल्क सवाषच्धक गंभीर च्वषय या कमष हैं तो .... 1. कया अप एक असन पर कम से कम २ १/२ घंटे तक
च्स्थर बैठ पाते हैं .?
2. कया अपने गुरु मंर का कम से कम सवा िाख मंर का एक ऄनुष्ठान दकया हैं ?? 3. कया अप ने सवा िाख
चेतना मंर का जप दकया हैं .??
4. कया अप की सदगुरुदेव या सदगुरुदेव स्वयं िारा च्नर्ददष्ट परम्परा पर श्रिा हैं.?? 5. कया अपके मन मे हर हाि मे सदगुरुदेव का स्थान सवोपरर हैं, और ईस स्थान पर दकसी “ तथाकच्थत स्वम्भू गुरु “ बन बैठे को
गुरु बनाने का मानस
तो रख कर नही चिे हैं या हैं .या श्रिा रख रहे
हो ?? आन प्रशनो का ईत्तर को पहिे ऄपने मन मे मंथन कर िे .पहिे चार सबदु पर अपके ईत्तर यदद “”हाूँ “” मे हैं और पंचम सबदु पर
यह की च्सफष अपके च्िए सदगुरुदेव ही सवोपरर हैं और ऄन्य दकसी भी
****तथाकच्थत स्वयम्भू गुरु***** के च्िए कोइ स्थान अपके मन मे नही हैं ,तभी अगे अने वािे च्नयम पढ़े ... कयूदं क आस शब्द का बहुत गहन ऄथष है ... प्रकट तौर पर सदगुरुदेव िारा,मार तीन ही गुरु गृहस्थों हेतु च्नर्षमत दकये गए हैं,जो स्वयम्भू गुरु बना है आसका सीधा ऄथष ये है की वो आस सदगुरुदेव के आस च्नणषय से सहमत नहीं है....ऄतः ईनके समथषकों और च्शष्यों हेतु ये साधनाएं फिीभूत हो ही नहीं सकती है..ये हमें कठोरता के साथ कहा गया है..ऄतः आस बात को हृदयंगम कर िे...कयूदं क कु छ िोगो की मनोवृच्त्त या समझ को मैं कया कहूूँ...जो यहाूँ ग्रुप में कहते हैं की गुरु भाइ को ज्यादा मान ददया जा रहा है गुरु की ऄपेक्षा..तो ईनकी बुच्ि की कु न्द्ता को मैं कया कहू,ऄरे मैं चाहे अकाश पाताि एक कर दूूँ रहूूँगा तब भी बना रहना चाहूूँगा च्शष्य ही...दीक्षा देने की क्षमता मुझमे कभी नहीं अएगी...कयूदं क पहिे मैं ढंग से च्शष्य ही बन जाउं तो मेरा जीवन साथषक हो जायेगा...| मैं तो सदैव भाइ ही हूूँ और मेरा ये सारा खट्टा मीठा ज्ञान मार मेरे सदगुरुदेव की कृ पादृच्ष्ट का पररणाम है मैं कोइ स्वयम्भू गुरु नहीं और ना ही मुझे मन्रों या श्लोको या साधना च्वधान को समझाने के च्िए पुस्तक देखने की जरुरत है...मैंने जो समझा है ईसे अत्मसात दकया है और ईसे कइ बार कायषशािा में प्रत्यक्ष करके च्बना दकसी अडम्बर के ऄन्य गुरु भाइ बहनों के समक्ष प्रमाच्णत भी दकया है | ईन मूखों को मैं कया समझाउं की आस भाइ की बात ईन्हें गित िगती है पर दूसरा भाइ च्जसे तंर का क भी नहीं अता है और जो स्वयम्भू गुरु बने बैठे हैं,ईनकी वाह वाह करने में वो पीछे नहीं हैं...| गुरु बनों दकसने मना दकया है गुरु बनने को,पर ऄपने बूते पर च्बना च्नच्खि नाम का सहारा च्िए बनकर ददखाओ और साच्बत करो ऐसे च्शष्यों को सामने िाकर जो की तंर को दियात्मक रूप में संपन्न करके ददखाए,जैसा मेरे सदगुरुदेव ने दकया है और मैं जो कहता हूूँ करके भी ददखा सकता हूूँ,मुझे गवष है की ईन्होंने मुझे आस मागष पर गच्त दी है | ईन मूढ़मच्तयों को ये नहीं समझ में अ रहा है की मैं तो सदैव भाइ बनकर साथ हूूँ पर वो ईन तथाकच्थत ढोंच्गयों के साथ खिे होकर कौन सा च्नच्खि कायष कर रहे हैं..च्जनकी अूँखें और च्चत्त ही मर चूका है...| मैंने पाया है और आन्ही साधनाओं से पाया है और मेरा पररवार,मेरा पूरा जीवन,मेरे जानने वािे और आन सबसे बढ़कर मेरे सदगुरुदेव आस बात के साक्षी हैं की ये जूनन ू मैंने ददन ब ददन बढ़ाया ही है और तब पररणाम प्राि दकये हैं | यदद अप भी आन्हें पूणष च्नयम और दृढ़ता के साथ च्वधान के साथ मनोयोग पूवक ष करें गे तो अप भी मायूस नहीं होंगे..|
१. ऄब से जो भी ईच्च कोरट के च्वधान च्जनके बारे मे फे सबुक या ब्िॉग पर अएगा ,पर ईनके
बारे मे
पूणत ष ा से ईन्हें च्सफष जो सदगुरुदेव जी से दीच्क्षत हैं या गुरु च्रमूर्षत से दीच्क्षत हैं या ऄन्य ईन दकसी भी गुरु से दीच्क्षत हैं जो की हमारे सदगुरुदेव से दीच्क्षत ** नही** हैं ..ईन्हें ही ददया
जायेगा. ये
साधनाएं सहज प्राप्य नहीं रही हैं,आन्हें कइ बार परखा गया है ऄनुभच्ू तयों की नुकीिी चट्टानों पर,और हर बार आनका प्रभाव ऄद्भुत रहा है,आसच्िए आन्हें व्यच्िगत तौर पर ही ईपिब्ध कराया जा रहा है,तादक अप यदद
आन्हें पूणष मनोयोग से संपन्न करे तो सफिता का वरण कर आसका िाभ...स्वयं,स्व पररवार,समाज और राष्ट्र को प्रदान कर सके ... २. हर महीने अने वािी सात साधनाए के च्िए बस 30 /40 यह देखने मे अया
हैं दक दकसी भी च्वधान के बारे मे
ही यन्र बनबाये जा रहे हैं ऄभी तक
जब ग्रुप मे अता हैं तो
ऄच्धकतम
कमेन्ट 60 या 70 तक अते हैं च्जनको यदद र्ध्यान से देख जाए तो मार 30 या 35 िोग ही दकये होते हैं तब और यंर बनाने का कया औच्चत्य ?? ३. एक यन्र पर भिे ही च्नमाषण की कीमत
२० से ३० रुपये अये
या कम /ज्यादा
भी . पर
एक एक आस प्रकार की ऄपने अप मे “च्वच्शष्ट साधना “ के च्िए अवश्यक यन्र को प्राण प्रच्तच्ष्ठत , चैतन्य
करना , शास्त्रीय मांच्रक और तांच्रक च्वधान पूणत ष ा के साथ समपन्न करना , अवश्यक कमष
कांड , हवन को च्बना दकसी रुरट के सफिता
भी दे सके , और आसमें
आस तरह से पूरे करना की सबंच्धत देव शच्ि पूणत ष ा के साथ
समय और धन दोनों की अच्नवायषता
होती
है हीं .और आन
प्रदियाओ को सम्पन्न करने मे हजारों रूपये का खचष अता हैं . यह कोइ अपके सामने बार बार कहने की बात या तथ्य नही हैं . ४. पर अपको च्नशुल्क यह यन्र और च्वधानकयों ईपिब्ध कराया जाए .... पर यह सब कयों ?? अज कौन हैं जो यह सब कर रहा हैं . ..दकसे सचता हैं.... च्सफष एक ईदेश्य की ऄब अप भी सफि हो कर सामने अ सकें ..आन च्वधानों की श्रेष्ठता /ईपयोच्गता ऄब हम नही अप स्वयं प्रमाण बन कर दे .......च्सफष च्िख च्िख कर अच्खर कब तक ......और दक यह च्वधान हैं और वह च्वधान हैं पर ददया दकसी को नही ...कयोंदक कोइ ईसके िायक ईन्हें च्मि ही नही रहा हैं .ऐसा कह कर ......कब तक ऄन्य िोगो दक तरह िोगों को भ्रच्मत दकया
जा सकता हैं . पर यह बात हम पर भी िागू हो .आस से पहिे .ऄतः ऄब समय
हैं दक ..ऄब हमारे कायष का पहिा परीक्षा काि प्रारं भ हो .... ५. ऄब समय हैं दक .जो साधनाए हम दे ईसे .हम ऄपनी ओर से पूरा श्रम करे
और शेष अपके
च्हस्से की मेहनत अप मनोयोग ..प्राण प्राण से करे ........और यह हर पि र्ध्यान मे रखें की गुरु भाइ के बि च्वधान समझा सकते हैं ...पर सफिता के बि और के बि सदगुरुदेव ही दे सकते हैं.......ऄब अपकी सफिता ही हमारा कायष का एक प्रमाण होगी .ऄतः च्नश्चय ही ..सब नही के बि कु छ जो साधना को करके सफि होना चाहते हैं .ईनके च्िए ही यह सब ....... और हमारा कोइ भी दकसी भी प्रकार का ईदेश्य या गुि ईदेश्य नही हैं . .अज तक हमारी कथनी ही हमारा प्रमाण रहे हैं .
६. कभीं कभी यह मानना पिता ही हैं दक ऄगर हर चीज असानी से ईपिब्ध हो तो शायद ईसका ऄथष ईसकी गंभीरता समाि सी हो जाती हैं .ऄतएब आन साधनाओ को कै से अपको ददया जाना हैं ?? यह भी च्वचारणीय हैं . आसके च्िए हमने यही सोचा हैं दक कोररयर के मार्ध्यम से सबंच्धत
यन्र
और सम्बंच्धत पूणष साधना च्वच्ध ,ईन कु छ चुच्नदा
व्यच्ियों को
जो सच मे
साधना के प्रच्त समर्षपत हैं या होना चाहते हैं .........ईनके पते पर भेज दी जायेगी च्सफष अपको कोररयर चाजष ही देना होगा ...आसके बाद ऄभी भी ..ऄब ऄगर कोइ भी स्वयं व्यच्िगत रूप मे च्मिकर और भी मागषदशषन पाना चाहता हैं तो (के बि एक ईसी साधना के सन्दभष मे ) तो च्सफष और च्सफष एक गुरु भाइ की मयाषदानुसार हम ईपिब्ध रहेंगे .. ७. महत्वपूणष तथ्य :: पर आन साधनाओ को देते समय यह भी र्ध्यान मे रख जायेगा की वह व्यच्ि च्वशेष का सदगुरुदेव के प्रच्त कया रुख हैं .च्सफष हमारे ग्रुप मे ही नही बच्ल्क ऄन्य ग्रुप मे भी ... कयोंदक यह देखने मे अया हैं की च्नच्खि तत्व या च्शष्य के प्रच्त जो अया जैसा अया च्िखा जाता हैं कयोंदक शब्दों का कया हैं ...जो मन अये च्िखो ..... और यह ईन ग्रुप का कायष हैं पर िोग सब मौन रह कर
दशषक
बने रहते हैं ...सभी पक्षों को मौन समथषन देना यह तो ठीक नही हैं ...ऄतः च्नश्चय ही ऐसे िोग जो हर जगह मौन समथषन देते रहते हैं ईन तक साधनाए न ही पहुचे ये भी हमें बहुत र्ध्यान रखना हैं . ८. च्जनको भी यह साधनाए दी जायेगी ,कयोंदक आस प्रदिया को हिका नही बनाना हैं तो ईन्हें ऄगिी साधनाए ईपिब्ध कराने से पहिे यह देख च्िया जायेगा दक कया वास्तव मे ईन्होंने साधनाए की हैं या बस ...यह कै से देखना हैं यह हमारा कायष होगा .कयोंदक च्जतना कठोरता हमारे िारा रखी जायेगी ईतनी ही सभावना सफिता प्राच्ि की सभावनाए अपकी होगी .भावनात्मक बातों के च्िए आस साधनाओ के सन्दभष मे शायद ऄब कोइ जगह नही होगी . ऄब जब बात साधना की होगी तो हम और अप दोनों पर ही च्नयम कठोरता से िागु होंगे .
९. यह स्पस्ट करना चाहता हूूँ .दक प्राि हुए ददशा च्नदेश के ऄनु सार ...जो भी साधनाए , च्नच्खि ऄल्के मी ब्िॉग या
च्नच्खि ऄल्के मी फे सबूक ग्रुप
पर
ईपिब्ध हैं वह के बि और के बि “तंर कौमुदी “ फ्री आ पच्रका प्राि करने वािो को ही फिी भूत होंगी ..
१०.
के बि भावनात्मक कमेन्ट च्िखने वािो को या हमारे ऄपनों को भी ..आन साधना के च्िए
चुने जाते समय नही ......बच्ल्क जो सही ऄथो मे साधनाए करना चाहते हैं ईसे ही यह ईपिब्ध कराइ जायेगी . .यह च्नयम भी कठोरता से पािन होगा . ११.
और यह साधनाए मजाक की वस्तु नही होगी .. को कोइ भी हल्का सा च्वधान रख ददया
......न ही के बि प्रशंशा के च्िए ....बच्ल्क जीवन पररवतषन मे सक्षम होगी . १२.
च्जसे जो भी साधनाए च्मिेंगी वह दकसी ऄन्य को ईसका च्वधान च्बना ऄनुमच्त च्िए नही
बतायेगा
१३.
.च्जनको भी यह साधनाए दी जायेगी ईन्हें पहिे से सूच्चत कर ददया जायेगा या तो ईन्हें च्सफष
कोररयर का खचष वहन करना होगा या व्यच्तगत च्मिने के ऄवस्था मे ईनके ऄपने अने जाने खाने पीने की व्यवस्था का स्वतः ही भार वहन करना होगा. मइ माह की ७ साधनाएं जो १० जून तक प्रभावी है :१. अत्मगणपच्त साधना – तंर के ईच्च ज्ञान तीक्ष्ण बुच्ि,स्मरण शच्ि और भगवान गणपच्त के दशषन प्राि करने के च्िए एक गोपनीय च्वधान . २. तांरोि गुरु साधना – गुरु साधना का वो सोपान च्जससे अप सीधे गुरु प्राणों से एकाकार हो जाते हैं. और चि जागरण की दिया प्रारं भ हो जाती है,तब भिा कया बाकी रह जाता है . ३. कनक माया साधना – िक्ष्मी की ऄजस्र प्राच्ि का ऄघोर च्वधान,च्जससे िक्ष्मी बार्ध्य ही हो जाती है साधक के जीवन में रहने के च्िए. ४. धी: सम्मोहन साधना – च्तब्बती पद्दच्त से दकया जाने वािा ऐसा प्रयोग च्जससे मार १४ ददनों में अप का व्यच्ित्व पूणष अकषषण क्षमता से युि हो ही जाता है, आसे ऄन्य सम्मोहन प्रयोगों में ना च्गने. ५. च्सि सम्प्रेषण साधना- च्वचार सम्प्रेषण की ऄद्भुत दिया,च्जसके िारा दकसी भी नवीन क्षेर में रहने वािे च्सद्र्ध्जनों से संपकष कर ईनकी प्रत्यक्ष कृ पा,सहयोग और ज्ञान प्राि दकया जा सकता है तथा प्रकाश युि छाया च्वहीन सूक्ष्म देह बनाने का पहिा तथा ऄच्नवायष सोपान . ६. रसायनमेखिा साधना – कायाकल्प और रस च्वज्ञानं की अधारभूत साधना च्जसके िारा पारद च्वज्ञान के रहस्यों को अत्मसात कर पूणष सफिता पायी जा सकती है. ७.
साबर औच्िया साधना – आतर योच्नयों का सहयोग प्रदान करने वािी ऄद्भुत साधना. =============================================
Friends,
Now is the time to put forward very stringent rules and serious things in front of you.This journey has been continuously going on from last 5 years .But if we do not put some rules looking at the future then….. Some strong decisions are not taken then ….. And they are not followed firmly then… We will not get the desired result of our hard-work. Keeping in the mind high lever orders which we have received and based on the analysis of groups from quite some time…… Before you read the rules, let‟s introspect yourself then only hard-work of both you and us will be fruitful. Since sadhna is not the subject matter of laughter, it is a very serious issue then…. 1. Can you sit stably (unmoved) on one aasan for at least two and half hours? 2. Have you done the anushthan of Guru Mantra of at least 1.25 lakhs? 3. Have you chanted chetna mantra 1.25 lakh times? 4. Have you got faith on Sadgurudev and tradition given by Sadgurudev? 5. Do you consider Sadgurudev supreme all the time and you do not have intention to make so called self-made gurus as your guru or have faith in them?? Please think about the answers of these questions in your mind. If the answers to first four questions are yes and for the last question, Sadgurudev is supreme for youand you do not have any place in your heart for so called Self-made gurus, then only read the rules given below…..Because it carries a deep meaning …..Visibly Sadgurudev has made 3 gurus for all householders. Whosoever has become selfmade guru, it simply means that he/she does not agree with this decision of Sadgurudev……….Therefore for the supporters and disciples of them, these sadhnas can‟t be fruitful…..This has been told to us very stringently…..therefore imbibe this thing in your heart……Because what I can about the mentality of some people in the group……who are saying in the group that Guru Brother has been given more respect than Guru…..what I can say about the negativity in their mind…….whatever I may be able to do, but I will always wish to remain a disciple only…….ability to give Diksha will never come in me…….because first I should become a true disciple, then my life will become meaningful. I am always a brother and all this knowledge is only the blessing of my Sadgurudev. I am neither any self-made Guru nor I do not have need to see books to make you understand mantra, slokas or any sadhna process….. Whatever I have understood, I have imbibed that and have shown it to guru brothers and sisters in various workshops without any showoffs.How can I make those fools understand that they consider this brother as wrong and the person who does not even have the preliminary knowledge of tantra and have become self-made Guru, they leave no stone unturned appreciating them. Become gurus, who have opposed it but become on your own, without taking the assistance of name Nikhil
and prove it by bringing the disciples who can accomplish the tantra in practical way , the way my Sadgurudev has done. Whatever I say, I can show it by doing also. I am proud that he has initiated me in this path. These foolish people are not able to understand that I am always there as the brother but by standing with so called frauds, what sort of Nikhil work they are doing….who have become blind and whose hearts have died. I have achieved and have achieved because of these sadhnas only. My family, my whole life, my acquaintances and most importantly my Sadgurudev are witness to the fact that this passion has increased day by day and then only I have achieved the results. If you all will also do this process by dedication and will follow the rules, you also will not be disappointed. 1) From now on, whenever any high-order sadhna process will come on Facebook or blog, it will be told fully only to those who either have taken Diksha from Sadgurudev or Guru Trimurti or from any Guru who have not taken Diksha from our Sadgurudev. These sadhnas have never been easily available. They have been tested multiple times on the stringent parameters of experiences and results have always been amazing. Therefore they are being made available on personal level, so that if you do them with full dedication, then after getting success you can provide the gains to yourself, your family, society and the nation. 2) Only 30-40 yantra are being made for 7 sadhnas which will be coming each month .It has been seen that whenever any sadhna process appears in the blog then maximum number of comments are 60 or 70.If we pay attention to them, they are made by 30-35 persons so there is no logic in making more yantras?? 3) May be making of any yantra will cost only 30 to 40 rupees approximately but each yantra needed for these special sadhnas ,needs to be energised , instilledconsciousness , doing shastriy, mantric and tantric process on them, doing the necessary rites hawan without any errors so that associated lord can give you the complete success. This definitely requires both time and money and completing these processes requires thousands of rupees. This fact need not to be iterated again and again. 4) But why to make this yantra and process available to you free of cost? Who is the one doing like this today…..who is worried about your success…………..so that you can be proof to supremacy of these process, not us………………just writing will not solve the purpose…and people can‟t be fooled by citing the various processes but not providing it to them giving the excuse that we are not able to find capable persons
for it.But this applies to us also. So this is time that examination of our work should start. 5) Now is the time that whatever sadhnas we give, we do the hard-work from our side and you do your part of hard-work by full dedication…. And always keep this in mind that Guru Brothers can only make you understand the process but the success can only be provided by Sadgurudev. Now your success will be the certificate of our work. Therefore definitely it is for not all but only those who want to be successful by doing sadhna. We do not have any secret agenda and our work is a proof to it. 6) We have to agree sometimes that the thing which is easily available, we do not understand its importance and its importance vanishes. Therefore how this sadhna needs to be given?? This is the point under consideration. For this we have thought that we will send the related yantra and related sadhna process via courier to all those chosen persons who are dedicated to sadhna field or willing to be…..Only they have to bear the courier charges. If after that also, someone wants to take guidance personally (only in relation to that particular sadhna), then we will be available only as a Guru Brother. 7) Important Point::But one more thing will also be kept in mind while giving these sadhnas that what is the attitude of that particular person towards Sadgurudev. Not only in our group but in other groups also. Because it has been seen in many groups that many things are written for Nikhil element or disciples as per their sweet will but people remain silent spectator after seeing this…..giving silent approval to all sides is not correct….. Therefore we have to keep in mind that these sadhnas should not reach the people who give the silent approval. 8) We do not have to take this sadhna process casually. Whosoever will be given these sadhnas, it will be seen before giving next sadhnas to them whether they have actually done the sadhnas or not. This will be done by us. The more stringent we are, more will be the chances of your success. There will probably be no place for emotional talks in context of sadhnas. When it is matter of sadhna, then the rules will apply both on us firmly. 9) One thing need to be clarified that as per the direction received….the sadhnas which are available either on Nikhil Alchemy blog or Nikhil Alchemy Facebook group will be fruitful only to those who get the e-magazine “Tantra Kaumadi”.
10)There will be no time to choose those who write emotional comments or are close to us………it will be made available to only those who really wants to do sadhna. This rule will also be followed stringently. 11)These sadhnas will not be matter of laughter……….nor it will be frivolous process…………nor it will be merely for appreciation. They will be capable of transforming your life. 12)Whosoever will get the sadhnas, they will not tell the process to anyone without seeking permission. 13)Whosoever will be given sadhna, they will be informed in advance. Either they have to bear the courier charges and in case of personal meeting, they would have to bear the travel and food charges. Here are the 7 sadhnas of May which are effective up till 10 June:1) AatmGanpati Sadhna- Sadhna to attain higher knowledge of Tantra , supreme memory power and to get Ganpati Darshan. 2) Tantrokt Guru Sadhna–That step of Guru Sadhna where you directly become one with your Guru and the process of Chakra Jagran starts. Then what is left. 3)
Kanak Maya Sadhna-Aghor process to attain Lakshmi whereby Lakshmi is compelled to remain in the life of sadhak.
4) Dheeh Sammohan Sadhna–The process done by Tibet Padhati by which your whole personality becomes attractive in just 14 days. Do not count this process as just an another Sammohan process. 5) Siddh Sampreshan Sadhna–the amazing process to transmit thoughts by which any great siddhs living in new area can be contacted and we can get their blessing , assistance and knowledge from them. This is the first and necessary step for lightfull shadow less subtle body. 6) Rasayan Mekhla Sadhna–The basic sadhna for Kayakalp and Ras Vigyan by which we can attain success by imbibing the secrets of Parad Vigyan. 7) Sabar Ooliya Sadhna– Amazing sadhna to get the assistance from ittar yonis.
