TANTRA DARSHAN - SIDDH KUNJIKA STOTRA KE GUPT RAHASYA(PAARAD TANTRA AUR DURGA SAPTSHATI)
म, स प व, मै प प लोगो से क क छ तय ब टन ु छ ु त तो के रहय क जगर करने के ू चहत ह जो जो मेरेरे पने न भ म से से है है, कैसेस म े म त ह ू प यपद सदग ए ये प ुभ ु झे त ु दे जी क शीवद तो सद से म म सम को को नयी बत नह, नह , और न केल ल म ु झ पर रह है सम ु झ पर पत ु हम सभी स बत क न न करगे क क नक शीवद सदे हम सभी पर है ही. ही. ु मोदन कर सदग क बर म पक म ु दे जी ने ुद गव सशती क मह के बरे म क त य न पक लेख कय है. (ै से ये ये एकम एकम न त क थो थो म से से है है जो जो म ज भी हमरे ू लप म ज सम है) परत मै ने न ू प व को सफवव पढ़ लय ु मै क तरफ कभी खस यन ही नह दय. सफ करत थ. सल म तो तो मै से से हलके हलके म ले ले लय करत थ. मै नके नके दय शद क मह क नह समझत थ, नह समझ पय थ न बोलो क जस पर े हमे हमे श जोर दय करते थे थे. म ने स दय थ क म मा मा ुद गव क क त मा भगती स य ु त और एक कहनी जसमे मा ु र से य ु करती है और और जो स क त म कशत कशत है. बस, ससे यद यद और क छ नह... मरे क ग ृ त ु छ ु भयो ने म बतने क कोशश क स थ के बरे म, परत म तो तो ो म छ छ क नह थ ु झे बतने ु म ु क कभी. म ही मे री मे री च थी. कभी स पर यन ही कक त करने क नह स ु झ. और सधन म ही पर ो जो सदग े भल े छोड़ छोड़ दे ते पने पने बचे क क स भटकन भरी ु दे पर नभव र है, फर कैसेस भल ज दगी मै पहली बर आरफ म, भले ही बत छोटी हो य बड़ी.. और फर ो दन य जब मै पहली जी से से मल मल ( ह कहनी कभी और बत ग शयद गे ने ने ले समय म ) ) हने म ु झे ग एक महन त म बतय जो ब तक जीत थ म रणसी रणसी म के सधक के बरे म बतय रहते है है. े ब ब तक पनी ही तणथ क जव क बरकरर रखे ह ह ए है पनी पनी ९० सल क य म भ.. भ.. मै यकन यकन ही नह कर पय क े सच सच कह रहे है है. हने म म क बर नसे ु म ु झे क मलने के लए कह परत समय नकलत गय और ऐसे करते करते करते करते ४ ४ महीने बीत गए. सच ु समय कह तो तो मै नके नके ह के पीछे क भ भ नह प रह थ. नसे मलने मलने क ू म क समझ ही नह बत क हलके म ले ले रह रह थ. जे स क म ने पर बतय क मेरेरे पने स कोच यही सोचत थ क जब के करण मै यही सदग तो कसी और क य यकत. कही और य जन... पर हने कह ु दे जी है तो क सदग हम कभी कभी नह कह य रोक कही और से न न बटोरने के लए गर े ु दे जी ने हम मणक स सधको क े णी म ते ते है है तो, तो, हने हम कभी कभी बाध के नह रख पत पत ु
हने हम हम हमे हमे श छद स लेनेने के लए कह. सो एक दन मैम बनरस ै बनरस चल गय, ै से ै से तो मै बह बह पहले से ही ही कह थ क भै य भै य े तो तो ऐसे य य त ही बे चै न थ य ु क रफ जी ने म ु झे पहले है जो जो क छ मनट म तोल तोल लेत है े है क क कोन कतने पनी म है है. म लग क तो हो सकत हे क क ु छ ु झे लग मै भीक भीक छ मनट म बहर बहर ज.. सीलए प सतत सदग थवन करते ु छ ुरेरे स म सतत ु दे जी से थव ह क स ् े य े य से यह यह मे र मे र पहल स स है तो तो प म सम सहयत सहयत कजए. ए रह थ क ु झे सम यहा तक क ह पह दशव न करने पर पर भी मै यही यही थवन म लग लग चने पर न म दर शलय म दशव रह क म सफलत दन करे. ु झे सफलत स सधक ने मे र गत कय. नके म ु खम डल क ते ज और तण क जव ब तक झलक रही थी. परत परत मै तो तो नव स नव स थ ही सीलए क छ बोल ही नह पय. म ने म ने दे ख क छ ही ु मै ु छ ु छ मनट म े े म म ख ु झ से ख ु ल कर बतचीत करने लगे. सके बद तो हने मेरेरे क सल के जब दए. (समे क क म भी थे) पहली ही म हमने नेक षयो पर जे से जे से ू खव तप ू णव भी ु लकत म हमने सधन, त , पर भी बतचीत करी. बत बत बत म पत पत ही म और नत ही ुद गवसशती पर नह चल क कब ६ घ टे दय थ के बरे म मे मे री धरण क बह त हद बीत गए. हने स ् दय तक ू द र करी. सथ ही सथ नीन रहय क भी जगर कय मेरेरे समने.. ह से लौटते लौटते ह ह ए मै स दय थ क खरीद लय. और बद म म म ने सदग म यचन क ु दे और मा द ु गव से म पनी ब तक क स गलत धरण के लए और पे भ रखने के लए.. खै र दे ख जए तो ये एक एक और लील ही थी सदग फर सही ेक पर चलने लग ु दे जी क मेरेरे त क मै फर ु. गे ने ने ले ले लेखो म क क छ और रहय क जगर का ग जो म नसे ह ए. लगत हे ु छ ु झे नसे मै क क छ यद ही बोल रह रह ह तो तो चलए म पर ुप न लौटते है है.... ु छ ु े पर स क जका तो ु ु जका फर एक दन म ने ह फोन फोन कय (बनरस के न महन सधक क) और प ु छ - क य को ग जक तो भी भी है, जस पर मै पसे पसे चचव चचव करन भ ु स क ु जक ू ल गय ह , फर बड़ी ही सरलत से हने हने कह कह क न सब बतो पर समय और जव मत गओ, और मे र मे र यन द ह ए बोले क क जो म ने म ने पहले बतय थ से यद यद रखो. फर म लग ु झे लग ू सरी ओर कक त करते ह क स तो क को खस मह नह जब क स दय थ म तो तो सके बरे म बह बह त ही लेख मल.. फर एक दन मै और और रफ जी एक शे ष शे ष चचव म ग ग करते ह ह ए ु म थे तो बत करते म ने ह प ू प र बत तो स सफव हलके ृ त त स ु न दय. जब म ने तो सबधी बते बत ु नने पर े सफव
से म म क े भी भी मेरेरे स बत क समथवन कर रहे हे हे. सदग ु करए.. म ने समझ क ु दे के शीवद से हम हम दय मा श प के पन म दर बैठेठे क छ महप चचव म रत रत थे. हमरी चचव ु छ ू णव चचव म बै परद न के म भी स छ ग ू य स ू पर हो रही थी. मै भी ु न रह मेरेरे क ु छ ु भयो के सथ. और फर चनक हने ‗स क जक तो‘ के बरे म बोलन बोलन श हतभ रह गय ु जक ु कय.. मै हतभ क स समय हने स पर क छ भी नह कह और और ज चनक (मतलब, (मतलब, य मै ने मै ने स ु छ म स ् तो तो क ग जी द थी. तो ु कन क गलत समझ लीय थ) सदग ु दे जी ने ह स ु क ु जी – क छ प य सी स ब ध म जो जो सदग रफ जी के म ु छ ु दे जी के न ग ग ु ख से – से ृ त ह है रफ ‗बह लेत है े है. े त लोग हमरे चीन श और ष म त ही हलके म ले ु नय के न क बह जनते नह नह क ये क ये क तो पने प म ग ग समझ लय ु ढ थव नहत है. और गर से समझ जए तो फर य स भ भ है. गर प लोगो क दय हो हो तो सदग ु दे ने एक बर ी स ू के तगव त णव नमव नमवण करने क ध क ले ख कय थ, हन ये सक सक शदक थव तो तो नह पर हे स स के कते लप म ब.( ब.( सक भष तर लखत है)‘ )‘ भी भी‗णव स‘ ुप तक म लखत क छ भीनमव ण कय ज सकत “ऐ कारी ृ पायै” थव त ऐ ग ु छ ु ु स बीज म क सहयत से क है, और जब मै कहत कहत ह क क क छ भीमतलब क छ भीही है... ... सलए जब खरल िय करते ु छ ु छ ह स (सदग ए स म ृ जन क श नमव त हो जती है (सदग ु दे जी क जप कय जय तो परद म स ने भीस बीज म के बरे म बह बह त णव न कय है ) ) स ऐ ग म के र बन गभव के बलक क जम दय ज सकत है. स ् िय िय क महषव मीक मीक ने े त े त य सफलतप ु ग म सफलतप ू व क दशव त कय थ जब क श(भगन रम के प यहा िय तो नह ु श(भगन ु ) क जम ह थ. मै यहा पर त परद से सक सक य स ब ध है ये ये बतने बतने क यस कर रह ह . ु परद “कारी तपािका” थवत मय बीज, स ् भोतक भोतक जगत म कसी कसी भीधत क ु क प तरण कर समत भौतक भौतक स ज सकत है. जब ग म ु खो क पभोग कय ज क जप प तरण िय के दौरन कय जए तो सफल पतर स भ भ है. और ससे सफलत सफलत के तशत ग है. ु णत भी हो जते है “िकारी काम पणयै” थवत ल बीज म जससे ब ब धन धन कषव ण के लए होत है जससे िय क सफलत ू प व क स पन दे ह क दय कर कय ज सकत है. यह बीज सधक क दे ह
श दे त है. यह कम बीज त रक मी म पयोग पयोग होत है.... स ु परद समन कर दे त केमी स ब धत ु दे ने द है. क सधनए सदग “बीजपे नमोत ते” थव त यहा कह गय है क क मै नमन नमन कतव ह न न बीज पी शय ते क. हे परद परद मै बीज बीज प म पक पक प स ् बत बत क भी तीक है क क मै ऐस ऐस ू ज करत ह . ये स करके परद क बीज प म प ू प ज कर स स समत ू त क भी नमवण करत ह . जस से समत स सर ये क रसयनशी क ये य हो सकत है. क दरत क नश हो सकत है. जो ये क “चाम क भी परत कर, गर ये क ये क स सकर क सफलत ृ य ु क डा ु च ु डघाती” थवत म प रोग पी म पर भी जय क ज सकती हैह ै, च ड ृ य ू व क स पन ु पर कय जए तो स से रोग यहा दन क घोतक है. यहा ‗च‘ शद नश/म हे जसे जसे परद परद म े े रत कर ऐस परद ृ य ु हे नमवण कय ज सकत हे जससे जससे कल कल म क ज सकती है. ृ य ृ य ु, छ म ु “च यैकारी वरदायनी” थवत समत कर के रदन दे ने दे ने ले परद जो स ् सप सप िय ू णव िय क फल है. “वचै चाभयदा नयम नमते म पणी ” थव त समत कर के रण स परद ु त है स स चै बीज बीज म. स से सभी सभी कर क नशकरी शय से रण रण न म है कय ज सकत हे, भयम थव त थव त एक दयत जह भय भय स ही नह करत और जो केल ल सी से स स भ भ है. “धा ु ध ध ध ध श म कय कय ज ू ु ध ू जट”े थव त समत कर के लयकरी शयो क स से श सकत है. ध सप हमरे ु जव ट श (जो श क ही एक प है ) ) थवत ऐसे सप ु टत परद से हमरे समत दोष जो श नसे भी भी म शत हो सकत है. ु त है नसे ु क मगव शत “वा ु व व व वागधीरी” थवत जो मा सरती से स स ब धत है. (न क दे ी) दे ी) म ने ही रोक ू ु वागधीरी” के प े स ब धत है ? ? रफ जी बोले, भै य भै य य पने ू छ य - यहा मा सरती परद से कैसेस स कभी यन दय स दय स + रस + ती . यहा परद क रस कह है (ब (ब म समझ य क ु झे समझ ये क दे ी के नम म एक एक ग प है) ु थव ुछ प कली के, जो कल क दे ी दे ी है, और नत “ा ु ू ु किका देवी” थव त बन मा कली कल के बन केसेसे हम हम परद स कर कर सकते हे हे पत पत हम तो सभी कल के ब धन धन म है है. ु हम सीलए नक क प से ही ही परद के र कल पर जय क ज सकती है . सीलए स ् ृ प बीज म भ क भी सभ कय ज सकत है . सी सदभव म म क क पय रफ जी ृ पय र स भ
महकली सधन पर धरत लेख क पढ़े जसमे जसमे हने हने स स ् बीज बीज म षे ण कय क े है. “शा ु श श श म श ुभ क ” ” थवत स स सर धनमक शय सफलत ू क ए धनमक ू ु म क सभी च हे त हम सहयत सहयत करे. और स ् बीज बीज म सभी परद म समहत समहत हो जये. ु हम र ये सभी “ह ह ु ह ह कार ह नय ण परद न थयी ु ु ु ु धरत हे नय श पर. परद ु पणयै” यह बीज म िय सी पर धरत है. ―सदग हमलय के योगी क ग ु दे लखत – हमलय ु शय ‖ म सदग जस म हने हने केल ल स र परद ु दे जी ने एक एसी िय क लेख कय है जस शल ग ल ―ह त क कर दे ने म ‖ बीज म ु क क नमवण कय है. केल जो कसी भी त स भ भ है और और ये केल ल सी बीज म भ हो सकत है. ठीक जे से तभन तभन िय र ही यह स भ म होत होत है. और बह रसयन शय के लए नथयी परद बनन नक न रहत त से रसयन है. जो केल ल स बीज म भ है. र ही स भ “ज ु ज ज ु ज ज ु जभनादनी” जभनादनी” थवत सभी कर क भ करी पथत ु हे त ु पथत शय जो म होती है. “ा ु भैरवी....” थव त मा भै भै री (भगती पव ती) के शीव द के बन कैसेसे हम हम ू ु भै परद के लभ मल सकते है है. हे मा मा मै पक पक नमन करत ह क क पक क प के बन स ृ प बीज म स सकरत परद क लभ समत स सर से स क मल ही नह सकत. “अ ु क क .....वाहा ” ये सभी सभी बीज म ण त के लए पयोग होते है है. ण ु च ु.....वाहा परद क ण त के बद ही स म ण ण क स चर और तभी ये परस परस पथर म परतव त परतव त होत है होत है और सधक के लए. स ् िय िय क करने क स के कते ये बीज म े है. और ही के करण ही दशवत है ये िय िय स पन होती है. “पा ु प प प पावती प है क क ग धक धक थवत पव ती पव ती बीज हे ू ु पाव ू णा” जे स क प सभी जनते है रसयन त बीज के कैसेस भल े भल परद(श बीज थवत ीयव) क क भष म, और बन स ् बीज ब धन धन स भ भ है.... सीलए न तीन बीज म ो ही परद ब धन धन िय स पन से ही होती है. स खे े खे चरत थवत कश कश गमन मत क “खा ु ख ख ख खेचरी तथा” सक थव है कैसे ू ु खे परद म स स करत कर न तीन बीज म ो स ् िय िय क स पन से स कय ज सकत है. हमने बह ले खो म खे खे चरी ग पढ़ है परत परत सक नमवण केसेस होत े होत है ? ? परत स ् त से ले ु टक के बरे म पढ़ ु सक ु स ब द पर सभी मौन हो जते है है.... गर णव मल मल म से तक (ह दी शदमल ५२ र ु पर क होती है ) ) परत सम कस कस र क पयोग होत है खे खे चरी ग एक ु सम ु टक के नमवण म ये एक
ु त रहय है. परो प य ही रहय टत करती है. ये हमर सौभय ही होग गर हम सदग ु दे के ी चरण म स ् पल सधन ए ही रहय क कटीकरण क थवन करे और हम े दन करे. “सा ु स स ू ु सशती दे या म ु स ु” – थव त ये तीन बीज है जो हम स दन करने म सहयक होते है सथ ही सथ परद न म भ, य ु क गर सफव रसयन िय कर के ही सब हसल होन होत तो ब तक ै नको ने सभी सया कर ली होती. जब क नके पस तो सभी स ु धए पलध होती है. सीलए यह प है क म स स ् न क भन ग है सफलत हे त ु. “अभे नैव दातय ु गोपत ु र पावती” भगन श कहते है हे पव ती जी से क स रहय क कभी भी ऐसे थन पर जगर नह करन चहए जह सधक सदग ु और परद के त समपवत न हो. “न तय जायते सररणये रोदन ु यथा” थवत जस कसी क गर न स ू क न नह होग तो ह कदप परद न म सफलत नह कर सकत.. सके सभी कये यस यथव हो जय गे न स क रय म केले ू के बन सीलए ये तो ही बत ह लप करन ो भी बन कसी े य के. रफ जी म ु झे दे ख कर म ु क ु रए, और कह क भै य ब शयद प समझ गए हगे क य न बनरस के सधक ने पक यन कही और क त करन चह. त म स ् तो के क ग ु ढ़ थव है. और यही करण रह क स सधक स त ू क जन भी न स जगर करने से कतरते है.. य त ही कम लोग सक ममव समझ पते है और स मगव ु क बह पर गे बढते है और मै स ् बत पर प ू णव त सहमत ह .. और हम दोनो एक सथ म ु क ु रए..
ब जके म ु झे समझ य क तो क चरण पक मगव शत कर सकत है परत ु सके ग ु ढ़ रहय और सटीक ममव क जन लेन सली सफलत है. सफव सी ध म ये तय लग ृ त त ू नह होत पत ु त ू होत है. हने स प ुरे क ये क ध म यह नयम लग क िमब करने क लए म ु झे कह थ. तक हमरे सभी य ग ु भ बहन और नए जस ृ से लभ ठ सके जो सदग ु भी स न के स प ु दे णीत है.
सो मेरे य भ म ने पनी तरफ से एक कोशश क है.. पछले ४ घ टो से मै सी म यत रह क कैसे स ुप रे न स भषण क लपब क.. य ु क मै ऐसे घटनओ क रण दे ने म क ु छ खस नप ु ण नह.. ;-) और ये मे र पहल यस है.. सीलए धयद दे त ह . रे म त ही ठड हे ु झे नमव द नदी के कनरे भी जन थ पने म के सथ और यहा बह भ...सो चलए ब मै द लेत ह , गर पको पस द य हो तो से जर सभी भ बहन के मय पोट करन... सदग ु दे क नेहशवद मेरे सथ सभी पर बन रहे सी कमन के सथ. JAYA SHAKTI SADHNA PRAYOG
भगती द श के सभी प के सब ध म यह प यत है शहीन यथस दतनरधम जीन के म ू ल म श ही तो है, चहे ह ड क को भी ज हो को भी जड़ य चे तन हो, कही स ृ त थ म, सक ज क य जड़ क जो डीय थन है ु स ु तो कही जग सके म ू ल म कह न कह को न को श ही तो है और बन श स ड म सव नरधम है, नगय है, त प रक है और ु छ और यथव है. श तथ श दोन ही एक द ू सरे के ू बन श के श भी तो श बन जते है. भगती के ध प कल िम म ध सर पर तरत ह े. स सर के कयण हे त ृीलोक तथ य लोक क ु तथ जीो क स ु र हे त ु हने ध प धरण कर प हमे श र कय है. सी लए तो सोलह कल धन ी क ृ ण ने भी दे ी के सब ध म कह है क वमेव सव जननी म ृ तररी.... दे ी श प ही सव म ू ल क जननी है सब ूि क क पसे ही ह है तथ म ृ त धी य प ही है. ू ल क भगती के द ु गव प म ध ९ प तो त और सधन के े म यत है ही. यह ध दे ी प सधक को क क कर से सव दन करने क समयव रखती है. लेकन सथ ही सथ नक सहचरणी ध योनगय से सब धत सधनओ क चलन भी त जगत म रह है. श क यह एक लग ही प है जो क दे गव से ही है लेकन द श क से क के प म है. क सो क मत है क योगनी सधनओ को करने से ुद गव सधन य द दे ी शय क सधनमे सफलत के लण और भी ती प से होने लगते है. एसी ही दे ी क सहचरणी योगनय म एक बहोत ही चलत दे ी क
नम है ―जय‖. यह दे ी क सधन पसन त ृ हद प से द कल से होती है. म दे ी के सब ध म चलत है क सधक क ह सभी मनोकमन द क प ू तव करती है तथ सधक के मन को हमे श त ु दन करते रहने के लए यनशील रहती है. दे ी के क योग है लेकन नक एक लघ ु धन यहा पर त ु त कय ज रह है. यह ी तथ प ु ष दोन सधको के लए समन प से फलदयी है. ुप ष म यह योग के मयम से शौयव, परिम, ीरत जै से ग ृ त क और गतशील ु ण क कस होत है तथ मनस रचनमक होत है सी कर य म भी मध ु रत, णी ए शरीरक सदयव द क कस होत है तथ जीन म सौभय क ृ होती है. सथ ही सथ दे ी क पसन भौतक नत के लए क जती है. स योग से फल प सधक के जीन म कयव े य यपर म नत के र ख ृ हणी सधकओ क घर समज म मन समन क ृ होती है. ु लने लगते है. ग यह योग सधक कसी भी श ुभ दन म श ु कर सकत है. सधक को री कल म १० बजे के बद यह योग करन चहए. नन द से न ृ त हो कर सधक को र दश क तरफ म ु ख कर बैठन चहए. सधक को लल धरण करने चहए तथ लल सन पर बै ठन चहए. सधक को पने समने दे ी जय के सधक ग ु प ू जन करे तथ ग ु म क जप करे. सके बद सधक भगती जय के च क प ू जन भी करे. तथ यस िय कर सधक को जय म क ५१ मल म क जप करन चहए. यह जप सधक श मल से य म ू ग मल से करे. करयास ङ ् ग ु य नम तजव नीय नम ू मयमय नम नमकय नम कनकय नम करतल करप ृ य नम अङ ् गयास दयय नम शरसे ह
ू शखयै षट ् कचय ह म नेयय ौषट ् य फट ् म ू ल म : ॎ जये ह ् ु फट (om hreem jaye hoom phat ) जप ू प णव हो जने पर सधक द ु मरी को भोजन करये य / दण द ू सरे दन कसी क भ ट कर स त ु करे. मल क सजव न सधक को नह करन है भय म श सधनओ के लए यह मल पयोग म ली ज सकती है. जो सधक ५१ मल एक ही र म सपन करने के लए समथव हो नको यह जप ९ दन तक तदन प च मल करनी चहए. रोज समय एक ही रहे. NAVAARN SHAKTI YUKT BHAGVATI NAVDURGA MANOKAAMNA POORTI SADHNA
‗ दे ी भगत म कह गय ये ोक स बत क बोध करत है क मा जो सद नय नग ु व ण यपक यक ृ त श ह और योगगय ह और म ू लत त ु रीय ह ही भगती के सक रजसक और तमसक तीन प ह जो छ न और िय प म मन है जसक सशती म थम,मयम और म चर के प म णव त कय गय .‘ द ु और समज क नत और कस हे त ु ु गव सशती म सत सौ ोक म मन ब ग ू ढ़तम स त ह. जनक पयोग करके य रोर नत कर सकत है न केल भौतक पत ु यमक भी. सशती को पढने क धन लग है और योग लग, यक पठ क फल हमे स समय शे स, दश, और शन के न ु प हो जत है, कत ु योग क मतलब पनी छ न ु सर स कप ु दे र नेक ले कर पने मनोरथ को करन. सदग धन बतये गए ह जनक योग कर हम जीन के नेक यम म सफलत कर सकते ह. सशती म कह गय है----- दे न कयव सद ्यथवभभव त स यद | पनेती तद लोक स नयपभधयते मा पने भ पर क ृ प करने न पर न ु ह करने हे त ु नेक प धरण करती ह. जब दे के कयव स करने के लए प धरण करती ह तो नक तप मण जती है योक े तो सव द नय ह जसक नश नह होत, मा द श के कय के न ु प ही नके नम ह---- फर चहे े नम द ु गव के नौ प के ह य दश मह के य कसी और प के एक ही श के नम....... च ू क ग ु नरी एक महप ू णव समय होत है एक सधक के लए त मा क ही को सधन क जये जो सव कयव स से सब धत हो तो त म..... मन जीन छओ के धीन है और हर को चहत है क सके जीन क े मनोकमनओ को सकर प मल सके,कत ु जब तक भय न ु क ू ल नह होग,ऐस होन
स भ है.कत ृ प से ऐस य है जो स भ नह हो सकत है. ु मा श क क धन,धय,धर,ध स ु ख क और सथ ही समत कर के भय क नश म ही क ृ प से स भ हो पते ह. त सशती क ही एक योग प सब के लए ........ साधना सामी :- क ु मक ु म, क ु मक ु म से राग े चल,ेतकव य सफ़ेद क क लकड़ी के छोटे छोटे नौ ुट कड़े,लल प ु प,केशर मत खीर, पञच मे , पन, लग, लची, और नब ू. सके सथ हीएक पील जसपे य बनन है---सन और भी पीले हगे. दश र य प ू व ,र म १०.३० के बद क समय सधन के लए पय ु है. मल— म ू ग, र चदन य श मल . ध -- समने बजोट पर पील बछ कर ग ु च य क थपन करे और ग ु प ू जन ए चर मल ग ु म ु परी गणे श और एक स ु परी भगन क स पन करे.फर एक स भै र के तीक प म रख कर नक स प जन कर क ु मक ु म से नर, चमे ली य च दी क ू शलक य कलम से य कत ु स कप कर, तथ जल हथ म सव कयव स हे त ल फर य क ू प जन क ु मक ु म मत चल, लल प ु प,केशर मत खीर क भोग लग कर कर और पन लग लची,क क लकड़ी क ुट कड और नब ूपवत कर. थम दस नन म क चरण करते ह ए समी पवत करते ह ए प ू जन करन है – ऐ शै लप ु ी श: ........ समपवयम खली जगह पर प जो भी समी पव त कर रहे ह सक नम ले न है. दहरण - ऐ पे ण भगती शै लप ु ी चरणे त समपवयम ऐ पेण भगती शै लप ु ी चरणे ुप प समपवयम सी कर य पदथव य पचर समपवत करन है.स कर द ू सरे दन द ु सरे नबर क म और गे सी िम से ू प जन करन है,यद रखये खली जगह म समी जो प पवत करन चहते ह,सक नम चरण करन है.यद नरी म को दो तथ एक सथ पड़ती है तो दोन दन क ू प जन और जप सी एक दन करन होग और पचर दोन बर पवत
करन होग,मतलब त,प ु प द सब दो दो बर पवत करन होग. कत ु पहले एक प द सरी बर क ू प जन और जप स पन ू जन स पन कर लगे,तभी ू कय जये ग. २. पेण भगती चरणी चरणे ......समपवयम ३. ल पे ण भगती च घ ट......समपवयम ४. च पेण भगती ू क म ड चरणे ......समपवयम ५. म ु पेण भगती क दमत चरणे ......समपवयम ६. ड पेण भगती कययनी चरणे ......समपवयम ७. यै पेण भगती कलर चरणे......समपवयम ८. पेण भगती सदी चरणे......समपवयम ९. चे पेण भगती महगौरी चरणे......समपव यम तपत नणव म क ३ मल जप कर. नवाण म ु – (AING HREENG KLEENG CHAAMUNDAAYAI VICHCHE)
और फर नन म क ३ मल म जप स पन कर – द ग मृ त हरस भीतमे षजतोवथैो मृ त मतमतीव भं ददस। दरय दोख भयहरण क वदय सविकरकरणय सदु च॥
ये सधन नौ दन क है तदन परो िम समपन करन है,य क नमव ण पहले दन ही होग लेकन प ू जन तदन करन है.खीर क नै े नय सधन के बद य ह हण करन है.सधन प कसी क प जन कर दण द ू री होने के बद गले दन समयव ुन सर ु मरी क ू दे कर स त ु कर. और समी को कसी खे त द छ थन पर सजव त कर द.सधन कल म ही पके कमन को सकर करने ली परथतय क नमवण मा क न ु कप से रभ हो जत है.