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प्रद्युत्मान तन्नोपरर ईिररत: नूतन सृजःईत्तपच्त्त सहददष्ठ: ब्रह्मांडो सहपरर सहबीज: ऄक्षतान् | मुमक्ष ु ताम च्स्थरताम वै: ददव्यः वपुः मेधा: पूणम ष पूणै सपररपूण:ष असन: ददव्यताम च्सच्ि: ||
“च्वरूपाक्ष कल्प तंर” से ईद्धृत रयी कल्प का प्रथम महत्वपूणष ऄंग है असन च्सच्ि | असन शब्द का प्रयोग च्वच्वध ऄथों में दकया जाता है यथा...बैठने की पिच्त,भूच्म, तथा वह स्थान या मार्ध्यम च्जसके उपर बैठकर अर्ध्याच्त्मक या भौच्तक कायष संपन्न दकये जाते हैं |
च्सि च्वरूपाक्ष ने आस शब्द को नवीन ऄथष प्रदान दकया है...ईन्होंने बताया की साधक को दकस मार्ध्यम का दकस तरह प्रयोग करना चाच्हए..आसका ज्ञान ऄच्नवायष है,आस पिच्त का पूणष ज्ञान ना होने पर वह मार्ध्यम मार मार्ध्यम ही रह जाता है,ऄब ईसके प्रयोग से साधक को ईसके तंरकायष में ऄनुकूिता च्मिेगी ही ऐसा कोइ प्रावधान नहीं है |
“पूणम ष पूणै सपररपूण:ष असन: ददव्यताम च्सच्ि:” ऄथाषत असन मार असन न हो ऄच्पतु ईसमे पूणष ददव्यता का संचार हो और वो ददव्यता से युि हो तभी ईसके प्रयोग से साधक की देह ददव्य भाव युि होती है और तब यदद ईसका भाव या साधना पक्ष ईसे पूणषत्व के मागष पर सहजता से गच्तशीि करा देता है और साधक को पूणषता प्राि होती ही है | यहाूँ पूणम ष का ऄथष भी यही है की मार्ध्यम पूणषत्व गुण युि हो तभी तो पूणषत्व प्राि होगा | तंर शास्त्र कहता है की ददव्यता ही ददव्यता को अकर्षषत कर सकती है |यदद साधक ददव्य तत्वोव के सामीप्य का िाभ िेता है या संपकष में रहता है तो ईसकी देह में स्वतः ददव्यता अने िगती है,तब ऐसे में वातावरण में ईपच्स्थत वे सभी नकारात्मक ऄपदेव शच्ि, ऄदृश्य यक्ष,प्रेत अदद अपके मंर जप को अकर्षषत नहीं कर पाते हैं और अपकी दिया का पूणष फि अपको प्राि होता ही है | हममे से बहुतेरे साधक ये नहीं जानते हैं की जब भी वे दकसी महत्वपूणष ददवस पर साधना का संकल्प िेते हैं और जैसे जैसे साधना का समय समीप अता है ईनके मन में साधना और आष्ट के प्रच्त नकारात्मक च्वचार ईत्पन्न होते जाते हैं | या यदद कडा मन करके वे साधना संपन्न करने हेतु बैठ भी गए तो कु छ समय बाद ईन्हें ये िगने िगता है की बाहर मेरे च्मर ऄपने मनोरं जन में व्यस्त हैं और मैं मूखष यहाूँ बैठा बैठा पता नहीं कया कर रहा हूूँ ? कया होगा ये सब करके ? अज तक तो कु छ हुअ नहीं,ऄब कया नया हो जाएगा ? हमें ये ज्ञात नहीं है की असन यदद पूणष प्रच्तष्ठा से युि ना हो तो हम चाहे दकतने भी गुदगुदे असन पर या गद्दे पर बैठ जाएूँ,हम च्हिते डु िते रहेंगे और हमारे च्चत्त में बैचेनी की तीव्रता बनी रहेगी | और आसका कारण हमारे शरीर का मजबूत होना नहीं है ऄच्पतु भूच्म के भीतर रहने वािी नकारात्मक शच्ियां सुरक्षा अवरण च्वहीन हमारी आस भौच्तक देह से सरिता से संपकष कर िेती हैं और तब ईनके दुष्प्रभाव से हमारा च्चत्त भी बैचेन हो जाता है और शरीर भी टू टने िगता है और वे सतत हमें साधना से च्वमुख होने के भाव से प्रभाच्वत करते रहते हैं| और जब ऐसी च्स्थच्त होगी,अप व्याकु ि मन और ऄच्स्थर शरीर से कै से साधना करोगे और कै से अपको सफिता च्मिेगी | और यदद अप असन से ऄिग हो जाते हो तो पुनःना च्सफष अपका शरीर स्वस्थ हो जाता है बच्ल्क अपका च्चत्त भी प्रसन्न हो जाता है | तभी सदगुरुदेव हमेशा कहते थे की आस धरा पर बहुत कम च्गने चुने स्थान बचे हैं ,जहाूँ पर बैठकर ईच्च स्तरीय साधना की जा सकती है,ऐसी साधनाएं या तो च्सिाश्रम की ददव्य भूच्म पर
संपन्न की जा सकती है या दफर शुन्यअसन का प्रयोग कर,बाकी ऐसी कोइ जगह नहीं है जो दूच्षत ना हो | यहाूँ तक की भी शमशान साधना में भी तब तक सफिता की प्राच्ि संभव नहीं हो सकती जब तक की ईस साधक को असन च्खिने की पिच्त का भिी भांच्त ज्ञान न हो | एक साधक के िारा प्रयुि सभी साधना सामग्री का च्वच्शष्ट गुणों से युि होना ऄच्नवायष है ऄन्यथा सामान्य सामच्ग्रयों में यदद वो च्वच्शष्टता ईत्पन्न ना कर दे तो ईसके िारा संपन्न की गयी साधना दिया सामान्य ही रह जायेगी | यदद हम स्वगुरु या दकन्ही च्सि च्वशेष का अवाहन करते हैं तो प्रत्यक्षतः ईन्हें प्रदान दकये गए असन भी पूणष शुिता के साथ और ददव्यता से युि होने चाच्हए | आसके च्िए अप एक नया रं गच्बरं गा उनी कम्बि िे सकते हैं और आसे च्सि करने के पश्चात आसके उपर अप ऄपने वांच्छत रं ग का रे शमी या उनी वस्त्र भी च्बछा सकते हैं | मंगिवार की प्रातः पूणष स्नान कर िाि वस्त्र धारण कर िाि असन पर बैठकर भूच्म पर तीन मैथुन चि का च्नमाषण िम से कु मकु म के िारा कर िे | १ और ३ चि छोटे होंगे और मर्ध्य वािा अकार में थोडा बिा होगा | मर्ध्य वािे चि के मर्ध्य में सबदु का ऄंकन दकया जायेगा बाकी के दोनों चि में ये ऄंकन नहीं होगा | मर्ध्य वािे चि में अप ईस कम्बि को मोिकर रख दे और ऄपने बाए तरफ वािे चि के मर्ध्य में च्ति के तेि का दीपक प्रज्वच्ित कर िे और दाच्हने तरफ वािे चि में गौघृत का दीपक प्रज्वच्ित कर िे,और हाूँ दोनों दीपक चार चार बच्त्तयों वािे होने चाच्हए | ऄब गुरु पूजन और गणपच्त पूजन के पश्चात पंचोपचार च्वच्ध से ईन दोनों दीपकों का भी पूजन करे ,नैवेद्य की जगह कोइ भी मौसमी फि ऄर्षपत करे | आसके बाद ईस कम्बि का पंचोपचार पूजन करे | तत्पश्चात कु मकु म च्मिे १०८-१०८ ऄक्षत को च्नम्न मंर िम से बोिते हुए ईस कम्बि पर डािे |
ऐं (AING) ज्ञान शच्ि स्थापयाच्म नमः
ह्रीं (HREENG) आछछाशच्ि स्थापयाच्म नमः
किीं (KLEENG) दियाशच्ि स्थापयाच्म नमः
तत्पश्चात च्नम्न र्ध्यान मंर का ७ बार ईच्चारण करे और र्ध्यान के बाद जि के छींटे ईस वस्त्र पर च्छडके –
ॎ पृथ्वी त्वया धृता िोका देवी त्वं च्वष्णुना धृता | त्वं च धारय माम देवी: पच्वरं कु रु च असनं || ॎ च्सिासनाय नमः ॎ कमिासनाय नमः ॎ च्सि च्सिासनाय नमः
आसके बाद च्नम्न मंर का ईच्चारण करते हुए पुष्प च्मच्श्रत ऄक्षत को ईस कम्बि या वस्त्र पर ३२४ बार ऄर्षपत करे | ॎ ह्रीं किीं ऐं श्रीं सििोकं धाच्र ऄमुकं असने च्ससि भू: देव्यै नमः ||
OM HREENG KLEENG AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||
ये िम गुरूवार तक च्नत्य संपन्न करे | जहाूँ पर ऄमुक च्िखा हुअ है वहाूँ ऄपना नाम ईच्चाररत करना है |ऄंच्तम ददवस दिया पूणष होने के बाद दकसी भी देवी के मंददर में कु छ दच्क्षणा और भोजन सामग्री ऄर्षपत कर दे तथा कु छ धन राच्श जो अपके सामथ्याषनुसार हो ऄपने गुरु के चरणों में ऄर्षपत कर दे या गुरु धाम में भेज दे तथा सदगुरुदेव से आस दिया में पूणष सफिता का अशीवाषद िे | ऄद्भुत बात ये है की अप आस कम्बि को जब भी च्बछाकर आस पर बैठेंगे तो ना च्सफष सहजता का ऄनुभव करें गे ऄच्पतु समय कै से बीत जाएगा अपको ज्ञात भी नहीं होगा,दीघष कािीन साधना कही ज्यादा सरिता से ऐसे च्सि असन पर संपन्न की जा सकती है और अप
आसके तेज की जांच करवा कर देख सकते हैं की दकतना ऄंतर है सामान्य असन में और आस पिच्त से च्सि असन में | अप ऐसे दो असन च्सि कर िीच्जए और एक असन अप ऄपने गुरु के बैठने के च्नच्मत्त प्रयोग कर सकते हैं | अपको दो बातों का र्ध्यान रखना होगा | १.आन असनों को धोया नहीं जाता है | २. आन पर हमारे ऄच्तररि कोइ और नहीं बैठ सकता है,ऄन्यथा ईसकी मानच्सक च्स्थच्त व्यच्थत हो सकती है | ऄतः यदद दकसी और के च्नच्मत्त असन तैयार करना हो तो ऄमुक की जगह ईसका नाम ईच्चाररत कर असन च्सि करना होगा | स्वयं के ऄच्तररि जो हम गुरु सत्ता या च्सिों के अवाहन हेतु जो असन प्रयोग करें गे ईसे च्सि करने के च्िए ऄमुक की जगह ज्ञानशसि का ईच्चारण होगा| ये हमारा सौभाग्य है की हमें ये च्वधान ईपिब्ध है,अवशयकता है आन सूरों का साधना में प्रयोग करने की और साधना की सफिता प्राच्ि के मागष में जो बाधाएं अ रही है,ईन्हें समाि कर ईन पर च्वजय प्राि करने की | ऄगिे िेख में ऄक्षत तंर की जानकारी अप भाइ बहनों को मैं देने का प्रयास करुूँ गी,तब तक के च्िए ... ======================================
PradyutmaanTannopriUdhritahNuutanSrijah UtatptatiSehdishtahBrahmaandoSehpriSehbeejahAkshtaan | MumukshtaamSthirtaamvahidivyahvapuhmedhaah Poornampoornespripoornahaasanhdivyataam siddhi ||
Aasan Siddhi is the first important part of the Trayi kalp excerpted from “Virupaaksh Kalp Tantra”.The word aasan is used in various contexts like …..Sitting style, land or that place or medium on which spiritual and materialistic works are done. The great Saint Virupaaksh has given a new meaning to this word….He told that sadhak should be fully aware of how medium is to be used .It‟s knowledge is must. Medium remains medium only in absence of complete knowledge of this padhati. Now using this medium will definitely favour sadhak in tantric process, there is no such provision. “Poornampoornespripoornahaasanhdivyataam siddhi” meaning that aasan should not be merely a aasan rather whole divinity should be fully embedded in it and it should be combined with divinity, then only after using it , body of sadhak gets combined with Divya bhaav and then his sadhna element propels him easily on the way to completeness and sadhak definitelygets completeness. Here “Poornam” also means that medium should be complete, only then sadhak can attain completeness. Tantra scripture says that only divinity can attract divinity. If sadhak takes the benefit from proximity to divine element or remains in contact with it, then divinity starts coming in his body. In such an environment all negative forces, invisible prets (ghosts) and yaksha etc. are not able to attract mantra jap and one gets the complete results from the process. Most of sadhaks among us do not know the fact that whenever they take resolution to do sadhna on any important day and as sadhna time approaches, negative thoughts about sadhna and Isht (deity) starts arising in his mind. And if somehow he sits to complete sadhna, then after some time he starts getting the feeling that outside my friends are busy in entertaining themselves and what I the fool am doing here? What will I get after doing this? If nothing has happened up till now, then what new will happen now? We do not know that if aasan is not fully energised then whether we sit on very elastic aasan or mattress, we will always be moving here and there and the severe
restlessness will remain in our mind. And the reason for it is not that our body is not strong rather all the negative forces present in the earth can easily come in touch with physical body, which is without the security cover and due to bad influence of them our mind gets restless and body ache starts creeping in and all these continuously start influencing us to move away from sadhna. Insuch an condition, how will you do sadhna by anxious mind and unstable body and how will you get success? And when you leave the aasan, then not only your body becomes healthy but also you start felling happy. That‟s why Sadgurudev used to say there are only very few places left on the earth where high-order sadhnas can be done. These sadhnas can be done only on the divine land of Siddhashram or by using Shunya Aasan (aasan in air), no other land is there which is not polluted (impure).In shamshaan sadhna also, getting success in not possible until and unless sadhak is not aware of padhati of aasan khilan.All the sadhna articles used by the sadhak should necessarily be combined with special qualities otherwise if sadhak is not possible to impart exceptional qualities in it, then the sadhna process done by him will only remain normal only. If we do the Aavahan of our guru or any special saint then the aasan provided to them directly should be fully pure and divine. For this, you can take one new woollen blanket and after accomplishing it, you can lay your desired coloured silky or woollen cloth on it. On Tuesday morning, after taking bath, wear red clothes and sit on red aasan and construct three maithun chakra in sequence(as given above in diagram) by kumkum. First and third chakra will be small in size and the middle one will be little larger in size. Bindu (point) will be written in the centre of middle chakra. It will not be written in rest of two chakras. Fold the blanket and keep it in the middle chakra and lighten the lamp of Til oil in the middle of the chakra present on your left hand side and lighten the lamp of cow ghee in the middle of chakra present on your right hand side. Both these lamps should have four battis (piece of cotton) each. Afterdoing Guru poojan and lord Ganpati poojan, do the poojan of both the lamps by panchopchar method. Offer any seasonal fruit as navidya. After that do the panchopchar poojan of that blanket. Then offer 108-108 kumkum mixed rice on the blanket while chanting the mantras in the sequence given below.
AING GYAN SHAKTI STHAPYAAMI NAMAH HREENG ICHHASHAKTI STHAPYAAMI NAMAH KLEENG KRIYASHAKTI STHAPYAAMI NAMAH Then, chant the below dhayan mantra 7 times and after meditation, sprinkle the water on that cloth. Om PrithviTvayaDhritaLoka Devi TvamVishnunaDhrita | Tvam Ch DharayMaamDevihPavitramKaru Ch Aasanam || Om SiddhaasanayNamah Om KamlaasnaayNamah Om Siddh SiddhaasanayNamah
After that, offer flower mixed rice on that blanket or cloth 324 times while chanting the following mantra.
OM HREENG KLEENG AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||
Do this process till Thursday.Where “Amuk “ is written , you have to pronounce your name .On the last day, after completing the process offer some dakshina or food in any Devi temple and offer some money(as per your capacity) on the lotus feet of Guru or send it to Gurudham and pray to Sadgurudev for success in this process. Amazing thing is that whenever you will sit on this blanket, you will be at ease and how the time will pass by, you will never know. Any long- duration sadhna can be done on this accomplished aasan far more easily and you can test the aasan‟s intensity to see how much is the difference between normal aasan and the aasan accomplished by this process. Accomplish such two aasans and you can use one aasan for your guru to sit.
You have to keep two things in mind:
1) These aasans are never washed. 2) On them, except us, no one can sit otherwise his/her mental condition can deteriorate. Therefore if we have to prepare the aasan for somebody else, then we have to accomplish the aasan by using his/her name in place of Amuk. To accomplish the aasan for the purpose of Aavahan of Guru and saints, we have to use Gyanshaktim instead of Amuk.
We are fortunate enough to have such process.What is needed is to use such principles in our sadhna and to combat all the obstacles in our sadhna path and emerge as victorious.
In next article, I will try to give you information about Akshat Tantra, up till then………….
‘च्नच्खि प्रणाम’
‘जय सदगुरुदेव’
****ROZY NIKHIL****
****NPRU**** for our facebook grouphttp://www.facebook.com/groups/194963320549920/
PLZ
CHECK : - http://www.nikhil-alchemy2.com/
Posted by Nikhil at 2:49 AM 6 comments: Labels: TANTRA SIDDHI, VIGYAAN VA TANTRA BHED
Wednesday, April 25, 2012 र
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तॊत्र एक दर्शन नही हैं..... न ही सिद्धॊत हैं..... न ही इिकी फधत कयतध हैं फल्कक मह तो एक विधध िधभने यखतध हैं कक ऐिध कयने ऩय इिकध ऩरयणधभ मह होगध ..औय िधथ ही िधथ मह जीिन की ककिी बी ल्थथतत को न नकधयतध हैं ...... न ही उिे घण ृ ध कक दृष्टी िे दे खतध हैं फल्कक उिभे कैिे ददव्मतध रधमी जधए..... कैिे इिी र्यीय को ल्जिे कततऩम घण ृ ध की दृष्टी िे दे खते हैं .....ऩयभ तत्ि तक ऩहॉचधने कध
एक यधथतध फनध ददमध
जधए . तॊत्र एक भहधिधगय हैं अनेको प्रकधय की धधयधए इिभें सभरती गमी औय आज इिकी र्धखधए नध भधरभ ू ककतनी हैं.
तॊत्र भधनि जीिन की कसभमों को िभझतध हैं औय उििे िे बधगने को प्रोत्िधदहत नही फल्कक उिे िभझने कध एक तयीकध ..... एक दृष्टी कोण ..एक भधनि .... िधभने यखतध हैं कक बधगो नही जधनो ..िभझो औय भक्त होते जधए ..तॊत्र मह थिीकधय कयतध हैं कक भधनि जीिन ऩय अनेको ऩि ू श जीिन की कसभमों कध प्रबधि हैं .औय कधभ क्रोध जो बी हैं िह आत्भध के भर ू बत ू िौदमश को छऩध रे यहे हैं . तॊत्र दभन कध ऩक्षधय नही हैं .िह मह जधनतध हैं कक उजधश कध कोई बी रूऩ कपय चधहे िह मह हो मध िह ..अगय दसभत ककमध गमध गमध तो कहीॊ न कहीॊ िे िह कपय प्रगट होगध है अतएि कहीॊ ज्मधदध उधचत होगध कक उिे रूऩधॊतरयत कय ददमध जधए जीिन की उर्धिश भखी ददर्ध कक ओय ... तॊत्र कधभ बधिनध को
हीन दृष्टी िे नही दे खतध फल्कक उिकी अतततेरयकतध कध वियोधी हैं .तॊत्र िधभने यखतध
हैं कक मही कधभ उजधश जो की िधभधन्म भधनि भे अधोभखी हैं कैिे उिे उर्धिश भखी कय ददमध जधए . मह कधभ बधिनध को नष्ट कयने की फधत नही कयतध क्मोंकक मह जधनतध हैं कक मही तो कण्डसरनी र्ल्क्त हैं फि इिकी ददर्ध को ऩरयिततशत कयनध हैं .क्मोंकक अगय ऐिे ही नष्ट कय ददमध गमध तो भधनि जीिन औय तनजीि तनथतेज िध यह जधमेगध जीिन की िधयी खसर्मधॉ उभग , प्रिन्न तध िभधप्त हो जधमेगी . जीिन भे जो बी उत्िधह की अिथथध हैं जो प्रगतत ...िह इिी के कधयण हैं . ठीक मही ल्थथतत क्रोध के िधथ हैं बफनध क्रोध तत्ि के जीिन तो यीढ़ विहीन केचए के िधभधन हो जधमेगध .. तो मह बी ल्थथतत तॊत्र को थिीकधय नही हैं . तॊत्र थिीकधयतध को फहत भहत्त्ि दे तध हैं .......कक ऐिध हैं तो हैं ..तो हैं...... .अफ कय सरमध थिीकधय अफ ... जो बी ऩरयणधभ िधभने आमे .िह बी थिीकधय हैं .ऩयू े भन िे ....... ऩयू े प्रधण िे.... ऩयू ी आत्भध िे.... ऩयू े ह्रदम िे ... ऩय इि थिीकधरयतध की आड़ भे कोई उछ्ह्लकखतध को फढ़धिध नही दे तध हैं .कक इिके आड़ भे जो भन चधहे
िो कयते
जधए .. आज कध िधधक िभ्म हैं ििॊथकृत हैं औय इि विऩयीत िधतधियण भे बी िह जफ िधधनध के सरए फैठ्तध हैं तो मदद कधभ क्रोध अतत भे ... उिके िधभने आ जधते.... ककिी भे इिकी भधत्रध कभ होगी तो दि ू ये तत्ि की अधधक ..ऩय ऩरयणधभ िही की िधधनध भे फैठ ही नही ऩधए मध अधूये भे ही छोडनध ऩड़ी .. अफ अगय हय िभथमध को दयू कयने के सरए की एक एक िधधनध कयनध ऩड़े तो ...यधथतध फहत ही फोझझर िध हो जधमेगध ,हधरधकक िथत ल्थथतत इिके विऩयीत ही हैं . िभम दोनों यधथतों भे उतनध ही हैं . फि अरग अरग हो जधते हैं . तफ क्मध ककमध जधए ????
भधगश थोडध िध
फि भधन भिोि कय फैठध यहध जधए ..क्मोंकक ..जफ आऩ कछ बी कयने को उठते हैं तो प्रकृतत िफिे ऩहरे आऩके िधभने ऐिी विऩयीत ऩरयथथततमधॊ यखती हैं ..क्मोंकक जो र्ल्क्तर्धरी होगध िही
जीिन मद् मध
िधधनध िभय भे दटकेगध .. अफ हय ची ज के सरए भॊत्र जऩ तो ठीक नही हैं ..औय िह बी तफ जफ िभम कध अत्मधधक अबधि हो ... औय ऐिे िभम एक विज्ञधनॊ हभधये िधभने आतध है ल्जिको हभने जधनध िभझध तो हैं ऩय उिकी उच्चतध िे िबी अतनसबग्म हैं ..िह हैं***** मन्त्र विज्ञधनॊ .*****.. औय मह मन्त्र हैं क्मध ??? ककिी बी नधभ कध उच्चधयण कयने ऩय ..ककिी बी दे ि िगश कध आिधहन कयने ऩय ...ब्रम्हधडीम र्ल्क्त िे िफॊधधत भॊत्र जऩ कयने ऩय जो आकृतत फनती हैं ल्जिभे उन ् र्ल्क्तमों िे िफॊधधत िबी उऩ ् र्ल्क्तमधॊ बी होती हैं उि ज्मधसभतीम आकृतत को मन्त्र कहध जध िकतध हैं . अफ तनश्चम ही प्रधण प्रततष्ठध औय अन्म विधधन तो हैं ही ऩय कछ विधधन तो इतने ियर हैं की ....... भतरफ एक िे एक अ द्भत मन्त्र ल्जनके फधये भे कबी तथ्म िधभने आमे तो व्मल्क्त र्धमद जीिन बय बी विश्िधि न कय ऩधए .. िह बी थिमॊ सिद् .........भतरफ िधधक को जऩ कयनध ही नध ऩड़े .. अबी तो इि विज्ञधनॊ के अभक ू म यत्न आनध फधकी हैं ...इि विज्ञधनॊ िे बी आऩकध ऩरयचम कधमश जधएगध ही ...आने िधरे तॊत्र कौभदी के ककिी ही अॊक भे .. आज एक ऐिध ही मन्त्र आऩके िधभने .. ल्जिको सिद् कयने कध कोई विधधन नही फि आऩ ककिी बी कधगज भे फनधकय अऩने िधधनध कक्ष भे यख दें .औय कोई बी विधधन ् नही ऩरयणधभ आऩ थिमॊ अनबि कयें गे . हधॉ ककिी र्ब ददन इिे फनध रे तो कहीॊ ज्मधदध उधचत होगध ..... ऩय ऐिध क्मध हैं इिभें .. जो मह भनोकधभनध बी ऩतू तश कयदे गध .. तो दे खें इि मन्त्र की यचनध को ..
ॐ********शब्द
िधये विश्ि कध ....ऩयभ र्ल्क्त ... औय िबी कध उद्गभ हैं .. तो
ह्रीॊ****** र्ब्द को दे खें मह ह्रदम के आकधय ही
प्रतीक होतध हैं औय इिकध तनिधि थथधन बी ह्रदम कभर
भतरफ अनधहत चक्र हैं. तो
ऐॊ ***
र्ब्द को दे खे मह बी गरे जैिध दीखतध हैं तो इिकध थथधन विर्द् चक्र हैं . तो
क्रीॊ *** र्ब्द नधसब के जैिध रगतध हैं , तो इिकध थथधन नधसब चक्र भतरफ भझणऩय चक्र हैं .
इि तयह िे हैं आश्चमश कक फधत मह हैं की फीज भॊत्रोकी िॊयचनध दे झखमे ककि तयह सिपश इनके सरखने के ढॊ ग िे मह फतधमध जध िकतध हैं कक मह ककन ककन थथधनों िे जड़े होंगे मध थथधन ऩय थथधवऩत हैं .इन विसर्ष्ट फीज भॊत्रो िे मक्त होने के कधयण मह िधधक कक भनो कधभनध ऩतू तश भे िहधमक हैं . क्मोंकक तॊत्र भे कोई बी फधत मध तथ्म उऩेक्षणीम नही हैं . जो विज्ञधनॊ िबी भे ददव्मतध दे खतध है उिी ने अक्षय भे
हय
भे विसर्ष्ट तध दे खी हैं . अगय िधधक जधनने कध इच्छक हो तो ..
इि मन्त्र कध तनभधशण मध रेखन ककिी बी र्ब ददन कय रे ,कैिे कयनध मह फधते कई कई फधय ऩि ू श के रेखों फतधई जध चकी हैं तो ऩन् उकरेख कयनध उधचत नही हैं ..
इि ियर िे प्रमोग को कय के दे खें ..औय रधब उठधमे ... =================================
Tanta is not a philosophy………not a principle……………neither it talks about it ,rather it puts the process forward whereby we can get the results …….and to add to that , it does not ignore any condition of life………nor it see them with contempt rather how to bring about divinity in it……….how to make our body the way to reach supreme element ,which we see with contempt. Tantra is a very big ocean, various streams have been added to it and today no one can say how many branches it has. Tantra understands the shortcomings of life and it does not encourage us to run away from them rather it suggest one way ………….one attitude…….one mind-set to understand, not to run………understand it and get rid of it.Tantra accepts the fact that there is influence of shortcoming of various past lives on human life…. and the kaam, anger whatever they are, they are hiding the basic inherent beauty of soul. Tantra never favours suppression. It knows very well that any form of energy whatever it may be …if it is suppressed , it will definitely emerge in some way or other, therefore it will be much better to transform it in higher direction of life………………….
Tantra never sees the sexual feeling with inferiority point of view rather it only opposes the excess of it.Tantra says how to make sexual energy directed upwards which is directed downwards in common man. It does not talk about destroying the sexual feeling because it knows this itself is the kundalini power (serpent power) ,just its direction has to be changed because if it is destroyed then human life will become spiritless, it will wither away…….whole joy ,happiness of life will vanish . All the joy and progress of life is due to this power only. Same is the condition with anger .Without anger; life will become spineless like that of earthworm…….so this condition is also not accepted by Tantra. Tantra gives very high importance to acceptance………………..that if it is like this then ok ……if we have accepted it ……………..whatever may be the consequences, that are also accepted with full mind, full soul, full heart. However in the guise of acceptance, it is not to promote any disharmony that in guise of it, we keep on doing whatever we want to. Sadhak of present times is well-mannered, civilized and whenever he sits for sadhna in this unfavourable environment, then if kaam, anger is in excess, it comes in front of him. A person may have any of them in deficiency; he might have any other shortcoming in excess….. But ultimately the result is the same that either he is not able to sadhna or he is not able to complete the sadhna. Now if we have to do sadhna every time to get rid of every problem then the path will become burdensome. However the actual condition is actually opposite of it.Both the ways consume same amount of time but only the paths are different. Now what we can do? Should we sit idle…………………because………..whenever we get up to do something then nature first puts forward the unfavourable circumstances in front of us………Because only the powerful will survive in the battle of life and sadhna …. Now to chant mantra for everything is not correct especially when we are facing scarcity of time….and at this time one science comes to our rescue, the science which we know but we are unaware of its supremacy. That science is Yantra Science. And what is this Yantra? The image which is formed after pronunciation of any name, after Aavahan of any deva, after chanting the mantra related to any universal power and which contains all the sub power related to that power is called Yantra. Now though we have PranPrathishta (Energizing) process and other process, but several procedures are so much easy that……
Meaning amazing yantras regarding whom if the facts are revealed then people may find it hard to believe ……….that too self-accomplished……..meaning that sadhak does not even have to chant the mantras. Precious jewels of this science is yet to be revealed…………….You all will be introduced to this science……..in any of the coming editions of Tantra Kaumadi. Today , let‟s see one of such yantra …………….no process to accomplish (siddh) this yantra, just form it on piece of paper and keep it in sadhna room …..Nothing more need to be done, you yourself will experience the results. It would be much better if it is made on any auspicious day……………..but what is so special about it…………..which will fulfil your wish too………..let‟s look at the design of this yantra. ॐ********(OM) Supreme power of whole universe ……….and origin of everything…….then ह्रीॊ****** (Hreem) If we see it, it appears to be in form of Heart and it‟s residing place is also lotus heart meaning Anahat Chakra. ऐॊ *** (Aim)looks like the throat ,it‟s place is Vishudha Chakra. क्रीॊ ***(Kleem) looks like Navel and it‟s place is Navel Chakra (Manipur Chakra). Amazing thing is about the design of these beej mantras…..just by way of writing one can tell about the place where they are associated with or where they are established. Being in combination with these special beej mantras, it helps in fulfilling the wishes of the sadhak. Because in tantra, anything or any fact is not worth ignoring. The science which sees divinity in everything, it has seen the specialty in every alphabet, if sadhak is willing to know it…… Construct or write this yantra on any auspicious day. How to do it has already been told in the previous articles .To repeat it again will not be correct. Do this easy process and get the benefits. र र (BHAIRAVI KALPUDDHRIT TRAILOKYA VIJAY KAALI SADHNA)
गुि तंर ग्रंथो मे हमारे ऊच्षयो ने जो च्वधान ददये थे वह ऄपने अप मे रहस्यों से पररपूणष थे. तंर जगत का साच्हत्य कइ रूप से गुढ़ रहा है तथा ईसमे जो च्वधान ददये है वह भी ऄत्यच्धक गुि रूप से च्िखे गए थे तादक ऄनाच्धकारी व्यच्ि ईसका दुरूपयोग ना कर सके . आस प्रकार जब यह साच्हत्य को समजने वािे िोग ही नहीं रहे तब तंर साधनाओ की ऄविेहना हुइ और आस प्रकार तंर साच्हत्य का एक बहोत ही बिा भाग िुि हो गया. और आन सब साच्हत्य को च्मथ्या नाम दे ददया गया. ज़रा तटस्थ भाव से सोचे की जब नोट या किम नहीं च्थ, ईस समय तािपरी, च्वच्वध पदाथो के पणष, चमष, धातु जेसे च्वच्वध पदाथो पर ऄत्यच्धक कष्ट और श्रमसार्ध्य िेखन कइ प्रकार की स्याही बना कर हमारे ऊच्षयो ने च्िखा. ईसके पीछे ईन िोगो का कया व्यच्िगत सचतन हो सकता है? िेदकन पाश्चात्य संस्कृ च्त से चकाचौंध हो कर हमने खुद का पतन करना शुरू कर ददया. खेर, िेदकन कइ ग्रन्थ काि के थपेडो से भी सुरच्क्षत बचाए गए जो की कइ तांच्रक मठो और तंर ज्ञाताओ के पास सुरच्क्षत रहे. ऐसे ऄप्रकाच्शत ग्रंथो मे से एक है “भैरवी तंर” कइ हज़ार श्लोको का यह ग्रन्थ ऄपने अप मे देवी साधनाओ के च्िए बेजोड है. आसके कइ पटि ऄपने अप मे पूणष तंर है च्जसमे से एक पटि या भाग है “कािी कल्प”. यह कल्प देवी कािी की ईपासना के च्िए बेजोड है. च्जसमे देवी सबंच्धत साधन एवं कवच ददया गया है. िेदकन यह कवच भी ऄपने अप मे ऄत्यच्धक रहस्यों से पररपूणष है. यह कवच मार कवच नहीं िेदकन च्वच्वध र्ध्यान मंर तथा साधन मंरो का समूह है. च्जसमे एक से एक बेजोड मंर है. ईसी मे से एक मंर पिच्त है रैिोकय च्वजय कािी मंर. ग्रन्थ के ऄनुसार आस का ईपयोग करने वािे व्यच्ि का देवता भी ऄच्हत करने की सोचते नहीं. दफर सामान्य शरु की तो बात ही कया है. साधक शरुओ के उपर हावी हो जाता है तथा समस्त षड्यंरो से पार ईतर कर सवषर च्वजयी होता है. आस साधना को करने के बाद साधक मे एक ऄत्यच्धक तीव्र मोहन शच्ि का भी च्वकास होता है च्जससे सभी व्यच्ि ईसके ऄनुकूि रहना ही योग्य समजते है. आस कल्याण प्रदाता गुढ़ साधना को साधक करे तो देवी कािी का अशीवाषद सदैव साधक पर बना रहता है. साधक को चाच्हए की वह यह साधना कृ ष्ण पक्ष की ऄष्टमी से शुरू करे . सुबह ईठ कर देवी महाकािी की पूजा करे तथा देवी दच्क्षण कािी का र्ध्यान करे . ऄगर साधक ऄपने सामने कािी यन्र तथा च्चर रखे तो ईत्तम है. आसके पश्च्यात साधक च्नम्न मन्र की १० मािा सुबह, १० मािा
दोपहर तथा १० मािा शाम को (सूयाषस्त के बाद रारी काि मे सोने से पहिे) मंर जाप करे . यह २१ ददन की साधना है. रोज ३ समय मंर जाप होना चाच्हए. आसमें ददशा पूवष रहे. वस्त्र असान सफ़े द रहे तथा मािा कािे हकीक या रुद्राक्ष की हो. जाप से पहिे च्वच्नयोग च्नम्न मंर से करे . हाथ मे जि िे कर च्वच्नयोग बोिने के बाद जि को भूच्म पर छोि दे. च्वच्नयोग : ऄस्य श्री कािी कल्पे जगमंगिा कवच गुढ़ मन्रान रैिोकय च्वजय मन्रस्य च्शव ऊच्ष ऄनुष्टुप् छन्दः दच्क्षण काच्िका देवता मम रैिोकय च्वजय रैिोकय मोहन सवष शरु बाधा च्नवाराथाषय जपे च्वच्नयोग ईसके बाद दच्क्षण काच्िका का र्ध्यान कर च्नम्न मंर का जाप करे . हूं ह्रीं दच्क्षण काच्िके खड्गमुण्ड धाररणी नमः साधक पूजा और च्वच्नयोग सुबह करे , दोपहर और शाम को च्वच्नयोग या पूजन की ज़रूरत नहीं है र्ध्यान के बाद सीधे मंर जाप शुरू कर सकते है.
=========================================== The procedures given in the secret tantra scriptures by our sages were filled of varieties of mysteries. Literature of tantra world had remained secret in many form and the procedures mentioned in the same had also been very much secret code language thus to pretend it from the unwanted use by unauthorised person. This way, when there remained very least people to understand such secret literature tantra sadhana was neglected and this way a big part of tantric literature went extinct. And all these literature was given name of fable only. Think once being neutral that there were no pen papers that time palm leaf, various leaves of plants, even skins of animals, metals were prepared with lots of trouble and hard work was put to write something on it by preparing in of various things. Did they have personal benefit with this? But by being hypnotised in west culture we started finishing our self. Anyway, but many scriptures were saved from this time slaps and remained safe with various tantra scholars and matha. From such unpublished scripture there is one named “Bheiravi tantra” with several thousand verses; this scripture is incomparable for sadhana of goddesses. Many part of this tantra are counted as complete separate tantras in which on part or patal is “kaali kalpa”. This kalp is great for the devotion of goddess kaali in which procedures and kavach related to kaali has been given. This kavacha is also filled with various mysterious. This kavacha is not only kavacha but a bunch of various dhyan mantras and sadhan mantra in which there remains various incomparable mantras. From the same, there is one process called “treilokya vijay kaali mantra”. Says the scripture, that the one does this mantra; even gods too can‟t think to harm the sadhak, well normal enemies would do what then. Sadhak remains completely winner on their enemies and destroys all the conspiracies. After completing this sadhana, development of the hypnotic power starts inside sadhak through which all the people think better to remain in favour of the sadhak. This
boon giving sadhana if done by sadhaka then blessings of goddess Kaali stays on the head of the sadhak. Sadhak should start this sadhana on 8th day of dark moon. In the morning, sadhak should do poojan of mahakaali and meditation of devi dakshina kaali. It is better if sadhak is comfortable putting mahakaali yantra and picture infront. After that sadhak should chant 10 rosaries in the morning, 10 rosaries in the afternoon and 10 rosaries in evening (between sunset and time before sleeping in night) of the mantra. This is 21 days sadhana. Every day 3 times mantra should be done. Direction should be east. Cloth and aasan should be white and rosary could be black hakeek or rudraksha. Before mantra chanting one should do viniyog. Chant viniyog by taking water in palm and then leave it on the floor. Viniyoga : asy shri kaali kalpe jagmangalaa kavach gudh mantraan treiloky vijay mantrasy shiv rishi anustup chandah dakshin kaalikaa devtaa mam treiloky vijay treiloky mohan sarv shatru baadhaa nivaaraarthaay jape viniyog After this sadhak should meditate dakshin kaalika and chant the following mantra Hum hreem dakshin kaalike khadgmund dhaarinee namah
Sadhak should do poojan and viyoga in morning. In afternoon and evening time poojan and viniyoga is not require after meditation one can start mantra chanting.
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Monday, January 23, 2012 Beejaatmak Tantra Aur Bhagya Utkeelan Vidhaan(HINDI+ENGLISH)
साभान्म भानव जीवन अऩेऺाओॊ औय भनोयथों के दो ऩहहमों ऩय हिका हुआ है ,जजनकी ऩत ू ी होने से सख ु औय ऩत ू ी न होने से द्ु ख का अनब ु व होता है
,औय हभ अऩने जीवन को उन्नतत की औय अग्रसय होने के लरए बाग्म का
भॉह ु ताकते फैठते हैं की कफ वो हभाया सहमोग कये औय हभ जीवन भें उन्नतत के लशखय को छू सके . ऩय क्मा सच भें बाग्म सदै व हभाया सहमोग कयता
है .... नह ॊ ऐसा हभेशा तो नह ॊ होता,क्मा तफ हाथ ऩय हाथ धये फैठे यहना
उचचत है ? वास्तववकता मे है की बाग्म कभम का अनग ु ाभी है औय जजसे कभम कयना आता है बाग्म सदै व उसके ऩीछे ऩीछे दौड़ता है , फहुधा जीवन की ववऩन्नता औय गय फी को हभ योते हैं,ववववध प्रमोग बी कयते हैं ,ऩयन्तु हभें
राब नह ॊ होता है,तफ अक्सय हभ क्रिमा को दष ू ण दे ने का कामम कयने रगते हैं
जफक्रक हभ मे फात बर ू जाते हैं की प्रायब्ध,सॊचचत औय क्रिमभाण कभों का भर जफ तक हभाये सौबाग्म के ऊऩय अऩना आवयण डारे यहे गा तफ तक हभ चाहे
राख प्रमत्न क्मॉू न कयें ,हभाये द्वाया क्रकमे गए प्रमासों से हभाया बाग्म कदावऩ नह ॊ जागेगा.
जफ फात हभ कयते हैं की कभम का अनग ु ाभी बाग्म होता है तो इसका अथम
शाय रयक ऩरयश्रभ तो होता ह है ऩयन्तु उसके साथ साधनात्भक कभम बी अतनवामम होता है,औय जफ मे दोनों कभम सकायात्भक हदशा भें होते हैं तो,ववऩन्नता का नाश होकय,उन्नतत,वचमश्व,ऐश्वमम,सौ बाग्म औय सम्भान की प्राजतत होती ह है .
हभ ववऩन्नता की अवस्था भें हभ आकजस्भक धन प्राजतत के वह ृ द अनष्ु ठान को सॊऩन्न कयते हैं ,ऩय क्मा मे सह िभ है ? नह ॊ ना,क्मॊक्रू क दब ु ामग्र
तनवायण,दरयद्रता नाश औय तत्ऩश्चात श्री आभॊत्रण िभ कयना उचचत होता
है ,तदऩ ु याॊत रक्ष्भी का श्री के रूऩ भें आऩके जीवन भें आगभन होता है औय
उसके फाद जफ हभ रक्ष्भी कीरन मा जस्थय कयण की क्रिमा कयते हैं तो रक्ष्भी जन्भ जन्भान्तयों के लरए हभाये कुर भें स्थामी रूऩ से तनवास कयती हैं.
स्भयण यखने मोग्म तथ्म मे है की वह ृ द अनष्ु ठान कबी बी आऩको शीग्र राब नह ॊ दे सकते हैं क्मोंक्रक उन्हें लसद्ध कयने के लरए जो एकाग्रता,चचत्त की
सध्नाजधध भें इष्ि के साथ होने तायतम्मता का आबाव होना स्वाबाववक होता है औय द घम अनष्ु ठान प्रायॊ लबक स्तय ऩय चचत्त को उद्ववग्न बी कय दे ते हैं अत्
गह ृ स्थों को मा जजन्हें शीघ्र राब चाहहए होता है उन्हें फीजात्भक साधनाओॊ को
सम्ऩाहदत कयना चाहहए.सदगरु ु दे व के आशीवामद से मे अततशीघ्र राब बी दे ते हैं
औय लसद्ध बी जल्द हो जाते हैं तथा “मथा फीजभ तथा अॊकुयभ ्” की उजक्त को चरयताथमता बी तबी प्रातत होती है जफ आऩका फीज ऩष्ु ि हो तबी तो उसका आधाय प्रातत कय साधना आऩके सभस्त भर का नाश कय आऩको आऩका अबीष्ि प्रदान कयती है .
माद यखखमे प्रत्मेक फीज के चैतान्मीकयण औय जागयण की प्रथक प्रथक क्रिमा होती है जो आऩके उद्देश्म को हदशा दे ती है ,जैसे “क्र ॊ” फीज का महद
वशीकयण साधना के लरए प्रमोग कयना हो तो उसे जाग्रत कयने औय स्वप्राण
घवषमत कयने की क्रिमा लबन्न होगी उस क्रिमा से जो की सॊहाय के लरए प्रमक् ु त की गमी हो.
महाॉ ऩय हभ फात आचथमक उन्नतत की कय यहे हैं ,तो जफ जॉफ भें मा धमवसाम भें अथवा साभान्म जीवन भें आऩ ऩैसों के लरए भोहताज हो गए हो तो क्रकसी बी अन्म रक्ष्भी प्राजतत प्रमोग को कयते सभम महद “ह् ॊ” फीज का
सामज् ु मीकयण कय हदमा जामे तो वह प्रक्रिमा तनसॊदेह अऩना तीव्र प्रबाव प्रदान कयती है ,औय महद भात्र इसी फीज का प्रमोग क्रकमा जामे तफ बी आचथमक
फाधाओॊ का नाश तो कयती ह है साथ ह साथ नौकय मा धमवसाम ऩय छामे हातन के फादरों को बी ऩयू तयह सभातत कय दे ती है ,प्रमोग फड़ा मा छोिा
होने से प्रबाव की प्राजतत नह ॊ होती है अवऩतु उसकी ऩद्धतत क्रकतनी ववश्वसनीम है औय उसका आधाय क्मा है मे ज्मादा भहत्वऩण ॊ ू म है ,माद यखखमे “ह् ’
भहाकार ,भहासयस्वती औय भहारक्ष्भी तीनों का ह फीज है अथामत त्रत्रगण ु
शजक्तमों से ऩरयऩण ू म है अथामत ,शजक्त,वेग औय तीव्रता का सॊमक् ु त रूऩ,अत्
इसका कैसे समज् ु मीकयण क्रकमा जामेगा मे ज्मादा भहत्वऩण ू म तथ्म होता है क्रकसी बी क्रिमा के ऩण ू म होने के लरए.
हभ फात आचथमक राब मा सम्भान मा नौकय मा धमवसाम के स्थातमव की कय यहे है तफ इसका प्रमोग कैसे क्रकमा जाए भात्र उससे अवगत कयना ह भेया उद्देश्म है –
क्रकसी बी यात्रत्र को ववशद्ध ु शहद १०० ग्राभ रेकय एक काॊच के ऩात्र भें यख रे
औय उस ऩात्र को सदगुरुदे व,गणऩतत औय हाथों से स्वणम फयसाती ऩद्म रक्ष्भी के साभने स्थावऩत कय दे ,घत ु औय गुराफ ृ द ऩक प्रज्वलरत कये औय गुराफ धऩ ऩष्ु ऩ से ऩज ू न कये ,साफ़ वस्त्र व आसन हो यात्री मा सॊध्मा का सभम हो,
सफ़ेद कागज मा ज्मादा उचचत है की बोजऩत्र ऩय अष्िगॊध के द्वाया अनाय की
करभ से “ह् ” ॊ लरखे औय अऩना ऩण ॊ लरख दे ,मे ू म नाभ लरख कय क्रपय से “ह् ” फहुत ह छोिे कागज मा ऩत्र ऩय लरखना है .इसके फाद उसी स्थान ऩय फैठे फैठे फीज भॊत्र की ३ भारा हकीक मा भग ॊू े भारा से कये ,औय उसके फाद उस ऩत्र की गोर फनाकय उस शहद भें डुफो दे ,मे िभ भात्र ३ हदन कयना है अथामत
आऩको तनत्म फीजॊकन कय के उसके साभने ऩज ू न तथा जऩ कयना है औय भधु भें डुफो दे ना है .इसके साथ आऩ अन्म प्रमोग बी कय सकते हैं मा महद अन्म
रक्ष्भी प्रमोग न कय यहे हो तो इस फीज की भारा सॊख्मा ७ कय द जजए औय
हदन की अवचध ५ कय द जजमेगा,अॊततभ हदवस जऩ के दस ु ये हदन उस ऩात्र भें
से सबी गोलरमों को तनकार कय क्रकसी फहते साफ़ जर भें प्रवाहहत कय दे औय शहद का आऩ स्भयण शजक्त फढाने के लरए तनत्म सेवन बी कय सकते हैं मा
वशीकयण साधना भें बी प्रमोग कय सकते हैं,सेवन कयने के लरए एक इरामची को तनत्म उसभे लबगोकय खाना चाहहए. मे सदगरु ु दे व की असीभ अनक ु म्ऩा है
की हभाये भध्म इतने सयर ऩयन्तु अचक ू प्रमोग प्रातम है,आऩ स्वमॊ ह इसे कय
के प्रबाव दे ख सकते हैं. ----------------------------------------------------------Common human‟s life is just based on two type of wheels named expectations and destinations and no doubt fulfillment of these expectations give us happiness and leads our life towards development…..so let me know my dear is it all right for us to look at sky in the form of our destiny so that there will be someone who can hear us and fulfill our motives…..and is it destiny which always support us….no it never happens always….so is it fine to sit back in such dreadful situations…….again a big NO. The fact is that “necessity is the mother of invention” so it is clear that who will work hard definitely will be honored of destiny. Mostly we cry over poverty and illness and to remove such pitfalls we do number of experiments but again all in vain and this causes depression in our life. When we talk about that it is our needs which causes miracles but one thing which should kept in mind is that when we talk about hard work it‟s not always about physical beside this sadhnatmak hardship is must and when both of these powers works for you then definitely emptiness of life removes and development, luxury, destiny and magnificence blessed you. During hardship times we do our best to change time‟s cycle from misfortune to fortune and to get this done we take the shelter of Anushthans but do we ever try to know whether these anushthans and all that going on right direction or not? Because to get all this perfectly done we need to follow a systematical order as firstly one should get rid of his misfortune, secondly make sure your poverty has been destroyed than finally you can welcome Goddess Laxmi in the form of Shri in your home so that she should stay there permanently to give you and your family a luxuries life for- ever and forever. Another important fact is that to carry on big anushthan at grand scale is not always prove beneficial as to carry out them one should be more conscious and stable in his thoughts and action whereas on the other hand long anushthan makes us bored quite bitter but true so for a domestic person its always good to get power and blessings from Beejaatmak sadhnaas as they get easily sidh and fruitful as well and according to “मथा फीजभ तथा अॊकुयभ ्” if you sow pure seed than its quite sure you are going to have a fruitful tree similarly when we talk about sadhnaa its result depends on our concentration in the form of seed. One should always keep in his mind that in order to enlighten each and every month, needs to follow different procedure as in order to sidh “KLEEM” beej for
Vashikaran purpose is followed by totally differ process in which this mantra is get sidh for Sanhaar proyog. Here we are talking about financial growth so if one faces financial crisis so what should he prefers to do…..with any type of Laxmi proyog he should lit the spark the “HREEM” beej with it as by doing so work will work at super speed…..about this beej mantra another important thing is that if someone uses this mantra alone then to all the financial obstacles ultimately get removes as the results of the proyog don‟t affected by the fact that at what scale you are carrying out them. Instead of this the important thing is that how strong your consciousness is and faithfully you are carrying out them. Always remember that “HREEM” beej collectively symbolizes Maha Kaali, Maha Saraswati and Maha Laxmi in short this beej represents Shakti (power), Veag (density) and Teevrta (velocity) and the procedures based on the fact that how you get it enlighten. As we are talking about financial betterment or permanence in job so its my duty to let you know its procedureAt any night take 100grams pure honey in clear glass utensil (kaanch ka paatr) and place that paatr in front of Sadgurudev, Lord Ganpati and Goddess Laxmi, lit ghee lamp and offer rose (gulab) incense and rose flowers as well, your clothes and aasan should neat and clean and time can be evening or night as well. Then if possible write “HREEM” with ashtgandha on bhojpatra with the pencil of pomegranate stem (anaar ki kalam) if not bhojpatra you can use white paper for it then after Hreem write your name then again after your name write Hreem. Remember you have to use very short paper for this. After that do 3 rosary of beej mantra with the rosary of Black Hkeek aur Moonga. After finishing it roll that paper in round shape and dip it in that honey….follow this process for continuous 3 days means daily you need to write beej mantra then your name then again mantra on paper and after pooja dip that paper in honey….you can do any other proyog along with this related to Laxmi and if you are not doing so than increase the number of rosaries from 3 to 7 and days from 3 to 5. Day after the final jaap day take out all the papers from honey gat them dump under the flowing clean water and as the matter of honey you can use it to strengthen your memory as well as it can be used for Vashikaran sadhna. If you want to eat or drink that honey then don‟t forget to dip a cardamom (ilaichi) in it every day. It is just because of the blessings of our revered Sadgurudev that we have such a small, easy but meaningful proyog to get comforts in our life.
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MALA ME PRANPRATISHTHA
मॊत्रो
की
हभें
लभरे जजसभे
के अॊक भें
साभान्म प्राण
से प्रमोग भें हाॉ
त्रफना
हो जाते हैं के राबाथम सबी
प्रततष्ठा
ववचध तो हभने
दे हो चक ु े ह हैं , ऩय आऩके सन्दबम भें अनेको हभसे
ऩछ ू गमा था की क्मा
सॊस्कारयत भारा की जरुयत
सॊस्काय
की भारा
तो हय प्रमोग के लरए
मह भारा
के लरए
आऩ जानते हैं
होती हैं
मह भारा
को सॊस्कारयत कयने
की ववलबन्न
प्रमोग
की
??तो
से साभान्म
उत्तय
होता हैं , कबी 51 तो कबी 31
ऩय
१०८ ह
क्मों
साधना भें 108भनको से मक् ु त
कहाॊ से रामे ववचधमा
के लरए ववलबन्न
उऩमोग
बगवान ् ने कहा
साभान्म
भारा
ऩय
हैं की भानव शय य भें 7चि
मह हैं की िुद्ध
तो आऩ सबी
इस रेख भें आऩ
भनको
अचधकाॊश
का प्रमोग होता हैं.
मॊू तो सबी का एक ववशेष अथम हैं
ववगत
ऩत्र औय इ भेर
का प्रमोग कयने से सम्फॊचधत दे वता
का
औय
तन्त्र कौभद ु के
की भारा प्रमोग
हैं ऩय सदगरु ु दे व
नह ॊ फजल्क 108 चि होते हैं
, औय उन्होंने इस सॊदबम भें इस
हे तु एक फाय
ववलबन्न उदाहयण बी हदए हैं
एक ववलशष्ठ
द ऺा १०८ चि
उन्होंने प्रदान
की थी,
तो जफ बी हभ
होता
क्रपय उसे हभ भहसस ू
जऩ कयते हैं तफ हय भनके ह हैं
गोऩनीम
तथ्म हैं
के भाध्मभ से
औय मह भारा ह
तो इस
बगवान ् कहते हैं की
इस फात
कयने
आगे
हभ खुद एक साभान्म ह सोच सकते हैं
ववशेष चि
मा न
चाहे
का
तबी तो
से भॊत्र
ऩय
स्ऩॊदन
कये .मह एक 108 भनको
साधना की एक ववशेष उऩकयण हैं , सदगुरुदे व तो अनेक फाय
की ववचधमा
सी भारा
भारा
फताई , उ ससभम
फढ कय लसद्धाश्रभ
हभ हैं कहाॉ
बी
की भारा
की क्मों एक छोि छोि से फात ऩय
के प्रभाण हैं ,
औय जफ हभ
एक
कह जाती हैं
ऩय बी तनबमय यहना , उन्होंने ह प्रततजष्ठत
जागयण द ऺा
108 भनको
इन भनको का 108 होने
वार भारा सवामथम लसवद्ध प्रदामक
प्राण
चाहे
साथ ह साथ
अत्
औय मॊत्रो
को
के अनेक
साधक
तक जाने की फात कयते
हैं औय
प्राण प्रततजष्ठत
,
अऩने सदगुरुदे व
इस तथ्म
न कय ऩाए
तो
को ध्मान
आऩ
भें यखते
हुए इस प्रक्रिमा को आऩके साभने यहा जा यहा हैं . मह रेख आरयप खान जी के द्वाया अनेको वषम ऩहरे बी एक
ऩत्रत्रका
ध्मान यहे महाॉ
वह एक
प्रकालशत
हो चक ू ा
औय
अरग
ह
प्रथभ
हैं उसी का सॊक्षऺतत
हभ भारा तनभामण की प्रक्रिमा नह ॊ फता ववषम हैं .
तय का :सवामचधक सयर तय का
/भाराओॊ स्ऩशम कया
जाती हैं .
को
रे,
रूऩ आऩके साभने
क्रकसी बी ज्मोततलरिंग
तो मह
हैं .
यहे हैं
भें
हैं की आऩ क्रकसी बी भारा
मा शजक्त ऩीठ भें भख् ु म ववग्रह से
उनकी प्राण उजाम से भारा
स्वत्
हो प्राण प्रततजष्ठत
हो
द्ववतीम तय का : मह हैं की आऩ के क्रकमा
घय भें क्रकसी से
जा यहा
हो
उस सभम
प्राण प्रततजष्ठत क्रकमा जाना हो जाती हैं , रुद्रालबषेक सकते हैं . तत ृ ीम
मा
महद आऩ से
रुद्रालबषेक
कोई ऩॊडडत द्वाया आऩके कार
कयते
फनता हैं मा
घय भें
भें क्रकसी बी ऩात्र भें मह भारा जजसे
हैं उसे यख
की ववचध आऩ
दे , मह स्वत गीता प्रेस
ह
ऩयॊ प्रततजष्ठत
की क्रकताफों भें ऩा
तय का :आऩ के जो बी गुरु हो उनके हाथो के स्ऩशम भात्र
मह प्रक्रिमा चतुथम
सग ु भता
उसी भारा से भारे भारे
को गॊगा जर से स्नान कयामे
औय
से
बी
तनम्न भन्त्र
१०८ फाय जऩ कय रे , मह बी एक सग ु भ तय का
हैं .
भहाभारे सवम तत्त्व स्वरूवऩणी |
चतुवग म स् म त्वतम ऩॊचभ तय का ऩीऩर के
ऩव म सॊऩन्न हो जाती हैं . ू क
तय का :भारा
रुद्रालबषेक
न्मस्त स्तस्भॊभे
लसवद्धदा बव ||
: शास्त्रीम प्रक्रिमा :
नौ ऩत्ते
को इस तयह से
यखे
औय अन्म ऩत्ते उसे केंद्र भानते कभर सा फन
की एक ऩत्ता
फीच भें औय
हुए इस प्रकाय यखे भानो एक अष्ि जामे , फीच के ऩत्ते ऩय आऩ अऩनी भारा यख दे
हहॊद वणम भारा से वणम ॐ अॊ से रेकय हुए उस भारा को उच्चायण कयते हुए
ऩॊचगधम से स्नान
ऺॊ तक सबी का
कयामे. क्रपय सद्मोजात
ॐ सद्मोजातॊ प्रऩद्मालभ सद्मोजाताम
वै नभो नभ् |
तनम्न
ऩय रगा में
बवे बवे नातत बवे बवस्म
भाॉ
उच्चायण
दर
औय
कयते
भॊत्र का
बवो द्वावाम नभ् ||
वाभदे व भन्त्र से चन्दन भारा
फराम नभो फर प्रभथ नाम नभ् सवम बत ू दहनाम || धऩ हदखाए ु फत्ती अघोयभॊत्र से
नभो
भनो न्भथाम नभ्
ॐ
अघोये भ्मोSथ
अस्तु रुद्ररूऩेभ्म :
घोये भ्मो
घोय घोय तये भ्म: सवेभ्म : सवम सवेभ्मो
क्रपय तत्ऩरु ु ष भॊत्र से रेऩन कये ॐ तत्ऩरु ु षाम
ववद्म्ह्मे
भहादे वी
धीभहह तन्नो रुद्र्
क्रपय इसके एक एक दाने ऩय एक फाय मा
सौ सौ फाय
कये
ॐ ईशान: सवम ववद्मानालभश्वय : सवम बत ू ानाॊ
चधऩततब्रम्भा
लशवो भें अस्तु सदालशवो s भ |
अफ फात आती हैं इस भारा भॊत्र के
क्रक कैसे दे वता
को शजक्त कामों भें
ॐ ऐॊ श्ीॊ अक्षभधरध
मै
क्रपय हय वणम भतरफ अॊ क्रपय मह प्राथमना ॐ
तें ित्मेन भें सिवद्ॊ अफ इस भारा
दे दह
यॊ ग के ऩष्ु ऩों
नभ् ||
से रेकय ऺॊ
कये
त्िॊ भधरे ििशदेिधनधॊ
की
शजक्त मक् ु त
ताॊत्रत्रक
भधतनधशभो s थतू
ॐ सवम
भारा
१०८
ते ||
हदखाए नह ॊ , आऩको जो बी ववचध
प्रमोग कयसकते हैं .
भखण भारा भारा
ऩहर फाय ह साभने आ
"ह् ॊ " इस
उच्चायण कये .
को हय के साभने
तो प्रक्रकमा
तो महद आऩ
ििश सिवद्प्र्दध भतध |
सकते हैं उसे साधना भें
ऩय मह
जाए
ब्र्भणो s
तक रेकय इनसे सॊऩहु ित कयके
उचचत रगे उसका उऩमोग कयके एक प्राण प्रततजष्ठत कय
भॊत्र का जऩ
से इसका ऩज ू न कयें .
का उऩमोग कयें
फाय अऩने इष्ि भन्त्र का
/१०८
इशान
उऩमोग कयना चाहते हैं तो
ऩहरे रगा कय औय रार
औय वैष्णवों को तनम्न भन्त्र
प्रचोदमात |
ब्र्भा चधऩतत य
की स्थाऩना
नभस्ते
कयने की हैं
ऩय
आऩ
ववशेष
का तनभामण कैसे क्रकमा जाए ,
मह ववधान
लसवद्ध प्रदात्रतम शजक्त रुवऩॊमै
नभ्
यहा हैं ,
भखण भारा
को सॊस्कारयत
भारा का तनभामण
ॐ sarv mala mani mala rupinyai namah
तो इसभें आऩको
siddhi pradatrayi
shakti
१०८ फाय घभ ु ाते
उच्चायण
यहे गी /यहे
कयना हैं इस दौयान भारा
हाथ भें
घभ ु ती माॊ
उसे
********************************************************************* We have already given the process how to make praan pratisthha of yantra can be done , but we have been continuous getting e mails regarding the one question is there any necessity of using sanskarit mala in any and every sadhana,?? Than answer is yes ,, if one is using the mala without having Sanskar than the related deity of that sadhana often get angry but where and how you can purchase separate mala for each and every prayog . so for the benefit of you all here is the process by which you can also praan pratisthhit the mala or sanskarit mala. As you are already aware that that there are many type of mala used in sadhana prayog some has 31 beeds some 51 and some 108 beeds , why it is so . but in majority of the cases beeds quantity of 108 haapens why??. as each mala has his own value and these beeds quantity has a purpose , as Sadgurudev Bhagvaan has many times says that there are not 7 chakra but 108 chakra lies in human body and for that 108 chakra energization he gave a special Diksha names “108 chkra jagran Diksha” . so when we do jap with mala with 108 beeds than through each beeds than chakra related to that beeds get energize . this is one of the reason behind using 108 beeds mala and this mala has been called sarvarth siddhi pradayak means all siddhi provider .
And this mala is a special instrument in any sadhana, Sadgurudev Bhagvaan used to say that why you have to depends each times even for small problem to your Sadgurudev., he has given many times the process for how to energize the yantra and rosary process. many of the sadhak of that era clearly knew this and a self evidence of that. When we are talking about going to siddhashram and not able to do/know how to energize a simple rosary than think about it where we are standing., taking care theses fact here are the process in front of you . This articles is based on the arif ji, already written articles that has been appeared many years before in a magazine. Please keep it in mind here we are not discussing the process how to make mala that is a different subject. First way :one of the most easiest process is that have a opportunity to visit any shiv jyotirling or shakti peeth hand touch your rosary / rosaries to the main vigrah , automatically that mala/rosary has been sanskarit. Second way: if you how to do rudrabhishek or any person of your home knew about that or through any pandit this rudrabhishek is going on than during that period place the required mala/rosary in any pot in front of that , so that mala automatically get sanskarit. You can get the complete rudrabhishek process through gita prèss Gorakhpur books. Third way: who so ever is your guru , and you have a faith in him than as the rosary get touch of his body or hand that automatically Sanskrit. Fourth ways:wash rosary with ganga jal and during that period chant this mantra for 108 times this is also a easy process, Maale maale mahamaale sarvtatvswrupini |
Chturvargstvyi nyast stsmanme siddihida bhav || Fifthways:
shashtriy ways:
Place nine leaves of pipal tree in this way that place one leave in middle and remaining eight place in circular of that, so a asht dal lotus type fig formed. And place the rosary in middle leave and wash that rosary with panchgavy and chant the complete varn mala like am, aam, to ksham , than chant sandyojaat mantra: Om sandyojaat prpadyaami sadyojaataay vai namo namah | Bhave bhave naati bhave bhavsy maan bhavo dwavaay namh|| Then apply chandan to rosary and chant vaamdev mantra: Blaay namo bal pramthnaay namh sarv bhutdahnaay namo manomnmathaay namah| Offer dhoop stick with this aghor mantra: Om aghorebhyoath ghorebhyo ghor ghor tarebhyah sarvebhyah sarv sarvebhyo namste astu rudrarupebhy And againwith tatpurusha mantra : Om tatpurushay vidmahye mahadevi dhimahi tanno rudrah prachodyat | Than chant ishan mantra either one times or100 times on each beeds of rosary .