SARVDOSHNIVAARAK -ANUPARIVARTAN AADITYA BHADRAKAALI PRAYOG
आम जगतः तथ स ू य ु ष || े जीवन े े मान जीवन क वसं गतय म ईलझ कर मानव ऄपन क म ल लय स े परवार े भटक ही जाता ै ह . और ऐसा ही हमार क साथ होता चला गया. े हम कइ साल हो गए े भोपाल म अय थ ....योयता थी...परथतय को ऄन ु क ल े का ान भी सदग े व क क े हम मला था...कत करन ु द ृ पा स ु जब भी ईसका े का यास करत े...मान सप े योग करन ण क ृ त ही हमारा वरोध करन े भी वकटतर होत े जा रही थी... लगती...थत पल तपल वकट स े जब भी मइ स े ज पहल ु लाइ का समय अता था,मा तब अथ क समयाओं और े े े र वष भर का हो मानसक ईलझन का सामना करत थ कत य म प ु ऄब तो े े पत स े कहती क अप हम दोन क ु गया था... म जब भी ऄपन क ं डली का ऄयन े द े खय े ना...अखर हम कब आस थत को पार कर पाय ग े...या आसस े करक े का कोइ ईपाय नह ै जीतन ह ?? न े हमारी ु े व े म क ं डली का ऄयन कइ बार कया ै ह ...और सदग न आस परथत ु द े ऄन े न े का वधान भी बताया ै े बड़ी दकत को ऄपन ह ...कत ु क ल कर ल ु सबस ही यही ै ह क जब भी म आस वधान को संपन करन े क ै त यारी करता ह ू..क ृ त े ु े आस योग को ना संपन कर पाउं ऐसा वातावरण बना े ती प म झ द ै ह ...म री तरह स पछल े ६ साल स े आस े करन े का यास कर रहा ह आन तीन दन म ू पर हर बार म े नवास पर रह ही नह पाया और ईसका खामयाजा े ऄपन य ु भ गतना पड़ा क..हमार े लए जीवन जीना भी द े रोजगारी और ऄभाव ारध भर हो गया...ऊण,ब े े े ारा कम परणामवश हमारा भाय ही बन गए ह ...और ु म झ य वास ै ह क हमार संपन कय े े व सभी लमी ा योग तभी फलीभ ग े जब हम आस वधान त हो पाय ग े – े े े र े का ईर दया. को कर ल य कहकर ईहन म े र जीवन भर ऐस े ही भोगना पड़ े गा..... तब या प े आसक े लए आस वष को ऐस े ही नह बीतन े े ना नह ऐसा नह ै ह ....कत म झ द ु ु ै...य े वाली ही ै े बाद े ह ह और ईसक क तीन ु ग वार म ंक बस मकर संंत अन े कसी भी एक ग स य योग कया जा सकता ै ह . और ु त म जानती ही हो ु वार को े े ६ वष स े ु े घर पर क जनवरी माह म म पछल ग वार को ऄपरहाय कारण स े कभी सोचा ै नह रह पाया ै ह ...या ु त मन ह क...य ह ... ू ऐसा होता ै
य ू भला ??? य म जनवरी अत े ही सजग हो जाता ह म झ े ऄब ऄपन े जीवन को और ू क ु ंक े भी नण य े े साधनाओं को यथ नह करना ै ह ..हा क े क छ ऐस थ जनक वजह स ू ु वगत जीवन क साधना श पर भाव पड़ा था और ईही गलतय का परणाम े वत मान े े सदग े व स े आसका नराकरण प य क ऄभाव ह ...कत म न ु जब ु द छा था तो ईहन े बताया था क स ह और तीक ै ह जीवन े क य अमा का तीक ै मलनता अ जाती ै सौभाय का कत ह तो भाय जो कल तक ु जब जब ईसम े लगता ै ईनत था ऄचानक वपरीत यवहार करन ह और आसका नवारण तभी हो पाता ै ह जब साधक भगवती अाश े क सवा धक सौय कत ु खर प भकाली े क साथ स य योग करता ै ह . और े य योग कइ मायन म य का सं ु े षता स े ु ै स े ही ईरायण होता ै वश य होता ै ह ...पहला तो े य क स ह ...तब े य य ज े भाय का ल े खन कर सकता ै े वो समय वही समय होता ै ह जब साधक ऄपन ह ...य े होता ै ह जब स द क और साधक को ऄसर करता ै ह और ऐस म साधना य े वव सफलता ा करना कह यादा सहज होता ै करना और ईसम ह ....दिणायण म े जो सबध बना होता ै स लोक स ह वो समा हो च ह ...और े य य का े त का होता ै परवत न मा बाागत ाड म ही नह होता ै ह ऄपत य परवत न ऄथा त ु े े तव स े े वव द क और,ईचता क ओर गमन क या ऄण म होती ै ह ..रोम ु ऄण ु तरोम म आस या का सं पादन होता ै ह ....और भगवती भकाली आस या को थायव दान कर े ती द ह साथ ही ग म ु ग तव का ु वार का योग आस योग े श योग कर े ता द ै ह ,जसस ह ... ुता और दयता साधक को ा होती ही ै े संपन य े तब अप आस ह ... ू नह कर रह े ऐसा लगता ै या ु त ह ह क म जानब ह ू...नह ऐसा झ कर ऐसा जीवन जीना चाहता े वगत जीवन नह ै ह ...ऄपत म झस म बह टी ह यी थी...कत त बड़ी साधनामक ु ु ु ु े भाव स े तब नरंतर ग म बचा रहा..कत ु अय ेक कारण ईसक ु ईसका े आस जीवन नराकरण तब नह कया और ईसी का परणाम ै ह क ु म झ म े य सब े लना पड़ रहा ै े लगा था क झ ह ...और आन ऄभाव का सामना करना पड़ रहा ै ह . ु म झ म सहजता स े आस वधान को कर ल म न े कया ू गा या जन लमी साधनाओं को े कारण ु े अथ क या भौतक ऄभाव का सामना नह करना ह अ ै ह ...ईनक म झ े गा....कत े जब स पड़ य े री म मा भ ु े ल थी...ऄर य ही मलन हो जाए तब भला आन
े गोचर होगा.और नयत बारबार म े आस साधनाओं का प क स ण लाभ भला ै ु झ एक महीन े ेक वश ग े द द ै ह .. ु वार को साधना थल स र ही कर े ती े.... तब या हम दोन मलकर आस योग को नह कर सकत े क सदय आस े य य तो यादा ईचत होगा और यद परवार का य ू नह...बक े े तब वो ऄपन े जीवन े संपन कर सक क ऄभावो को ठोकर मारकर द र कर सकता ह ै.. य े क य वकम े क परणाम को भोगता ही ै ह . ऄतः वयं आस ंक य े ष महव रखता ै साधना को संपन करना वश ह और यद सभी सदय ना हो तो मा वयं े े,पनी ही समलत सप क भाइ - बहन,मा ू पता,बच ण परवार (आसम ) ेक नाम का संकप ल े कर भी आस योग को कया जा सकता ै ह ह . े बाद बह े ही सही कत आस योग को कया और ईसक त कठन यास स ु हमन लगातार दीखता गया...ऄब तो य े य े क वष कय े जान े वाल े ईसका भाव भी हम वधान म शामल ै ह . जब भाय तक ल हो... साधनाओं का लाभ दखाइ ना े द रहा हो.... े मन ईचाट हो रहा हो... साधनाओं स ऄचानक धन ा क सभी संभावनाएं िीण हो गयी हो... े ह... नण य वयं ेक लए ही तक ल हो रह े म हो.... समान खतर मन क चंचलता ऄयधक बढ़ गयी हो.... अद कइ थतय म आस एक दवसीय योग को करना प द ै ह . ण लाभ े ता े ु े द मकरसंांत ेक ऄगल ग वार क ातः स क प यदय े व ही नान कर सफ़ े स े ऄय दान कर और नन मं का हाथ व धारण करक य को जल स े े जोड़कर स ह ए १०८ बार ईचारण कर य का यान करत
HAN KHAH KHAH KHOLKAAY NAMAH आसक े बाद साधनािक म सफ़ े द असन पर ै ब ठ जाए े व और ू तथा सदग ु द तथा ग ,आसक े भगवान ् गणपत का संि प जन कर ु मं का ४ माला जप कर बाद साधक यद ऄक े ल े जप कर रहा ै ह तो वयं े क नाम का संकप ल े और दोष े नवारण तथा मनोकामना प ग. और यद प र परवार े क लए े य त का अशीवा द मां े
े द कागज वधान कर रहा हो तो सदय का नाम सफ़ म लखकर और मोड़कर ग े रख द .आस योग क सबस े बड़ी वश े षता े य ै ह क साधक ु च ेक सामन ग आसम ह . ु ि को ही भगवती भकली क वप मनकर प ू जन करता ै े तल े े ल का दीपक वलत कर े और ईस दीपक का संि च ेक सामन क त े .आसक े बाद ु े एक एक मं बोलत े प क मक क सर स ह ए ु ग च और जन कर ु म या े संभव हो तो ईनक े ी चरण म बं दी लगाय ,यद पाद ग ु का हो तो ईस पर ऄयथा ु े े और एक बंदी य पर भी अप बंदी लगा सकत ह . ऄथा त एक मं बोल े लगाय े – ऄनामका ू गली उ स
आसक े बाद े क सर मत चावल क खीर न ै व े म ऄप त कर द और अचमन करा द .तपात नन महामं क ११ माला जप,ग ु माला,शमाला,म ंगा माला,ाि माला,लाल हककमाला ऄथवा हदी माला स े कर . मं OM RAAM HUM KREEM BHADRAYAI BHADRAKAALI SARVMANORATHAAN SADHAY KREEM NAMAH
े जपसंया वयं े य क लए नधा रत ै ह ,यद अप ऄय सदय े क लए भी कर े े क सदय े रह ह तो सदय संय े क ऄन क लए ऄपनी जपसंया े क ु सार य बाद २-२ माला जप त सदय करना ऄनवाय ै ह . े २४ अह .और ग जप े क बाद ु ग मं स क ारा डाल त घी े ु अरती संपन कर . तथा ईसी दन कसी भी ईस खीर को वयं या परवार वाल े क साथ हण कर
े य को महाकाली या श मंदर म ु क छ दिणा ऄप त कर द और कसी भ ख भोजन करवा द . न े ऄपन े जीवन े म म आस वधान े क भाव को े खा द ै ह और हमारा परवार आस े बाद े तवष संपन करता ही ै ह . े य संांत या ईसक क ईसी माह े क कसी भी े एक ु े आसका लाभ ईठाया तीन ग म स ग वार को कया जा सकता ै ह . म न ु वार ह ै.और हमार े जीवन को ईनत क और गतशील होत े े खा द ै ह .अप भाइ बहन स े े दन ही कर सकती भी म मा नव ह ू BHAGVATI DURGA SADHNA PRAYOG
मन ु य जीन म स ु र क कतन धक मह हो सकत है यह ज के य ु ग म हर एक य जनत है. नय ही भौतक जीन म हमरे चहते न चहते ह े कभी श ु तो कभी कसी और प म भी स ु र क भस तो हमे श बन ही रहत है. और सके ल कभी कभी य य य प म जो बधए ती रहती है ह मन ु य के जीन को कसी भी समय कट थत क परचय कर दे ती है. ज के य ु ग म जह पग पग पर े ष तथ षव क समन कसी को भी करन पड़ सकत है, ही ा द ुओ ू सरी तरफ त त श क भय भी हमे श लग ही रहत है. गर को य गत क और गतशील होत है तो नय ही श ु क भी खतर तन ही यद बढ़ने लगत है. एसी थत म हर एक य पने तथ पने सब धतो क स ु र को ले कर हर मनसक दब म रहत है. यह एक भक थत है य क म भोग को कर लेन ही सब क ु छ कहा है, सके सथ ही सथ यह भी तो तन ही यक है क य पने जीन म ू प णव स ु रत रहे, तथ ज़रत पड़ने पर सको स ु र क हो जए. त क े य यही है क भौतक तथ यमक दोन ही प म य प ू णव त को कर सके. सथ ही सथ जह पर भी य के जीन म य प णव न द ले सके. और सी सब ध म त ू नत है सक ह प ू त कर सके तथ जीन क ू े म क क योग और सधन क त है. त ु त योग भी सी िम क एक यधक लण योग है. य क यह म र के य योग क तरह नह है, रन यह योग एक सथ भोग तथ मो दोन ही ग ु णधम म सधक को नत दन करत है. एक तरफ जह से दे ी के शीव द से स ु र क
होती है, ही ा सी योग के मयम से दे ी क न ुभ भी कर सकत है. दे ी क दय पथत क भस करन भल तन भी सहज कैसे. लेकन त म स भ जे स तो शद ही नह है. नय ही यह योग सहज है तथ य से दो प म कर सकत है, एक प म सधक को भौतक जीन से सब धत समयओ क नरकरण तथ स ु र क होती है तो ही ा योग के मयम से स ूम प म य बब के प म दे ी के दशव न भी स ु लभ हो सकते है. नय ही ऐसे योग क होन कसी क भी सौभय ही है य क यह सहज योग को भी य कर सकत है, सरल होने के करण स े म जो नए य है ह भी ऐसे दे ुद लवभ योग को पनकर पने जीन को दे ी क ृ प से धय बन सकत है. यह सधन योग सधक कसी भी श ुभ दन श ु कर सकत है. समय री म १० बजे के बद क रहे. सधक यह योग कही भी कर सकत है ले कन सधन के समय सधक के सथ और को भी य नह होन चहए. सधक री म नन से न ृ त हो कर र दश क तरफ म ु ख कर बैठ जए. सधक के तथ सन लल र ग के होने चहए. स योग म सधक को पने समने भगती द ु गव क चै तय ह य य को थपत करन चहए. सधक सदग प जन, भै रप ु प ू जन, गणपत ू ू जन द सपन करे तथ सके बद सधक दे ी के ह, य ू जन करे. ग ु म य च द क भी प क जप कर सदग ु दे से सफलत के लए शीवद ले. सके बद सधक यस कर के म ू ल म क जप करे. करयास ॎ ङ ् ग ु य नम ॎ तजव नीय नम ॎ ल सवनदमय मयमय नम ॎ नमकय नम ॎ ु ू कनकय नम ॎ ह फट ् करतल करप ृ य नम दयादयास
ॎ दयय नम ॎ शरसे ह ॎ ल शखयै षट ् ॎ कचय ह ॎ ु ू नेयय ौषट ् ॎ ह फट ् य फट ् यस के बद सधक म ू ल म क जप करे; यह जप म ू ग मल से श मल से य ु त मय से होन चहए. सधक को २१ मल म जप करन चहए. ॎ आ ु ि ु ू ु ह ु फट ् (om aam hreem kleem shreem drum droom hoom phat) यह िम ३ दन सधक को करन चहए. सके बद जब भी यकत लगे तब सधक स म क ू प ज थन म य कसी सफ़ थल म बै ठ कर एक मल म क जप करे तो समय क समधन होत है. सधक गर 3 दन क जगह ७ दन यह िम करत है तो दे ी के बबमक प से दशव न सधक को होते है. MAYABEEJ RAHASYA
सधन के ू णव करने क ु त े म, म और य ो क सहयत से एक नत िय को प स ु यथत िय को ही त कह जत है. नय ही प ू णव त ो ियओ क धरभ ू त श म रहे है, और म ो क धर णव तथ बीज. और ही बीज र तथ बीज म ो क पसमे स योजन हो कर ध म ी सदश के म ु य से जनमनस के कयण हे त ु कट ह े. त के े म सभी बीज म ो क एक यधक श थन है तथ सधको के मय बीज म ो क मह पने प म यत है ही. यहा पर एक बत यन दे न यक है क य न बीज म ो को तन यद मह दय जत है. सव थम यह बत को समजन चहए क म ो क धर न है, र तथ र ही मनस क तर ग को न म परतव त करते है. चहे ह मनसक प से भी य न हो, य क हमरे दर क को भी िय एक नत न को जम दे ती ही है, हमरी स ु नने क एक मत है. जसके गे हम स ु न नह सकते है स लए शरीरथ सभी न हम स ु न नह पते है. लेकन न क होत है और ह न एक जव क नमव ण करती है. हर एक न एक शे ष जव क नमवण करती है. सी लए मनसक जप क स ूम न भी शरीर म स ूम जव क नमवण करती है. ै से तो णव और बीज के पर च ु र म म त क सहय हमरे ष म ु नय र लख गय थ लेकन कल िम म ह ल ु होने लग. फर भी त ो पसन म बीज म ो क नयव त को कसी भी कल म ज़र सभी नकर नह गय और फल प क स ु यत बीज म ज जनमनस के मय म चलत है, जसमेॎ तथ सबसे यद चलत रहे है लेकन नके ज ु ड़े ह े स प ध सधन पतया तथ नसे सब धत ध रहय कल ि म म जर ल ु होने लगे है. त े के कसी भी सधक को बीज म ―‖ के मह को समजने क यकत ही नह है. यह बीज हमे श ही सधको क य बीज रह है जो क क क रहय से परप ू णव है. परो प या सी बीज म के सब ध म है. जसमे सदश दे ी को एक ू न तन त न दे ते है; जसक थव क ु छ स कर है
एक र ॎ ही है जो क सदै से परप ू णव है. थवत ॎ तथ दोन ही एक द ू सरे के प ू रक है. दोन ही बीज दे के म ू ल प थवत प है. जसमे एक भग प ु ष है (ॎ) तथ द ृ त (). ू सर भग क स ोक क ेषण करने पर य क तय के बरे म समज सकत है. एक प ू णव स है, जसके दो म ु य भग श तथ दे ी के प म है. तथ न दोन को समलत प से दे खने पर यह प गोचर होत है ले कन ख डत प म यह श और श है. न प म श ॎ प म है ही ा न प म श प म है. ै से यह ोक क कट य थम थव है. ता ु क वामय म साथ ोक होते है, एक ही बीज, म या ोक के स ूम से स ूमतम खोज करने पर सात िअग िअग अथ क ा होती है, जसमे कट अथ वप क अभय होता है; बाक सभी अथ ग गय होते है. यही करण है क क बर प ु रतन सहय यद म कट सधन न दे कर सफव स दे दी ग होती है जसक ग ू ढथव सफव स ग ु के मयम से ही समज ज सकत है. सी कर परो ोक म भी प क सधन िम को बीज म ो से णव त कय गय है जो क प ृथक षय है. यहा पर हम बीज के बरे म ही गे चचव करते है. म क प क ा ) जो क न ु छ है. यह बीज ह, र, तथ च (ँ ु र क भन दे त है. न र के यपक थव है. तथ क सो ने सक ध यय क है. लेकन जो सव जन मय है ह यह है क हकरशच; ह थवत श, रेफ क ृ तरयते; र क ृ त स ू चक है, महमयथव शद; महमय क तक है तथ नदोस ृ त च नद क तक है. ू म स कर सक एक थव यह होत है क श तथ क ृ त थव त दे ी दत महमय क तक थव समजने ल यह नद य डीय न क यह बीज है. NISHCHIT SOUBHAGYA PRAAPTI BHAGVATI KAPALINI PRAYOG
सृ म हर एक जीव के कम के अनसर पकृत कसी भी य क एक पतय स नत करत है. यही पतय आगे बढ़ कर के लए एक जीवन क
नमु ण करती है, एक ऐस म जसे भय य नसीब कह ज सकत है . इसी लए त कहत है क भय के आगे कसक गत है य र िअने भय म ही नह है इयद. ले कन एक तय यह भी है क अगर कमु दष के करण एक नत भय क प करत है त कमु दष क नवृत कर वह उस भय क सौभय म भी बदल सकत है . और यह य ही सधन है , इसी लए त तं के बरे म कह जत है क तं के मयम से भय क भी बदल ज सकत है . नय ही मन य म इतनी समयु है य नह है, ले कन अगर वे ष पयओ के मयम से वह दै वीय सहयत क प करे त सौभय क प कर सकत है . तंक सधनओ म जहं जहं एक और आयमक जीवन क उत है त दू सरी तर भौतक जीवन क िू णु आनं द भी. इस मगु के बरे म यह कह जत है क यह सु सयसय के लए है त यह सु एक मय धरण है . यह सं सरक तथ सयसी दन ही य के लए िउय िउसन मगु है. आद व तथ के वभ वि इन सधनओ क मूल आधर है . दे वी िकलनी आद क एक ऐस ही वि है ज क सधक के जीवन क तीत के सथ बदल कर रख दे त है. दे वी से सबं धत पत त पयग सधकओ के लए है, ज क सौभय प के वषय म है. एक ी िअने जीवन म कई कई पकर के यगदन तथ ववध पकर क भूमक क िू णु ि से नभती है, ि ी, बहे न, िी, मा से ले कर कई रशत क वहन एक ी िअने जीवन म करती है लेकन कई बर घर िरवर म समयओ के करण जीवन क गत क जती है . सस रल ि से सबं धत कई समयओ क समन कई य क करन िड़त है , य र ित क तर से ज पे म प हन चहए उसक प नह ह िती. भले ही एक ी यह बतए य नह लेकन आज के य ग म कई कई ी इस पकर क समयओ से त रहती ही है, इन सब के िउय म यह पयग है. इस पयग क करने ि र सधक क दभुय, सौभय मि रणत हने लगत है. जीवन म आने वली समयओ क नवृ त हती है तथ स ख क प हती है. सथ ही सथ घर िरवर क उत हती है और सधक के समन म वृ हती है. यह सु एक दन क पयग है जसे कसी भी भ दन से कय ज सकत है.