Om ishanah sarv vidyaanamishwarah sarv bhutanaam bramha dhipatir brmhnoo dhipatir bramha shivo me astu sadhashivoaham|| Now the question rises how to make this mala energize of any deity, if you are using this mala for shakti sadhana, than add “HREEM” before this mantra a and offer red color flower to it. Maale maale mahamaale sarvtatvswrupini | Chturvargstvyi nyast stsmanme siddihida bhav || And vaishnav can use this mantra Om ayem shreem akshmala yai
namah||
Than use every varn means am to ksham means add thses varn to your isht mantra and chant108 /108 times, than do this prayer. Om tvam maale
sarvdevaanam sarv siddhipradamata |
Ten satyen men siddhim dehi maatarnaamostu te || Than not toshow this mala toevery one, than follow any one mothod whichever one you like most, and after that mala you can use in your sadhana. Butthis sis the simplest process but how we canmake special shakti tantrak mala so for that just 108 times this mantra, while chantingthe mantra the rosary should be moving in your hand Mantra : ॎ sarv mala mani mala siddhi pradatrayi shakti rupinyai DIVINE WEAPONS SUDARSHAN CHAKRA SADHNA
namah
प्राचीन मुख्य १०८ च्वज्ञान मे कइ ऐसे च्वज्ञान है च्जसके बारे मे सामान्यजन को पता ही नहीं है. ऐसा ही एक च्वज्ञान जो की प्रचिन मे रहा वो था युि च्वज्ञान. आस च्वज्ञान के ऄंतगषत व्यच्ि को ऄपनी शच्ि और सामथ्यष बढ़ा कर दकस प्रकार से अत्मरक्षण तथा पर जन रक्षण कर सके आसकी च्शक्षा दी जाती थी. साथ ही साथ शश्रो की तािीम भी दी जाती थी जो की सहायक रूप मे शच्ि संचार का कायष करते है. आस च्वज्ञान के ऄंतगषत ये भी बताया जाता था की व्यच्ि दकस प्रकार से भूच्म तथा वायु मे च्नच्हत शच्ि को संचाररत कर के युि कर सकता है. आस च्वज्ञान का ही बौि काि मे च्वस्तरण हुअ च्जसमे कइ प्रकार नवोन्मेष कर माशषिअटष अदद च्वच्वध ज्ञान कइ देशो मे ऄमि मे अया. आससे यह जाना जा सकता है की ईस समय च्जव तथा भौच्तक च्वज्ञान का च्वशेषतम ज्ञान हमारे ऊच्षयो के पास था. जब आसी च्वज्ञान को तंर पक्ष से जोिा गया तो कइ त्तंर पिच्तया ऄमि मे अइ च्जनका ईद्देश्य युि के दौरान च्वजय श्री के च्िए दकया जा सके . सैन्य स्तम्भन, सैन्य मारण, राज्य मोच्हनी, राजा वशीकरण जैसे प्रयोगों को ऄमि मे िाया गया. साथ ही साथ सब से ऄत्यच्धक महत्वपूणष जो साधनाओ का प्रचार हुअ वो थी ऄस्त्र साधनाए. हमारे शास्त्रों मे ईल्िेख च्मिता है की च्वच्वध ऄस्त्रों का प्रयोग युि मे बराबर होता था, ऄच्ि, पावका, वरुण, नाग, ऄघोर, ब्रम्हा अदद च्वच्भ्भन ऄस्त्रों के बारे मे च्ववरण च्मिता है. आन सभी ऄस्त्रों को साधनाओ के मार्ध्यम से अज भी प्राि दकया जा सकता है. देवी देवताओ को च्सि कर ईनसे ऄस्त्र प्राि करने के च्ववरण हमारे ग्रंथो मे च्मिते है. आसी प्रकार च्वष्णु भगवान का ऄस्त्र सुदशषनचि है. आन ऄस्त्रों को प्राि करने की साधना ऄत्यच्धक कठोर तथा श्रमसार्ध्य है तथा आसमें कइ साि का समय साधक को िग सकता है. िेदकन आन ऄस्त्रों से सबंच्धत कइ च्वच्वध िघु प्रयोग भी है. च्जससे देवी देवता प्रसन्न हो कर ऄपने ऄस्त्रों को साधक के पास भेज कर ईनका रक्षण करने की अज्ञा देते है. िेदकन यह दुष्कर प्रयोग बहोत ही मुच्श्कि से प्राि होते है, यदा कदा मंरो का च्ववरण भी च्मि जाए िेदकन सबंच्धत प्रदियाए च्मिना मुच्श्कि ही है. सदगुरुदेव ने ऄपने कइ सन्यासी च्शष्यों को आन प्रदियाओ का ज्ञान ददया है. यह हमारा सौभाग्य है की हमारे वररष्ठ भाइ बहेनो के पास आस प्रकार के गुढ़ ज्ञान से सम्प्पन है. सदगुरुदेव की कृ पा से एक प्रयोग जो की सुदशषन चि से सबंच्धत है वह मे अप सब के मर्ध्य रखना चाहूूँगा. आस साधना को दकसी भी सुबह ददन शुरू दकया जा सकता है. राच्र काि मे ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के सफ़े द वस्त्रों को धारण कर के सफ़े द असान पर बैठे. और रुद्राक्ष मािा से च्नम्न मंर का जाप
करे. साधक को ७ ददन मे १०००० मंर जाप करना है, साधक ऄपनी सामथ्यष ऄनुसार ददनों का चयन कर ऄपना मंर पूरा कर िे िेदकन मंर जाप की संख्या रोज च्नयच्मत रहे. साधक चाहे तो १ ददन मे भी मंर जाप पूरा कर सकता है
ॎ सदु शणन चक्राय शीघ्र अगच्छ मम सिणत्र रिय रिय स्िाहा मंर जाप के बाद साधक मािा को धारण करे रखे तथा ग्रहण काि मे आस मंर की ११ मािा जाप दफर से करे और शहद से ऄच्ि मे १००८ अहुच्तयां को आसी मंर से ऄर्षपत करे. साधक का सौभाग्य होता है की ईस समय सुदशषन चि का दशषन हो. तब साधक को चाच्हए की वह नमस्कार कर रक्षण के च्िए प्राथषना करे. आसके बाद सुदशषन चि साधक के असपास ऄप्रत्यक्ष रूप मे रहता है तथा सवष रूप से शरु तथा ऄनेक बाधाओ से व्यच्ि का रक्षण करता ही रहता है. साधक का ऄच्हत करने का सामथ्यष ईसके शरुओ मे रहता ही नहीं है. साधना के दौरान साधक ऄघोर मंर का भी जाप करे तो वह ऄत्यच्धक ईत्तम है.
From 108 ancient sciences, there are still some sciences about which common people do not know anything. Such one of the science which had remained famous was fight science (yuddh vijnana). Under this category of the science teaching used to be given to the person by developing one’s power and ability for self and other’s protection. With that teachings related to weapons were also be used to given which act as helper in power development. Under this science it had also been used to taught that how to use energy which is there in land and air to generate power and fight. This was the science which spread during Buddha era with which new innovations took place and various knowledge of martial art came in touch with different countries. With this, we get idea that our ancient sages must have special knowledge of bio and physic sciences. When this science was merged with tantra side then various processes came to know which were meant to win the fights. Many prayoga came in ront like Seinya Stambhan, Seinya Maaran, Raajya Mohini, Raja Vashikaran etc. with these, most important processes which came forward were astr sadhana. in our scriptures it is mentioned that in fight various astra were brought to use, we find mention of various astra like agni, paavakaa, varun, naag, aghor, bramha etc. all these astra could be gain with sadhana today even. To accomplish sadhana of various god goddess and to gain
astra from them such incidents are found in our scriptures. This way sudarshan chakra belongs to god Vishnu. Astra related sadhana are very hard and rigorous and may take several years for sadhak. But there are small ritual too exists related to these astra. By accomplishing which god and goddess send their astra to sadhana for their protection being pleased. But such rare processes are hard to get, somewhere mantra could be found mentioned but processes are hard to find. Sadgurudev have given knowledge about such processes to ascetic disciples. This is our fortune that our ascetic brothers and sisters hold knowledge of such rare processes. With blessings of sadgurudev I am here by sharing a process with you, which is related to sudarshan chakra. This sadhana could be started on any auspicious day. In the night time after having bath sadhak should wear white cloth and sit on white aasan. And with rudraksh rosary one should chant mantra. sadhak should complete 10000 mantra in 7 days maximum, sadhak can make selection of the days according to their capacity but no. of mantra chanting should remain same daily. If one wishes, sadhak can also complete all mantra in 1 day. Om Sudarshan Chakraay Sheeghra aagachchh mam sarvatr rakshay rakshay swaha After mantra chanting sadhak should wear the rosary and when it is eclipse (solar/lunar) one should chant 11 rosary of the same mantra and should offer 1008 aahuti with the same mantra of honey in the fire. It is great boon that sadhak can have glimpse of sudarshan chakra at that time. Sadhak should bow down to it and pray for the protection. After that sudarshan chakra will remain in invisible form near sadhak and in every way it save from dangers ad enemies. Enemies no more can harm in any way to sadhak. If during sadhana, sadhak chants aghor mantra will add extra benefit to get success in sadhana.
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Saturday, December 31, 2011 –
र
“आ
र
”
र्ह लदन जब हम जीर्न का प्रारं भ करते हैं हम सभी के ललए नर् र्र्व कहलाता है,मान्यताओं,संस्कारों और तथ्यों के अधार पर एक सामान्य र्र्व में कइ बार नर् र्र्व मनाया जाता है,जैसे नर्रात्री को लहंदू संस्कृलत का तो लभन्न लभन्न प्रान्तों के ऄपने नर् र्र्व होते है तो स्र्यं का जन्मलदन भी व्यलि लर्शेर् के ललए नर् र्र्व ही होता है,और मानर् लचंतन सदैर् आस ओर रहा है की कैसे हम ऄपने मनोर्ांलित को प्राि कर न्यन ू ताओं को समाि कर सके और साथव क कर सके ऄपना नर् र्र्व .सदगुरुदे र् हमे शा नर् र्र्व के ऄर्सर पर साधकों को लर्लक्षणता प्रदान करने र्ाले नर्ीन तथ्यों से पररलचत तो करर्ाते ही थे साथ ही साथ लदव्यपात श्रेणी की लर्लभन्न दीक्षाओं को भी ईन्होंने
दे ना प्रारं भ लकया था लजससे साधक सामान्य न होकर ऄद्भुत हो जाये... परन्तु १९९८ के बाद र्े सारे क्रम ही लुि हो गए और ऄन्य कोइ ईन तथ्यों को समझा पाए ऐसा संभर् ही नहीं था. हमारे लर्लभन्न ज्ञात और लि ु तंत्र ग्रन्थ प्रमाण हैं ईन ईच्चस्तरीय साधनाओं के लजनका प्रयोग कर साधक ऄपनी जीर्न शैली में ऄमल ू चल ू पररर्तव न कर सकता है और र्र्व भर के ललए श्रेष्ठता तो प्राि कर ही सकता है ,ऐसा ही एक ग्रन्थ है ‚गुह्य रहस्य पिक्षत‛ जो परू ी तरह क्षदनों ,महीनों और िषों को ऄनुकूल बनाने और गक्षतमान िषण,माह और क्षदिस के ऄक्षधष्ठाता ग्रह ,देि शक्षि,मातक ृ ा और मुंथा को िश में करके स्ियं का भाग्य लेखन करने की गुह्यतम पिक्षत पर अधाररत है ,परू ा ग्रन्थ ही २२८ प्रयोगों से युि है,लभन्न लभन्न लदर्सों और माहों के ऄपने ऄपने प्रयोग हैं. परन्तु ईन सबमे जो सभी के ललए प्रभार्कारी पद्धलत है ईसी का लर्र्ेचन में आस लेख में कर रहा हूँ, सदगुरुदे र् के सन्यासी और लसद्ध लशष्य स्िामी क्षशि योगत्रयानंद जी ने मुझे र्ो ग्रन्थ लदखाया था जो परू ी तरह हस्तलललखत था और ईन्होंने ईसे मुझे ईन लक्रयाओं को कैसे लकया जाये और कब कब कैसे ईनका प्रयोग लकया जाता है ये भी समझाया था ,ईन्होंने बताया था की आस प्रयोग को दो तरीकों से लकया जा सकता है – १. या तो जब सामलू हक मान्यताओं के अधार पर नर् र्र्व प्रारं भ हो तब २. या जब साधक का जन्मलदर्स हो या ईसकी पाररर्ाररक या धालमव क मान्यताओं के अधार पर जब नर् र्र्व प्रारं भ होता हो. चाहे अप लकसी भी क्रम को मानते हो तब भी अप दो तरीके से आस प्रयोग को कर सकते हो – १. या तो सय ू ोदय के समय का का अश्रय लेकर साधना की जाये २. या लफर लजस समय साधक का जन्म हु अ हो ईस समय पर आसे संपन्न लकया जाये ,भले ही अप १ जनर्री को आसका प्रयोग कर रहे हो परन्तु तब भी अप आसे आन दोनों में से कोइ समय पर कर सकते हो, ऄथाव त मान लीलजए की लकसी का जन्म २४ ऄगस्त को रात्री में ९.३५ पर हु अ है तब ऐसे में साधक १ जनर्री को ही या तो सय ू ोदय के समय आस साधना को कर सकता है या लफर रात्री में ९.३५ पर .दोनों ही समय प्रभार्कारी हैं और कोइ दोर् नहीं है. अप चाहे अत्मलर्श्वास की मजबत ू ी चाहते हों या लफर रोजगार की प्रालि या र्लृ द्ध,सम्मान चाहते हो या लफर संतान सख ु या संतान या पररर्ार का अरोग्य ,अलथव क ईन्नलत चाहते हो या कायव में सफलता ,जीर्न में प्रेम की ऄलभलार्ा हो या लफर लर्दे श यात्रा का स्र्यं के भाग्य में ऄंकन,ये प्रयोग सभी ऄलभलार्ाओं की पत ू ी करता है. सदगुरुदेि ने १९९१-१९९२ में पहली बार साधकों के सामने निरात्री में सौभाग्य कृत्या का प्रयोग करिाया था .और निरात्री चूंक्षक सनातन नििषण का अगमन पिण होता है ऄतः ईन्होंने ईपहार स्िरुप आस क्षक्रया को सभी साधको को प्रदान क्षकया था ,ईसी क्रम में ईनके अशीर्ाव द से ये ‚अक्षदत्य भैरि सायुज्य श्री सौभाग्य कृत्या प्रयोग‛ हमारे ललए प्राि हु अ है ,गुरु मंत्र की १६ माला ऄलनर्ायव हैं ईन्ही क्षणों में साधकों के द्रारा आस प्रयोग के पहले तभी ये प्रयोग पण ू व ता प्रदान करता है. अप ऄपनी मान्यताओं के अधार पर लजस भी नर् र्र्व के प्रारं भ में आस साधना को करना चाहे ,ईस सुबह सय ू ोदय के पहले ईठकर स्नान कर ले और श्वेत र्स्त्र धारण कर भगर्ान सय ू व को ऄर्घयव प्रदान करे .ऄर्घयव पात्र में जल भर कर और ईसको पहले सामने रखकर २१ -२१ बार लनम्न मन्त्रों से ऄलभमंलत्रत कर ले – ओम अक्षदत्याय नमः
ओम क्षमत्राय नमः ओम भाष्कराय नमः ओम रिये नमः ओम खगाय नमः ओम पष ू ाय नमः ओम ग्रहाक्षधपत्ये नमः आसके बाद ही ईस जल से ऄर्घयव प्रदान करे .तत्पिात साधना कक्ष में स्र्यं या पररर्ार के साथ बैठकर सदगुरुदे र् और भगर्ान गणपलत का पज ू न करे .अज लजस गुरु ध्यान मंत्र का प्रयोग होता है र्ो भी आस ऄर्सर लर्शेर् के साथ योलगत है और भलर्ष्य में आस ध्यान मंत्र में लिपी ईस लर्शेर् साधना को भी अप सभी भाइ बहनों के समक्ष रखने का प्रयास करूँगा . सद्गुरु पज ू न से पर्ू व लनन्म ध्यान मंत्र का ७ बार ईच्चारण करे – ‚ऄज्ञान क्षतक्षमरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया | चिुरुन्मीक्षलतं एन तस्मै श्री गुरुिे नमः || ‛ तत्पिात पंचोपचार लर्धान या सलु र्धाजनक रप से सदगुरुदे र् और भगर्ान गणपलत का पज ू न कर संर्त्सर शुभता की प्राथव ना करे और १६ माला गुरु मंत्र की करे आसके बाद ईनकी साक्षी में हाथ में जल लेकर ईपरोि साधना में सफलता की प्राथव ना और संकल्प ले | यलद अप पररर्ार के साथ पज ू न कर रहे हैं तब भी और यलद अप ऄकेले पज ू न कर रहे हैं तब भी लकसी भी पाररर्ाररक सदस्य या अत्मीय के नाम से संकल्प ले सकते हैं . लजतने सदस्य ये प्रयोग कर रहे हैं ईन सभी के ललए एक-एक घतृ का दीपक लगेगा . लजस बाजोट पर गुरु यन्त्र या लचत्र रखा हो ईस बाजोट पर श्वेत र्स्त्र लबिाना है और सदगुरुदे र् के लचत्र के सामने ‚अक्षदत्य भैरि यन्त्र‛ का लनमाव ण ऄष्टगंध से करना है और जहाूँ पर 5 ललखा है र्ह पर घी का दीपक जलाना है और ईस यन्त्र और दीपक का पंचोपचार पज ू न कर खीर का भोग लगाना है ,यलद अप ऄपने पररर्ार के ऄन्य सदस्यों या ऄपने अत्मीयों को भी आसका प्रभार् दे ना चाहते हो तो यन्त्र के चारो और १ व्यलि के ललए १ दीपक घी का प्रज्र्ललत कर सकते हैं और स्र्यं की ११ माला की समालि पर प्रत्येक व्यलि की तरफ से ३ -३ माला ईनका संकल्प लेकर कर सकते हैं. गुरु रहस्य माला, या स्फलटक, रुद्राक्ष या सफ़ेद हकीक की हो सकती है .ऄन्य मालाओं में मंग ू ा या शलि माला का चयन भी लकया जा सकता है. पण ू व एकाग्र भार् से लनम्न मंत्र की ११ माला जप करना है तत्पिात गुरु अरती संपन्न कर ईस खीर के भोग को सपररर्ार ग्रहण लकया जा सकता है . मंत्र-
ओम ह्रीं श्रीं अक्षदत्य भैरिाय सौभाग्यं प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं कृत्याय श्रीं ह्रीं ओम
OM HEENG SHREEM AADITYA BHAIRVAAY SOUBHAGYAM PRASEED PRASEED HREENG HREENG KRITYAAY SHREEM HREENG OM . नर्ीन संर्त्सर की ईपललब्धयों को अप ऄपने जीर्न में स्र्तः ही दे खेंगे. आस प्रयोग के द्रारा अप सभी को ऄपने ऄभीष्ट की प्रालि हो और अपकी ऄशुभता और दुभाव ग्य की समालि होकर नयन्ू ताओं का नाश हो,ऐसी ही मैं सदगुरुदे र् से प्राथव ना करता हूँ. ********************************************* The day , when we started our life that is known as Nav varsh . on the common belief , the Sanskar and on various facts , in a year , we are /can celebrate many times new year (nav varsh). Like Navratri is considered for hindu culture, in the same way , each states has its own new year(nav varsh) and person’s own birth day is also considered nav varsh for him. And human thinking always oriented on the plane that how can we remove our weakness and get the our desired things. so that nav varsh has fulfill its meaning for us. on this day , Sadgurudev ji used to provide some unmatchable things to the sadhak and also introduced some new horizon of the divine gyan and also stated to give the diksha’s that comes in the category of divyapaat ,. so that a common sadhak should not became a common but became extra ordinary in his life . after 1998 all these things had gone/stopped and no one came forward to teach that divinity and continue that tradition set by him . We have many grantha’s , some are available and some are not (lost ) , that are itself the evidence for those sadhana, that can introduce miracle in sadhaka’s life and able to get that power through that he can accomplish the desired things. One such a granth is “Guhy Rahasy paddhati “ that is totally based on how to get favor and complete help from days , months , years and not only that but also get favor from deity ( or lord ) of running month , days and dev shakti and muntha so that a person can write his bhagy (luck) as he wants, and various secretive process mentioned are in that and whole granth contains 228 such a processes. Thses are related to various months and related days . but the most effective process among in that , here , I am describing in this articles for you all. Swami yogtryanand ji , who is sanyashi siddh shishy of Sadgurudev ji, has showed me the granth that is hand written and also instructed me to how to do that kriyaye (processes) and when that has to be done . he also said this prayog can be done through two ways. · When due to belief of the majority , a nav varsh has started . · Or when sadhak birth day is celebrated or when nav varsh started due their family or religious belief or traditions. Whether you are believing any one , mentioned above , but you can do this prayog through two ways 1. When sun is rising , than sadhana has to be done . 2. Or on the time when sadhak was born(birth took place). Even you are doing this prayog on 1 st January but you can choose any one time mentioned above , for example .. here is someone , whose birthdays falls on 24 august at 9:35 pm at night. So sadhak can do this sadhana either on sun rising hours or at night 9:35 pm. Both times will provide same effectiveness and there is no dosha . Either you want improvement in your will power , Or want to get job, or promotion or samman (prestige ) Or for happiness related to children Or want a child Or free from dieses to your complete family. Or success in the work Or want to get love in life. Or want to travel abroad , thses things can be written in your luck by you own . and this prayog fulfill all thses desire.
Sadgurudev ji in 1991-92 gave this “Soubhagy Kritya Prayog” on the time of Navratri to all sadhak’s ,since that day was the nav varsh for sanatan dharm so this prayog was a gift to all sadhakas. In the same series this prayog “ AADITY BHAIRAV SAAYUJJY SHRI SOUBHAGY KRITYA PRAYOG ” is available to us through his blessing . before started this prayog , The guru mantra reciting of 16 round of rosary is a must , only than this prayog became effective. According to your common belief , when any sadhak want to do this prayog on any nav varsh as per his belief , has to awake early in the morning , take a bathe wear white colored clothes and offer ardhy to Bhagvaan sury /sun. and fill that ardhy patra with water and before doing that chant 21 -21 times thses mantra so that ardhy patra became abhimantrit (energized) Om aadityay namah Om mitrayay namah Om bhaskaray namah Om ravye namah Om khagay namah Om pushaay namah Om grahadhiptye namah Only after that offer ardhy offering , than in the pooja room , he can alogwith his member of his family , can start the Sadgurudev poojan and after that Bhagvaan ganpati poojan. And the dhyan mantra used in that prayog is also describing here and in the future , also try to provide the sadhana hidden in that to all our brother and sisters. Before Sadgurudev poojan do chant 7 times this dhyan mantra. Agyan timirandhsy gyanajan shalakya | Chakshurunmilit ev tamsmayi shri guruve namah|| After that you can do poojan as per panchopchar or as per your convenience (Sadgurudev ji and bahgvaan ganpati ji) and pray for good wishes in coming samvtsar , and recite the guru mantra 16 round of rosary . and after that take sankalp through taking water in your hand for success in this sadhana . Either you are doing this sadhana alone or with all the family member , you can take sankalp on the behalf of any family person and your close one. Light a earthen lamp filled with ghee , one lamp for each member taking part in this sadhana , than on the bajote ( a small wooden table ) place Sadgurudev chitr (photograph) on white color cloth and make a Aadtiy bhairav yantra through asht gandh on that white color cloth in front of Sadgurudev chitr. Light an earthen lamp filled with ghee on the place , where no 5 is written. And do poojan and panchopchar or that Deepak (placed on no 5 ) and offer kheer as a bhog . and if you wish to offer the effect of this prayog to your close one or family member , than you can place one Deepak for one person around this yantra, and when your 11 mala mantra jap has completed than you can do recite 3 - 3 mala (3 round of rosary ) of mantra jap for each person for whom you want to offer the result . Mala can be guru rahsy mala or sphatik or rudraksha or white hakeek would be fine. And if not available than you can use shakti mala or moonga mala .and after that with full concentration and devotion do chant /recite 11 round of mala mantra jap of the mantra mentioned below. And than offer guru aarti and offered kheer can be distributed among the family member . ओ
र
ओ
OM HEENG SHREEM AADITYA BHAIRVAAY SOUBHAGYAM PRASEED PRASEED HREENG HREENG KRITYAAY SHREEM HREENG OM . And you are able to see your self the achievement of yours , in this new samvatsar in your life . through this prayog you all can achieve your desired things and your bad luck can be change d to good one and all your weakness be removed in your life , this is what I am a praying to sadguru dev .
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Tuesday, November 29, 2011 AMAL RUHE HAMJAAD
ऄचानक उस िूिे हुए कभये का वातावयण औय अचधक यहस्मभम हो गमा था ,शनै् शनै्
यात्रत्र का तीसया प्रहय प्रायॊ ब हो गमा था,उन्होने अऩने अभर को औय तीव्रता दे द थी,भेया आसन उन्ह के फगर भें त्रफछा था,औय उनकी सबी प्रक्रिमाओॊ ऩय भैं फहुत फाय की से ध्मान दे यहा था. उन्होंने भुझे फतामा था की आज वो िदगरुदे ि द्वाया प्रदत्त सिद्धत्भध आिधहन की ववलशष्ि साधना को कयें गे,आज उन्हें ऐसा ह आदे श हुआ है . क्मा आऩने ऩहरे मे क्रिमा कबी नह ॊ की-भैंने उत्सुकतावश हिद फक्ि जी से ऩूछा . फहुत फाय की है भेये फच्चे......अक्सय भैं उच्च कोहि की साधनाओॊ औय यहस्मों की प्राजतत के लरए सदगुरुदे व की आऻा से इस साधना का प्रमोग कयता यहता हूॉ-उन्होंने भुस्कुयाते हुए कहा. क्मा आऩ इस साधना को भुझे सभझामेंगे ??? क्मों नह ॊ...आज यात्रत्र को तुभ भेये साथ ह इस साधना के लरए फैठना औय ध्मान ऩूवक म इसकी प्रक्रिमाओॊ औय ववधान को दे खना,तॊत्र की अत्मचधक गोऩनीम साधना है ,जजसके द्वाया उच्च रोकों भें जस्थत हदधम व लसद्ध आत्भाओॊ को प्रत्मऺत् आवाहहत कयके उनसे अबीष्ि ऻान की प्राजतत की जा सकती है . वाह क्मा फात है ....भजा आ गमा. फेिे मे साधना भजे के लरए नह ॊ की जाती है ,अवऩतु अत्मचधक गॊबीय औय एकाग्र बाव से ह इस प्रकाय की साधनाओॊ भें सपरता ऩाई जा सकती है ,इस फात का हभेशा ध्मान यखन औय गरती से बी कबी भात्र ऩयखने मा भनोयॊ जन के लरए इस साधना को नह ॊ कयना चाहहए. जी भाप कीजजमे... भैं इन फातों का ध्मान यखूग ॉ ा- भैंने सकुचाते हुए झुकी तनगाहों से उत्तय हदमा.
अये कोई फात नह ॊ ,फस साधक को गॊबीय होना चाहहए. यात्रत्र को फाजना भठ के ऩास जस्थत सयोवय के भध्म भें जस्थत यातनवास हभाभ को इस क्रिमा के लरए चन ु ा गमा ,औय साय तमाय कय गतु त भागम से हभ दोनों उस जगह ऩय ऩहुच गए,जफरऩुय की ववशेषता यह है की महाॉ के भहरों मा ऩुयाने भॊहदयों के गबम भें कई तहखाने यहते हैं,जजनभे जाने का यास्ता इतना सुगभ नह ॊ है ,ऩयन्तु तॊत्र औय शाक्तों का क्रकसी सभम भें गहया वचमस्व यहा है महाॉ ऩय खास तौय ऩय चयु नये शों ने शैव शाक्त साधनाओॊ के अद्भत ु प्रबाव से ऩूय नगय औय उनके बग्न भॊहदयों औय भहरों को अद्भत ु रूऩ से शजक्तभम फना हदमा था ,औय जजसका प्रबाव आज बी कोई बी साधक अऩनी साधना के द्वाया प्रत्मऺ अनुबूत कय सकता है .शय यस्थ १०८ चिों औय ३२४ केन्द्रों ऩय इन शजक्तमों का इतना तीव्र प्रबाव ऩड़ता है की साया शय य साधना कार भें औय उसके फाद बी तीव्र गतत से स्ऩॊहदत औय योभाॊचचत होता यहता है . खैय मे सफ प्रथक ववषम है जजस ऩय क्रपय कबी हभ फात कयें गे,अबी तो.... हाॉ... हभ साधनाकार की फात कय यहे थे ,सबी साभचग्रमों का ववचधवत स्थाऩन औय ऩूजन कयने के फाद हसद फक्स जी ने भन्त्र जऩ प्रायॊ ब कय हदमा औय फीच फीच भें साभने यखे लभिि के धऩ ू दान भें सर ु ग यहे कोमरों के अॊगायों ऩय रोहफान डारने रगे,जजससे वातावयण भें भादक सुगॊध पैरने रगी औय धुएॊ का तीव्र गोरा जैसा फनने रगा.भॊत्र उच्चायण कयते हुए उन्हें ३ घॊिे हो गए थे ,अचानक वातावयण भें फहुत ह बीनी औय धीभी धीभी सुगॊध पैरने रगी ,औय हसद बाई अऩने दोनों हाथों को जोड़कय उस धुएॊ भें दे खने रगे ,भैंने बी उनका अनुसयण क्रकमा तो दे खा की धआ ु ॉ हल्का हो गमा था औय अधय भें एक आकृतत का तनभामण होने रगा,औय धीये धीये वो आकृतत स्ऩष्ि होने रगी ,सफ़ेद सापा औय सफ़ेद ह चोगा ऩहने हुए,हाथ भें तस्फीह लरए हुए,रॊफी सफ़ेद दाढ ,औय चेहये ऩय गजफ का तेज लरए हुए आकृतत औय आॉखे इतनी चुम्फकीम शजक्त से मुक्त औय नूयानी की फस जजस ऩय ऩड़े वो थभ सा जामे.
आरयप इन्हें सराभ कयो.....मे लसद्ध औलरमा रूहधकपन अदफ हैं ,रूहानी ताकतों औय ऻान भें इनसे फड़ा कोई नह ॊ हुआ है अफ तक ..अनचगनत अभरों को जो की खत्भ हो गए हैं औय जजनकी जानकाय बी आज क्रकसी को नह ॊ है ,वे सफ इनके ऩास सुयक्षऺत हैं औय इन्होने उनभे नए नए अभरों को इन्होने जोड़ा है . भैंने अदफ से उन्हें सराभ क्रकमा . उन्होंने बी जवाफ दे कय फहुत तमाय से भेय औय दे खा औय बाई जी अऩने फुराने का कायण ऩूछा . बाई जी ने कहा –जी भैंने कबी सदगुरुदे व से सुना था की रूहे हभजाद औय फादशाहे जजन्नात के कई लसपलर औय अजामफात
अभर आऩने अऩने ऩीयों भुलशमद से ऩाए हैं,भैं
कई सारों से इन अम्रों को तराश यहा था,महद आऩ को सह रगे तो क्मा आऩ भझ ु े इनभे से कुछ फताने की तकर प कये . तफ उन्होंने अऩने चोगे भें से एक हस्तलरखखत उदम ू भें लरखी हुमी भोि सी क्रकताफ द औय कहा की मे भेये जीवन बय का तनचोड़ है .इसभें वो साये अभर हैं जजन्हें भैंने खुद आजभाए औय अऩने उस्ताद से ऩाए हैं.तत्ऩश्चात उन्होंने उस क्रकताफ को कैसे प्रमोग कयना है फहुत दे य तक सभझामा औय वावऩस जाने की ख्वाहहश की,हभने तकर प के लरए भाफ़ी भाॊगी औय उनका शुक्रिमा अदा क्रकमा. साया साभान सभेि कय वावऩस हभ बाई जी के डेये ऩय ऩहुचे औय सदगरु ु दे व से भानलसक आऻा प्रातत कय
उस क्रकताफ को खोर कय फैठ गए ,क्रकताफ का नाभ था “ अभर-ए-
रूहधनी अजधमफधत”.औय उस क्रकताफ भें फने ववलबन्न मॊत्रों औय क्रिमाओॊ को सभझाने रगे,रूहानी औय गैफी ता़तों की दतु नमा से जुडी ऐसी जानकाय भैंने आज तक क्रकसी बी जगह नह ॊ ऩढ है . अद्भत ु साधनाएॊ बय ऩड़ी हैं उस क्रकताफ भें. सफसे फड़ी फात मे यह है की सयर औय सहज उऩरब्ध साभग्री से होने वारे मे सबी ववधान यहे हैं .
२ सार फाद जफ भैं हसद बाई से लभरने गमा तो वहाॉ ऩॊचभी बाई औय भेये तमाये फॊगार दादा बी थे,जफ भैंने हसद बाई से उस क्रकताफ के प्रमोगों के फाये भें ऩूछा तो उन्होंने वो क्रकताफ भुझे थभा द औय कहा की इसके साये प्रमोग सत्म हैं .ऩयन्तु फहुत से प्रमोग फहुत ह बमानक है औय महद आलभर इसे कयते हुए डय जाए तो उसकी जान ऩय बी फन सकती है ,ऩयन्तु फहुत से प्रमोग अत्मचधक सयर है औय महद इन्हें ववशेष प्रकाय से क्रकमा जामे तो मे तत्कार ऩूणम राब दे ते हैं.औय गैफी ता़तों को आऩका लभत्र बी फना दे ते हैं ,ऩयन्तु भेय सराह मे है की त्रफना सद्गुरुदे व की आऻा औय दृढ इच्छा शजक्त के ऐसे प्रमोग नह ॊ कयना चाहहए. क्रपय उन्होंने भुझे जजन्नात,ऩीय औय हभजाद साधनाओॊ के कई प्रमोग साभने कयके हदखामा .हभजाद साधना के फाये भें उन्होंने फतामा की
आकाश
तत्व के मोग से ह ब्र्भा्ड के उन यहस्मों को आत्न्सात क्रकमा जा सकता है औय जीवन भें उताया जा सकता है .मे तनताॊत सत्म है की महद आकाश तत्व को सभझ लरमा जामे तो क्रकसी बी धमजक्त के भन को भजष्तष्क को ऩढा जा सकता है ,औय उन ववचायों की नकायात्भकता को सकायत्भक रूऩ भें ऩरयवततमत क्रकमा जा सकता है ,इसी तत्व का भूर रूऩ होता है छामाऩुरुष मा हभजाद ,जो की धमजक्त ववशेष के आकाश तत्व औय अजग्नतत्व से तनलभमत होता है ,महद इन्हें सह तय के से लसद्ध कय लरमा जामे तो मे आऩका सबी अबीष्ि ऩूया कय सकते हैं ,हाॉ एक फात ध्मान यखने वार है की मे आऩका कारा रूऩ अथामत आऩकी ऩयछाई होती है औय ऩयछाई का यॊ ग हभेशा कारा इसलरए होता है ,क्मोंक्रक कुदयत आऩको फताती है की मे आऩकी नकायात्भक ताकत है औय मे कबी बी आऩसे छर कय सकती है ,महद आऩने सह तय के से इनका रूऩाॊतयण अच्छाई भें नह ॊ क्रकमा तो मे आऩको भ्रलभत कयते हुए आऩ ऩय ह याज कयने रगती है .ऩयन्तु भैंने सफसे तनयाऩद औय अन्म साधनाओॊ की अऩेऺा अभरे रूहे हभजधद िधधनध को ज्मादा आसान ऩामा है औय जल्द लसद्ध होने वारा बी अत् भैं उसका सभथमन अन्म के भुकाफरे ज्मादा कय सकता हूॉ. हभजाद साधना के फहुत से गढ ू यहस्म हैं ,चॉक्रू क मे गैफी औय रूहानी ताकि है अत् महाॉ ऩय ज्मादा लरखना उचचत नह ॊ होगा,महाॉ भात्र भैं उतना ह लरख यहा हूॉ जजतना भैंने स्वमॊ कयके सत्म ऩामा है औय ऩयख कय उसकी सत्मता दे खख है ,ऩूणम श्रद्ध ृ ा
औय सदगुरुदे व की कृऩा औय उनके आशीवामद से आऩ तनश्चम ह इस साधना का प्रबाव दे ख सकते हैं . क्रकसी बी शक् ु र ऩऺ के शि ु वाय से इस साधना को आऩ प्रायॊ ब कय सकते हैं ,एकाॊत कऺ की धमवस्था कय रेनी चाहहए औय कऺ भें १४ हदनों तक कोई ना जामे इस फात का ध्मान यखे.ऩजश्चभ हदशा की औय भुह कयके फैठना है ,सफ़ेद हकीक भारा से भॊत्र जऩ होगा ,मे साधना २ चयण की है ऩहरे ३ हदन दरूद शय प को लसद्ध कये औय उसके फाद ४ थे हदन से तनत्म 24 भारा भॊत्र जऩ होगा, हय भारा के फाद रोहफान की धुऩ दे ना है मा फेहतय होगा की आऩ रोहफान की अगयफत्ती सुरगा रे औय उसे फुझने न दे , फजल्क फुझने के ऩहरे ह नमी जरा रें. यात्री का दस ू या प्रहय इसके लरए उऩमुक्त यहता है . तहभद (रॊुगी) ऩहनकय औय सय ऩय िोऩी रगी हो सफ़ेद कुयता ऩहना हुआ हो.शुरू के तीन हदन अऩने साभने आॊिे का गोर घेया फनाकय उसभे लभिि का द ऩक यख दे औय उसभे चभेर मा भेहॉद का तेर बय दे औय उस द ऩक के चायो औय ३ गोभती चि,सफ़ेद आकडे की ३ अॊगुर रॊफी जड़ औय तीन हकीक ऩत्थय यख रे औय भारा से तनत्म ७ भारा तनम्न दरुद शय प की कये .भारा कयने के ऩहरे एक फाय .. “बफल्थभकरधह दहयश हभधतनयश हीभ” फोरे औय क्रपय भारा कये . दरूद शय प“अकरधह हम्भध िकरे अकरध,िैमदनध भौरधनध भहम्भददि फधरयक ििकरभ िरधतो िरधभो कध मध यिूकरधह िकररधहो तआरध अरैह ििकरभ” तीन हदन तक मह क्रिमा यहे गी ,तीन हदन फाद उस द ऩक को जजसभे तेर बया है साफ़ रुई की फत्ती डारकय अऩने ऩीछे रगाना है औय द ऩक प्रज्वलरत कयना है ,माद यखखमे आऩका आसन सफ़ेद होना चाहहए औय अऩने आसन के चायो औय आॊिे से एक घेया दरूद शय प ऩढते हुए फनामें. साभने जो बी वस्तुए स्थावऩत हैं वो वैसी ह यहे गी ,अफ जफक्रक आऩके ऩीछे जर यहे द ऩक की वजह से आऩकी ऩयछाई साभने हदखाई दे यह होगी
आऩको उस की गदम न ऩय आऩको तनगाह केंहद्रत कयनी है औय भॊत्र जऩ कयना है ,ऩरकें झऩक बी जाए तो कोई फात नह ॊ ,मथा सम्बव दृजष्ि उसी ऩय केंहद्रत कये .हाॉ जऩ के ऩहरे १ भारा दरुद
शय प की अवश्म कयना है ताक्रक क्रिमा हातन न ऩहुचामे .औय सफसे
ऩहरे त्रफजस्भल्राह ..... बी अवश्म कहे .भूर भॊत्र जऩ के ७ वे हदन से ह आऩकी ऩयछाई ववचचत्र खेर खेरने रगेगी ,कबी गामफ हो जामेगी ,कबी आकाय फड़ा मा छोिा कय रेगी अजीफ सी आवाज सुनाई दे ने रगेगी,आगे के हदनों भें आऩको ऐसा रगेगा जैसे आऩके साथ साथ कोई औय आऩकी आवाज भें ह फोर यहा है . अॊततभ हदवस आऩ आॊिे का हरवा फनाकय यख रे औय जऩ के भध्म भें बोग रगा दे ,भॊत्र जऩ की आखखय भाराओॊ भें एकाग्रता की जरुयत है क्मूॊक्रक आऩका ध्मान फाॊिने के लरए हभजाद जोय से धभाके कयता है ऩय अॊतत् आखखय भारा से थोडा ऩहरे ह आऩकी ऩयछाई आऩका ह रूऩ रेकय साभने फैठ जाती है ,औय भुस्कुयाकय आऩकी औय दे खती है .भारा ऩूय होने के फाद वो आऩसे ऩूछती है की “फताओ भैं तुम्हाये लरए क्मा कय सकता हूॉ” तो आऩ कहे की जफ भैं तुम्हे इस भॊत्र का १४ फाय उच्चायण कयके फुराउॊ गा तो तुभ हाजजय होगे औय भेये सबी नेक काभ भें भेया साथ दोगे ,तो वो फदरे भें आऩ क्मा दोगे तो आऩ उसे कहहमे की हय काभ के एवज भें भैं सवा ऩाॉव आॊिे का हरुआ तझ ु े दॉ ग ू ा.आऩके इतना कहते ह वो “ठीक है ” ऐसा कहकय चरा जाता है ,दस ु ये हदन आऩ हरवे सभेत सबी साभग्री एक गढ्ढे भें दफा दे .औय भारा को सॊबर कय यख रे तथा कभये को धो रे.औय जफ बी नेक काभ के लरए जरुयत हो,तफ उसका आवाहन कये . भॊत्र-
हमजादे हमजाद पीरो मुर्षशद का तू गुिाम ,या कु फ्र गैबी ऄजायबात ,हमजाद कहना मान,जो ना माने तो कु फ्र टूटे तेरे सर पर तुझे माूँ का दूध हराम, पीरो पैगम्बरों की अन. -----------------------------------------------------------------------------------
Suddenly that ruined room environment becoe so mysterious, gradually third part of night was started, he had speeden up his implementation. My asan was placed near by his asana only. And i was minutely observing his actions.
He told me, today we are going to do a specific Sadhna given by Shree Sadgurudev called Siddhatma Avahan sadhna, today same has been ordered. Due to eagerness i asked to Hasad Baks ji – Have you done this before? He said – yes my son, many times i did this sadhna....Very smiling usually i take permission from Sadgurudev to performing this sadhna, so as to achieve information regarding the high level of Sadhnas & their secrets. Will you make me understand this sadhna??? Why not... tonight you sit with me and watch keenly the preparations and procedures. Its the most secretful sadhna in Tantra because of which we can earn great knowledge from different spheres from high level of people. Oh Wow...Thats so nice.... Son, this sadhna is done mere for pleasure rather only with high level of concentration and devotion can help you to achieve success in it. Mind well, never perform this sadhna just for sake of entertainment or authencity of it. With consiousness and guilty eyes i said - Oh forgive me... I will adhere these points.. Oh thats fine, just sadhak need to be very serious at that time. In night time, in centre of river, a place called Ranivas Hamam at Bajna Math was choosen for this sadhna. With all preparation we reached there via secret path on time. Its speciality of Jabalpur, that the old palaces are consists of underground rooms. from which the path is not that easy but in the Tantra and shakt had deep vigorousness over the old times. Especially the Churi Prince had activated the whole area, temples and palaces due to impact of Sahiva Shakt Sadhnas which can be validate at today’s date also by any sadhak via performing sadhna. Bodily this impact hits on 108 chakras and 324 centres of body and keeps you activated, vibrated for long time. Anyways theses are different subjects on which we can converse some other time. Now.. ya where were we...Yaa we were talking about the sadhna duration, After establisment and worship of each and every thing, Hasad Baksji started mantra chanting. Meanwhile he was flaming the Lohban Dhup on the burning coals placed infront of him. Due to this aroma the environment became mesmerizing. Vapour was converting in dense circle. While mantra chanting already three hours paased on. suddenly whole environment filled with light aroma smell. Then Hasad Bhai was greeting with folded palms in that smoky area. I followed him as it is. Now the smoke density has ben reduced and converted into a humanly shape. gradually that shape becomes clear to us. wearing whole white cloths and white hat sort of on head, holding tasbeeh in hand, long beard and terrific glow on face personality was that attractive that whosoever see it once will bound to keep eye on it.
Then he said - Arif, Greet them... He is Siddh Auliyaa Ruhafin Adab.. In Ruhaani Powers and knowledge no one touched his achievement yet... indefinite Amala which are vanished and are now invincible, are safe with him only. Even he has invented and added in them. With due respect, I greeted him.. In return he also saw me with adorable eyes and asked whats the reason for calling me..? Bhai ji said – I have heard some time from sadgurudevji regarding Ruhe Hamjaad and Baadshaahe Jinnaat whose various sifil and ajayabaat have been earned by you from Peero Murshid. I have been searching this since long. If you feel right, then could you please oblige me with few of them? Then from his bag, he took out heavy weight handwritten book and said this is the extract of my whole life. It consists of all those amals which are tested by me and which I earned by my Ustad. Thereafter he explained the usage of this book. Then expressed his returning wish, we apologized u for bothering and expressed our thanks.. After winding up all things we returned at Bhai ji’s place and took the metal permission from Sadgurudevji and opened that book. The name of that book was “Amal-E-Ruhaani Ajaayabaat” and started imbibing the various types of yantras and kriyas mentioned in it. I have never seen nor read the types of Ruhani and Gaibi powers before in whole life. Its full of wonderful sadhnas. The most importantly fact is that they can be done by easily available facts and figures. After 2 years when I met Hasad bhai, I found Panchami Mai and Bangali Dada too. When I asked the experiments mentioned in that book, he then took that book in my hand simply and said all are authentic. But many of them are too dangerous and if the performer gets scared while doing this prayogs the he can die then and there. Where as many are so easy to perform. if they are performed with special way they can give you results instantly. And make you a friend of gaibi Powers. But still I advise not to do this prayogs without Sadgurudev’s permission and strong heart. Then he did Jinnat, Peer and Hamjaad Prayogs infront of me. Regarding Hamjaad sadhna he told me, with the joint of Aakash tatva, one can imbibe those secrets of universe and implement in his own life. This is mere truth, that if understood the akaash tatva correctly then you can read any person’s mind and brain. Even you can convert the negative thoughts into positive. Chaayapurush is the original form of this only which is formed with Sky element and Fire element of a person. If they could be accomplishes in correct way then you can achieve any wish. Hmm one thing you should keep in your mind i.e. this is your black form i mean shadow. and this is in black colour because Nature reminds you that this is your negative power and this can decieve you any time. If you doesn’t convert it into the positive form then she will create illusion infront you and
in result rule on you. But I found Amale Ruhe Hamjaad Sadhna much easier and safer that any one else. Even it gets easily accomplish as compared with others. Hamjaad Sadhna consists of many secrets in it. As it belongs to Gaibi and Ruhani Powers so much explaination is recommended here. Only that much can be expressed which i have found correctly and tested. With complete devotion and blessings of revered Sadgurudev You can definitely be successful in this sdhana. On any new to moon night ( Shukla Paksh) you can start this sadhna on friday. Arrange a lonely cabin, so as no one enter in atleast for 14 days. facing towards western direction, chanting with white hakik rosary.the complete sadhna is devided in 2 charan,in the first face we need to siddh Darud sharif. and in secand daily 24 rosaries should be done. After each rosary present a lohbaan dhup (aroma) or lohbaan Agarbaatti. But it should not slaked of from fire. Rather before slaking a new one should enlighted. Dwiytiya prahar of Night is best for it. Wear a (Tahmad/ Lungi) a long cloth, white kurta and hat should be the dress. In starting 3 days make a circle of wheat flour( as u make it for chapatis) and place it infront of you and enlight the mud lamp on it. fill it with jasmine or heena oil in i, draw a gomti chakraaround the mud lamp, take the root of white Akada app. 3 inch long and 3 hakik stones and do darud sharif for 7 rosary daily before rosary chanting... "Bismillah hirrahmanirraheem" Darud Sharif – “Allah humma salle allah, saiyadanaa maulana muhammdiv barik vasallam salato salamo ka ya rasulallah salallallaho taaala aleah vasallam” Do it continuously for 3 days, after three days take that lamp filled with oil, and with cotton thread enlight it at back side of your asana. Asan should be white. And make a boundary line made up of wheat flour around your asan and pronounce darud sharif while drawing it. Established things should remain as it is, now point to be noted that due to flaming lamp is behind you so the shadow will reflect in front of you. And you have to concentrate on neck of that shadow. And you have to do mantra chanting, you can blink your eyes, try to concentrate on it. Before mantra chanting, chant 1 rosary of Darud Sharif so that kriya doesn’t cause you harm. First of all say Bismillah also. From the 7th day of Original Mantra chanting onwards you may find your shadow is playing different games, sometime it may disappear or some time it may enhance or it may shrink, strange noises may come, in further days you may find that any body else is repeating your voice. On last day make a sweet made up of wheat flour, sugar and milk/ water called as Halva and meanwhile chanting mantra just represent it, At last mantra chanting of rosaries more concentration is needed as to interrupt or divert you hamjaad makes different types of blasts. At last before few rosaries Hamjaad takes form exactly like you and sits infront of you. And with smiling face just stairs
at you and says “Tell me what can i do for you” Then you should say, whenever i will chant this mantra for 14 times then you should appear infront of me and will follow and support my each good hearted intensions. Then in return you will say “I will give you 250 gm Halva against of every work” Instantly he will agrees and says “OK” and disappears infront of you. Then on next day just put all the things along with Halva in deep under ground. and Keep the rosary safe with you. and wash the cabin. Then at every good work if you need him then you can call him with the following mantra. Mantra “Hamjaade Hamjaad peero murshid ka tu gulaam, yaa kufra gaibi ajaayabaat, Hamjaad kehnaa maan, jo naa maane to kufra tute sar par tuze maa ka doodh haraam, peero paigambaro ki aan”
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Sunday, November 20, 2011 SHABAR LANKESH DARSHAN PRAYOG
यावण | एक ऐसा नाभ जो की आज घय घय भे प्रचलरत है , रेक्रकन एक तॊत्र साधक के लरए मे नाभ कोई की धमाख्मा ऩूणम रूऩ से फदर जाती है | वह धमजक्तत्व जो की एक भहान लशव बक्त था, शैव तन्त्रो भे अत्मचधक उच्चता प्रातत धमजक्त जजस के साभने लशव हभेशा ह प्रत्मऺ यहते थे. जजसने ‘श्रीशॊकयॊ ’, ‘उड्डीश’, ‘रॊकेश’, ‘तॊत्रश े ’ जैसे अत्मचधक भहान तॊत्र ग्रॊथो की यचना की चथ. ज्मोततष ववऻान व ् नऺत्र तॊत्र भे लसद्ध हस्त वह आचामम अऩने आऩ भे अजम था जजसकी बक ृ ु ि सॊकेत भात्र से ग्रह अऩनी जस्थतत को ऩयावततमत कय रेते थे ज्मोततष के ऺेत्र भे रुचचवान धमजक्त इस भहान लसद्ध के ऻान के फाये भे यावण सॊहहता को दे ख कय ह अॊदाज़ रगा सकते है . सॊगीत का असाधायण ऻान तथा सॊगीत के भाध्मभ से सम्तऩन होने वार ताॊत्रत्रक क्रिमाओ का बी एक वह ृ द ऻानी जजस ववषम ऩय उसने अऩने ग्रन्थ ‘यावणीम’ भे अऩने असाधायण धमजक्तत्व का ऩरयचम हदमा है . कार ववऻान के ऺेत्र भे बी यावणीम तनणमम अऩने आऩ भे फेजोड ग्रन्थ है . तनततशास्त्र भे उसने बाष्म लरखा जो की याज्म क्रकस प्रकाय से चरामा जाम उसके लसद्धाॊत ऩय आधारयत है . इततहास गवाह है की रॊका भे उसके याज्म के सभम ववश्व के श्रेष्ठतभ याज्मों भे वह एक था. ऩायद ववऻान के भाध्मभ से अऩनी ऩूय रॊका को सोने की फना द चथ, साथ ह साथ भत्ृ मॊुजम ऩायद की वजह से उसे चचयॊ जीवी जस्थतत प्रातत हुई चथ. ऩायद के लसद्धआचामो भे आज बी उसकी गणना रॊकेश नाभ से होती है . उसका रॊकेश लसद्धाॊत तथा अन्म कई ग्रन्थ अऩने आऩ भे फेजोड है . कभमकाॊड के ऺेत्र भे बी उसने ऊॊचाईमो को प्रातत क्रकमा था. इसके अरावा उसे मन्त्र ववऻान का बी अद्भत ु ऻान था, त्रत्रमक ववभान जैसे जहिर औय असाधायण उऩकयणों ऩय उसने शोध कय कई ववभान का तनभामण क्रकमा था, साथ ह साथ ववजभ्बन मॊत्रो के वह ऻाता यहे है . सदगुरुदे व ने बी कई फाय इस धमजक्त के प्रशॊशा भे कहा है की तॊत्र के ऺेत्र भे ववश्वालभत्र यावण औय त्रत्रजिा के आगे क्रकसी की गतत नह ॊ है . एक साभान्म से लबऺुक ऩरयवाय भे जन्भ रेके एक साधक अऩने आऩ ऩय ह तर ू जाए तो क्मा कय हदखा सकता है वह जनभानस के भध्म यख कय उसने एक नए ह अध्माम की यचना की. आज मह ग्रन्थ बरे ह अप्रातम हो गए है रेक्रकन रुतत नह ॊ, कई ताॊत्रत्रक घयानों तथा गुतत आश्रभो ने इसकी फयाफय यऺा की है .
लसद्धाचामम यावण प्रखणत साधनाओ का वववयण तो मदा कदा लभर जाता है रेक्रकन उन से सफॊचधत साधनाओ का आबाव ह है . सदगुरुदे व ने कई ववचधमा अऩने लशष्मों के भध्म प्रसाद रूऩ भे द है जजन से लसद्धो का आवाहन सॊबव होता है . ऐसे ह उन्होंने ववश्वालभत्र, नागाजुन म , वलसष्ठ जैसे भहा ऋवषमो के आवाहन की कई ववचधमाॉ स्ऩष्ि की चथ. साथ ह साथ उन्होंने यावण से सफॊचधत ऐसा रघु ववधान बी प्रदत क्रकमा था जजसके भाध्मभ से लसद्धाचाममरॊकेश स्वतन भे मा बावावस्था भे दशमन दे कय साधक को आशीवमचन प्रदान कयते है . सदगुरुदे व से भाफ़ीसह प्राथमना कयते हुए औय लसद्धाचाममयावण को श्रद्धासुभन प्रणाभ कयते हुए आऩ सफ के भध्म मह ववधान प्रस्तत ु कय यहा हू. साधक इस साधना को सोभवाय यात्रत्र भे १० फजे के फाद शुरू कये . अऩने साभने ऩायदलशवलरॊग औय बगवान लशव का कोई पोिो स्थावऩत कये औय उसका ऩूजन कये . उसके फाद भन ह भन लसद्धाचाममयावण को दशमन के लरए प्राथमना कय तनम्न भॊत्र की ११ भारा रुद्राऺ भारा से कये . इस साधना भे हदशा उत्तय यहे , वस्त्र व ् आसन सफ़ेद यहे . ओभ रॊकेर्सिद् रॊकध थधऩरो सर्ि र्म्बू को िेिक दधि ततहधयो दर्शम दर्शम आदे र् मह िभ अगरे सोभवाय तक (कुर ८ हदन ) तनमलभत यहे . साधना के फीच भे मा आखय हदन साधक को रॊकेश के दशमन हो जाते है . भारा को ववसजजमत ना कये , उसे ऩहना जा सकता है .
Raavan. The name which is known in almost every home today, but for a sadhak of tantra field the meaning of this name gets a complete change. The great being who was devotee of lord shiva, the person highly accomplished in shaiv tantra that before Shiva used to be present always. Who created great tantra scriptures like ‘shrishankaram’, ‘uddisha’, ‘lankesh’, ‘tantresh’. He was Victorian an great command holder over subjects of astrology science and nakshatra tantra who is moves his eye, planets were used to change their positions; people interested in astrology can imagine about his vast knowledge just by mere going through once with raavan samhita. An ultimate knowledge of music and tantra process relating same; it gives us idea about his great knowledge in his scripture ‘Raavaniya’. On the subject of Kaal Nirnaya the scripture ‘raavaniya nirnay’ stand singular. He even wrote essay scripture about the concepts that how to run a kingdom. History is proof itself that in his time duration lanka was one of the best kingdoms on the earth. With paarad vigyan he completely made his kindom lanka of gold, with that by the help of Mrutyunjay paarad he had the almost position of infinity of life. In the great scholars of the paarad (siddhacharya)
he has a place with a
name of Lankesh. In this field his scripture Lankesh Siddhant and others have remained non-compatible.
He has also touched heights of
knowledge in the field of karmakand. With that he also had fantastic knowledge of yantra vigyan (machinery science), researching and preparing complicated and abnormal machines like Triyak Vimana, he had remained knowledge holder of other different type of machines.
Sadgurudev have also appreciated this person by telling that in the field of tantra no one is ahead than Vishwamitra, Raavan and Trijata. Born as normal and poor family; if sadhak move ahead with his total mind set then what he can make; the example in the history have made by him. Today these scriptures might be unavailable but not extinct, in many traditional tantra houses and in secret aashram have protected those scriptures. Sadhanas of him are found to be mentioned somehow at few locations but sadhana related to him are very rare. Sadgurudev have many time gave sadhana in the form of blessings to call siddha. This way he explained many processes to call (avahan) of great sages like vishwamitra, nagarjuna, vasistha etc. With that he also gave small ritual related to raavan with which Siddhacharya raavan give his glimpses and blessings in either sub conscious stage or in dreams. With apology and prayer to sadgurudev and with devotional greetings to siddhacharya Raavan I am here by sharing the process with you all. Sadhak should star this sadhana on Monday night after 10’o clock. Establish paarad shivaling and photograph of lord shiva and do the poojan. After that with prayer in mind to have darshan of siddhacharya raavan do the 11 round mantra chanting of the following mantra with rudraksh rosary. In this sadhana direction should be north, cloths and aasan should be white. Om LankeshSiddh Lankaa Thaapalo Shiv Shambhu Ko sevak Daas Tihaaro Darshay Darshay Aadesh.
This process should be continued till next Monday (total 8 days). In between of the sadhana or on the last day of sadhana sadhak will have glimpses of Lankesh. Keep the rosary after sadhana, it could be worn.