सधक री म न आद से नवृ त ह कर लल व क धरण करे तथ लल आसन िर बै ठ जए. ग िू जन तथ गम क जि करे. इसके बद सधक न म क ५१ मल म जि करे. यह म जि मू ं ग मल से हन चहए.
म जि िू णु हनेि र सधक दे वी िकलनी क पणम कर सौभय वृ के लए पथु न करे. दू सरे दन कई छटी कय क भजन करये य व/ दण दे कर सं त करे. मल क कसी दै वी मं दर म दण के सथ अित कर दे . TEEVRA TRISHAKTI JAAGRAN SADHNA
स ड म द श के न त प पने पने स ु नत कय को गत दन करने के लए तथ ड के योय स चलन के लए पने नयत िम के न ु सर े गन है. यही डीय श के म ू ल तन मन प को हम महसरती, महलमी तथ महकली के प म दे खते है. त क से यही तन शय सजव न, पलन तथ स हर िम क म ू ल शय है जो क दे क सव कयव मत क धर है. यही दे ी ड क सभी ियओ म स ूम य थ ू ल प से पन कयव करती ही रहती है. तथ यही श मन ु य के दर ु य के जीन म होने तथ ब दोन प म मन है. मन ली सभी घटनओ क म ु य करण ही श के स ूम प है नश छश
ियश न, छ तथ िय के मयम से ही हमर प ू णव त बनत है, चहे ह हमरे रोज द जीन क श ृ हद से ृ हद ु त से ले कर त ूम से स ूम य हो य फर हमरे स ियकलप. हमरे जीन के सभी ण ही श के न ु प गतशील रहते है. त ु त जे स क शो म कह गय है मन ु य शरीर ड क एक य त ही ु त रचन है. लेकन मन ु य को पनी शय क न नह है, सक न त मतए स ु प म सके भीतर ही मन होती है. सी कर यह श क नय ण त ु त हमरे हथ म नह है और हम सक को न भी नह होत है. लेकन गर हम सोच के दे खे तो हमर को भी स ूम से स ूम कयव भी ही तीन शय म से को एक श के मयम से ही स पदत होत है. योगीजन ही शय के ध प को चे तन कर नक सहयत करते ह े ड के म ू ल रहय को जनने क यन करते रहते है. न सफव यमक जीन म रन हमरे भौतक जीन के लए भी न शय क हमरी तरफ न ु क ू ल होन कतन यक है यह समय प से को भी य समज ही सकत है. न श एक तरफ पको जीन म कस कर से गे बढ़ कर नत कर सकते है यह प क और ध न ु क ू लत दे सकती है ही ा द ु क ू लत क केसे कर ध न ू सरी और जीन म न क योय स चर करनी है तथ नक पभोग केसे करन है यह छश के मयम से समज ज सकत है िय श हम ध प म गत दे ती है तथ कस कर त ु त पभोग को पनी महम सीम तक हम न ु क ू लत तथ स ु ख दन कर सकती है यह तय समज दे ती है. त ु त सधन, ही श को चे तन कर दे ती है जससे सधक पने जीन के ध प म त ही न ु क ू लत करने लगत है, न ही सफव भौतक प म बक यमक प म भी. सधक के ू न तन न को करने तथ से समजने म न ु क ू लत होने लगती है. कसी भी षय को समजने म पहले से यद सधक न ु क ू लत न ुभ करने लगत है. पने दर क ध मत तथ कलओ के बरे म सधक को न क होती है, सके लए य योय और य योय हो सकत है ससे सब ध म भी सधक क समज बढ़ने लगती है.
छश क ृ के सथ सधक ध कर के नत के स ुसर होने लगते है तथ सधक को पने न क पयोग कस कर और केसे करन है यह समज म ने लगत है. दहरण के लए कसी य के पस यपर करने क न है लेकन सके पस यपर करने क को मत नह है य स न क यहरक योग हो नह प रह है तो छश के मयम से यह स भ हो जत है. ियश के मयम से सधक पनी छश म गत करत है. थव त कसी भी कयव क न है, सको करने के लए मौक भी है लेकन गर ह िय ही न हो जो क परणम क कर सकती है तो सब बेकर हो जत है . िय श ही परणम तक सधक को ले जती है तथ एक थरत दन करती है. श से सब धत यह ती योग नय ही एक ग ु ढ़ िय है. त म य त ही कम समय म सधक क तन शय चै तय हो कर सधक के जीन को न ु क ू ल बनने क और यसमय हो जती है. स कर क सधन क नयव त को शद के मयम से ा क नह ज सकत है रन से तो म न ुभ ही कय ज सकत है. सधन योग क धन क ु छ स कर है. स सधन को सधक कसी भी श ुभदन से श ु कर सकत है, समय र म ९ बजे के बद क रहे. सधक सव थम नन द से न ृ त हो कर लल को धरण कर लल सन पर बैठ जए. सधक क म ु ख र दश क और रहे. पने समने बजोट पर य कसी लकड़ी के पे पर सधक को लल बछ कर स पर एक भोजप य सफ़ेद कगज़ पे एक ध कोण क ु मक ु म से बनन है. तथ सके तीन कोण म बीज को लखन है. स य नमव ण के लए सधक च दी क सलक क योग करे तो म है. गर यह स भ न हो तो सधक को नर क कलम क योग करन चहए. सधक स य क समय ू प जन करे. तथ दीपक लत करे. दीपक कसी भी ते ल क हो सकत है. सधक सव थम ग ु प ू जन गणे शप ू जन तथ भै रप ू जन कर ग ु म क जप करे. सके बद सधक नन म क २१ मल म जप करे. स म जप के लए सधक म ू ग मल क योग करे.
ॎ फट ् (om hreeng shreeng kreeng phat )
सधक गले दो दन यह िम जरी रखे. थव त क ु ल ३ दन तक यह योग करन है. योग प ू णव होने के बद सधक स य को प ू ज थन म ही थपत कर दे. मल को हत नह कय जत है. सधक स मल क योग पस स म क सधन के लए कर सकत है तथ नमव त कये गए य के समने ही म जप को कय ज सकत है. सधक को यथ स भ छोटी बलकओ को भोजन करन चहए तथ दण द दे कर स त ु करन चहए. SARV MANOKAAMNA POORTI - BHAGVATI VINDHYAVAASINI PRAYOG
– एक ऐसी िय श जसम कसी भी कम को करने क सीम स भनए ह.....स भ जै से शद क स े म को थन नह, यक स भ क थव होत है कसी भी कम के कभी भी स भ न हो सकने क यर टी पर जहा त क बत ती है ह यद पके पस मणक ध और सही पकरण है तो क ु छ भी ऐस नह जो प न कर सक . त पने प म न ६४ डीय शय क समे श है जसम से यद कसी एक क भी क ृ प प पर पड़ जए तो लोक - परलोक स र जत है......यन द यहा म न शय क क ा यीकरण क नह य त धै यव ृ प क बत कर रही ह ू क सके लए बह धरन पड़त है.....खै र फलहल ये हमर षय नह है......हम ज बत करगे मा यसनी क स सधन क जसे ब गली मा के जमदन के पहर प म ने दे ने क चन दय थ...... स सधन के धन को करने से पहले पको त के क ु छ म ू ल तय को समझन पड़ेग यक बन नी क मरत क न होन सके नमवण के सथ ही नत हो जत है. हर त क सदय ने त ा ू कह क पने िम के न ु सर को पनी नयमली य य भन - भन मत म भजत कर दय जो ज तक चले रहे ह.....पर भगन श से रभ कर , यक त को ही क दे न है, तो त म केल दो ही मत है जो नद
कल से चले रहे ह- शै मत और शमत......और सधन करते समय हम जन तीन भ १- पश ु भ, २- ीर भ, और ३- दय भ क बत करते ह ो शत से सब धत है.... दे ख जए तो शत क सप ू णव सधन क धर ये तीनो भ ही ह. क ृ त के धीन रहन पश ु भ है, स पर जय कर लेन ीर भ कहलत है पर क ृ त के सथ सम जय ु हो जन दय भ है.....और हर थपत करते ह ए ससे म सधक को पने जीन कल म कम से कम पश ु भ से तो पर ठन ही चहए. भत जीन यपन करते ह ए, हर समय दै ी शय के गे गड़गड़ते रहन पश ु भ क सबसे बड़ी नशनी है....यक ऐसे लोग बन कसी सटीक न के यथव क शओ को ू प र करने हे त ु यथव के िम करते है नतीजन हलत बद से बतर होने लगते ह यक दशहीन तीर कभी कसी नशने पर नह लगत....... यद ज हम पने चर तरफ नज़र ठ कर दे खे तो १०० के पीछे ९५ लोग ऐसे ह जहने पने जीन म को सथवकत नह पयी. यक श तो हम सब सब क ु छ पने क करते ह पर जै से खली हथ लए हम स द तेरे ऐसे ही खली हथ लए ु नय म ये थे, हम म से बह चले जते ह यक सपने सकर करने के लए सही दश म परम करन स सपने क सथवकत क पहली शतव होती है. सच बत तो यह है क ज जीन म तन द ुख और लेश भर च ु क है क समत मन जत को महय कर लेनी चहए पर ये को समधन नह है..... पौषत तो ैभप ू णव जीन जीने म है जो हर से सप ू णव हो, जसम रेत के कण जतनी भी कमी न हो और ऐस तभी हो सकत है जब हमरे पस ो समत स सधन पलध हो जनसे यह थत बन ज सके और यद हमरे भय म ैभशली जीन यपन करन नह लख है तो पने हथ से स लखे को बदल ज सके...... मा यसनी क सधन एक ऐसी ही त क सधन है जससे हर स स भ को स भ कय ज सकत है जो समय से मन सोच के भी परे हो.....प म से शयद बह त कम हगे जहने त के े म मा यसनी के बरे म यद क ु छ पढ़ य स ु न होग पर नक शय और चमकर क ससे जयद रोम चत औए सनीय दहरण कहा मलेगी क ब गली मा ने मा यसनी को पने ने म थपत कय ह है.....ो नक एक ऐसी परम सधक ह क नम और मा म ज को भे द ही नह....सधन के धर
पर मा ज स तर पर ह जहा सय और सधक एक हो गए ह .....तो सी से प मा यसनी क क ृ प क न ु मन लग सकते है.... मा यसनी क क ृ प के स य ु धन म से ये य त सरल धन है,स हे त पको त क यय य प को समझन होग, तं क दक अथु ही हत है यजन क उचत िलन करते ए कयु क स करन. वतव म पकृत म प सभी िदथु तंक ऊजु से य ह. कत उस ऊजु से कयु स तब तक नह प हती है जब तक वण के वे ष म क आघत उस समी म ऊजु के िर न कय जए. कल,थन,िरवे ,द और मं क उचत सं यग उस उजु क क भे दन कर दे त है,और मं उस ऊजुि र सधक क नयं ण थित करव दे ती है,जसके लवि व ऊजु सधक क मननकूल िरणम प करव दे ती है. मझ े मटर ने बतय थ क सदग दे व ने उन य और य य क ववे चन इतने सरल ि से ववे चत कर िअने य क आमथ करवय थ,जसके र हमं ड म कसी भी िदथु के ऊजु के क भे दन कय ज सकत है .खै र ो एक लग ही गोपनीय धन है. यहा हमर षय म
भगती दश यसनी क क ृ प से मनोकमन स क है. स हे त क री के द ु कसी भी म गलर ू सरे हर थवत ९.३० के बद सधन क म नन कर े श कर और लल धरण कर लल सन पर रभम ु ख होकर बैठ जएा.ग ु और भगन गणपत के प ू जन चव न के बद. समने जमीन पर (जो पहले से ही जल से श है) ु क ह यी हो) एक के दर एक तीन कोण ुक मक ु म से बनय(च पर दय ह और समे च न ु सर दए ह ए िम से सबसे नीचे के कोण शीषव पर तल के ते ल क दीपक,सके गले कोण पर ७ लग और सबसे मय ले कोण शीषव थवत नक पर ३ लयची को रख द.मय ले कोण के मय ब द ु मक ु म क ढेरी बनकर स ढेरी क ु पर क प ू जन,रप ु प(जसौन ुप प,ज ुप प),क ु मक ु म से र जत त,दीपक,गरबी और खीर से कर. तपत पने कयव क स क थवन कर.और नन म क म ू ग मल से ७ मल म जप कर. म -
OM HREEM HREEM VINDHYAVAASINI KAARYA SIDDHIM HREEM HREEM NAMAH
येि म ५ दन तक थवत शनर तक करन है और यन रखे कोण और समी क थपन म थम दस ही करन है जस दीपक से पने प ू जन कय थ स ढेरी क सी दीपक को तदन पहले ले कोण शीषव पर थपत करन है. म खीर,प ु प,त द ही नीन बनग.े रर क स ु बह लग,लयची,सी दीपक तथ क ु मक ु म क ढेरी को क ु छ दण के सथ,महकली य मा ुद गव के म दर म पवत कर द. खीर को कसी बची को खल द,को बची न मले तो य ही हण करे.कय क समन कर और कसी छोटे बचे को छन ृ कर.स कर ये ु सर क ु छ भ ट दे कर त ु त योग स पन होत है,प य ही दे ख गे क ये लघ ु योग पके कय को कैस े सफलत दन करत है. (MAYA SHAKTI SADHNA)
वतु मन य ग मि ग िग िर पतिधु है ,और हर कई जीतने क इछक है, हर कई िअन पभव डल कर िअने कयु क सधन चहत है ,िर य इतन सहज है...... नह न..... हम कतन भी िरम कर ले जब तक इ बल सथ न ह , य भय िआके िरम क अनकूलत न दे तब तक सलत त कस दू र ही रहती है.नीचे ज पयग िआ सभी के समने
रख रह ा उसक िअने वसय और नौकरी म म ने कई बर लभ उठय है , आखर इतन महिवू णु न हत ही इसलए है क हम उसक उचत लभ उठ सके . हला क इसक मू ल वधन इतन पभवकरी है क यद म िरम से उसे स कर ले तब उसक ूक म और समू ह क न म डल सकती है समहत कर सकती है. िरत उस क द ियग भी ह सकत है, इसलए जतन समय क लभ दे सके उतन ही वधन म यहा रख रह ा. ये पयग भगवती कम कल कली से सबं धत है,और इसके पभव से सधक क व मय सेि िरू णु ह जत है,कई भी ऐस नह रहत है ज उसके पभव से बच जये.