****NPRU**** Posted by Nikhil at 12:07 AM 4 comments: Labels: SABAR SADHNA, TANTRA SIDDHI, VIGYAAN VA TANTRA BHED
Thursday, November 17, 2011 Kaal bhairav sadhana - to overcome unwanted incidents
जीिन की उऩमक्त औय मोग्म गततर्ीरतध को ग्रहण रगधने िधरे भख्म र्त्र है िभथमध औय अकथभधत. अगय मे दो भख्म फधधक जीिन की गतत भे नध हो तो व्मल्क्त अऩने बौततक ि ् आर्धमधल्त्भक ऩक्ष को अत्मधधक भजफूती दे िकतध है . कधर की गतत अनॊत है जो की तनयॊ तय रूऩ िे चरती यहती है . परथिरूऩ हभधये फोध कधर िे विगत को बत तथध गॊतव्म को बविष्म नधभ ददमध गमध है . रेककन िफ घटनधमे भख्म रूऩ िे अऩने अऩने थथधनों ऩय कधर की गतत भे होती ही है औय जफ आऩ कधर के उि तनल्श्चत बफॊद ऩय ऩहोचधते है तो िह ितशभधन के रूऩ भे आऩिे प्रत्मक्ष हो जधतध है . म हभधये जीिन भे कोई बी ल्थथतत होती है मध आती है तो िह कभश प्रधधन कधयण थिरुऩ ऩहरे िे ही कधर भे तनल्श्चत धथ. इिी क्रभ भे िह िफ घटनधमे कधर के गबश भे तनदहत ही है चधहे िह आऩके अनकूर हो मध कपय प्रततकूर. ज़यध िोधचमे की अगय हभ उन प्रततकूर ऩर को तनकधर दे तो जीिन प्रत्मेक िभम भधय हो जधएगध. रेकीन क्मध ऐिध िॊबि है . िधधनध तो प्रकक्रमध ही अिॊबि को िॊबि फनधने की है . इि क्षेत्र भे अिॊबि तो अऩने आऩ भे एक छोटध िध र्ब्द फन कय यह जधतध है . तॊत्र भे कई ऐिे विधधन है ल्जनकी भदद िे आने िधरी दघशटनधओ तथध विकट िभथमधओ को ऩहरे िे ही जधनध जध िकतध है . रेककन प्रथतत विधधन इि प्रकधय िे है की िह आने िधरी दघशटनधओ तथध विकट िभथमधओ के भधत्र िॊकेत नहीॊ दे तध रेककन उि प्रततकूरतध को दयू कय के आऩ को उििे फचधतध बी है . इि प्रकधय के कछ विधधन तो तनल्श्चत रूऩ िे ऩयधतन तॊत्र ग्रॊथो भे प्रधप्म है रेककन िे िफ विधधन गढ़ तथध िभमगभ है . अत्मधधक जदटरतध तथध रॊफे िभम तक िधधनध कधर होने के कधयण आज के इि मग भे इि प्रकधय की िधधनध कयनध अत्मधधक दथकय है . रेककन िदगरुदे ि ने अऩने गह ृ थथ सर्ष्मों के भर्धम ज्मधदधतय ियर औय त्िरयत ऩरयणधभ दे ने िधरी िधधनधऐ ही यखी. तनम्न िधधनध के सरए िधधक रुद्रधक्ष मध कधरे हकीक की भधरध कध प्रमोग कये . आिधन तथध िथत्र रधर यहे औय ददर्ध दक्षक्षण. मह ११ ददन की िधधनध है ल्जिे िधधक र्तनिधय मध भॊगरिधय की यधबत्र भे ११ फजे के फधद र्रू कय िकतध है .
िधधक अऩने िधभने कधर बैयि की पोटो मध विग्रह थथधवऩत कये . उिकध ऩूजन कभकभ तेर सिन्दयू ऩष्ऩ िगेयध िे कये . धऩ तथध तेर कध दीऩक अवऩशत कये . उिके फधद हधथ भे जर रेके िॊककऩ कये की भे मे भॊत्र जधऩ बविष्म भे आने िधरी िबी दघशटनध िभथमध तथध फधधध के
िभधधधन के सरए कय यहध हू आऩ इिभें भेयी िहधमतध कये . इिके फधद
तनम्न भॊत्र की २१ भधरध जधऩ कये .
ॐ कधरबैयि अभक िधधकधनधॊ यक्षम यक्षम बविष्मॊ दर्शम दर्शम हूॊ इिभें अभक िधधकधनधॊ की जगह थिमॊ के नधभ कध उच्चधयण कयनध चधदहए. बविष्म भे जफ बी कोई िभथमध मध दघशटनध होने िधरी हो तो ककिी न ककिी रूऩ भे बगिधन कधर बैयि िधधक को िूचनध दे दे ते है . िधधक अऩने कधमों को उि प्रकधय िे ऩयधिततशत कय िकतध है . म तो बगिधन बैयि िधधक की प्रत्मक्ष अप्रत्मक्ष रूऩ भे भदद कयते ही यहते है .
==================================================== In the path of life the basic two obstacle creator enemies are certain problems and unexpected accidents. If these main two obstacles are not there in the life; a person can have a good hold over the progress of material and spiritual life. The movement of the time is infinite which runs continuous. This resulting us in present to term went off as ‘past’ and expected as ‘future’. But every incident are basically pre-placed in the motion of time and when you reach at that particular point of the time it comes in front of you as ‘Present’. This way in our life if any situation is there or arriving situations all those were prearranged in the time as a result enforced with karma. This way all those incidents are safe in the time rather it is favourable for you or not. Just think, if anyhow we remove those unexpected unfavourable moments from the life, how beautiful our life will start acting! But, is it possible? Sadhana is process to make impossible a possible thing. In this field, impossible remains as very small word only. In tantra there are
several processes through with help of which we may get to know about the problems and unwanted incidents before it occur. But the here presented is the process through which not only meant to let you knew about the forthcoming troubles but it also saves you from the effect of the same. Such processes are for sure present in the many old tantra scriptures but those all are in codes and time consuming. As having a complicated processes and long time durations to do such sadhanas are really hard in this particular time period. But Sadgurudev have majority of the time provided simple and fast result giving sadhana to his disciples of material world. In sadhana below, the rosary should be used of rudraksha or black hakeek. Aasan and cloth should be Red in colour and direction should be south. This is 11 days sadhana which could be started on any Saturday or Tuesday after 11 in night. Sadhak should establish photo or idol of Kaal Bhairav infront of him. The poojan of the same should be done with red vermillion, oil, Sindoor, flower etc. Dhoop and oil lamp should be offered. After that one should take sankalp with water on palm that I am doing this mantra chanting to overcome all the accidents, problems and troubles I request you to help me. After that, chant 21 rosary of following mantra.
Om kaalBhairav amuk saadhakaanaam rakshay rakshay bhavishyam darshay darshay hum In this mantra one should chant their own name on the place of ‘Amuk saadhakaanaam’. In future when ever any troubles or unwanted incident is about to happen, Lord kaal Bhairav will inform sadhak with any of the form. Sadhak can convert his task that way. Though lord Bhairav will keep on helping sadhak directly indirectly.
SHAKTIPAAT SIDDHI YANTRA FOR TANTRA KOUMUDI-8
तॊत्र कौभदी-८ भें ददए हए प्रमोग के सरए उऩयोक्त मॊत्र कध प्रमोग ककमध जधतध है . जो की उि अॊक भें वप्रॊट नहीॊ हो ऩधमध थध.
****NPRU**** Posted by Nikhil at 10:41 PM No comments: Labels: TANTRA KOUMUDI E MAG INFRMATION, TANTRA SIDDHI
Sunday, October 30, 2011 BRAHMRISHI VISHVAMITR PRANEET DIVY DEH SIDDHI SADHNAPOORN AROGYA,ROG MUKTI AUR ASAN SIDDHI HETU
कहा गमा है की ऩहरध िख तनयोगी कधमध-अथामत स्वस्थ्म शय य ह जीवन की सफसे फड़ी सॊऩजत्त है औय उसी से आऩ अन्म सुखों का उऩबोग कय सकते हैं तथा साधना भें आसन की दृढता को प्रातत कय सकते हैंl
कातमक सख ु ,चचत्त की जस्थयता औय एकाग्र बाव से साधनात्भक रक्ष्म की
प्राजतत के लरए जजस क्रिमा का प्रमोग क्रकमा जाता है ,उसे आसन कहा जाता है l साभान्म फोरचार की बाषा भें सवु वधाऩव म एकाग्रता ऩव म जस्थय होकय फैठने की क्रिमा आसन ू क ू क
कहराती है lजजस प्रकाय इस भहत्वऩूणम क्रिमा का ऩतॊजलर ऋवष द्वाया जजस मोगदशमन की धमाख्मा व प्राकट्म क्रकमा गमा उसभे वववत ृ अष्िाॊग मोग भें
आसन को उन्होंने
तत ृ ीम स्थान हदमा है ऩयन्तु इसी आसन की भहत्ता को सवामचधक फर नाथ सॊप्रदाम की हदधम लसद्धभॊडलरमों द्वाया प्रवततमत षडॊगमोग भे लभरा है ,जहाॉ ऩय गुरु गोयखनाथ आहद
ने आसन को प्रथभ स्थान ऩय यख कय साधना भें सपरता के लरए अतनवामम भाना है l अथामत जजसका आसन ह नह ॊ सधा हो बरा वो साधना भें लसवद्धमों का वयण कैसे कय सकता है lभैंने फहुत ऩहरे श्वेतत्रफॊद-ु यक्तत्रफॊद ु रेख श्रॊख ृ रा भें इस तथ्म का वववयण बी हदमा था की मदद व्मल्क्त िधधनध कधर भें भन्त्र जऩ के भर्धम दहरतध डरतध है ,ऩैय फदरतध है तो िषम्नध की ल्थथतत ऩरयिततशत होने िे नध सिपश उिके चक्रों के थऩॊदन भें अॊतय आतध है अवऩत भूरधधधय औय थिधधधष्ठधन चक्र ऩय तीव्र िेगी नकधयधत्भक प्रबधि
ऩड़ने िे िधधक भें कधभ बधि की तीव्रतध बी आ जधती है औय उिे थिप्नदोष,प्रदय,प्रभेह जैिी बफभधरयमों कध बी प्रबधि झेरनध ऩड़तध है l
आसन का जस्थय कयण औय शय य की तनयोगता साधना का भूर है ,इसके फाद ह
चचत्त को एकाग्र कयने की क्रिमा की जा सकती है औय साधना भें सपरता प्रातत होती है ,जफ साधक एकाग्र भन से रॊफे सभम तक जऩ कयने भें सऺभ हो जाता है तो “जऩ् जऩधत ् सिवद्बशिेत” की उजक्त साथमक होती है अथामत लसवद्ध को आऩके गरे भें भारा डारने के लरए आना ह ऩड़ता है l
ऩयन्तु मे इतना सहज बी नह ॊ है क्मॊक्रू क जफ तक साधक का शय य योग भक् ु त ना
होजामे तफ तक वो आसन ऩय दृढता ऩूवक म फैठ ह नह ॊ सकता,स्वस्थ्म शय य से ह साधना की जा सकती है ,आसन जस्थय कयण क्रकमा जा सकता है औय तदऩ ु याॊत ह
साधना भें सपरता प्रातत कय तेजजस्वता ऩामी जा सकती है l सदगुरुदे व ने स्ऩष्ि कयते हुए कहा था की “जफ र्यीय ही िबी दृल्ष्टमों िे िधधनध भें िपरतध प्रधप्त कयने कध आधधय है ,तो थिथथ्म र्यीय की प्रधल्प्त के सरए विश्िधसभत्र प्रणीत
ददव्म दे ह सिवद्
िधधनध अतनिधमश कभश हो जधती है ,इि िधधनध को िॊऩन्न कयने के फधद आत्भ सिवद् कध भधगश प्रर्थत हो जधतध है , होती है ”-
दे हसिवद् की िम्ऩण ू श कक्रमध ६ कक्रमधओॊ कध िभल्न्ित रूऩ
भल्ष्तष्क तनमॊत्रण- साधना के लरए सदै व सकायात्भक बाव से मक् ु त भजष्तष्क ,जजसभे असपरता का कदावऩ बाव धमातत न हो ऩाए l
आिन तनमॊत्रण- हभ चाहे जजतनी बी भारा जऩ सॊऩन्न कय रे,तफ बी हभाये फैठने का बाव औय शय य ववकृत न हो l
चक्ष तनमॊत्रण- साधना कार व अन्म सभम हभाये नेत्रो भें कोई हल्का बाव ना आने ऩाए औय सदै व हभाय दृजष्ि तेजजस्वता मुक्त होकय लसवद्ध प्राजतत के गूढ सूत्रों को दे ख कय प्रमोग कय सके,आत्भ सात कय सके l
श्िधॊि तनमॊत्रण- भन्त्र जऩ के भध्म श्वाॊस की रम व गतत भें ऩरयवतमन ना हो औय साधक भॊत्र जऩ सुगभता से कय सकेl क्मूॊक्रक प्रत्मेक प्रकाय के भॊत्र की द घमता औय रघुता भें लबन्न लबन्न प्रकाय की श्वाॊस भात्र की आवश्मकता होती है l
अधोबधग तनमॊत्रण-साधना भें फैठने की क्रिमा कभय से रेकय ऩैयों के ऊऩय तनबमय होती है , उनभे दृढता प्रदान कयना l ऩॊचबूतधत्भक तनमॊत्रण- हभाये शय य भें धमातत ऩॊचबूत तत्व मथा जर,अजग्न,वामु,आकाश
औय ऩथ् ृ वी की भात्रा को साधना कार भें घिा-फढा कय शय य को साधनात्भक वतावय की अनुकूरता प्रदान की जा सकती है lतफ ऐसे भें हभाया शय य फा्म औय आॊतरयक योगों औय ऩीडाओॊ से भुक्त होता हुआ साधना ऩथ ऩय अग्रसय होते जाता है ,प्रकायाॊतय भें वो ऩूणम आयोग्म की प्राजतत कय रेता है l इस प्रकाय की क्रिमाओॊ के फाद ह शय य साधना के लरए तत्ऩय हो ऩाता है ,औय
त्रफना शय य को तनमॊत्रत्रत क्रकमे मा अनुकूर फनामे साधना भें प्रवेश कयने से कोई राब नह ॊ होता है l
वस्तत ु ् योगभक् ु त तनजमया कामा की प्राजतत आज के मग ु भें इतनी सहज नह ॊ है ,क्मॊक्रू क
आज का मुग ऩूय तयह से प्रदवू षत,शावऩत औय बोग मुक्त है ,तफ ऐसे भें ददव्मदे ह सिवद् िधधनध हभाया भागम सुगभ कय दे ती है l सदगरु ु दे व ने इस साधना का वववेचन कयते हुए स्ऩष्ि क्रकमा था की िधधक जगत को मे िधधनध ब्रम्हवषश विश्िधसभत्र जी की दे न है , उऩयोक्त ६ कक्रमधओॊ कध इि िधधनध भें ऩण ू श िभधिेर् है ,िथतत् इि भॊत्र भें भधमध
फीज,कधरी फीज औय भत्ृ मॊजम फीज को ऐिे वऩयोमध गमध है की भधत्र इिकध उच्चधयण ही ब्रलभधण्ड िे ितत प्रधणऊजधश कध प्रिधह िधधक भें कयने रगतध है औय उिकी आॊतरयक
न्मूनतधओॊ कध र्भन होकय उिकी दे ह कधरधतीत होने के भधगश ऩय अग्रिय होने रगती है l
ऩायद की वेधन ऺभता अनॊत है औय वो अववनाशी तत्व है ,अत् इस साधना की ऩूणत म ा के लरए भहत्वऩूणम साभग्री ऩधयद सर्िसरॊग औय ऩॊचभखी रुद्रधक्ष है , इस साधना को क्रकसी बी सोभवाय मा गरू ु वाय से प्रायॊ ब क्रकमा जा सकता है ,सूमोदम से,श्वेत वस्त्र,उत्तय हदशा का प्रमोग इस साधना के लरए तनधामरयत है l
प्रात् उठकय ऩूणम ऩववत्र बाव से स्नान कय सूमम को अर्घमम प्रदान कये तथा उनसे
साधना भें ऩूणम सपरता की प्राथमना कये ,तत्ऩश्चात साधना कऺ भें जाकय सफ़ेद आसन ऩय फैठ जामे औय साभने फाजोि ऩय सफ़ेद वस्त्र त्रफछाकय सदगुरुदे व का हदधम चचत्र,
उनकी दाई तयप बगवान गणऩतत का ववग्रह मा प्रतीक रूऩ भें सुऩाय की स्थाऩना कये
क्रपय गुरु चचत्र के साभने दो ढे य चावरों की फनामे अऩने फामीॊ तयप की ढे य ऩय गाम के घत ृ का द ऩक प्रज्वलरत कये (माद यखखमेगा की सदगुरुदे व के चचत्र के साभने दो ढे य
फनानी है औय गणऩतत ववग्रह के साभने इतनी जगह छोडनी है जहाॉ एक इतना फड़ा ताम्फे का किोया यखा जा सके जजसभे आधा र िय ऩानी आ जामे) औय दाई तयप तेर का द ऩक यखना है l इसके फाद गणऩतत जी के साभने ताम्फे का ऩात्र यख कय उसभे यक्तचॊदन से एक गोरा फनाकय उसभे “ह्रौं” लरख दे औय उसके ऊऩय ऩायद लशवलरॊग तथा रुद्राऺ स्थावऩत कय दे l इस क्रिमा के फाद आऩ गणऩतत ऩूजन,गुरु ऩूजन औय लशवलरॊग ऩूजन ऩॊचोऩचाय ववचध मा साभथ्मामनुसाय कये औय गुरुभॊत्र की ११ भारा जऩ कये lतत्ऩश्चात ॐ का ११ फाय उच्चायण कये
ताम्फे के ऩात्र भें यखे स्वच्छ जर से (जजसभे
गॊगा जर लभरा लरमा गमा हो) १-१ चाम के छोिे चम्भच से लशवलरॊग के ऊऩय ददव्म दे ह सिवद् भॊत्र का उच्चायण कयते हुए जर अवऩमत कये , मे क्रिमा १४ हदनों तक तनत्म १ घॊिे कयनी है lमाद यहे उऩाॊशु जऩ कयना है ,जो जर आऩ तनत्म अवऩमत कयें गे उसे अगरे हदन अऩने स्नान के जर भें लभरकय स्नान कय रेना है l ददव्य देह च्सच्ि मंर-
ॎ ह्रौं ह्रीं िीं जूं सः देह च्सच्िम् सः जूं िीं ह्रीं ह्रौं ॎ ll OM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l १४ हदनों के फाद आऩ लशवलरॊग को ऩूजनस्थर ऩय स्थावऩत कय दे औय रुद्राऺ को
मथाशजक्त दक्षऺणा के साथ बगवती कार मा दग ु ाम भॊहदय भें अवऩमत कय दे तथा फाद के
हदनों भें भात्र २१ फाय भॊत्र का तनत्म उच्चायण कयते यहे ,सदगरु ु दे व की असीभ कृऩा से हभ सबी के सभऺ ऐसी गोऩनीम साधनाए फची यह है है ,अत् साधनात्भक उन्नतत की प्राजतत
के लरए अऩनी कलभमों को दयू कये औय स्वस्थ्म शय य के द्वाया साधना कये तथा आसन की जस्थयता को प्रातत कये जजससे उच्च स्तय म साधनाओॊ की सहज प्राजतत हो सकेl
“A Sound Mind Lives In a Sound Body” it means fit body is honored as one of the most important assets of this entire world because without it we won’t be able to enjoy other luxuries of our life and it is our body which helps us to be solidify on our altar i.e. called aasn. Aasan is what??? Actually it is a means which helps us to enjoy physical comfort, stability of heart and mind so that we can attain our divine destination. Generally if you are able to sit in a single posture without any waving in your and mind than it is called aasan. Saint Patanjali defines and explains this procedure through Yogdarshan and in that too he ranks this process at third position but this process got more sophistication by the changed Shhdangyog divine sidh-mandalies of Nath Sect because in it Guru Gorakhnath regarded this aasan process the first step of success and ranks it at number one position. It means a person who is unable to make his grip strong on his aasan that can never ever have success in the field of sadhnaa. I have already explained this issue in the series of Shvetbindu-Raktbindu that during meditation or sadhnaa if a person moves his body or changes his sitting posture during mantra jaap than it is quite obvious that with his position his spinal will too change its direction and that is wrong as when spinal changes its position then with her it changes the position of our chakras too and not stop here with the changed position of spinal Mooladhaar and Swadhishthaan chakras releases negative energy and this negative energy causes erotic desires in saadhak and he started suffering from the problems as Night fall, Prader, Prameh and all that……….. Stability on aasan and fit body these two things are basic requirements for success in sadhnaa because without it, it is impossible to make your mind constant as when a saadhak can seated for a long time without any moment on his aasan then the power of “Japaah Japaat Sidhibhervaet” comes into life and when this position can attain then it is dead sure that he can get what he wants. But let me remember you that it is not as easy as it sounds because with ill body no-one can get his/her aasan permanent stable but do not forget
that if once you will attain this position then nobody can dare to stand between you and your success. Sadgurudev himself told that” it fit body is a fundamental requirement for success in sadhnaa then to have fit and fine body it is very important to do Divya Deh Sidhi Sadhnaa as this sadhnaa will open the door for the further step i.e. called aatam sidhi. Deh sidhi sadhnaa is a collective form of six different procedures and that areControl over mind- during sadhnaa one should keep his mind charged with positive energy…..and there should be no thought of failure. Control over aasan- during sadhnaa one should not depend upon the counting of rosary as keep on sitting until or unless you can. Control over eyes- during in or out duration of sadhnaa there must not be cheap or baseless emotions should flow into your eyes…..one should keep his eyes focused on the accessories of sadhnaa so that your inner soul can absorb their qualities. Controlled breathe- during mantra jaap there must be a deadly combination between the inhaling and exhaling process as your respiration speed depends upon the length and shortness of mantra as in different mantra different type of respiration system used. Control over body i.e. Adhobhaag Niyantran- how much time you can sit in a single posture during sadhnaa it all depends upon your back and legs so you should pay special attention on this portion. Control over five basic elements of body i.e. Panchbhootatmak Niyantran- if one comes to know that how he can increase or decrease the quantity of five basic elements i.e. water, fire, air, sky and earth, of his body then easily he can make his body suitable for the environment of his surrounding then slowly- slowly his body gets itself free from external and internal diseases and finally becomes pure. After all these procedures body becomes suitable for sadhnaas as without this purity there is no use of doing any type of sadhnaa. But the disturbing fact is that in this present scenario when everything is polluted, mall nourished to have perfect body is just like dream but with the help of Divya Deh Sidhi sadhnaa we can have an ideal body. Once while speaking about this sadhnaa Sadgurudev explained that in the field of sadhnaa this procedure is invented by Bhramrishi Vishwamitra ji
which include all 6 procedure in it with collective energy of Maya Beej, Kaali Beej and Mrityunjay Beej which are systematically arranged in a single thread and only by enchanting of it divine natural universal power starts entering in sadhak’s body and when this happens all the pit falls get vanishes from his soul and with pure heart, mind and body he gets lost in his sadhnaas. If we talk about the quality of divines and purity then without any doubt the first name which comes into our mind is Mercury (parad) so in this sadhnaa too the most important useable things are Parad Shivling and Panchmukhi Rudrakshh. This sadhnaa can be started on any Monday or Thursday and in other accessories sun rising time, white clothe and North direction is already decided. For this sadhnaa one should gets up at early morning and take bath. After bathing he should offer water as divine offering to the sun and gets his blessings for success. Then in your sadhnaa room be seated on white altar and in front of you on wooden slab spread white cloth and put picture of Sadgurudev on it. On the left side of picture put supari in the form of Lord Ganesha. After that make two heaps of rice in front of Sadgurudev’s photo and then lit a lamp (Deepak) of cow’s ghee on the heap of your left side. Remember in front of Sadgurudev’s photo there must be two heaps of rice similarly in front of supari ,which we has been taken as Lord Ganesha , there must be as much place that a copper bowl with half liter water can be placed there and on right side place oil lamp(Deepak). When all this done then in front of Ganpati ji put copper bowl and in it make a circle with raktchandan and in that circle write “Hroum” and then placed Parad Shivling and Rudrakshh on it. After this you need to do Ganpati Poojan, Guru Poojan and Shivling Poojan with panchopchaar procedure or as per your capacity and then enchant 11 rosary of Guru Mantra. Further while speaking OM (11 times) take water from that copper bowl (in which Ganga jal is already mixed) with the help of small tea spoon and offer that water on Shivling while speaking Divya Deh Sidhi Mantra. Carry on this procedure for 14 days and it will take just an hour. Remember you have to do Upanshu Jap and that water which you offer to Shivling, use that water during your bath on next day.
Divya Deh Sidhi MantraOM HROUM HREENG KREENG JOOM SAH DEH SIDDHIM SAH JOOM KREENG HREENG HROUM OM l
After 14 days place Shivling at your poojan place and rudraksh at Kaali or Durga Temple with some alms. After this you need to enchant this mantra 21 times daily. It is just because of our revered Sadgurudev that we still have these types of secret sadhnaas so to achieve success in sadhnaas firstly get rid of your short-comings as it is only with healthy body we can make our aasan capacity as much solid and durable as we want.
****NPRU**** Posted by Nikhil at 3:23 PM 3 comments: Labels: GURU SADHNA, KAARYA SIDDHI SADHNA, TANTRA SIDDHI
Wednesday, October 12, 2011 HIDDEN SECRETS OF YAKSHINI SADHNA
यक्षिणी साधना के क्षलए साधक का क्षचंतन क्या होना चाक्षहए ? र्स्तुतः लसफव यलक्षणी के ललए ही नहीं बलल्क प्रत्येक साधना के ललए साधक का लचंतन पण ू व सालत्र्क होना ही चालहए, जब एक सामान्य स्त्री भी अपको दे खकर अपके मनोभार् का पता अपकी दृलष्ट से लगा लेती है तो लफर ऄपार शलि संपन्न यलक्षणी भला कयूँ ू कर अपके मनो भार् को नहीं समझ पाएं गी. शायद तुम्हे पता नहीं है की जैसा लचंतन हमारे मन में होता है तदनर ु प ही साधक के चारो और रहने र्ाला ओरा भी होते जाता है .भले ही सामान्य मानर् ऄपनी सामान्य दृलष्ट से ईस ओरा को नहीं दे ख पाता हो पर लजनकी अकाश दृलष्ट और लदव्य दृलष्ट जाग्रत होती है ,ईनसे ये सक्ष्ू म पररर्तव न नहीं िुपाया जा सकता है. तामलसक भार् से यि ु होने पर साधक का ओरा गहरे धस ू र र्णव का ह जाता है और ये एक ऐसा रं ग है
लजससे लनकलने र्ाली लकरने दृश्य या ऄदृश्य रप में मन को ईच्चालटत ही करती हैं. और ये लकरणे ऄन्य रं गों की प्रभार्ी लकरणों के मुकाबले कही ज्यादा तीव्र गलत से संर्ेदन शील प्रालणयों में ऄसुरक्षा को पनपाती हैं ,लजसके कारण ईस प्राणी, मानर् या र्गव को तुमसे ऄसुरक्षा का ऄहसास होता है.ऐसे में र्े कदालप ईत्सक ु नहीं होंगे तुम्हारे समक्ष अने के ललए.और यलक्षणी तो साक्षात् शलि का ही पन ू ं श होती हैं ऄतः ईनसे अपके मन के सुक्ष्मलतसुक्ष्म पररर्तव न भी नहीं िुप पाते. ऄतः साधक को मन के लर्कारों को दूर करके ही साधना पथ पर बढ़ना चालहए,साधना का मल ू ईद्दे श्य ही ऄपने मन को व्यथव के भ्रम जाल से मुि कर लर्कार रलहत हो ऄपनी समस्त न्यन ू ता पर लर्जय पाकर मानलसक और अलत्मक रप से स्र्तंत्र होना है. और बात लसफव यही नहीं है बलल्क अपका लचंतन एक प्रकार से मौन र्ाताव ही है ऄथाव त शब्द जो की मुख से लनकलते हैं और इथर में पररर्लतव त होकर सम्पण ू व ब्रम्हांड के चककर लगाते हैं ठीक र्ैसे ही हमारे शरीर का प्रत्येक रोम लिद्र मुख ही है और हमारे मलष्तष्क या ह्रदय का सम्पण ू व मन: लचंतन ऄन्तः ब्रम्हांड के साथ बाह्य ब्रम्हांड को प्रभालर्त करता ही है. और ये शलि ब्रम्हांडीय ही होती हैं, साधना के द्रारा हम ऄपनी कल्पना योग को साकार योग में पररर्लतव त करता है, र्ो लजस रप में ऄपने साधना आष्ट का ध्यान करता है ईसी ध्यान का संगलठत रप भलर्ष्य में हमारी साधना शलि से प्रत्यक्ष होता है. मंत्र मात्र लकसी शब्द लर्शेर् का समहू नहीं होता है. बलल्क जब सद्गुरु ऄपने स्र्यं के प्राणों से घलर्व त कर लशष्य या साधक को मंत्र प्रदान करते हैं तो र्ो ऄभीष्ट लसलद्ध प्रदान करने र्ाला लदव्यास्त्र ही हो जाता है .हाूँ ये सही है की साधक के प्रारब्ध के कारण ईस पर एक प्रकार का अर्रण अ जाता है लजससे साधक को मंत्र का प्रभार् कुि समय तक दृलष्टगोचर नहीं हो पाता परन्तु जैसे जैसे साधक मंत्र जप में ऄपनी एकाग्रता और समय बढाता जाता है या ईसका जप प्रगाढ़ होते जाता है र्ैसे र्ैसे र्ो अर्रण लशलथल होते जाता है और ऄंत में परू ी तरह से नष्ट हो जाता और बाकी रह जाता है तो पण ू व दैदीप्यमान मन्त्र जो साधक के मनोर्ांलित को प्रदान करने समथव होता है. आसीललए कहा जाता है की लजतना ज्यादा जप होगा ईतना ज्यादा अप सफलता के नजदीक होते जाओगे ,है ना..... जी लबलकुल. पर जैसा मैंने कहा की लचंतन से तो ब्रम्हांड भी प्रभालर्त होता है तो भला तुम्हारा मन्त्र कयों नहीं होगा. आसीललए लजस साधक को सफलता चालहए होती है ईसे ऄपना लचंतन अत्मलर्श्वास से लबालब और पण ू व सालत्र्क रखना चालहए, यद् रखो जरा सा भी नकारात्मक लर्चार अपके परू े लकये कराये पर पानी फेर दे ता है ठीक र्ैसे ही जैसे दध ू से भरे हु ए पात्र को फाड़ने के ललए मात्र एक बूँदू नीबू ही बहु त होता है. अपके मन्त्र जो की इथर के रप में ब्रम्हांड के चककर लगाते हैं ईन्ही के अकर्व ण बल से ये शलि अबद्ध होकर लखची चली अती है, लचंतन की नकारात्मकता ईस अकर्व ण बल को भी कमजोर कर दे ती है.लजससे र्ो शलि प्रकट नहीं हो पाती.ऄतः लचंतन के प्रभार् से सफलता ऄिूती नहीं रह सकती.आसललए सकारात्मक लचंतन और सफलता का दृण संकल्प लेकर जब साधक साधना के ललए तत्पर होता है और मन पर संयम रखते हु ए साधना पथ पर अगे बढ़ता है तो ईसको सफलता लमलती ही है. साधना में क्षस्थरता का क्या महत्ि है ? साधना के प्रारं भ में नए साधक ईत्तेलजत ऄर्स्था में रहते हैं. लजससे ईनकी श्वास-प्रश्वास की गलत तीव्र होती है .और एक बात भली भांलत समझ लेना अर्श्यक है की श्वांस की ये तीव्रता मन को भी लस्थर नहीं होने दे ती है ऄतः मन की एकाग्रता के बगैर साधना सही तरीके से न तो संभर् हो सकती है और न ही ईससे ईलचत पररणाम लमल सकते हैं.कयंलू क लर्चललत मन साधना में व्यर्धान ईत्पन्न करता है और साधक साधना के ललए लजन ध्यान मन्त्रों की पररकल्पना कर ऄपने आष्ट की िलर् की ऄपने मन में स्थालपत करता है ,और यलद मन लर्चललत होगा तो र्हाूँ पर लजस िलर् का लनमाव ण हम करते हैं र्ो टूटती और जड़ ु ती रहती है.जब ये ध्यान लबम्ब ही लस्थर नहीं होगा तो सफलता कैसे लमल सकती है.आसललए साधना के प्रारं भ में
प्राणायाम का लर्धान होता है और ऄतः साधना के ललए हम लजस भी असन जैसे की लसद्धासन ,सुखासन या पद्मासन में बैठते हैं तो मन्त्र जप के पर्ू व ऄपनी सुलर्धा ऄनुसार असन पर सीधा बैठ कर ऄपने हाथ के ऄंगठ ू े को तजव नी से लमला कर ध्यान मुद्रा बना ली जाये और ऐसा दोनों हाथों से करके ऄपने घटु ने पर रख लो, ऐसा करने से साधना के द्रारा लनलमव त ईजाव बाह्य गमन नहीं कर पाती और आस दौरान मल ू बंध का ऄभ्यास करना चालहए. आस लक्रया को करने से धीरे धीरे शरीर लस्थर होने लगता है तथा असन में साधक ऄलधक लंबे समय तक बैठ पाता है.और जब साधक लस्थर मन और असन से मन्त्र जप की लक्रया करे गा तो ईसकी प्रलतलक्रया में ये ब्रम्हांडीय शलिया सफलता का र्रदान तो देंगी ही ना. मन्त्र कैसे कायण करता है ? मन्त्र का चयन कभी भी ग्रन्थ दे खकर नहीं लकया जाना चालहए बलल्क मंत्र की ऄपने गुरु से लर्लधर्त प्रालि की जलन चालहए ऄथाव त गरु ु के चरणों में जाकर ऄपने ऄनुकूल मन्त्र प्रालि की याचना करनी चालहए.तब गरु ु ररप,ु साथव क और और स्र् प्राणों से घलर्व त मंत्र साधक की सफलता के ललए ऄपने अशीर्ाव द के साथ प्रदान करते हैं.ऄलधकांश साधक आस भय से की न जाने हम जो साधना कर रहे हैं ईसे जानकर गुरुदेर् हमारे बारे में कया सोचेंगे ऄपने गुरु से साधना और मन्त्र के बारे में कोइ बात नहीं करते हैं ,पर अप खुद ही सोचो की ईस परब्रम्ह गुरु सत्ता से भला कया िुपाया जा सकता है ,और अपको सफलता प्रदान कौन करे गा ??? र्ही गुरु ना. तब सफलतादायक मन्त्र भी तो अप ईन्ही से प्राि कर पाओगे ,ईनके श्रीमुख से मन्त्र की मल ू ध्र्लन और ईसका अरोह ऄर्रोह भी अप को भली भांलत समझ में अ जायेगा. यलद लकसी मजबरू ी र्श ईनके श्रीचरणों में जा पाए तब ईनके द्रारा लनदेलशत या लललखत मन्त्र की साधना ईनसे पण ू व लर्नम्रभार् से मानलसक अज्ञा लेकर ही करना चालहए.और यलद आसी मध्य अपको गरु ु धाम जाने का ऄर्सर प्राि हो जाये तो ईनसे लमलकर ऄपना जप मन्त्र बता दे तालक यलद ईच्चारण में या मन्त्र में कोइ मात्र या र्णव दोर् हो या गलती से र्ो अपके शत्रुकुल का हो तो गुरु ईसका पररहार कर सके. ये शत्रुकुल क्या है ? ऄष्टादश लसद्ध लर्द्याओं को िोड़कर ऄन्य देर्ी देर्ताओं के मन्त्र ग्रहण में काफी लर्चार करना पड़ता है,शास्त्रों में आसके ललए कइ प्रार्धान और लनयम बताये गए हैं जैसे की कया मन्त्र दे र् ऄपने कुल का है,ईसकी रालश और ऄपनी रालश में कया सम्बन्ध है,ईसका नक्षत्र कया है.तथा जो मंत्र हम जप करने जा रहे हैं र्ो लकस तत्र् को प्रलतलनलधत्र् करता है ,र्ो तत्र् हमारे नामांक तत्र् का लमत्र है, शत्रु है या तठस्थ है.और ये सारी लक्रया ऄत्यंत जलटल है.कयंलू क यलद गलती से भी साधक शत्रु मंत्र का चयन कर लेता है तो मंत्र दे र् ऄपनी प्रलतकूलता से साधक को परे शां कर दे ते हैं. आसललए आतने लफड़ों में न पड़कर सबसे ऄच्िा यही है की साधक गुरु मुख से ही मन्त्र की प्रालि करे या ईनके द्रारा लनदेलशत मन्त्र की साधना करे . कयंलू क ईसमे ऐसा कोइ भय नहीं होता है. मैंने सुना है की मन्त्र का पुरश्चरण करना पड़ता है, तभी सफलता क्षमलती है.ये पुरश्चरण क्या है ? गुरु के द्रारा लनलदव ष्ट जप संख्या को क्रम लर्शेर् से लनधाव ररत ऄर्लध में पण ू व करना ही पुरिरण कहलाता है.तथा आस ऄर्लध में साधक को संयलमत जीर्न यापन करना पड़ता है .आन लदर्सों में र्ो सामालजक कायों से दरू ी बनाये रखता है. पुरिरण के पांच ऄंग होते हैंजप-आसमें मंत्र के दे र्ी या देर्ता का लर्लधर्त पंचोपचार या र्ोडशोपचार से पज ू न लकया जाता है,आन ईपचारों के ऄलतररि दे र्ता पज ू न का लर्शेर् क्रम तांलत्रक साधना में लकया जाता है. भलू म शोधन-साधना कक्ष के स्थान का पज ू न भलू म शोधन कहलाता है.द्रार देर्ताओं का पज ू न कर धरती को ऄध्यव प्रदान करे ,लफर असान शोधन मंत्र से भलू म पर पुष्प,ऄक्षत अलद ऄलपव त कर असान लबिाए और ईस पर बैठे.
दे ह शोधन-साधक प्राणायाम संपन्न करता है,लफर भत ू शुलद्ध,मातक ृ ाओं से न्यास, ऄपने आष्ट मन्त्र अर ऊष्यालदन्यास,करन्यास अलद संपन्न करने से साधक का शरीर शुद्ध हो जाता है . द्रव्यलदशोधन-साधक की साधना का ऄलनर्ायव ऄस्त्र होती है ईसकी साधना सामग्री,आसमें साधना में प्रायोलजत सभी सामग्री जैसे, यन्त्र, माला,पुष्प,दीप,धुप,र्स्त्र अलद सभी सामग्री अ जाती है.आनका पण ू व रपेण मन्त्रों केर द्रारा शोधन लकया जाता है तत्पिात अगे की लक्रया की जलन चालहए.(द्रव्यशोधन एक ऄलनर्ायव और लंबी साधनात्मक लक्रया है लजसका पण ू व साधनात्मक लर्र्रण आसी पलत्रका में ऄन्यत्र लदया जा रहा है) माला पण ू व रपेण संस्काररत होना चालहए ,ऄसंस्कृत माला से जप करने पर सफलता तो लमलती नहीं ईलटे मानलसक तनार् की ऄप देर्ताओं के द्रारा प्रालि होती है र्ो भी मुफ्त में .यलद जप काल में साधक ऄखंड दीपक प्रज्र्ललत कर ले तो कही ज्यादा ऄनुकूल रहता है.और यलद ऐसा न हो सके तो कम से कम जप काल में दीपक न बझ ु ने पाए ऐसी व्यर्स्था कर लेनी चालहए. होम-लनत्य प्रलत के जप का दशांश हर्न लनत्य यलद कर लदया जाये तो ईलचत होता है ,कइ व्यलि हर्न के बदले दशांश जप कर लेते हैं , पर मे रे मतानुसार हर्न करना कही ज्यादा ऄनुकूल और लाभदायक होता है.कयोंलक हर्न करने से मंत्र दीि होता है और ईसमे लर्शेर् चैतन्यता अती है. तपव ण-हर्न करने के बाद बड़े से ताम्बे के बतव न में या लकसी सरोर्र में हर्न की मात्र का दशांश तपव ण करे . बतव न को ऄष्टगंध,कपरू ,दर्ू ाव अलद लमलश्रत जल से परू रत कर दे और जो भी दे र्ता या देर्ी हो ईसका नाम लेकर ‘तपव यालम नमः’ कह कर जल ऄलपव त करें . माजव न-तपव ण के बाद ईसकी दशांश संख्या से सरोर्र में खड़े होकर ऄपने लसर पर दर् ू ाव द्रारा कुम्भ मुद्रा से दे र्ता का नाम लेकर ‚ऄलभलर्न्चालम नमः’ कहकर जल का ऄलभर्ेक करें . ईसी लदर्स या ऄंलतम लदर्स ब्राम्हण भोज और कुमारी भोज का अयोजन करे . तत् पिात ऄपनी साधना की पण ू व ता प्रालि के ललए गरु ु के श्री चरणों में प्राथव ना ज्ञालपत करे . यलद कोइ आस प्रकार का क्रम साधना में ऄपनाता है तो ईसे लनिय ही ऄनुकूलता लमलती ही है. क्षकन स्थानों पर साधना करने से यक्षिणी साधना में शीघ्र सफलता क्षमलती है ? लसद्धपीठों,गुरु गहृ ,नदी तट,पर्व त लशखर,एकांत र्न ,लर्ल्र् या पीपल र्क्ष ृ के नीचे, साधना करने से सफलता शीघ्र ही लमलती है. आस साधना को यलद कामाख्या पीठ के सौभाग्य कंु ड या प्रांगण में संपन्न लकया जाये या लफर ऄलकापुरी में या पचमढ़ी ,माईन्ट अबू ,लहलडम्बा मंलदर अलद स्थानों पर साधना करने से कही ज्यादा ऄनुकूलता लमलती है. यलद ऐसा संभर् ना हो पाए तो घर में भी ये साधना की जा सकती है .पर साधना काल के मध्य कोइ और ईस कमरे में ना जाने पाए. आस साधना में सौभाग्य कुण्ड की क्या महत्ता है ? यलद साधक यलक्षणी साधना के प्रारं भ में ‚ ॎमम सिण मनोरथान पण ू ाणथे ऄस्य सौभाग्य िाररः पूणण यक्षिणी क्षसिये नमः‛ बोलकर २१ बार जल का तपव ण का माूँ कामाख्या से करता है तो ईसे सफलता की प्रालि होती ही है.ये लक्रया लसफव सौभाग्य कुण्ड में ही हो सकती है.आस प्रकार की साधनाओं में ईस स्थल की ऄपनी ऄलग महत्ता और प्रभार् है. साधक का अहार क्या होना चाक्षहए ? साधक को यथा संभर् ऄत्यलधक लति या ऄत्यलधक मधुर भोजन ना करके शुद्ध सालत्र्क अहार का प्रयोग साधना काल में करना चालहए यलद हलर्ष्यान्न का प्रयोग लकया जाये तो और बेहतर है. आसके ऄलतररि भलू म शयन,पण ू व मानलसक और शारीररक ब्रह्मचयव का पालन भी लकया जाना चालहए. यक्षिणी साधना में मंत्रजाप के पूिण क्या कोइ क्षिशेष क्षक्रया कर लेनी चाक्षहए ?
यलद साधक यलक्षणी मंत्र के पहले ‘स्त्रीं’ का जप ऄपने लर्शुद्ध चक्र पर ध्यान लगाकर और ईसका स्पशव करके १० बार कर ले तो ईलचत है.तथा मंत्र जप के पर्ू व ‘ओम’ का १० बार ईच्चारण भी कर लेना चालहए.प्रत्येक यलक्षणी साधना के पर्ू व पलू णव मा को पण ू व पलर्त्र होकर शद्ध ु लचत्त से ११ लदनों तक महामत्ृ युंजय मंत्र का ५००० जप ऄर्श्य संपन्न कर लेना चालहए.और आसके साथ लनत्य प्रलत कुबेर मंत्र की भी तीन माला संपन्न करनी चालहए.ये एक ऄलनर्ायव कमव है ,ऄलधकांश साधक साधना को लसफव खानापलू तव मानते हैं,लजतना जप बताया है ,ईतना कर ललया और लगनती लगनते गए और कह लदया की भाइ मैंने तो मंत्र जप लकया था, न तो शुलचता –ऄशुलचता का ध्यान रखा और न ही ऄपने मनोभार्ो को और ऄपने दृलष्टकोण को परखा.बस मुह ईठाकर कह लदया की भाइ साधना-र्ाधना सब बकर्ास है.यलक्षलणयों के ऄलधपलत कुबेर होते हैं.और यलद अप ऄलधपलत को ही प्रसन्न नहीं कर पाएं गे तो बगैर ईनकी ऄनुमलत के कयूँक ू र कोइ यलक्षणी अपका ऄभीष्ट साधने अएगी.आसी प्रकार भगर्ान मत्ृ यज ुं य की ईपासना और मन्त्र से ही कुबेर लसलद्ध का द्रार खल ु ता है और र्े प्रसन्न होकर अपका मनोरथ पण ू व करते हैं. यलद र्र्व में मात्र एक बार गुरु पलू णव मा से ऄगली पलू णव मा तक लकसी भी लर्ल्र्-र्क्ष ृ के नीचे बैठ कर भगर्ान लशर् का पण ू व र्ोडश ईपचारों से पज ू न और ऄलभर्ेक करने के बाद ईत्तरालभमुख होकर मत्ृ युंजय मंत्र का जप रुद्राक्ष माला से करे .तत्पिात लनम्न कुबेर-मन्त्र की ३ माला जप करे – ॎयिराज नमस्तु शंकरक्षप्रय बांधि,एकां मे िशगां क्षनत्यं यक्षिणीम् कुरु ते नमः. ठीक आसी प्रकार से पण ू व रप से कुबेर साधना में सफलता प्राि करने के ललए कुबेर की शलि कुबेर यलक्षणी मंत्र की भी एक माला लनत्य करनी चालहए ,र्ैसे कुबेर यलक्षणी को प्रत्यक्ष करने और ईनका ऄनुग्रह प्राि करने का ऄपना एक लर्शेर् लर्धान होता है परन्तु ऄन्य यलक्षलणयों की साधना और कुबेर साधना में सफलता प्रालि के लनलमत्त भी आस साधना के मंत्र की १ माला कुबेर मन्त्र के साथ होनी ही चालहए.आसके प्रभार् स्र्रुप जहाूँ अलथव क ऄनुकूलता प्राि होती है र्ही यलक्षणी के पण ू व साहचयव की प्रालि हे तु कुबेर देर् की कृपा भी लमलती हैॎकुबेर यक्षिण्यै धन धान्य स्िाक्षमन्यै धन धान्य समक्षृ ि में देक्षह दापय स्िाहा आसके बाद मल ू यलक्षणी साधना प्रारं भ करना चालहए ,और हो सके तो लनत्य कुमारी पज ू न करना चालहए. यक्षिणी क्षकतने प्रकार की होती हैं,और आनके क्षकतने प्रकार होते हैं ? यलक्षणी के कइ र्गव होते हैं,ये ऄलग ऄलग पांच तत्र्ों से सम्बंलधत होती हैं और आनमे ईसी तत्र् लर्शेर् के ऄनुसार शलि होती हैं.जैसे कोइ रसायन क्षेत्र का ज्ञान दे ती है तो कोइ लनलध दशव न और प्रालि का सामथ्यव प्रदान करती है,कोइ ऄतीलन्द्रय लोक का ज्ञान दे ती है तो कोइ पत्नी सुख दे ती है, लकसी के सहयोग से रलस्सलद्ध की प्रालि होती है तो कोइ प्रेम के साथ ऄतुललनय संपदा प्रदान करती है. आसी प्रकार लर्लभन्न र्नस्पलतयों में भी आनका र्ास होता है,जैसेक्षबल्ि यक्षिणी क्षनगुणण्डी यक्षिणी कुश यक्षिणी अम्र यक्षिणी सहदेिी यक्षिणी क्षपप्पल यक्षिणी तुलसी यक्षिणी अलद पर जब भी आन यलक्षलणयों की साधना की जाये तो सम्बंलधत र्नस्पलत के अस पास ही की जानी चालहए , र्ैसे बसंत ऊतू और श्रार्ण मास आनकी साधनाओं के ललए ऄलधक ईपयुि होता है ,कयोंलक आस काल में सम्पण ू व प्रकृलत में मानो अपकी सहयोगी हो जाती है. परन्तु ये भी ध्यान रखने योग्य है की जो
र्नस्पलत लजस काल में लर्कलसत होती हैं ईसी ऊतू लर्शेर् में ईस र्नस्पलत से सम्बंलधत यलक्षणी की साधना करनी चालहए. ईपरोि र्ानस्पलतक यलक्षलणयों की शलि भी लभन्न लभन्न होती है, जैसे कोइ ऐश्वयव की ऄलधष्ठात्री होती है तो कोइ ऄशुभ का लनर्ारण करती है, कोइ लर्द्या प्रदान करती है तो कोइ र्ाक् लसलद्ध और राज्य सुख प्रदान करती है.पण ू व सफलता के ललए प्रायः सभी यलक्षलणयों की कम से कम एक माह तक तो साधना करनी ही चालहए. क्या मत्ृ युंजय ऄक्षभषेक की भी कोइ गोपनीय पिक्षत है? हाूँ ऄर्श्य है,यलक्षणी साधना में सफलता के ललए ‘लाक्षकनीश मत्ृ युंजय’ की ईपासना र् ऄलभर्ेक लकया जाता है.कयंलू क आनका लनर्ास मलणपरू चक्र में होता है और ये स्थान ऄलग्न और ऄमत ृ दोनों का ही होता है ऄतः आनका ऄलभर्ेक करने से ऄलग्न की अकर्व ण शलि अपमें तेज की र्लृ द्ध कर दे ती है और लनसतृ ऄमत ृ अपको जरा रोगों से मुि कर कायाकल्प करता है,और यही तेज र् पौरुर् बल यलक्षणी को अपकी और खीचता है.आसके ललए पारद लशर्ललंग के उपर लनम्न मन्त्रों का ईच्चारण करते हु ए पण ू व लर्नम्र भार् से ऄक्षत ऄलपव त करे . ॎपरम कल्याणाय नमः ॎक्षिश्वभािनाय नमः,पािणतीनाथाय,ईमाकान्ताय ,क्षिश्वात्मनाय,ऄक्षिक्षचन्ताय,गुणाय,क्षनगुणणाय,धमाणय, ज्ञानमिाय,सिणयोक्षगनाय,कालरुपाय,त्रैलोक्य रिणाय,गोलोकघातकाय,चन्डेशाय,सद्योजाताय,देिाय,शल धाररणे, ू कालान्ताय,कान्ताय,चैतन्याय,कुलात्मकाय,कौलाय,चन्रशेखराय,ईमानाथाय,योगीन्राय,शिाणय, सिणपज्ू याय,ध्यानस्थाय, गुणात्मनाय,पािणतीप्राणनाथाय,परमात्मनाय. ईपरोि नामो के पहले ॎतथा बाद में नमः लगाकर ऄक्षत ऄलपव त करे . आसके बाद मत्ृ युंजय मंत्र का जप करते हु ए कच्चे दूध और जल के लमश्रण से ऄलभर्ेक करे .मत्ृ युंजय मंत्र सदगुरुदेर् की पलत्रका में कइ बार प्रकालशत हु अ है. सिण सामग्री को ईत्कीलन करने का क्या क्षिधान है ? पज ू ा या साधना में प्रयुि सामग्री जैसे,यंत्र,माला,पुष्प,फूल,फल अलद लगभग सभी सभी सामलग्रयों का लनतांत शुद्ध होना अर्श्यक है.यलद आनमे से कोइ भी सामग्री में जरा सी भी र्ैचाररक या स्पशव की र्जह से ऄशुद्धता अ गयी तो लफर आनके प्रयोग से साधना में कोइ लाभ नहीं होता.हम साधना के लनलमत्त बाजार से पुष्प,फल आत्यालद लेते हैं,ऄब लजनसे अपने ललया है र्ो लकस शारीररक या मानलसक लस्थलत में थे लकसे पता,ईन्होंने शंका लनर्ारण के पिात हाथों को धोया था या नहीं और कैसी मनः लस्थलत में ईन्होंने अपको सामग्री दी है,आसी प्रकार पज ू ा स्थल में यन्त्र माला आत्यालद रखे हैं और ईसे घर के बच्चो या ऄन्य सदस्य ने ईठा ललया या स्पशव कर ललया तब भी ईनकी प्राणशलि और शारीररक मानलसक शुलचता से र्े साधना सामग्री प्रभालर्त होंगी ही. रसोइ से नैर्ेद्य बनकर साधना कक्ष में अते अते न जाने लकसकी दृलष्ट पद जाये या जब भोजन तैयार हो रहा था ईस समय बनाने र्ाले का लचंतन कैसा था.यन्त्र के उपर कीट,पतंगे,चहू े ,लिपकली अलद के चलने से भी यन्त्र माला आत्यालद दोर्पण ू व हो जाते हैं.ऄतः ऐसी लस्थलत में ईन्कपररहार करने के ललए या ईत्कीलन करने के ललए एक लर्शेर् मंत्र का प्रयोग लकया जाता है ,लजसे पहले लसद्ध करना ऄलनर्ायव है. लनम्न मंत्र को पहले ५१ माला मंत्रजप करके लसद्ध कर लेना चालहए,बाद में जब भी अप साधना हे तु सामलग्रयों का प्रयोग करे तो आस मन्त्र को १०८ बार जप कर ईससे जल को ऄलभमंलत्रत कर सभी सामलग्रयों पर लिड़क दे . मन्त्र- ॎह्रीं क्षत्रपुक्षि क्षत्रपुक्षि कठ कठ अक्षभचाररक-दोषं कीिपतंगाक्षदस्पष्ट ृ दोषं क्षक्रयाक्षददूक्षषतं हन हन नाशय नाशय शोषय शोषय हं फि् स्िाहा.
यक्षिणी साधना के ऄन्य गोपनीय तथ्य क्या है,क्षजनका प्रयोग करने से क्षनक्षश्चत सफलता क्षमल ही जाये ? यलक्षणी साधना के मल ू यंत्र के साथ दो सामलग्रयों की और ऄलनर्ायव ता होती ही हैऄप्सरा यक्षिणी तंत्र प्रतीक क्षनक्षश्चत यक्षिणी सायुज्य पारद गुक्षिका आसके ऄलतररि स्र्यं के हाथो से या गुरु के द्रारा लनलमव त यलक्षणी का लचत्र या लर्ग्रह भी पास में होना चालहए ,आससे ध्यान में ऄनुकूलता लमलती है.यलक्षणी साधना में यलक्षणी कीलन की गोपनीय लक्रया भी की जाती है ,आस लक्रया में भोजपत्र या सफ़ेद कागज पर लत्रगंध से यलक्षणी का लघु लचत्र या यन्त्र बनाया जाता है और ईस लचत्र के मध्य में मल ू मंत्र ललखा जाता है. यलद अपने यन्ता का ऄंकन लकया है यतो ईसके मध्य में मंत्र नहीं ललखना है.ऄब ईस लचत्र के चारो और गोलाकार में मंत्र ललखना रहता है .ईसका तरीका ये है की पहले मंत्र ललखा लफर मल ू मंत्र का पहला ऄक्षर लफर मंत्र ललखा लफर दस ू रा ऄक्षर आसी प्रकार मंत्र लफर ऄक्षर लफर मन्त्र लफर ऄक्षर और ऄंत में लफर मंत्र ललखा जाता है ,circle र्त्त ृ या गोलाकार रप में और ये लक्रया साधना के प्रारं भ में की जाती है तथा मंत्र ललखते समय जब अप मंत्र के ऄक्षरों को ललखते हो तो ईस ऄक्षर पर २१ बार मल ू मंत्र को जप कर ऄनालमका ऄंगुली का स्पशव करना चालहए ,ये क्रम ऄंलतम ऄक्षर तक रहता है .ये लक्रया कीलन कहलाती है और आस लक्रया के द्रारा यलक्षणी को साधक ऄपने मन्त्रों से कीललत या बांध लेता है.और यलक्षणी को प्रत्यक्ष होने और लसलद्ध दे ने के ललए बाध्य होना पड़ता है. ये लक्रया और अगे का पण ू व जप र्ीर भार् से ही होना चालहए र्ो भी क्रोध मुद्रा में. आसके ऄलतररि लनलित यलक्षणी सायुज्य पारद गलु टका को प्राि कर ईस पर भी मल ू मंत्र की ५ माला कर लेना चालहए लजससे र्ो गलु टका ईस यलक्षणी लर्शेर् से सम्बंलधत हो जायेगी.आस गुलटका पर अप ऄलग ऄलग कइ यलक्षलणयों की साधना कर सकते हैं. आसी प्रकार ध्यान के बाद साधना के पर्ू व यलक्षणी का अर्ाहन करने, ईन्हें असन दे ने ,ईन्हें असान पर बैठने और ईनके सालन्नध्य के ललए,ईन्हें ह्रदय में स्थालपत करने के ललए , ईनका पज ू न करने के ललए तथा जप के ईपरांत ईनका लर्सजव न करने के ललए भी कुि लर्शेर् लक्रया की जाती है लजनका र्णव न नीचे लकया जा रहा है. आसी प्रकार कुि मल ू मंत्र के ऄलतररि कुि लर्शेर् मन्त्रों और मुद्राओं की भी ऄलनर्ायव ता होती है.(मुराओ ं के क्षचत्र तो अपको ग्रुप के फाआल सेक्सन में क्षमल जायेंग,े क्योंक्षक ऄभी िेब साइि का कायण चल रहा है आसक्षलए ईसे कामाख्या कायण शाला के बाद ऄपलोड कर क्षदया जायेगा) यक्षिणी मुरा- क्रोधान्कुशी मुद्रा-लजसके द्रारा सम्पण ू व लर्श्व को ही अकलर्व त लकया जा सकता है. आस मुद्रा का प्रयोग करके लनम्न मंत्र से यलक्षणी का अर्ाहन करे . ॎह्रीं अगच्छागच्छ ऄमुक यक्षिणी स्िाहा. अर्ाहन के बाद सम्मुलखकरण मुद्रा का प्रदशव न करते हु ए लनम्न मंत्र को ईच्चाररत करे ॎमहा यक्षिणी मैथुन क्षप्रये स्िाहा. लफर सालन्नध्य करण मुद्रा का प्रदशव न करते हु ए – ॎकामभोगेश्वरी स्िाहा मंत्र का ईच्चारण कर असन प्रदान करे .आसके बाद दोनों हाथ की मुट्ठी एक साथ बांध कर ऄपने र्क्षस्थल पर रखे और ॎह्रीं रृदयाय नमः का ईच्चारण करे .लफर प्रमुखी मुद्रा ऄथाव त दोनों हाथ की मुट्ठी बांध कर तजव नी और मध्यमा ऄंगुली को फै लाये तथा लनम्न मंत्र से यलक्षणी का गंध,पुष्प,धुप,दीप,नैर्ेद्य अलद से पज ू न करे – ॎसिण मनोहाररणी स्िाहा.