िउर सभी थत म ये पयग अचू क वरदन सबत हत है. कृण ि के कसी भी वर से इस सधन क परंभ करके अगले वर तक करन है. समय र क मयकल हग. लल व, और लल आसन पयग करन है .िम द क और म ख करके मं िज हग.ससन य वसन क पयग कय जत है. जमीन क िनी से धकर सफ़ कर लीजए और उस िर एक कण ज अधम खी हग क मक म से उसक नमु ण कर लीजए. य नीचे दी गयी आकृत के समन ही बने ग. मय म एक मटटी क ऐस ि थित हग, जसमे अ पवलत ह रही हगी. य नमु ण के बद सग दे व तथ भगवन गिणत क िू जन हग. िू जन के ित हथ म जल ले कर मय क प क सं कि तथ वनयग करन है और न यन मं क ७ बर उरण करन है . वनयग -
यन मं -
यन मं के बद दे वी क िू जन क मक म से रंग े अत और लल जव ि ि से करन है,गू गल क धि और ते ल क िदीक पवलत करन है. नै वे म खीर अित कर दे . और कण के
पये क कन िर एक - एक धतू रे क ल थित कर दे. “” बीज से २१ बर पणयम करे ,और इसके बद गू गल,लहबन मलकर मू ल म बलते ए य के मय म थित अि म सू करी म से आत दे. इस पकर २१६ म क उरण करते ए आत द. और िज के बद यन मं क ि नो ७ बर उरण कर. खीर क कही एकं त थन िर िल म डल कर रख द.
यही म िआक आगमी वर तक नय करन है. इसके बद जब भी िआक कसी महिवू णु कयु के लए जन ह , म क ७ बर बलकर हथ िर ूक मर ले और हथ क ि ू रे रीर िर े र ले. िआ ख द ही पभव दे खकर आयु चकत ह जये गे. त र दे र कैसी, यद ऐसी सधन िकर भी हम न कर सके और असल हते रहे जीवन म , त इसम कसक दष रहे ग. Shakti rahashyam (secret of power) –
सधन जगत क अभ त य क खज म न जने कन कन सधक से मे री म लकत यी....िर ये भी एक सबसे बड़ सय रह है क,जस दन से सदग दे व ने मे र हथ िअने हथ मि कड़ थ.... बस पत ण अभय और नतत ही अन भव हती थी..... हर िर अनख सकून मन आम क महसू स हत रहत थ. जस भी जस क मन के जल म उि हती...उसी ण जै से व हौले से उसे ं त कर के ये अहसस दे दे ते क “अरे तू त मे र ही है,इतन थत यू ा हत है.... यद रख जब भी ते रे मन क कई प िअनी चभन से थत करेगी....तब तब म उसक समधन उसी मन से नचड़ कर नकल कर त झे दे दू ा ग....उसी मन से जहा म चरकल से सद सद के लए िअने पये क य के दय म वरजमन ा.और ऐस आजम हग और पये क य के लए हग...यह नखल वणी है” बस तबसे कई चत ही नह रही मन म . जब भी मे रे मन के सरवर म कही से जस क िथर गरत और उसमे लहरे उि हती य मन क ं त भं ग हती...तब तब सदग दे व िअनी अमृ तवणी से य त वयं य र उनक कई नं सयसी य गृ हथ य आगे बढ़ कर उन तरंगत लहर क िअने उर से ं त कर दे त .और एक बत म िआक जर बत दे न चहत ा क जब भी कसी न क चह म म कही गय त उस सधक क हर मे रे लए िू णु अनकल ू रह है और उसने ये अवशय कर वीकर क उसेि हले ही बत दय गय थ क यहा त हर आन सदग दे व ने
ि ू वु नयजत कय आ थ .और ऐस पये क य के लए उहने नधु रत कय आ है...कसे कब दे न है ,य दे न है....येि हले से उहने तय कर दय है . य के उसी कल म मे री म लकत सदग दे व के से म लकत यी . सदग दे व क आ से उहने वयवसनी के िरम ि वन िीठ क िअनी सधन के लए च न थ . व उसी िवु त क एक अयधक ग ग म आज भी सधनरत ह . और उसी ग म मे री उनसे म लकत यी और दु न क सौभय प आ . थड़े ही समय बद म ने मन प क बौछर कर दी थी उन िर ,और व उतने ही ं त भव से मं द मत हकर म झे उर दे ते रहे और रहय क नवीन िरत क उधे ड़ते रहे .(उहने सै कड प के उर दए थे,िरत इस वे षं क म वषय वति र आधरत ज प ह ,म म उनमे से क छ क ही यहा दे रह ा...जससे वषय क समझन िअेकृत आसन रहे ग) सरल द म यही कह ज सकत है क सिू णु हं ड म जसक किन से सकर ह गय ह और जसके पभव से पकृत सृ जन, िलन और सं हर कमु म ज टी यी ह ,उसी चमयी िरिर यत क कह जत है . ये कसी भी ि म ह सकती है. इसक पभव सभी िर हत है र चहे व चे तन ह य अचे तन.पकट ि म हम जह दे ने क उजु दे ने क य र बल दे ने क त मनते ह,वे सभी भी इसी िर से ही प करते ह .येि र थू ल, सू म य कसी भी ि म ह सकती है . ये सभी पणय म वमन है , इसी के करण हम सृ जन तथ अय कमु सिदत कर िते ह. और वचर क उि क मू ल भी यही है . इसके कतने पकर हते ह ? भवग के आधर िर ग ण क तीन ही थतयं हती ह-
ठीक इही ग ण के आधर िर तीन यएा सृ जन ,िषण और ववं हती है . और इन य क के तीन आधरभू त मन(जनके र िअने कय क सिदत करती ह) संि करते ह . यद रखने यय तय ये है क जस पकर ग ण के तीन पकर हते ह, ठीक उसी पकर इन ग ण क अधी तीन मू ल अधी यं हती ह.
िऊर जब बत म ने मन क कही त उसक अथु यही हत है क तथ मन म कई भे द नह हत है , ये एक द सरे से पथक नह कये ज सकते है, मन इही य
क पे रण से िअने िअने कय क सञलन करते ह. जै से महकल व सं हर क, वण ि लन क और ह सृ के सृ जन क. एक पकर से ये समझ ल क सृ क कई भी कयु य कण नरथु क नह है. पये क य य पये क कण िू णु य हत है. क य के म म ये भी समझन अयधक िउयगी हग क मनव िअन वकस कर दे व तर तक िच सकत है और िअने अभी क प करत आ िअने अतव क सथु क कर सकत है. और ये थतयं तभी सय ह िती है जब िआ िरकृत ि से न सत य क सद सवु द के लए िू णु सं कित हकर िअन व बन ले ते ह. और यद िू णु त के सथ न सत यं िआक िरकृत अवथ म प ह गयी त कछ भी असय नह रह जत है .
ये िउर तीन मू ल य के ही िरवतत ि है. है य नह.... कम क अनवयु त सविर है . जीवन मि िरू णु त कम भव से ही आती है. सृ जन के मू ल म यही भव वमन है तभी त वे द भी कम क दे वत कहते ह . कम क मू ल ग ण आकषु ण है ... ज वन हते ह वे कम क इछ क ही ियु य मनते ह . तं त यहा तक कहत है क सृ म जतने भी पकर क ऐषणय ह,उनके मू ल म यही कम ही है. इस लए ये सिू णु व उसी िरम क इछ य कम भव क ही वतर कहलती है. जीवन के सरे चै त ,समजक और वै षयक नयम के मू ल म कम भव ही हत है. ि रमम से ले कर आम तक के जतने भी सबध हते ह वे सब आकषु ण,कम और मैथ न(यग) से ही य हते ह. कसी भी पकर क िरथत म कसी भी पकर के सभग म र व चहे आमक ह य बगत, व आद ही कम के ि मि रणत हती है कयु करती है.
इसे ऐस समझ ज सकत है क यद िआ कसी के आकषु ण म बंध जते ह और आगे जकर पे म करने लगते ह तब भी त िआ एक समय बद उसक िअने से पथकत सहन नह कर िते ह तब िआ य करते ह... उसे आम एककर करने क क करते ह . ऐसे म य त िआ उसमे वलीन हने क चे करते ह य उसे िअने म मलने क. भू ख सम करने क िआक ललस य इछ भजन के पत िआक आकषत करती है... अब ऐसे म उस भजन क ज थड़ी दे र िहले तक िअन अलग अतव थ... िआके भजन के पत आकषु ण के करण,उस भजन क स क ही अं त कर दे त है. ये नयम पये क पणी िर समनतर ि से कयु करत है. ि रमम से ही अं प कर आम मन य रीर धरण करती है इस म म मन य जम ले त है, जीवन के स ख क िउभग करत है और आखर म एक समय बद मृ य उसक वरण कर उस आम क ि नो िरमम क तर गतील कर दे ती है त य इसके मू ल म ि रमम क कम कयु नह करती है ज क व िअने अं क वलीनीकरण िअने म कर के संि करत है. य यहाि र सृ जन आ ..... नह न..... ले कन लौकक दृ से ये सं हर भी सृ जन क तर एक कदम ही त है. िआ कसी से जब पे म करने लगते ह त ती आकषु ण के करण उससे सभग करने क ती ललस क िआ य कह गे ..... य व म इय ललि त है ,नह... उसके मू ल म भी िआक िअने पे म य अभी से पथक न रह िने क चरम ललस ही त है ज क उसके अतव क यग िअने अतव से करवने के लए उि हती है. तब वह द ह ही नह सकते ..... रह जते ह त म एक ही. ये अलग बत है क एक सधक ,एक य ,एक यगी इस भे द क आम एककर म िअन कर दू र करत है और समय अवथ म समय मन य रीर क यग करकर. िरत तं रीर से िऊर उठ कर आम यग क बत करत है इसी कम क सहयग ले कर. इस पकर ये कम उसी आद क ही त ि हती है जसके वीभू त हकर व तम,रज और सत् ग ण क ि लन भ भ ि म करती है.
नह ऐस नह ह सकत है... सृ के आरंभ म जब सृ जन भी नह हत है,िलन भी नह हत है.तब ऐसे म म िू णु अधकर ही हत है ...जब म महन क िउथत ही िअने ि ू णु सकर य नरकर ि म हती है.और ये तम तव ही महकल है...जसके अधीनथ कल भी सद भयभीत रहत है . एक बत उले खनीय है क रीर क वसजु न कल के र सिदत हत है और आम िर कल क कई पभव नह िड़त है, आम सदै व कल सेि रे रहकर म महकल र ही तरहत हती है. उसी महकल क है महकली, ज सं हर भव क पणे त है . ये पलयन के मय कल से सबध रखती है ,इसी क िउथत से ये सं सर ववत बनकर सकर है , जै से ही इनक लि हत है ,व क व बनने म एक ण नह लगत है,चू ा क ये पलयन अथु त र से सबं धत ह और है इनक
सबध मय कल से तब ऐसे म ये जह तम क दु ती ह वही ये सं ं त ि म िअने अं दर रज अथु त िलन -ि षण और सत् अथु त सृ जन के ग ण क भी रखती ह. िरत महलमी तम भव से पे रत नह है और न ही मह सरवती ही रज से सबं धत ह. इसलए सं हर क ग ण त कदि इनमे नह ह सकत है. हा ये अलग बत है क महव ि म ये जब िअन यग तम से कर ले ती ह त ये सं हर भी कर सकती ह. नह ऐस नह है ,जब हम आद क बत करते ह त उसक अथु बत वरट हत है,आद से मे र मतलब से है, उही के तीन ग ण क अधी वे तीन मह ह. वै से ीक ल क मू ल मह व षडी ि र स दरी क मन जत है. िरत उनक मं और य महव ि म भ ही हत है ,और जब वे आद िर रज रजेरी हती ह त उनक मू ल ही हत है ज क इस हं डीय ि क यमतीय ि पदत करत है,ऐस ि ज अकिनीय य क पदत करत ह. रही बत िं चमहभू त क त पये क तव २ महव क पतनध है ,और इस पकर ५x २=१० हते ह, इसम भी यन रखने वली बत ये है क पये क तव के द ग ण हते ह .
इसी पकर पये क तव क द महव म से एक महव उ भव से य हती ह और दू सरी ं त पकृत से य हगी. जस पकर उस िर क से ही सू यु और च दन पकत हते ह, और सू यु जह उणत दे त है वह चं म ीतलत दे त है.ले कन कतने आयु क बत है क कर दे ती है. जीवन के पये क कमु क अधी कई न कई वे ष हती है.तं म जतनी भी यएा हती ह वे सभी कसी खस के अं तगु त ही आती ह,यही करण है क बध लग क जब इन कम क अधी क ही न नह हत है त भल उनके र कये गए तं क कमु कैस े सल ह सकते ह . अनतव कय गय कै स भी सरल से सरल पयग इसी करण सल नह ह ित है . इसलए यद य से सबं धत क न ह जये त यद उचत हत है.... जै से –
के अं तगु त आते ह . इसी पकर तं और उससे ज डी पये क य क यद वधवत पयग कय जये त य से सबधी िू णु स दे ती ही है.
?? दे ख ये त सही है क महव क िू णु त के सथ स कर ले न एक अलग बत हैि रत , बत बर सधक िअने जीवन क समय सेि रेनय य कय के लए सीधे ही इन महव क पयग करने लगत है , ज क उचत नह कह ज सकत है ,यू ं क ऐसी थत के लए त िआ जस महव क म िज करते ह ह य जसे वष से कर रहे ह , यद म उनके म क वखं डन रहय समझ कर म के उस भग क ही पयग कय जये तब भी िआ क समबधत समय क नत समधन मलेग ही. जै से मन लीजए कई सधक भगवती तर क िउसन कर रह है और उसके िरवर के कसी सदय क वय सबधी जटल बीमरी ह गयी ह .... तब इसके लए मू ल मं क दीघु सधन के बजय उस म य त त के एक वे ष भग क पयग भी अनकूलत दल दे त है .... - म से जल क अभमं त कर उससे नय रगी क अभषे क करे, त उसके रग क सम हती है. म से १००८ बर अभमं त कर अत े कने से ठी यी पे मक य िी विस आती है . म से अभमं त कजल क तलक लगने से कयु लय,वसय और अय लग क सधक महत करत ही है. वत तो मू ल सधन से स िने म बत सी बत क यन रखन िड़त है . जनके सहयग से ही उस महव सधन म स मलती है. यथ इयद. और एक नत जीवन चयु क भी िअनन िड़त है .तभी सलत प हती है ,अयथ ये सधनए त सधक क ते ल नचड़ दे ती ह ,इतनी िवरीतत बन जती है सधक के जीवन म क व इन सधन क स करने क सं कि ही मय म छड़ दे त है . रही बत द गु सती क त हा ,नय ही ये सं गिं ग तं क बे जड थ है और इसके मयम से दे वी के समवत और भ भ तीन ि के दु न कये ज सकते ह,बस उनके लए नत वध क पयग करन िड़त है . यद इसके लए क सधन कर ली जये त वली बत ह जती है . एक बत कभी नह भू लनी चहए क म ,उस म क इ और सधक ये तीन सधन कल म एकम ही हते ह
,यद सधक इसम अं तर लत है त उसे सलत नह मल सकती है . पये क सधन म
क कसी भी ि म सधन क ज सकती है, र व चहेि ष ि म ह य ी ि म ,उससे कई कु नह िड़त यू ं क लग बदल जने से क मू ल त नह बदल जत है.इसलए मन म ये भव कभी नह रखन चहए क येि ष दे व क सधन है त इससे क प नह हगी य ये ी दे वत क सधन है त इससे यद क प हगी. चहे व ि ष दे वत ह य ी दे वत, ऐस नह है बत कम लग हगे जह येि त हग क . और कल भै रव क क प क उनक मू ल त व आद ही त हगी,जसे नखल य रज रजेरी कह जत है. सै कड सधन म से क छ सरल मगर तीण पभव से य सधनएं न अन सर ह ,ज क सधक के जीवन क िअनी जगमगहट से भर दे ती ह और उसक िअू णु त क िू णु त मि रवतत कर दे ती ह.
– , (MAA RAAJRAJESHWARI TRIPUR SUNDARI,MAA MAHAKAALI SAMANVIT BHAGVATI CHHINNMASTA PRAYOG)
े ख स े आतर स े अज आस योग को े न े एक वश े ष नोट - बीजो ंखला े क वगत ल द े े क पीछ े अप मा ेरी, योजन ह - २१ तारीख को हण ै ह तो हण े क समय आस साधना को करक ू राजराज े मा ह और द ू महाकाली और मा ू छनमता का एक साथ अशीवा द ा कर लाभ ईठा सकत सरा े आस े सपन कर सकता ै यह योग आतना जटल नह ै ह आसलए हर कोइ असानी स ह ......ऄय न े आस योग को यादा वत े क े वल ु योग क तरह म म य तय ही अप सब े क ृ त ना करक े बंधा ह अ े े ख नह ै सम ह यक वतार क भ य ल ह , े य तो मा वभाय को ु ख रख मका स े लखन े क या ै े तो शायद हीरक कलम स ह ,यद वतार को पढकर हम आस साधना को करत े स े ना तो समझ पाय ग े और ना ही अमसात कर हम ईस परवत न और ऄन को सही तरीक ुभ त पाएंगे जो क आस ऄ ू ुभ तया ु त योग से होती है.हर साधना से सं बंधत हर साधक क ऄपनी ऄन े ऄन े साथ ना हो होती ह और हो सकता ै ह साधना े क दौरान जो ऄन ू ु म झ ह वो अपक ुभ तया ुभव इ
े स े भी क ज ै सा लखा था या बक अपको ु क छ और महस म आस वचार े क अ जान स हो पर मन े साथ ै े वास और समप ण बताया गया था े र म व सा य नह हो रहा हमार म कह कमी को दशा ता ै जो एक साधक का सबस े बड़ा ु और ऄपन े ह द मन ै ह .....और म यही चाह ंगी क आस साधना को कर े साथ बां ट े,म न े ऄपन े जीवन े सं पन करन े े ऄन म अम ह आस क बाद ुभव हमार लच ल परवत न पाया ै े अथ कता का ि े हो,या फर साधनामक या मानसक. फर वो चाह
तम सः मनवत: सं कलनम | “दयोव े प े ि ||” यी श त र घोर मतक ु े समत ां ड का चल ऄचल काय यवहार काल े क गभ म ऄपनी एक तय यवथा े क ऄन ु सार े चलता अ रहा ै े गा. परा शयां आस ऄनं त कप स ह और बना कसी रोक टोक े क चलता रह े आस पंच- भ ां डीय सं रचना े क कण – कण म वमान ह और यही शयां हमार म भी तक शरीर काय रत ह , ऄं तर सफ आतना ै ह क हम े हमार े बा प का ान तो ै ह , कत े ऄं दर जो एक ु हमार प ह हम ईसक काय णाली स े ऄनभ ह ..... ना े क वल ऄनभ ह बक रा ां ड समाया ह अ ै े तना हमारी ऄत म ऐसी कतनी ही ै द वी शया च प - चाप ऄपना काम करती जा रही ै ह आस ू ु े सं बंधत हमारी े े स ऄटल परम सय स च तना प ह . री तरह स ु ही ै े दन क मीटं ग हम सब जब माटर े क साथ कामाया गए े थ तो अपको याद होगा क द म सर े मा े म बताया ईहन क वभन क ल म वभन क बार ू कामाया े ्- वभन ् ु ्- वभन ् वप े एक ु े फर स े े मा था.....जनम क ल क ऄधाी मा ह . ईसी दन रात को ईनस म न ू काली भी ू काली े सं बंधत ऄपन े प े तो ईहन े ना े े े र े े े साथ ही साथ स क वल ु म झ म क ईर दए बक ु म झ छ ेरी े एक ऐसी साधना करवाइ जो मा क ू काली , मा ू छनमता और प ू राजराज ु र स ु ं दरी मा े अपक े लए यहा अशीवा द को एक साथ ा करन म ईपयोगी ै ह . अज वही साधना म द रही ह ू े ू जो ना े क वल ईपयोगी ै ह बक े ब हद सरल भी ै ह . े आस हमां ड माू काली स क ऄनादकाल स म श े क तीन प म थर ै ह ृ े १- ऄघोर श - जनका बाहरी प बहत वराट और भयंकर ै ह .... २- महा ऄघोर श - मा ू का यह वाप हम सां सारक मोह - माया म बांध के रखता है..... े मा े अप को दोहराता ै ३- और आस म म फर स ह पर आस बार वो भयावह ना ू का ऄघोर प ऄपन होकर साधक को साधना पथ पर ऄसर करता ै ह .... और आही प को ऄगर सम म बां टा जाए तो मा क दो प ह - एक वो जो गहर े नील े रंग ू काली े ह े लाल रंग का ै े ऄगर अक े का ै ह और द ह जस क प म समझा जाए तो आस ृ त े सरा वो जो गहर ै ु े समझा जा सकता ै े को काटत े ए म थ न च स ह ऄथा त दो कोण एक ु द सर ह ...... आस अक म कोण का उपरी शीष मा ह जो साधक को वाक ू काली क जीा का तीक ै ृ त ् स े व दान करता ै ह और वही द क गभ का तीक ै ह जस ू े सरी तरफ कोण का ऄं तम बं ुद मा
े ु गभ या काल गभ भी कहा जाता ै ह और यही वो बं ु द ै ह जो साधक को काल च स म करता ह अ े ऄमव दान करता ै े हम चं ड चडका या मा ईस ह . मा ह जस ू का यही प मा ू चंडी का ातीक ै ू े जानत े छनमता े क नाम स ह . े र े च े हर े पर सं ु े आस वषय को और सरल करत े ए म त े क भाव ना े खत द े ए ह माटर न ह समझाया े म ै रवी प को दशा ती ै क हमार म वलत जठरान मा क भ ह और मा ू काली े ू का यही लाधार े हमारी स वप ु क ं डलनी े क नाम स म स म रहता ै ह और ु क ं डलनी पर यान ु मना ु ऄवथा त करक े यद साधना क जाए तो म े लगता ै क म पं दन होन ह . लाधार े उपर ईठाकर हमार े ऄनाहत च पर लाती ै आसी जठरान को जब ु क ं डलनी श म ह लाधार स नरंतर ाण ईजा े ती तो यहा क प म ईपथत रहती ै ह जो हम द ै ह और ू मा ू काली भ काली े े वाली समयाओं का समाधान करती साधना पथ पर अन ह . आसी म म जब ु क ं डलनी थोड़ी ओर े तीसर े न े पर जहां कमल े जाग ह तो पह ह हमार क प म हाथ म खड़ग लए मा ंचती ै ू ृ त होती ै छनमता वराजमान ह ओर हजार करोड़ पय वाला जब यह कमल खलता ै ह तो ईसम ेरी जो ऐया क े वी थापत होती ह प द ह . ू राजराज ु र स ु ंदरी मा े े े े ऄब आन तीन े वय द का अशीवा द एक साथ ा करन क लए एवं ु क ं डलनी को जात करन क े लए साधना ु क छ आस कार ै ह . यद हण े क वार को छोड़कर अप ऄय दवस म योग कर रह तो अपको े े ऄगल े रववार तक नय ऄध राी स े पील े ह क वल ओर े क वल कसी भी रववार स े असन पर ै व धारण कर पील ब ठ कर नन मं का े क वल १५ माला मं जाप करना ै ह , माला े सकत े े अपक दशा प काला हकक या म ह ....याद रह ंगा क ल व होगी. े े ए े कम यद अप हण े क दन आस साधना को करत ह तो अपको माला का योग करत ह कम स े कम स े कम ५१... ऄधकतम ५१ माला करना ै ह बाक म म कोइ बदलाव नह होगा.....याद रह तो प े र हण काल े अप चाह म आस मं का जप कर सकत ह . मं-
SHREEM KLEEM VAJRAVAIROCHNIYE KLEEM SHREEM SWAHA
े जीवन ग े. आसक े साथ अपको ु और अप मा ु क छ दन म ही ऄपन म बदलाव े खन द े लग क छ ऄय ै स े बात का यान भी रखना ै ह ज १- जहा ू भी अपको गीदड़ , सयाह कौअ , बाज , या काली बली दखाइ दे ईसको मा ू काली का तीक मान कर नमन कर .
े लाल फ े पर पड़ े तो ईस े मा ेरी का २- आसी म म यद अपक गहर ू राजराज ल या कपड़ े ए . तनध मानत ह णाम कर स अद दखन े पर ईस े मा ३- यद अपको गहरा नीला या जाम ू छनमता ु नी फ ल , हाथी , रथ या भ े चह े . क क प म नमकार कर स े अपको ु साधना े क दन म हो सकता ै ह आनम क छ भी दखाइ ना े द मगर फर भी ु क छ दन े क े अपको ऄपन े कारोबार , द ै नक दनचया और साधनामक चंतन ऄं तराल स म आस साधना े क सकारामक भाव मलने श ु हो जायगे... एक बार वंय करके आससे लाभ जर ले.