सम्पण ू व जप के पिात पुनः अर्ाहन मुद्रा का ही प्रयोग करते हु ए बाये को बाहर की और लहलाते हु ए लनम्न मंत्र का प्रयोग कर लर्सजव न करे , याद रखे अर्ाहन में दाये ऄंगठ ू े को बाहर से ऄंदर लहलाते हैं और लर्सजव न में बाये ऄंगठ ू े को ऄंदर से बाहर . ॎह्रीं गच्छ गच्छ ऄमुक यक्षिणी पुनरागमनाय स्िाहा यलद आन लक्रयाओं का प्रयोग करने पर भी आन यलक्षलणयों का साहचयव न प्राि हो तब कया करना चालहए? र्ैसे ऐसा संभर् नहीं होता है की आन लक्रयाओं का प्रयोग लकया जाये और अपका मनोरथ लसद्ध न हो ,यलद अपको ईपरोि मुद्राओं का ज्ञान न हो पा रहा हो तो भी तंत्र रहस्यम केसेट्स में बताइ गयी पांच मुद्राओं का १०-१० सेकेंड प्रदशव न करने से भी ऄनक ु ू लता लमलती है .यथा दंड,मत्स्य,शंख,ऄभय और ह्रदय मुरा. ईपरोि मन्त्र के प्रभार् से जप और पुरिरण ऄर्लध पण ू व होने पर भी यलद हाथ धलमव ता के करण ये शलियां सामने नहीं अ रही हो तो – ॎबंध बंध हन हन ऄमुकी हं मंत्र का ८००० बार जप करे तथा २१ माला ॎसिणक्षसक्षियोगेश्वरी हं फि मन्त्र की जप करें ,आससे लनिय ही सफलता की प्रालि होगी ही. ईपरोि सभी लक्रयाएूँ गोपनीय र् दुलवभ हैं. आनका प्रयोग लनलित ही कालानुसार करना चालहए. ===========================================================================
FOR YAKSHINI SADHNA HOW A SADHAK’S MENTALITY SHOULD BE? Without any second thought for every sadhnaa his heart and mind should be pure because if a common lady can read your thoughts by looking at into your eyes than it is thousand times easy for powerful YAKSHINI to read your thoughts at once. May be you do not know that according to your thoughts your surrounding release the same vibrations. Though a common man cannot see or catch these vibrations but one who has his AKASH DRISHTI and DIVYA DRISHTI activated can see all these micro changes. If Sadhak poccess TAMSIK BHAV than this aura get visible in smoky black color and this color directly or indirectly tempt the mind and as compare to other color rays these rays work faster and give birth the feeling of insecurity in the mind of a person, community from you. And in this situation they will not come closer to you and YAKSHINI is lively source of energy so you cannot hide these micro emotions of your mind from her. So for this reason before starting any sadhnaa Sadhak should make him free from all these temptations and sins so that he can feel himself mentally and spiritually free. Not enough yet because your meditation is just like speechless conversation( MOUN VAARTA) just like the sounds which are changed into ether( upper air)
after spoken move into the whole universe just like every pore( ROME SHIDRA) of our body is just like a mouth and our every concentrated thought cast effect on universe. By sadhnaa we change our imagination (KALPNA YOG) into reality (SAKAAR YOG) and in which shape or form we think about our ISHT DEV in near future that shape will take real form in front of us. Manta is not just a collection of words because at that time when it given to a SHISHYA by his GURU it becomes divine power to achieve everything. It is true that at the beginning Sadhak does not realize the actual power of it but as he does more and more concentration and gives more and more time to this MANTRA JAPP then he comes to know that he can get whatever he wants with this. That is why it is said that as much JAPP you do success will come as much closer to you. Isn’t so….. Yes...It is. As I told earlier that concentration has power to effect the universe than why your MANTRA not. For this one who wants to have success he should do his meditation with self confidence and with pure heart and mind as well. Always remember that to spoil a jug of milk one drop of citric acid is enough just like that to spoil your sadhnaa one negative thought is enough. Your MANTRA which moved in open air has the power to attract divine powers and negative thoughts spoil this attraction power too and you do not get success. That is why when a Sadhak starts his sadhnaa with positive thoughts and strong resolution than surely he gets success. WHAT DO WE MEAN BY STABILITY IN SAADHNA? At the beginning of sadhnaa new Sadhak becomes more excited which makes his process of SHWAAS PRSHWAAS faster and it is this fastness of SHWASS which don’t keep the concentration stable and without concentration sadhnaa will give no result because as without concentration during sadhnaa with the help of MANTRAS the picture of our ISHTT which we make get at once destroyed and
re-built. For this reason at the beginning of sadhnaa there is a PRAANAAYAAM VIDHAAN exists so for sadhnaa in which posture we sit it can be SIDH-AASAN, SUKH-AASAN or PADDAASAN before starting MANTRA JAPP sit straight on aasan and make DHYAAN MUDRAA by touching your hand thumb with TRJANI. Do this with both of your hands and then put your hands on your knees. By doing so the energy which will produce during sadhnaa cannot move out and remember feel MOOLBANDH during this process. By this process body becomes stable and Sadhak can devote more time. And when Sadhak will carry on MANTRA JAPP with great concentration then DIVINE POWERS will surely blessed him with success. HOW A MANTRA FUNCTIONS? Do not choose any mantra from granths as it should be taken from GURU while following some rules as one should ask for MANTRA while sitting at the feet of GURU. Then GURU himself blessed him for success by providing him MANTRA which comes out from RIPU, SAARTHAK and HIS INNER SOUL. Sometimes some Sadhak thinks what will their GURU think about them when he comes to know about their sadhnaa they do not tell anything about it to him but they forget nothing remain secret from GURU’S eye and without him who will give them success?? It is only GURU who can tell you which MANTRA you need to get success in your desired sadhnaa and again it is only from his mouth you will come to know how you have to pronounce this MANTRA but if for any reason you cannot go to GURU than you can take help from written mantra but then should be you need to take his permission mentally. And in between if you get chance to visit GURU DHAAM then tell him about your sadhnaa and MANTRA so that if there is any mistake in it pronunciation he can correct it and if it is against you (SHTRUKAAL) then GURU can protect you. FOR WHAT SHATRUKUL STANDS FOR? Except ASHTAADASHH SIDH VIDYAON all the mantra related to any god and goddess should choose carefully. There are many rules written in SHAASTRAA
about it as JAISE KI KYA MANTRA DEV APNE KUL KA HAI, USKI RAASHHI AUR APNI RAASHHI MEIN KYA SMBNDH HAI, USKA NKSHHTRA KYA HAI and the MANTRA which we are going to meditate is represented by whom, whether that NAMAANK TATV is our friend, enemy or TATTHATSATH and all this is very complicated because if by mistake Sadhak choose SHTRU MANTRA then power related to it make his life hell. So to avoid all these it is better to have MANTRA JAPP AND DIRECTIONS from GURU. I HAVE HEARD THAT TO GET SUCCESS ONE SHOULD PERFORM PURUSHCHARAN; WHAR DOES THIS PURUSH CHARAN MEAN? Number of JAPP SNKHYA as told by GURU and do this MANTRA JAPP systematically in given time is called PURUSH-CHARAN. During this time period Sadhak follows SANYMITT LIFE and he also avoids social functions as well. THERE ARE FIVE SUB-DIVISIONS OF PURUSH CHARANJAPP-
In
this
MANTRA
KE
DEVI
DEVTA
KA
PNCHOPCHAAR
YA
SHHDCHHOPCHAAR SE POOJAN KIYA JATA HAI. Beside these UPCHAAR VISHESH KRMM of DEVTA POOJA is followed in TANTRIK SADHNAA. BHOOMI shodhan- POOJA of SADHNAA KAKSHH is called BHOOMI shodhan. In it do the POOJA OF DEVTA and then offer ARGYAA to earth then with the help of AASAN SHOODH MANTRA offer PUSHP (FLOWERS), AKSHHT (RICE) to the earth then set your AASAN and sit on it. DEH SHODHAN- Sadhak firstly complete PRAANAAYAAM then does BHOOT SHUDHI,
MAATRKAAO
SE
NYAAS,
his
ISHTT
MANTRA
and
RISHYAADINYAAS, KARANYAAS get completed to make his body pure. DRAVYADI SHODHAN- For Sadhak the most important thing is his SADHNAA SAMAGRI which includes YANTRA, MALA(ROSARY), PUSHP(FLOWERS), DEEP( EARTHREN LAMP), DHOOP(INCECSE), VASTRAA(CLOTHES).Firstly get them pure by mantra then carry on the next step,( DRVAASHOODHAN is an
important but long process and in this magazine its complete procedure has been given) MALA (ROSARY) should be completely SANSKAARIT (PURE) because with impure rosary you are going to have mentally tensions from divine powers, instead of blessings, that too free of cost. If Sadhak can lit (PRJVALIT) AKHAND DEEP that will increase JAPP effect and if it is not possible then make sure during JAPP KAAL that DEEP should not get down. HOM- It is quite good to do NITYA DASHHANSHH HAWAN of NITYA JAP some people do DASHHANSHH JAPP instead of HAWAN but according to me to do HAWAN is much better because it gives special energy and power to MANTRA. TARPAN-After HAWAN in a big BRONZE POT (TAMBE KA BRTAN) or in a pond (SROVER) do the DASHHANSHH TARPAN of HAWAN SAMAGRI. In pot put ASHTGANDH, KAPOOR (CAMPHER), DOORVA and water and what so ever GOD, GODDESS is call his name speak
‘tarpyaami namah’ and offer
water. MARJAN- After TARPAN take its 1/10 part means DASHHANSHH SNKHYAA SE while standing in pond on your head make WATER ABHISHEK by DROOVA in KUMBH MUDRA and say “abhishinchaami namah” On that very day or on the last day arrange BRAHMAN BHOJ or KUMARI BHOJ. Then for success pray in your GURU’s HOLY FEET. If anybody follows this process then definitely success will be his. TO GET QUICK SUCCESS AT WHICH PLACES YAKSHINI SAADHNA SHOULD BE PERFORMED? To get quick success in sadhnaa perform it at SIDHPEETH, GURU GREH, NADI TATT (BANK OF RIVER), PERVAT SHIKHR (MOUNTAIN PEAK), EKAANT VANN (LONELY FOREST), VILV YA PEEPAL VRIKSHH KE NEECHE. To get more desired results carry on it at KAAMAAKHYAA PEETH’s SOUBHAAGYAA KUND or IN PRAANGANN. It may also perform successfully in ALKAPURI, PNCHMDHI, and MOUNT AABU and at HIDAMBAA MANDIR. If it is not possible
do these sadhnaa at home only but must check no other person can enter in the room. WHAT IS THE IMPORTENCE OF SAUBHAGYA KUNDA IN THIS SADHNA? If at the beginning of YAKSHINI
SADHNA
Sadhak “OM mam sarv
manorathaan poornaarthe asya saubhagya vaarih poorn yakshini siddhaye namah”speak above given MANTRA 21 times and offer water at the name of MAA KAAMAAKHYAA then without any second thought he is bound to meet success. This process can carry on only at SOUBHAAGYAA KUND because for these types of sadhnaas this place has its own importance. WHAT SHOULD A SAADHAK’S DIET DURING IT? Sadhak should eat pure vegetarian food and avoid spicy and sweet food but it will be best if he used HAVISHHYA-ANN. beside this he should also follow BHOOMI
SHYAAN
(SLEEP
ON
EARTH),
POORN
MAANSIK
AUR
SHAAREERIK BRHAMCHAARYA (COMPLETE CELEBACY). IN YAKSHINI SAADHNA IS THERE ANY PARTICULAR PROCESS WHICH SHOULD CARRY OUT BEFORE MANTRA JAAP? If sadhak do the "Streem” mantra chanting and concentrate on the Vishuddha chakra and touches it for 10 times would be fair. And before mantra chanting “Om” also the accent should be 10 times. Before each Yakshini sadhna pure urself completely and then from full moon till 11 days chant Mahamrityunjay mantra jap for 5000 counts surely must perform. And along with it one should do with the continual mantra of three malas of Kuber Mantra should also carry out. It is an essential act, most spiritual seeker just treat it light way. Believe me some of them used to say, bhai the way you have described as chanting, as has been done and but they merely take care of purity impurity, nor they have inspeted their menta feelings and their attitude toward the sadhna and not even tested their approach.And ultimately just vaging ur tongue without thinking and said sadhna vadhna is nonsense.Yakshani’s chief is Kuber. And if you will not please the governor of Yakshani, without their permission you will act intended.Dont u
think so? Similarly by worshipping the lord Mrityunjay and their mantra of this type u can acquire Kuber siddhi, and as they pleased the door are opened and you wish to complete. Only once in the year when Guru purnima occurred on full moon to the next full moon under any Vilva tree if u sit under the tree and complete the full worship of Lord Shiva and the inaugural after full shodash therapies through and chant facing towards north direction Mrityunjay mantra,the mala should be of Rudraksha. Then chant the 3 malas of the following kuber mantra"Om Yaksharaj Namastu Shankarpriya Bandhav,ekaan me vashangam nityam yakshineem kurute namah" Exactly in the same way if u want success in Kuber sadhna then u must chant the kuber Shakti i.e. kubers yakshini mantra atleast one mala per day.By the way appearance of Kuber yakshini and getting theirs blessings have their own a specified method.but the rest other yakshini sadhnas and kuber sadhnas and to get success ,purposefuly have to attempt this and chant this one mala along with the kuber mantra should be done on daily basis.It influences in the financial conditions and u also get the Lord kuber’s boons and blessings in form of complete help from Yakshini. “Om kuber yakshinyai dhan dhaanya swaminyai dhan dhaanya samridhhi me dehi daapay swaha” Thereafter start original Yakshini sadhna and if possible do kumara pujan on daily basis. How many types of Yakshinis are their in existences? How many categories are there? There are various classifications of yakshini.They are related to five tatvas and they are inclusive of the different tatvas power respectively.For eg one of them is about Rasayan fiels I mean Alchemy and bow u wisdom in that particular field
only or the other one in field of NIdhi Darshan and accomplishment,another one gives u the Ateendriya Lok knowledge, or someone gaves u partner happiness, or the Ras siddhi or along with love can have the financial assistance too.Similarly their presence is also observed in herbs. Like – Bilva Yakshini Nirgundi Yakshini Kush Yakshini Aamra Yakshini Sahadevi yakshini Pippal Yakshini Tulsi Yakshini etc.. But whenever these yakshini sadhnas are attempted then it should be done nearby those herbs only.Anyways the springs and rainy seasons are most favourable time for doing this sadhnas.because u know why? As whole nature comes for your support in each aspect.But here u must adhere that the herb which is germinated in in such season the same yakshini sadhna related to that herb must be done to achieve the success.As they differ similarly the herbs go differ.likewise some one which is owner of wealth prosperity though on otherhand vanishes the evil things, some of them bows u wisdom knowledge, though someone masters ur conversation skills or gives u the king size happiness.For achieving complete success generally sadhnas should be done of all yakshinis. What are other secrets of Yakshini sadhnas? Whom are guaranteed in success? Well along with Yakshini Yantra the two more things are required and important too Apsara Yakshini Tantra Prateek Nishchit Yakshini sayujya Parad gutika Beside all this one must have the picture of Yakshini either by his or her own handmade else given by guru.This favours u in ur meditation.n yakshini sadhna
the yakshini keelan is also done.In this process on the bhojpatra or any white paper the small picture of yakshini is drawn by trigandh and yantra is also made and middle of it the original mool mantra is written.If u have counted the yanta else don’t write the mantra in middle.Then u have to write the mantra all around it. It should be written in such a way that first write the mantra then mool mantra’s first letter then again mantra then second letter of mool mantra then again mantra and so on.It should be in circled way and must be done before starting the sadhna. And when u write the mantra while doing it the mool mantra should be enchanted for 21 times and should be written by ring finger.it should not be changed until last word get finished.This procedure is known as Keelan.And via this procedure sadhak is able to control or tie the yakshini for him.In this way yakshini is bound to bow u success or to complete ur wish. This whole activity must be accomplished in veer bhav that to be in anger mudra.Apart from it take Nishchit Yakshini sayujya Parad gutika then chant the 5 malas of mool mantra by which it would get directly connected to related yakshini.Now on this gutika u can attempt various types of yakshini sadhnas. Similarly after meditation before sadhna call yakshini, offer her asan, req her to sat on it, to demand for her closeness, to establish her in heart, then worshipping her and thereafter devoting her, various specific methods are done which are explained below. Likewise apart from mool mantras some other specific mantras and mudras are also equally significant. (U can avail the pictures of mudras from File Section,because right now website work is under construction,so it would be uploaded after the Kamakhya Workhop ) Yakshini Mudra : Krodhankushi mudra – by which the whole world can be attracted.after using this mudra chant the following mantra and call the yakshini. Om hreem aagachhagachh amuk yakshini swaha After calling showing the sammukhikaran mudra chant the following mantra-
Om maha yakshini maithun priye swaha. Then while expressing Sannidhya Karan Mudra – Om Kaambhogeshwari swaha After pronouncing the mantra offer her asan.After the closeknit the both palms place it on chest and Om hreem hridayaay namah. chant this mantra. Then in Pramukhi mudra means by both the hands closeknit spreadup the index and middle finger and chant the following mantra and worship the yakshini by gandh,flowers,lamp, dhup, sweets etc.. Om sarva Manoharini swaaha. After whole jap again call in Avahan mudra shake the left hand outside and chant the following mantra and do the consecration process, remember while calling the right thumb is wobbled from outer side to inner side and inconsecration process left thumb is wobbled from inner to outer side. Om hreem gachh gachh amuk yakshini punaragamanaay swaha Well its impossible if u use such processes and ur wish is not fulfilled,If u are really not getting the proper knowledge of above mudras then u can listen Tantra Rahasyam cd or cassete and do the five mudras mentioned in it for 10-10 seconds.Is also favours u i.e. Dand,Matsya,Shankh,Abhay, and hriday mudra. From influence of above mantras the jap and Purashcharan Avadhi completes deliberately these powers are not appearing then – Chant the ‘Om Bandh Bandh han han amuki hum’ mantra for 8000 times and 21 malas of – ‘Om sarvasiddhiyogeshwari hum phat ’ mantra. It will surely lead u towards success. All above process are very secretful and rare.It should be used accordind to appropriate time.
To establish a friendly relation between near and dear one
अधुलनक सभ्यता हमारे सामने एक एक से ऐसे ऄजबू े रखती जा रही हैं की जो कुि समय पहले संभर् नहीं था, र्ह अज तकलनकी के कारण सभर् होता जा रहा हैं और लर्ज्ञानं के नये नए अलर्ष्कार से हमारा जीर्न सुख सुलर्धा से और भी संपन्न होता जा रहा हैं , और यह स्र्ीकार करने में लकसी को कोइ भी लहचक नहीं होगा की अज आस अधुलनक सभ्यता के र्रदान के लबना जीना ऄसंभर् तो नहीं पर बहु त कलठन ऄर्श्य ही हो जायेगा . पर आस सुख सुलर्धा की अड़ में कुि कया बहु त कुि खोता भी तो जा रहे हैं ,,हम सभी महसस ू तो क रते हैं पर कया करे जीर्न की अप धापी ही ऐसी हैं , और ऄकेले हम कया कर लेंगे पर ऐसी सुख सुलर्धा का ऄथव कया हैं जब मन में शांलत न हो ,, पर चललए मन लक शालन्त को िोलडये र्ह तो एक ऄलग लर्र्य हैं पहले संयुि पररर्ार थे ... जो अज के लदन एक अियव से बन गए हैं लोग बहु त ही अियव से दे खते हैं लक अप के यहाूँ ऄभी भी आतने लोग साथ में .. .. पर चललए यह भी संभर् न हो पाए लक एक साथ रहे ,, तो दूर से ही सही कम से कम एक दुसरे के दुःख सुख में साथ रहे यही भी लकसी र्रदान से कम नहीं हैं, की जब भी र्े हमारे यहाूँ या हम ईनके यहाूँ जाए ,, तो परू े स्नेह के साथ र्ह भी हमारा स्र्ागत करे ,और हम भी ऐसा करे , पर हम तो करना चाहते हैं पर र्ह लोग ही ऄलड़यल हैं ,,ईनका स्र्भार्् ही ऐसा हैं,,ईन्हें ऄपने ईपर बहु त घमंड हैं .ऄगर एक र्ह सुधर जाये तो हम लोग का स्नेह र्ालपस अ सकता हैं ऐसी ऄनेक बातो से कौन नहीं बचना चाहता कयोंलक तीज त्यौहार का एक ऄपना ही अनद हैं यलद चाचा ,मामा , फूफा सभी के पररर्ार स्नेह से लमले .. पर चललए यह भी बहु त बड़ी सी बात हैं ऄब तो लर्र्ाह के नाम से ऐसे ऐसे सम्बन्ध अ रहे जो बस ऄभी एक दशक पहले सुने भी नहीं गए थे , जहाूँ पलत पत्नी का एक ही कमरा होता था ईन्हें एक ही आकाइ माना जाता हैं/ था , पर ऄब तो आधर भी ऄलग ऄलग कमरे चाहने लगे हैं ,, लकसे समझाए की स्नेह ही जीर्न का अधार हैं ईसके लबना सारी चीजे एक यांलत्रक हैं
आस बात को ध्यान में रखते हु ए एक सरल सा प्रयोग लजसकी परू ी बुलनयाद अपके लर्स्र्ास पर ही लटकी हैं अपके सामने हैं. मन्त्र : धां धीं धं ू धुजवटे पलत्न र्ां र्ी र्ं ू र्ालग्धश्वरर क्रां क्रीं . क्रू काललका दे लर् शां शीं शं ू शुभं कुरु || अपको भगर्ती महाकाली की जो भी सामान्य पज ू न बन सके करके आ स प्रयोग को संपन करे , हर पज ू न में दीपक का एक ऄथव होता हैं र्ह र्ास्तर् मे ऄलग्न दे र्का प्रतीक ही होता हैं तो एक दीपक जप काल में तो लगा रहना ही चालहए ऄब लकतने लदन तक करे , यह तो अप के उपर हैं र्ेसे तो यह कोइ कलठन नहीं हैं तो जब तक अपके ऄनुसार अपके या तो ऄपने पररर्ार में या अपके ररश्तेदारों मतलब लनकट संबधीयो से जब तक ऄनुकूलता न लमले करते जाये पर लकतना करे जप यह भी अपके उपर ही हम िोड़ दे ते हैं र्ेसे एक माला तो कम से कम करना ही चालहए .... ************************************************************
There are many miracles that has been brought in front of our eye by the modern science, what that has not been possible , some times back , is now became a reality . and our way of life is full of more and more comforts. And no one can deny the blessing of modern technology . without that our life would be much harder. But we are paying a lot for these comforts , we all are feeling the same but what we can do , this is the way of modern life and what we can be done alone . when you are not having peace in your heart/mind, ok just leave this question, that became a separate subject, in the beginning there were united family , but now a days those also become a very rare things, people now a days can not believe that still there are still some united family. But when this would not be possibility to have united family than even we are residing a distance but common love and respect should be part of our relation , like that when we visit there , they became really happy and same is applicable to us. We all want to do that , but these are the common excuse like he is not co operating, they are very rigid , they are very egoistic are very common . but
we all feel that when any good or festive occasion comes and if we all together than our joy will be thousand fold increases. But just leave that , consider relation between husband and wife sometimes back they (both)are considered a single entity /unit but now a day such a relationship coming/increasing in that even both are demanding separate rooms in many family. Who has the time to understand that sneh/love is the basic foundation of any relation. Other wise things become just mechanical . To consider all those things here is the very simple prayog , the success of that totally rests upon your faith , Mantra : dhaam dhiim dhoom dhoorjateh pathni vaam vim vum vaagadheeshwari kraam krim kroom kalikaa devi shaam shiim shoom me shubham kuru just do the simple poojan of goddess Mahakali and light an earthen lamp . how many days this prayog has to be done is totally depend upon you, when you feel that the needed happiness and cooperation comes than you can stop, and second how many round of rosary is need , at least one round is must. no other rules are required . ****NPRU****
Posted by Nikhil at 9:15 PM No comments: Labels: KAARYA SIDDHI SADHNA, TANTRA SIDDHI
Friday, September 16, 2011 Mekhala prayog for tantra siddhi
तंर में एक से एक च्वधान कहे जाते हैं या ददए जाते हैं साधारण साधक को यह बहुत ऄचरज िगता हैं की की यह भी प्रयोग करना चाच्हए दफर अ जाता हैं की यह भी करना चाच्हए , दफर यह भी जरुरी भी हैं आसके च्बना
सफिता नहीं च्मि सकती हैं , या दफर आसके च्िए यह भी च्वधान भी जरुरी हैं , ऄब कया
कया हम और कया नहीं या तो यह च्वधान यह साधना को ही करते रह जाये , मूि साधना को कब करे ?? तो पहिे यह हम समझ िे , की यह क्षेर ऐसा नहीं हैं की बस यन्र मािा िे िी और कि एक ऄनुष्ठान कर च्िया और हम और अप च्वश्व प्रच्सद्द हो गए , थोडा सा देखें की च्जन्होंने सफिता पाइ हैं दकतनी करठनाइ सहन की हैं . पर अप कहेंगे की वह एक ,अपके पहचान का हैं ईसे तो एक ही बार में .. ईसने तो यह नहीं और यह भी नहीं दकया था .....तब भी .. च्मरों , तंर जगत में कु छ भी एक दम से नहीं होता हैं ऄगर दकसी ने च्वगत जन्मो में साधना की हैं या वह साधना की हैं और ईसका थोडा सा ही रास्ता बादक था तो ईसे आस जीवन में जल्दी ही सफिता च्मि ही जाएगी/जाना ही चाच्हए न पर आसका मतिब हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे की कोइ अ कर पहिे हमें हमारे च्वगत जीवन के बारे हमें बताये की यह साधना करो .. नहीं नहीं . यह तो भाग्य वादी दृष्टी कोण हो गयी हैं . तो हमें जब तक सफिता नहीं च्मि जाये तब तक ऄपनी साधना के च्िए च्वशेष च्वशेष च्वधान समय समय पर ऄपनाना ही चाच्हए , यह च्बिकु ि हैं की कोइ मार एक दकताब पढ़ कर टॉप कर िेता हैं तो दकसी दकसी को tution भी िेनी पड जाती हैं पर सफि तो सभी कहिाते हैं . ठीक आसी पूज्य सदगुरुदेव
जी ने ऄनेको च्वधान ददए हैं अप से च्जसको िगे यह च्वधान ईनके च्िए
ईपयोगी हो सकता हैं वह अगे अये और आस च्वधान को करे Imp: पर र्ध्यान रखे यह च्वधान या बहुत ही ईग्र हैं आसच्िए कमजोर ह्रदय वािे को आस के बारे में सोचना भी नहीं चाच्हए
मंर :
ॎ मेखिे सवष च्ससि तन्र च्ससि कु रु कु रु नमः
साधारण च्नयम :
ददशा दच्क्षण. आस मंर को रुद्राक्ष या कािी हकीक मािा से जपना हैं कािे वस्त्र पहन कर और कािे असन ही ईपयोग करना हैं च्नच्खिेश्वरानंद कवच का ईपयोग करे और अवश्यक रक्षा च्वधान करके ही आस प्रयोग में जाये कयोंदक स्मशान कोआ मजाक या प्रयोग करने की जगह नहीं हैं आसका च्वशेष र्ध्यान रखे , स्मशान मे राच्र काि मे ( after 10 pm )२१ मािा २१ ददन तक जपने से अगे की जाने वािी साधनाओं में तन्र च्सच्ि होती है और साधक को अगे की साधनाओ के च्िए देवी च्बम्बात्मक रूप मे दशषन देकर अशीवाषद देती है अज के च्िए बस आतना ही
************************************************************************************************ There are various sadhana and prayog are in tantra sadhana jagat , and its very natural that a common sadhak often get confused on reading that this sadhana /prayog is must , and this too , and without this prayog one cannot get success , and this is an essential sadhana , than what to do or not to do is a big question ?, if we go this way so it seems when we have time for our main sadhana ,??? Than at first we understand that , this is not such a field that you have taken one yantra and mala and just do a single anusthan and get world fame. Just see those who have got success how much hard work they took. But on replying this simply you would say that , he is one whom you know , did not do any of such thing and got success in one attempt. why Is it so … Friend there is no sanyog/coincidence
in tantra sadhana , if he undertook that
sadhana in his previous life and just little more was needed to have the success, s o its quite natural that in this life he will get success in very little minimum efforts. And it should be , but that does not means that we just sitting effortlessly , waiting for some one to come and tell that this sadhana you have to do ,since in past life.. No no Than is just not a good approach ,we should apply each and every sadhana that will give us success in our aimed sadhana, which is in someone views helpful for success in sadhana . this is just like that someone get top in exam by just reading a
book and other one has to take tuition , but on the success both are considered successful and equal . So considering these facts poojya Sadgurudev ji has given so many prayog , which ever you think good for you , go ahead . Imp: keep it in mind this prayog is tough , so do not undertake it in any cost if you are having weak in heart. Mantra : Om mekhle sarv siddhim tantra siddhim kuru kuru namah General rules :
Direction would be south
Do jap with using either rudraksha or black hkik mala .
Use black color aasan and clothes.
Chant nikhileshwaranand kavach and do necessary rakshatmak vidhan .
Always remember shamshan is not a place for joke or for experimenting .keep this always in mind.
In shamshan , night time(after 10pm) do jap 21 round of rosary for 21 days , than you got tantra siddhi .
And devi will bless you for getting success in coming sadhana . This is enough for today