- (TRIKOOTAATMAK MAHAVIDYA SAMANVIT TRAYISHAKTI SADHNA) |
स ृ जन पलन संहर े तीन ग े ु क य ै ह मा ू जगत जननी लीला वहारणी ेक तीन प महासरवती,महालमी और ु ण स महाकाली ....... वत य तीन प नह ह ऄपत क तीन ग य कहो क तीन चं तन ू अदश े ु तः े ु मा ु ण या े ै... जसक साकारता ईनक े ईपरो तीन प करत े ह ह | या कभी सोचा ैह क स म मा ू अदश क कौन सी तीन शयां काय ृ जन ,पालन और संहार म े भाव ेक ारा ईपरो करती ह | चलए े य तो अपको ात ही होगा क कौन कौन सी शयां ऄपन े ात ै े भाव दायव नभात े कम को सं पादत करत ह , साथ ही े य भी हम ह क ईन कम े क त कौन स | ह स ु ण न श ृ जन सतग पलन रजोग ु ण यश संहर तमोग ु ण इचश य े तीन श ऄनवाय होती ह पर ेक वन को साकार करन े े क लए | उपर जो म दया ै ह े तो जीवन ेक कसी भी ि े े मा यद ईसी स म हम ऄसफल नह हो सकत ह | को हम दयं गम करल े े े स ानश ेक या ा स थ ? कदाप नह,ईनक ृ का स ृ जन बना ान ेक कर सकत ृ जन का काय े ऄपनी ानश को महासरवती ेक प ऄभाव म फलीभ म ईह त नह हो सकता था , आसलए मा ू न दान कया तद ृ जन का काय संपादत हो पाया | ु परां त ही स े ित वण म सफलता े क लए आछाश का सहयोग ऄप ु जी को ा ारा रचत स ृ ेक पालन कम महालमी क ा यी े दायव नवा ह था,तभी ईह ह और ेव ऄपन म सफल हो पाए |
सदाशव को संहार कम े क लए मा ह और ेव शवान होकर संहार कम ू अदश का आछा प ा अ को संपादत कर सक े | ऄब अप ही सोचय े क भौतक और ऄयामक जीवन े क ऐस े कौन स े कम ह जसक प त आन यशय े स नह हो सकती ै ह | ऐय सौभय संतन ग ु णवन जीवनसथी भौतक सपद मनकमनप ू त आरय दीघ य ु प ू ण व इ यकरण े सभी े य क सभी आही यीशय ेक ऄधीन ै ह | सप क समत कम आही े क ऄधीन ै ह और ण ाड े े क ऄप ेिा नवरा ऄधीन ै ह परणाम भी | ऄतः ऄलग ऄलग प क साधना करन म सं ु य प क ऄच ना कर कही ऄधक तीता े स कम परम े क ारा सव व ा कया जा सकता ै ह | यहा ू बात मा भौतक ईपलधय क नह हो रही ै ह ऄपत े जीवन का चरम लय “ क ु कसी भी साधक क ु ं डनी े सहज हो जाती ै और दस महवओं े जगरण ” भी आस या स ह | नव ु द ग क समवत प क े य े मजब साधना ै ह ही ऐसी क साधक ेक कमजोर अमबल को स द ु ड कर समाज ेक सामन त अधार ेद े ती ै तब ईसका ु े क ऄप ेिा े र े लए कही ह क छ भी पाना ऄसंभव नह रह जाता ै ह | और वत म ृ त याया करन े भाइ बहन े े ेव वयं ही आस ऄन यादा े हतर ब ै ह क म आस योग को ऄपन क सिम रख योग ं ,जसस ुभ त े | आस बार क नवरा १० दन क ै को संपन कर आसका ै व श लाभ ईठा सक ह ,ऄतः मा ू क क ृ पा लाभ ा अ े क | आस योग को सदग े व न े का और ऄधक ऄवसर हम ह ै ह ,अवशयकता ै ह मा लाभ ईठान ु द १९८६ म संपन करवाया था | साधना वध : े राकालीन साधना ै े नवरा य ह कत म ातः काल भी कया जा सकता ैह | ु आस े त,ग े व योग कय े जा सकत े साधना ेक लए ह | ु लाबी,लाल या पील े रहना चाहए और साधना काल म दीपक े ल त का वलत होगा ,और े य सप म जलत ण साधना काल े तो ऄत ईम | यद ऄखं ड दीपक क योजना क जा सक भोजन हका और स ह | ु पाय होना चाहए ,चय क ऄनवाय ता ै दशा ईर या प व होना चाहए | े रंजत िऄत, ु सामी ेक नाम पर पीला व,११ प क ं ु क म, पान, जा क स ु पारी, १ कलो हदी स े व े का साद और फल लग,आलायची, कप प प,नारयल, पं चम र, जायफल, आ, ऄगरबी क भम, नीब , ु तथा दिणा राश चाहए | जप माला म ु त लसी माला छोड़कर कसी भी माला का योग कया जा सकता ैह ,यद माला नवीन हो तो बह त ऄछा | े साधना े | साधना दवस क ातः भगवान स म सफलता क ाथ ना कर य को ऄय दान कर ईनस
े साधना फर जब साधना ारंभ करना हो तब नान अद या संपन कर वछ व धारण करक िक म लाल या पील े असन पर ै ब ठ जाय े और प स सदग े व, गणपत ण पं चोपचार या षोडशोपचार वध े ु द का प े और ५ माला ग े व स े ऄपन े सं कप क (जस भी जन संपन कर ु मं क संपन कर सदग ु द कामना े स अप मं जप कर रह े ह ) प ह ु अशीवा द ा क ाथ ना कर े | त े त तपात बाजोट पर पीला व बछाकर ईस पर मा ू ुद गा का च और यद य हो तो य थापत े , च े े गोलाकार प े िऄत क े री े और य े क े री कर क सामन म दस पील ढ बनाय ढ पर १-१ स ु पारी े | ईस गोल े े ण कर ईस े री े | थापत कर क बीच म भी एक और े री ढ का नमा ढ पर जायफल थापत कर े . च ेक बाएं तरफ एक और चावल क े री ढ बनाकर ईस पर एक और ु स पारी थापत कर े दए ए े समझ सकत े आसको हम नीच ह च क सहायता स ह मा क य य ि एक और े री ै रव दीपक - गकर अत क १० े ढ रया और बीच म ढ - भ े ईपरो मान ु सार सामय क थापना ेक बाद अप नन यान मं का ९ बार ईचारण कजय म े षजतो,वथ ैो म ॎ ु द ग ृ त हरस भीतमश ृ त मतमतीव श ुभं ददस | दर द खहरणी क वदयो सवपकरकरणय सद च || ् य ु नमम भवस दस व गीतम || तद ह ईस कामना क प ू ेक च त का सं कप लीजए | संकप ेक बाद मा ु परां त अपक जो भी कामना ै े | आसक े पात जहा ै रव या य का ुक ं ु क म तथा पं चोपचार वध े स प ढ ेक उपर भ ू पर े री जन कजय े तल और िऄत,क े “ॐ भं भ ै रवय नमः” बोलत े ए तीक म स क म स ह ु पारी राखी ैह ईनका ग ु ड,काल ु ं ु े नन मं का ईचारण करत े करना ै ह तथा जो दस स ढ पर रखी ै ह ईनका म स ु पारी ऄलग ऄलग े रय े और मा े सफ मा ह प क ं ु क म ऄप त कर ए ू ध ू ध जन कर मावती ेक ऄतर सभी को ु मावती को भम ऄप त े | कर ॎ महकलय ै थपयम ू प जयम ॎ भगवय ै तर थपयम ू प जयम ॎ त थपयम ू प जयम ॎ भ ेरी थपयम ू प जयम ु वन ै रवी थपयम ू ॎ भ प जयम ै थपयम ू ॎ चं डचं डकय प जयम ै थपयम ू ॎ दणय प जयम ( यहाभम अप त करन ै ह ,क क म नह ) ु ं ु ॎ वलगश थपयम ू प जयम ॎ उिछ प जयम ् चं डनी थपयम ू ै थपयम ू ॎ कमय प जयम सभी शय का प क म, िऄत, लग,आलायची तथा पं चम े व े स े करना ै ह ,आसक े बाद जो क जन,क ु ं ु वाली े री ढ पर जयफल रखा ै ह ईसका प ै जन “ सव श त महकीमहमीमहसरवय े ए े करना ै थपयम ू प जयम” बोलत ह ईही सामय तथा आ,पान,कप ह र,नारयल तथा नीब स ै सा ऄय का कया था | तथा दीपक वलत करन े े ,ज क बाद ईसका भी संि प ल | जन कर े े ए े ऄब जायफल पर नवाण मं का ईचारण करत ह ५ मनट तक ु क ं ु क म ऄप त कर ै वछच े” “ ऐं चम ु ं डय
“AING HREENG KLEENG CHAAMUNDAAYAI VICHCHE”
े नवाण मं ेक बाद ११ माला नन क ू टमक महव समवत यी श मं क कर OM DURGAAYAI KLEEM SHRIYAI KREEM SIDDHIM DEHI DEHI PHAT ||
े ए े ,तपात म जप ेक बाद ु प नः नवाण मं का ईचारण करत ह ु प नः जायफल पर ुक ं ु क म ऄप त कर े | आस कार सदाी दवस तक आस योग को करना ै े योय अरती तथा जप समप ण कर ह |याद रखन मा ऄखं ड दीपक क थापना करक े ईसक तय े य ै ह क जह द गा े क बबामक दश न करना ैह ईह ू ु लौ पर एकाताप द े ए ह जप करना ैह ,मं जप े क मय या ऄं तम दवस ईस लौ म मा क वप ू े व क े खत े दश न कर सकता ैह | ऄं तम दवस आसी म े दान करनी क म वह लगाकर १०८ अह त घ ृ त स े साधना प त चाहए,जसस ह और १,३,५,७,९ कया का सामया न ण हो जाती ै ु सार प जन कर दिणा ऄप े अशीवा द ल े ना चाहए |साधना काल कर ईनस म शरीर का तापमान बढ़ जाता ै ह और े हर च े पर े ज त का े कप े लगती वाह बढ़ जाता ैह ,साधक ेक शरीर स प प क भीनी भीनी गंध वाहत होन र और ु ै,अनं दातर े क े े जाता ै ह स साधक का मन अलावत होत ह | े य साधना ती भावकारी ै ह मनोरथ प त े ेिा आसक ऄन करन म कत स ह | तदन नमा य ु ऄय ती साधन क ऄप ुभ तया ु खदायक ही होती ै ै रह) को ऄलग रख ेद और नवीन सामी े े , साधना ेक बाद ईस े कसी स (प स प ु प,लग वग जन कर ु नसान े गा नारयल पहल े और ऄं तम दन समप त करना ै े साधना ेक बाद जगह पर रख ेद |याद रखय ह तथा ईस हमार े सामन े ै यक म वसज त कर े ना द ै ह नवरा का पव ह फर वलब य ू | ु ं ड
( GOPNIYA TRAYI NAVARN SADHNA) क सधन वत तो कण क ही सधन कहलती है ,अधम खी कण क ही पतीक हत है. द गु सती तीन चरत म वभ है – पथम , मयम और उम चरत . और ये तीन चरत िआस म मलकर एक कण क ही नमु ण करते ह. पथम चरत कली क ल के अं तगु त आत है, मयम चरत ी क ल के अं तगु त आत है और उम चरत सरवत क ल के अं तगु त आत है. हम सभी जनते ह क सधन जगत म इस क बीज म ‘ ल ’ है. बत कम सधक क ित हग क द गु सती के पये क अयय के िू वु ९-९ मल नवणु म क िज कर ले ने से कतनी सहजत प ह जती है. िरत द गु सती के ि थ के िू वु बटक भै रव मं और त क िठ िआक सधन मि ू णु अनकूलत ल दे त है. और यद हमरे मन म यी य म से कसी वे ष के पयीकरण क भव ह तब ऐसे म इसके लए इन य से सबं धत नवणु मं क ही वे ष वध से िज कय जन चहए. पये क क िअन िअन नवणु मं है ज वे ष बीज से य है. और इन य क समवत नवणु म त हम सभी जनते ही ह . ‘ ल चम डयै वे’ ये मू ल नवणु मं है .‘ॎ महकयै वे’ - कली क ल य पथम चरत क नवणु म है .‘ॎ महलयै वे’ - ी क ल य मयम चरत क नवणु म है .‘ॎ ल सरवयै वे’ – सरवत क ल य उम चरत क नवणु म है. और यहा प ये उठत
है क इन नवणु म के िहलेॎ क पयग यू ा कय गय है जबक समयतो नवणु म के ि हलेॎ लगने क वधन नह है, त व म इसी करण क क ल वे ष के नवणु मं ॎलगने के बद ही ९ वणु के ह िते ह. इनके मयम से न सु सधक िअने अभी क प कर सकत है अित इन मू ल य क भी दु न कर सकत है. सधन वध - मं गलवर क मय र म कली सधन और स हे त – नीम के वृ के नीचे कले व धरण करके महलमी क स के लए वव वृ के नीचे लल व धरण करके भगवती सरवती के लए अक वृ के नीचे े त व धरण करके बै ठकर सधन करन चहए. सधन के िू वु सबं धत व धरण कर सबं धत रंग के आसन िर बै ठ कर सदग दे व और बटक भै रव क ि ू जन संि करन अनवयु है, उडद के बड़े और दही क भग लगन चहए.और ‘भं भै रवय नमो’ म क ३ मल संि करन चहए. तित मू लधर च के वमी भगवन गिणत क िू जन अचु न करन चहए और ‘ गं गिणतये नमो’ म क ४ मल िज करनी चहए. इसके सथ ही ‘ॎडकयै नमो’ मं क २१ बर उरण कर भू म िर बय तर एक सि री थित कर दे.ऐस करन अनवयु हत है. इसके बद समने बजट िर सबं धत रंग क व बछ कर एक अध म खी कण क नमु ण करे, ये कण गंध से नमत हन चहए. कण नमु ण करते समय सबं धत दे वी क नवणु म िज करते रहन चहए. उसके बद दे वी क मू ल यन म ११ बर उरत करन चहए ‘
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कण के मय म जहा बद अं कत है वहा कले तल क ढे री बनकर उस िर गौघृ त क िदीक पवलत कर दे. उस िदीक क तथ कण क तीन भ ज क िू जन मू ल नवणु म से करे, अथु त ि ि ,अत , तलक ,धि , िदी और नै व समित करते समय ‘ ल चम डयै वे अत सिमु यमी ’ धूि ं सिमु यमी आद उरत करे.तित मू ं ग मल से सबं धत दे वी क नवणु मं २७ मल िज करके ‘ ल ल ’ म क ५१ मल िज करे र ि नो से सबं धत दे वी क नवणु मं २७ मल िज करे. इस पकर तीन दन तक करन है. िज के समय दृ िदीक क लौ िर क त हनी चहए.अं तम दवस िआक सबं धत दे वी के जवयमन दु न हते ही ह तथ अय कय म आ रही बध भी सम ह जती है. ये हमरेजीवन क सौभय है क सदग दे व के आीवु द से ऐसी गिनीय सधन पक म आई है. म ने वयं इस सधन के र उस थत क दे ख और समझ हैि रख है , तभी इतनी नतत से िआ लग के सम ख इसे रखने क सहस कर रह ा. जीवन के पये क कमु क अधी कई न कई वे ष हती है.तं म जतनी भी यएा हती ह वे सभी कसी खस के अं तगु त ही आती ह, यही करण है क बध लग क जब इन कम क अधी क ही न नह हत है त भल उनके र कये गए तं क कमु कैस े सल ह सकते ह . अनतव कय गय कैस भी सरल से सरल पयग
इसी करण सल नह ह ित है . इसलए यद य से सबं धत क न ह जये त यद उचत हत है.... जै से – वीकरण – वणी तभन – रमवे षण – ये उटन – द गु मरण – चं डी य कली के अं तगु त आते ह . इसी पकर तं और उससे ज डी पये क य क यद वधवत पयग कय जये त य से सबधी िू णु स दे ती ही है. भल व कैस े संभव है ?? यू ं क महव इयद म त अयं त जटल कहे गए ह कई बरल ही इसम सलत ि सकत है, ठीक इसी पकर म ने ये भी स न है क द गु सती एक तं क थ है , और म ने ये भी स न है क यद सही तरीके से इसक िथ य पयग कय जये त के पय दु न संभव हते ही ह, और वह कौन सी मू ल य है ज सरल और सहज भव से जीवन के चत वध ि षथ क प करवती ही है ?? दे ख ये त सही है क महव क िू णु त के सथ स कर ले न एक अलग बत हैि रत , बत बर सधक िअने जीवन क समय सेि रेनय य कय के लए सीधे ही इन महव क पयग करने लगत है , ज क उचत नह कह ज सकत है ,यू ं क ऐसी थत के लए त िआ जस महव क म िज करते ह ह य जसे वष से कर रहे ह , यद म उनके म क वखं डन रहय समझ कर म के उस भग क ही पयग कय जये तब भी िआ क समबधत समय क नत समधन मले ग ही. जै से मन लीजए कई सधक भगवती तर क िउसन कर रह है और उसके िरवर के कसी सदय क वय सबधी जटल बीमरी ह गयी ह .... तब इसके लए मू ल मं क दीघु सधन के बजय उस म य त त के एक वे ष भग क पयग भी अनकूलत दल दे त है .... ‘ तरं तर -ि रं दे व तरकेर -ि ू जतं , तरण भव िथधे तरं भजयहम्…. ं ट्’ - म से जल क अभमं त कर उससे नय रगी क अभषे क करे, त उसके रग क सम हती है .‘ ’ म से १००८ बर अभमं त कर अत े कने से ठी यी पे मक य िी विस आती है . ‘हं सो ॎ ं हं सो’ म से अभमं त कजल क तलक लगने से कयु लय , वसय और अय लग क सधक महत करत ही है. वत तो मू ल सधन से स िने म बत सी बत क यन रखन ि ड़त है . जनके सहयग से ही उस महव सधन म स मलती है. यथ रीर थिन इयद. और एक नत जीवन चयु क भी िअनन िड़त है .तभी सलत प हती है ,अयथ ये सधनए त सधक क ते ल नचड़ दे ती ह , इतनी िवरीतत बन जती है सधक के जीवन म क व इन सधन क स करने क सं कि ही मय म छड़ दे त है . रही बत द गु सती क त हा , नय ही ये सं गिं ग तं क बे जड थ है और इसके मयम से दे वी के समवत और भ भ तीन ि के दु न कये ज सकते ह, बस उनके लए नत वध क पयग करन िड़त है . यद इसके लए भगवती रज रजेरी क सधन कर ली जये त सनेि र स हगे वली बत ह जती है . ,
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. VEERBHADR TANTROKT SARVESHVARI SADHNA(
) िअने िआ मे गिनीय सधनओ क सं ह है, यह ग थ मे अने क सधन रहय दये गए है ज क िअने िआ मे सरल तथ पमणक है. एक समय िर यह बहत ही बड़ त सहय थ आ करत थ ले कन इसके कई भग कल म मे ल त क प ह गए. खे र, इस थ मे कई दे वी दे वतओ क सधन वधयं ि क गई है जसमे मरण, वीकरण, आकषु ण, महन और कयु स से सबं धत पयग नहत है. पत त पयग थ क एक कमती र है. यह सवरी सधन है. इस सधन क मं वयं स है इस लए सलत क संभवन यद है. सथ ह सथ इस मं क एक और खसयत यह है क इसम सधन म क च नव ख द कर सकत है तथ िअने मनकल िरणम के लए पय कर सकत है. इस पकर तं के े मे यह एक अयधक महिवू णु और गिनीय पयग है. इस सधन क करने के लए सधक कसी ऐसे थन क चयन करे जह िर उसे सधन के समय िर कई भी घन न आए. सधक क पयग मं गल वर री से करन चहए. मल क रहे तथ व और आसन लल. द उर रहे. सधक न ि से इस मं के ववध पयग कर सकत है. मं के सबंध मे ववरण जस पकर से दय गय है वह इस पकर है. १) इस मं के मरण म से सवु भू त रस द हसक ि डकनी यगनी इयद सवु बधओ क नवरण हत है. जब भी इस पकर के कई खतरे क ं क ह तब इस मं क ७ बर जि करन चहए. इस पयग के लए म मं यद हन ज़री है. यह वयं स है, इस लए इस पयग के लए इस मं क स करने क वधन नह है. सीध पयग मे ल सकते है. २) इस मं क एक हज़र बर जि कर लय जए त क यद ती ह जती है तथ मे घवी बन जत है ३) अगर १०००० बर िज कर लय जए त उसे सवु न अथु त कल न क प हती है
४) अगर इसे एक लख जि के अन न के ि मे जि कय जए त क खे चरव य भू चरव क प हती है. सधक ख द ही िअने इछत पयग के लए दन क चयन कर सकत है क वह इतने दन मे इतने मं जि करेग.
यह ती मं है अतो कमज़र दय वले सधक क इस मं क सधन नह करनी चहए. Kumari poojan sadhana - why it is so importance necessary ?
क छ ऐसी सधनए ह कनक महव /पभवलत /िउयगत िअने िआ म अतीय हि र कतने लग इन तयक जनते ह .
य कई एक ऐसी सधन ह ज दन पत दन क समयओ से नजत दल सके? य कई एक ऐसी सधन ह ज हमर ब रे भय क भत म बदल सके ? य कई एक ऐसी सधन ह ज ितृ दष , वत दष , ओर नव गृ ह दष क भी बदल सके ? य कई एक ऐसी सधन ह ज हमरी आयमक उत के मगु म आने वली कवट क भी बदल सके ? य कई एक ऐसी सधन ह ज हम भौतक ओर आयमक दन उत पदन कर सके ? य कई एक ऐसी सधन ह ज समत तं क सधनओ क आधर ह ओर हम सलत पदन करव सके ?
और म यह कहत ा क एक ऐसी सधन ह ज इन सरे प के उर हा म दे सकती ह हमरे जीवन क सवगीण उत म सहयगी ह त वहसधन ह " कमरी िू जन सधन " ि रत इस क हमरी सधन क सलत से य सबध ह सकत ह .
और यह सधन /िू जन त नवर कल म हत ह तब इसक यहाि र दे ने क य उदेशय ह . यह हमरी अनत ह क हम सभी सधनओ के मू ल आधर सधन के बरे म न त जनते ह नह उसक और यन दे न चहते ह . िू जन त चल ठीक ह इसे सरल मन ज सकत ह िर जब इसक गहनत , गंभीरत , उत से इसके बरे म जने तब समझ िएं गे क य ह यह सधन िू जन ित. और सब ये जनने के बद यह हको िएं गे क यह त मेर दभु य थ क म इस सधन के वषय म नह जन ि य . जगदब सधन cd म सदग दे व जी कहते ह क मा जगदब सधन के लए कसी भी वे ष समय क आवशयकत नह ह . जसे जब भी समय मले वह इस सधन क कर सकते ह . क मरी ि ू जन सधन भी मा जगदब सधन क ही एक ि ह . वमी व नं द ओर मा आनं द मयी जै से उ कट के मह यगी य ने भी भू री भूरी पसं क ह . ि र ऐस य जबक ि ष ओर महल एक बरबर सधन े म मने जते ह तब यह वे षत एक ही ि मतलब क मरी क और ह य . हा यह बत सही ह क ि ष ओर महल दन ही बरबर ह . िर यह भी त सय ह क इस व म कई भी द चीज एक जै सी नह हती ह . हर क कई न कई व वे षत हती ही ह . जस तरह से ि ष क व वि मन जत ह वही महल वि क क पतीक मन जत ह . िर बन के व भी व के समन ह . य िआ जनते ह क सम / नगं ज म क मरी ि ू जन सधन क सविर सधन मन जत ह हमरे पचीन तचय ने नरी क क वि मन गय ह सथ ही सथ उहने क मरी वि क क सवुधक पभवली पतीक मन ह . यहा तक क उहने आय के आधर िर कन कन वे ष क पभव यद पदत हत ह .
१ वषु --- संय २ वषु -- सरवती ३--- धमत ४-- कलक ५-- सभग ६-- उम ७-- मलनी ८ क जक
९--- कलसदभु १० िअरजत ११ नी १२ भै रवी १३ महलमी
िआ इन कयओ क अयं त ही वन भव से आमंत करे ओर इनक सं य एक तीन िं च इसी मम ह सकती ह . इह मा िरब क वि मन कर इके चरण क जल से धएं . र िअने ही व सेि ौछे . र तलक लगने के िउरत इह वभ पकर के भय ि दथु अित करे . र इनके चरणिु करे सथ ही सथ यय कई व भट करे और यथ यग दण म इतन िअु ण करे क ये कय िआके यहा से पसभव से जये .( क छ लग दण कम दे ते ह िर .. तब वे यद इस ओर यन दे क इस िू जन क और उन कयओ क पसत क य मू य हग वह ये सब नह कर िएं गे ) कसी भी हलत म नमक अित न करे भजन के िउरत ि न अित करे. जब क मरी पस हकर जये गी त मन माि रब ही पस यी ह . क मरी िूजन क इसलए मह ह क सृ ी के परंभ म मा नय लील वहरणी क यही वि रहत ह ज क क मरी वि ह . अने क कसी िीठ वे तो महिीठ ि ीठ मा कमय ि ीठ म इस तरह क िूजन करवते ह उह क अवशय लभ मलत ह ओर कतन ? उसे लख िने म असमथु . य मा के इस ि के पभव क कई सीम ह . जब भी िआक मन ह , २१ st क , कृण ि क अमी क , य कसी भी सधन ि ू री करने के के िउरत िआ इस क कर सकते ह . जनकेि स कसी भी बड़ी सधन क करने क समय नह ह वह इस क करके िअने जीवन म सव गीण लभ प कर सकते ह . जनके िऊर मा क कृि ह उसे भल कौनसी चत .... DURLABHTAM SHAREER UTKEELAN AUR SW SHAREER RETAS (SATV
औ ( ANSH) SHODHAN VIDHAAN ( ) )
सधन मे सफलत कैस े स भ हो सके? यही सबसे बड़ हर कसी के समने खड हो जत ह और मनलो कसी को प ू व जीन के कमव फल य गत मे कसी सधन को करने के करण स सधन सफलत मल भी जए तो ह भी यह नत नही रहत क से गली सधन मे फर से जदी सफलत मल ही जये गी, खर ऐस य होत ह ??? सक करण ह क हम क त म ु छ बह ू ल भ ू त बत क पत ही नही रहत ह . जनके पर सरी सधन मगव क धर त भ टक रहत ह . यक यह सब गोपनीयत और ग ु ढ़त तो सदग ु दे जी के ी चरण मे बैठ कर ही समझी ज सकती ह . सदग देव जी ने अय त ु कणा वश इस वधान को समझाया था, पर हम उनके हर वाय को वाय मानने तैयार तो हो जाते ह पर उनके काय का और य कोई बात उहने कसी जगह वशेष पर कह, उसका म ू लया ु कन नही कर पाते और जब म ू लया ु कन नही कर पाते, उस बात क ग ुभीरता को नही समझ पाते तो .....और जब ग ुभीरता नही समझ पाते तब उस बात या तय को अपने जीवन मे उतार भी नही पाते तब असिफता तो फर नत सी ह . जबक ज समय ह क हम सदग ु दे जी के एक एक य, खसकर जो हने एक सधक के लए, सधन के लए कह, नको समझे, नक मनन कर और स पथ पर पनी कड छोड़कर नत के सथ गे बढे . थम बात तो यह ह क अनेको शाप और कमओ और य ू नताओ ु से ब ुधा हमारा शरीर ह जो क कई कई कारण से शाप त हो सकता ह कसी को अकारण न चाने से, कसी जीव को जाने अनजाने चोट पह चाने से और क छ सान पह परवार मे ही देव या देवी क उचत प ृ या प ू जा न होने से या पत ू वज के त दन वशेष मे उपेा रखने के कारण, हमारा प ू रा शरीर ही या, प ू रा जीवन ही कित ह और हम इसके पास तो उसके पास दौड़ते रहते ह और कोई भी उपाय
हमारे काम नही आता नही करता तो सबसे पिहे आवयकता ह क अपने शरीर का उकिन कया जाए.
ब समय त ह शरीर के परद क, जसे ीयव भी कहते ह जसे रेतस य ब द ु भी कह गय ह और स श भी कह गय ह .चीन कल मे प को भी शीवद द ख समे यह जर कह जत थ क ीयव न भ यक बन स श के यह जीन म ृ त य ह , पर हमारे शरीर का सबसे श तम भाग ही ख द कित ह, अशोधत ह और जब तक इसे किन से छ टकारा न िदा दया जाए, इसको शोधत ना कर दया जाए ,तो इसके बना साधना मे उचतरीय सिफता मानो म ृ ग मारीचका ही ह और या .
हम स रेतस त को क ु छ जीब सी ी से दे खते ह, जबक यह पर ह, जस तरह परद भगन श क स श ह, ठीक सी तरह यह रेतस हमर स श ह , कहते ह सनन मे सफलत तभी मलती ह जब सधक और सय एक हो जए ,पर कैसे हमर सबसे श ु त स श ही कलत ह तो ह कैसे हम हमरे से प ू णव एककर करने दे ग, से भौतक नही यमक ी से समझन होग . यक स श ु तम त स श जै से ही शोधत ह , प पओगे क प ब परे को भी सनी से शोधत कर पय गे यक तम त यद ब परद से सब धत ह तो शरीरगत त ू प र क ू प र सी स श पर ही नभव र ह . गे बत को न बढते ह ये . स िय मे परद णव न ु स गोलक क म ु ख भ ू मक ह जन के पस यह द ु लवभ गोलक ह ह स गोलक के समने स िय को कर और ह त ही पय गे क
नक पर जब शोधत होत जएग और नक रेतस य ही ओज मे बदलत जएग और नके चे हरे पर एक नयी भ, नय ते ज त ही झलकने लगे ग . पर जनके पस यह गोलक नही ह ह भी दस होने क जरत नही ह बक े भी प ू णव मनो योग से यह िय हर दन पनी सधन य दै नक प ू जन र भ करने से पहले कर नय ही सम जयद समय तो लगे गही . यक कसी भी दयता को आपम समाहत करवा सकने क सामय जो पारद मे ह कसी अय मे नही . त समय क ु छ यद लगे ग पर पलधय , जो स कलन से म ु के बद य सधन करने पर नमे जो सफलत मलन रभ हो जये गी..हर दन पक यह िय समय तो लेगी पर सक बद मे परणम तन स ु खद होग क कय गय सधनमक म पने प मे लगे ग क सथवक ह . कसी भी सधन क यक र भक िय जै से दे ह श ु ,स कप ु दे प ू जन , सदग ,ी भगन गणे श ू प जन , ग ु म जप करने के बद स क एक पठ करन ह . पर वध इस कार ह क
१.पहले सत बर शपोर म जप फर िम क एक क म जप एक बर २. फर शपोर म ु टीकरण सत बर जप , (मतलब हर म क शपोर म से सप ह ) ३.सके बद फर एक बर ू द सरे िम क क म एक बर जप फर सत बर शपोर म .स तरह हर म के सथ मतलब प ुरे १८ म ो के सथ पको करन ह .स तरह क एक दन क कयव प सके बद पको जो भी सधन करन ह प कर सकते ह .धीरे ू र ह धीरे प यम पय गे क प मे एक यव जनक परतव न न श ु हो जएग. यह
िय को मनगढ त नही ह प पहल म दे ख समे जो ‗रेतस‘ क बत ह ह य ह ही तो ब द ु ह ही स श ह . त मे यह एक ु त यव जनक योग ह . जसे हर य को करन ही चहए, और से तो एक नयवि म बन ही ले तो परणम भी पको ही होग . स िय को स तरह से करने क धन तो सदग ु दे र ही नद शत कय ह ह ,ब यह य शे ष पर ह क ह स धन को कतन मह दे त ह . पराबा श म ु ( जस
म से म ु दए ह ,उसी म मे जप कर और ठीक उसके बाद कतनी बार जप करना ह उसका यान रख ) ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
.ॎ रेत: पयै मध ुकटै भमदव यै हश म शपेय: म ु भ |( एक बर जप कर ) 1
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ ब ु पयै महषस ु रसै य नशयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 2
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ र र पयै महषस ु र मदव यै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 3
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
.ॎ हश म शपेय: म ु भ ||( ु ुध पयै दे दतये एक बर जप कर ) 4
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ छ छय पयै द ु ू त स दयै हश म शपेय: म भ | |( एक बर जप कर ) 5
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर ) ॎ श श पयै ध ू लोचन घतयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 6.
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर ) ॎ त ृ त ृ ष पयै चड़ म ु ड़ ध करयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 7.
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
.ॎ त पयै र बीज ध करयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 8
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ ज जत पयै नश ु भ ध करयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 9
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ ल लज पयै श ु भ ध करयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 10
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
.ॎ श श त पयै दे त ु यै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 11
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ पयै सकल फलदययै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 12
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ ि क त पयै रय र दयै हश म शपेय : म ु भ ||( एक बर जप कर ) 13
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ म मत ृ पयै नगव ल कहमसहतयै हश म शपेय : म ु भ ||( एक बर जप कर ) 14
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ द ु ुद गवयै सयव करयै हश म शपेय : म ु भ ||( एक बर जप कर ) 15
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ ऍ ल नम: शयै भे कच पयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 16
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )
. ॎ क कयै फट ् हयै े द पयै हश म शपेय: म ु भ ||( एक बर जप कर ) 17
ॎ ल ि ि चडक दे यै शप नशन ु ह क ु क ु ह ||( सत बर जप कर )